Friday, 11 December 2015

rangmahal ki sidhiyaan

देख तो मेरी सखी ,अपने धाम की अलौकिक सीढ़ियाँ ---सीढ़ी दो मंदिर की जगह ले कर आईं हैं | सीढ़ी एक हाथ की ऊँची आई है और एक हाथ की ही चौड़ाई आईं हैं |

चले अपने कदम बढ़ाए और सीढ़ी चढ़े जैसे ही कदम सीढ़ी पर रखा -अहो ,अति कोमल गिलम -पाँव वही धँस से रहे हैं -मानो पिऊ की प्यारी अंगना भी कह उठी -एक पल रुक जा रूह मेरे पास ,कुछ देर मुझसे भी बतिया

रूह के कदम वही थम जाते हैं |अत्यंत की कोमल ,नक्काशी से सज्जित ,नूरी सीढ़ियों पर आईं गिलम पर --और देखो ना सखी हम वही बैठ गये पहले ही सोपान (सीढ़ी ) पर और देख रहे हैं सीढ़ियों की अपार शोभा ---

पहले पाँच सीढ़ी की शोभा आईं --फिर पाँचवीं सीढ़ी से लगते चाँदे की शोभा हैं | पुनः पाँच सीढ़ी फिर चान्दा..इस तरह से सौ सीढ़ियों और बीस चाँदे की शोभा आईं हैं | सीढ़ियाँ तो सौ ही हैं ---5,10,15,इस तरह इन सीढ़ियों के साथ ही आगे चाँदे की शोभा हैं | सीढ़ियों और चाँदों पर अलग अलग गिलम की शोभा हैं |

तो चले अपनी सिर्फ़ अपनी मंज़िल की ओर --और हमारी मंज़िल हैं मूल मिलावा जहाँ हमारे मूल तन श्री राज जी के चरणों तले बैठे हैं |
अति उलास हैं अंग अंग में ---पिऊ के बहुत नज़दीक हैं हम और हर कदम पर वो हमारे साथ हैं |


सखियों के संग सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं | अत्यंत ही कोमलता ,नर्माई लिए गिलम रूह के लिए और भी कोमलहो रही हैं और रूह भी बड़ी ही सावधानी से चतुराई से प्यार से अपने कदम आगे रखती हैं | प्रत्येक पाँचवे सोपान के साथ ही चान्दा --और दोनो और आए स्वर्णिम कठेड़े

जिनके चित्रामन में आएँ पशु पक्षी भी आनंद से झूम उठे प्यारी रूह के आगमन पर
फूलों की बरखा --इत्र की बरखा से रूह का अभिनंदन
पिऊ पिऊ तूही तूही की गूंजार
पुतलियों का मनभावन नृत्य
चित्रामन में पेड़ भी झुक कर सिजदा कर रहे हैं
सुगंधी
और नूर का आलम
हर और से एक ही पुकार पिया मेरे
बस तूही तूही तू

साथ जी ,यहाँ का जर्रा जर्रा चेतन हैं ,श्री राज जी के ही धाम हृदय का व्यक्त स्वरूप हैं | पच्चीस पक्षों में उन्हींका  धाम हृदय क्रीड़ा कर रहा हैं | इसी भाव से हमे शोभा लेनी हैं |

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