Tuesday, 15 December 2015

चाँदनी चौक से मुलमिलावे तक

चाँदनी चौक से मुलमिलावे तक

मैं श्रीराज जी की मेहर उनकी अपार मेहर से खुद को चाँदनी चौक में महसूस कर रही हूँ

मेरे ठीक सामने रंगमोहोल

भोंम भर ऊँचे चबूतरे पर शोभा ले रहा हैं

मेरे दाएँ बाएँ और पीछे अमृत वन के वृक्ष दो भोम के मनोहारी शोभा लिए हैं

ठीक मध्य में आती रोंस जो रंगमहल की सीढ़ियों से जा मिली हैं

दाईं और लाल वृक्ष की शोभा और बाईं और हरा वृक्ष

बिखरी हीरा ,मोती के मानिंद नरम ,चेतन ,सुगंधित रेती का तेज तो आसमान तक झलकार कर रहा हैं

मैं रोंस से सीढ़ियों की और बढ़ती हूँ

नर्मों में अति नरम रोंस

धाम की शीतल सुगंधित हवा के मंद मंद झोंके

नूरी पशु-पक्षियों की पिऊ-पिऊ ,तूही -तूही की मधुर रट

हर और उनका इश्क ,लाड़

मैं सीढ़ियों तक आ पहुँची

मेरे धाम की अलौकिक शोभा लिए बादशाही शोभा से कोट गुणी शोभा से युक्त अत्यंत ही सुंदर सीढ़ियाँ

मैं सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ

सीढ़ियों पर गिलम इतनी कोमल की मेरे पाँव घुटनो तक धँस रहे हैं ,चेतन गिलम  और भी  कोमल हो रही हैं और मैं भी बड़ी ही सावधानी से प्यार से कदम आगे बढ़ा रही हूँ

सीढ़ियों पर दोनो और कठेड़े की शोभा निरख रही हूँ --बहुत ही सुंदर शोभा को धारण किए हैं --चित्रामन में आएँ चेतन फूल अपनी सुगंधी बढ़ा रहे हैं ,पशु पक्षी थिरक उठते हैं और मोती की पुतलियाँ फूलों के आभूषण से मुझे सज़ा रही हैं

मैं धाम द्वार के सन्मुख पहुँचती हूँ --अत्यंत ही सुंदर मेरे धाम का मुख्य द्वार --दर्पण रंग में खिला हुआ --द्वार में प्रतिबिम्बत अलौकिक शोभा --और द्वार स्वतः ही खुल गये

लाल रंग की अति महीन नक्काशी से सजी एक सीढ़ी ऊँची चौखट

मैं बड़ी ही नाज़ुकता से लहंगे को समेटती हुई दिल में अति उमंग ले कर चौखट को पार कर रही हूँ

चौखट पार कर रंगमहल के भीतर आईं

अंग प्रत्यंग में खुशी ,इश्क ,प्रीति की तरंगे

ठीक सामने 28 थम्भ का मनोहारी चौक

पार कर रही हूँ

पहली चौरस हवेली जो की रसोई की हवेली हैं उनकी पूर्व दीवार में आईं ग्यारह मंदिर की दहेलान से होते हुए हवेली के भीतर आईं

उत्तर हाथ को श्याम मंदिर झलकार करता हुआ

सीढ़ियों का और श्वेत मंदिर

सामने देखती हूँ तो एक थम्भ की हार दो गली

पार कर रही हूँ

मध्य आए चबूतरे पर तीन सीढ़ी चढ़ कर आईं

बहुत ही प्यारी शोभा

उत्तर दक्षिण में बड़े द्वारों के आगे आईं दहेलाने

चबूतरा की किनार पर सजे थम्भ

शोभा देखते हुए चबूतरा पार कर चबूतरा की पश्चिम किनार से सीढ़ियाँ उतर रहीं हूँ

पुनः एक थम्भ की हार दो गली

पार कर रही हूँ

आगे पश्चिमी दिवार के मध्य आए बड़े द्वार से बाहर निकली

दोनो और चबूतरों की शोभा देखते हुए आगे बढ़ी

मध्य की गली भी पार की तो पुनः खुद को दो चबूतरों के मध्य पाया

अरे यह तो दूसरी हवेली के पूर्व के मुख्यद्वार के दोनो और आए चबूतरे हैं

पूर्व की दीवार से भीतर गयी

इस तरह से दूसरी ,तीसरी ,चौथी हवेली की शोभा को निरखते जैसे ही चौथी हवेली से बाहर निकली तो देखी एक अद्भुत शोभा

थम्भो की एक हार तो सीधी घूमी हैं और दूसरी गोलाई में ठीक सामने

मूल मिलावा

पूर्व में आया द्वार हरे रंग की शोभा लिए

अत्यंत ही खुशहाल करता हुआ

मैं मुलमिलावे में प्रवेश कर रही हूँ

बहुत ही उल्लासित ,दीदार की आस

ठीक सामने चबूतरा पर हज़ार पांखुड़ी के कमल के फूल पर आया स्वर्णिम सिंहासन और उन विराजे मेरे प्राणों के प्रियतम श्री राज श्यामा जी धाम की सखियों को संग ले कर विराजमान हैं |

श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख अद्भुत छब से विराजमान हैं |

श्री ठकुरानी जी सेंदुरियाँ रंग की साड़ी ,श्याम रंग जड़ाव की कंचुकी और नीली लाहिको चरनियां |श्रीराज जी को सेंदुरियाँ रंग को चीरा ,आसमानी रंग जड़ाव की पिछौड़ी ,नीला ना पीला बीच के रंग का पटुका ,केशरियां रंग जड़ाव की इजार ,श्वेत रंग जड़ाव का जामा |

मैं एकटक अपने श्री राज-श्यामा जी निहार रहीं हूँ

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