Wednesday 14 December 2016

दसवी भोम चितवन

 दसवी भोम चितवन                        

आज जब मेने आसमान की और  नजरे की तो आसमान के रात के अंधेरो को चीरती हुवी चांद की रोशनी मेरे ऊपर आ रही थी ।
अभी तो इस चांद को देख ही रही थी की इतने में गुलाबी ठंडी की लहर सी मेरे तन को ठंडक देती हुवी कान में कुछ कहने लगी ।
इस हवा को मेने गहरी सांस लेते हुवे दिल तक उतारा तो हवा मानो दिल में हलकल करने लगी और अर्श में चांदनी की याद दिलाने लगी ।

अभी तो मेने बस चाँदनी के सुख को लीला को बस नाम भर याद किया की वही आँखे मुंदती हुवी नजरें मेरी अर्श में जमुना किनारे जा बैठी और मेने अपने आप को जमुना जी के ठंडे मुलायम स्वेत इश्क़ के जल में खुद को भीगा हुवा पाया ।
जल को छूते ही नस नस में   इश्क़ भरने लगा ।
इश्क़ की इस जल में झिलना कर जब सिंगार सजा तो ऐसा लगा की में अपने पीया के लिए सज गयी हूँ ।
यह मेरा सोला सिंगार जिनके लिए सजा है वः कब मुझे देखे अपने नजदीक खिंच कर प्यार करे इन सोच में बस चले जा रही थी की चांदनी चौक में पहोच गयी ।
अभी तो पीया मिलन की बात दिल में पूरी तक नही हुवी थी की अचानक  से कुछ आवाज आई..
मेने इधर उधर देखा तो कुछ समझ ना पायी ।
फिर से एक मधुर मीठी आवाज आई ....
जल्दी आओ...आओ
कितनी देर करदी

आवाज को मेने पहचान लिया और मेने भी एक चीख लगाई पीया....पीया....पीया

हर एक कोने कोने में जरे जरे में यह आवाज गूंजने लगी । सारे पंछी उड़ उड़ कर आने लगे , तो पशु दौड़ने लगे ।

मेने आखिर कार ऊपर की तरह नजरे की तो देखा....

मेरे दूल्हा चांदनी पर खड़े खड़े मुझे आवाज देके बुला रहे है ।
पीया को देख कर दिल की उमंग और तेज हो गयी की मानो तितली बन कर उड़ के चांदनी में चली जाउ ।
अभी तो यहां दिल में जरासा सोचा ही था की में सीधी चांदनी चौक में पहोच गयी ।
पीया मेरे सामने खड़े थे ।
और में पीया के सामने ।
दोनों के नैनो में मिलन की ख़ुशी थी तो कुछ प्रेम की मस्ती भी थी ।
गुलाबी तेज ठंडी थी जो आग लगा रही थी ।
इतने में मेने कदम आगे बढ़ाए और पीया के नजदीक जाने लगी तो पीया दौड़ कर दूर निकल गए ।
और गुमटी के थम्भो के पीछे छुप गए ।
में पीया को पकड़ने उनके पीछे चली तो पीया और दौड़े दहलान की गोलाई में थम्भो की आड़ में पकड़ा पकड़ी मानो खेलने लगे ।
थम्भ के एक और में और दूजी और पीया बिच में थंभ यह देख कर हसने लगा ।
जेसे ही मेने हाथ घुमा कर आगे किया तो पीया थंभ को प्रेम भरा धक्का देके आगे चल दिए और थंभ मेरे गले लग गया ।

अभी तो पूनम की सुरुआत थी ।
एक और सूरज धीरे धीरे ढल रहा था तो एक और चाँद धीरे धीरे आसमान में आ रहा था ।
चांद का नूर पूरी चाँदनी पर फेल गया ।।

एक और हसीन चांद और दूजी और गुलाबी ठंडी धनी को मुझसे दूर कैसे रहने दे सकती थी ।
हवा की लहरो के संग संग पीया मेरे पास आने लगे ।
जहां में उन्हें पकड़ ने के लिए हाथ आगे कर रही थी वहीं पीया ने खुद नजदीक आके मुझे पकड़ लिया और गले लगा लिया ।

दहलान में  गुमटीओ के के अंदर जैसे ही पीया ने मुझे गले लगाया की हवा मानो और तेज हो गयी जैसे हवा हमे और पास ला रही थी ।
हवा की लहरो के साथ गुमटीयो के कलश पर लगी धजा धीरे धीरे फरफरा ने लगी और धजा में लगी घघरिया मधुर धीमा प्रेम भरा संगीत बजाने लगी ।

मानो सारे नजारे पीया और मुझे नजदीक और नजदीक लाने में मदद कर रहे है ।।
पूरा महोल प्रेम से संगीत से चांद की चांदनी से भर गया था ।
गुमटी के चौक पर हम पैर लटकाए पश्चिम की और मुख करके बैठ गए ।
सामने बागीचों की सुंदरता दिखाई दे रही थी ।
पीया मेरे और पास आके मेरे कंधे पर अपना हाथ लगा कर मुझे अपने और नजदीक खीच कर बिलकुल अंग से अंग लगा कर बैठ गए ।
हवा की लहरो के साथ फुलवारी से आने वाली सुगंध मानो इश्क़ की महेफिल सजा रही थी ।
ऐसा लग रहा था ।
फूलवारी के फूलो पर सुंदर सुंदर पंछी आके मस्ती कर रहे थे। 

तो वही एक भवरा 🐝 उड़ कर फूल पर बैठकर फूल को चूम रहा था ।
यह नज़ारा देख कर जब नजरे सरमाने लगी तो पीया ने अपने हाथ से मेरा हाथ दबाते हुवे इश्क़ की मस्ती में कहा चलो इन बागो में घुमे..?
मेने भी पलके बंध करते हुवे हा में जवाब दिया ।
और हम उठ कर हाथो में हाथ लिए फूलो के बगीचो में आए ।
इतने सुंदर खिले खिले अनेको रंगो से सजे फूल
जैसे हमारा स्वागत कर रहे हो इसा लगने लगा ।
चांद की शीतल चांदनी इन फूलो पर पड रही थी ।
चाँद की किरणे फूलो पर और फूलो की किरणे चाँद पर दोनों किरणे एक दूजी से टकराती हुवी प्रेम के मिलन का संदेश दे रही थी ।

बिच बिच के सजी नहरो में कमल के फूल खिल खिल कर हस रहे थे ।
में नहेरो की रोस पर चढ़ गयी और पीया रोस से निचे मेरा हाथ थामे हम धीरे धीरे एक दूजे की नजरो में नजरें डाल चल रहे थे । की वही आगे नहर के कोने पर चहेबच्चा आ गया और में उसमे प्रेम की मस्ती से गिर पड़ी ।
पीया हसने लगे तो मेने हाथो में जल लेके पीया पे उछाल दिया ।
तो पीया भी बोले अच्छा जी...
और वः भी अंदर जल में आ गए और एक दूजे पर वह जल की बारिश करने लगे ।
तब पीया ने नहर में खिला कमल अपने हाथो में लिया और मुझे पीछे से गले लगाते हुवे मेरे बालो में सजा दिया ।

कितना हसीन यह पल होता है जब पिया खुद अपने हाथो से सिंगार सजाते है ।
हम नहर से बहार आके फूलो को देखने लगे ।
हर तरह फूल ही फूल मुस्कुराते हुवे नजर आ रहे है ।
फूलो पर बैठे पंछी छोटे पशू इतने प्यारे लग रहे है की मानो यह भी सुहानी चाँदनी का मजा बड़े प्रेम से ले रहे है ।
हर तरह इन फूलो की सुगंध छा गयी है ।।
फूलो की महेक ने सारा आलम इश्क़ से महका दिया है ।
हर फूल हर पत्ता पत्ता अनंत रंगो की किरणों से इस चांदनी रजनी को सजा रहे है ।
हर फूल पिया के छूने पे सर्मा रहे हो ऐसा लगता है ।

पीया इन फूलो को भी प्रेम से चूमते है , हाथ फेरते है तो फूल और ज्यादा खिल खिलाने लगते है ।






हर एक फूल मेरे कानो में कुछ गुन गुना रहा था ।।

ख़ुशी की रात है,
सखी पीया तेरे साथ है,
आसमान के चांद से हसीन
चांद तेरे आँचल में 
तेरी बाहो में है ।
तेरे पास हसीन चांद है ।

फूलो की बाते सुन में खुश हुवे जा रही हु ।।
पीया मेरा हाथ थामे मुझे आगे लिए जाते है ।






फूलो पे बैठे पंछी फूलो से बाते कर रहे है ।

समर्पण की बेला आई रे आई सजनी ...
मनो कहे जा रहे है ।
पूरी फुलवारी मानो हमारे मिलन पर झूमें जा रही है ऐसा लगता है ।
खुसी में पंछी भी फूलो को प्रेम करते नजर आ रहे है ।


फूलो की सुंदरता में चांद और सुंदर दिखने लगता है । हर तरह चाँदनी बिखेरता हुवा चांद अनेको रंगो से सजा हुवा दिखता है ।।
दूर दूर गुमटीयां भी प्रेम में नाच रही हो ऐसा लगता है मुझे ।। हर जरा खुसी से भरा हुवा है ।
पीया इन फूलो की नगरी से आगे ले चलते है तो मानो सामने अनेको रंगो से सजी घास की मुलायम गिलम बिछी हो जो कहती है जल्दी आओ हमारे ऊपर पीया चरण धरो । 

और हम आगे सुंदर रंगीन घास की बिछी गिलम पर कदम रखते है ।
घास भी मानो मस्ती के मुड़ में आया है कदम रखते ही गुद गुदी सी करने लगा तलियो में लांक में ।
गुद गुदी के कारण एक मधुर हँसी फेल गयी चारो तरह ।
गुलाबी ठंडी की सुहानी पूनम की रात में इस घास पर ओस की बूंदे गिरी हुवी मोती के दानो की तरह दिखती है ।
पीया इस का सुख देते हुवे अपना पैर सरकाते है तो सीधा घास पर सरक जाते है और मेरा हाथ तो थामा ही रखा था तो साथ साथ मुझे भी घास पर गिरा देते है ।
इन रंगीनीओ पर सीधे लेट गए ।
और ऊपर आसमान में देखने लगे ।
पीया कहने लगे मेरा चांद तो मेरे पास है ।
और सारे सितारे अनेको रंग में झगमगाने लगे ।
हम सितारों को देख कर खुश होने लगे ।
पीया ने फूलो से कलियो से तारो से मेरी मांग सजादी
हमने एक दूजे का हाथ थामे रखा था और दुसरा हाथ मुलायम घास पर फेर रहे थे ।
और घास की सुंदरता को निहारे जा रहे थे ।।








हम सुंदर घास की सोभा को निहारे आगे बढ़ते है ।

और आगे हम फलदार वृक्षो के बगीचो में आ पहोचते है ।

हर तरह मीठे रस से भरे रसीले फूल वृक्षो और लताओं पर लटकते हुवे बहोत ही सुंदर दीखते है ।
हर एक फल, मेवा मानो अपने पास बुला रहे हो ऐसा लग रहा है ।
फलो पे बैठे पंछी मानो कुछ इसारा करते है। 
ऐसा लगता है। 
अंगूर के दानो की लूम हवा में झूमती हुवी मानो पास बुलाए जा रही है ।
पीया अंगूर की रस भरे गुच्छे को मेरे गालो पे रखते  हुवे फेरते है ।
ऐसा लगता है की पीया की उंगलिया गालो पर घूम रही है ।

वही अमृत को पिया तोड़ कर जरा खाके मुझे खिलाते है इस पल में अमृत भी मानो खुश हो रहा है ।
इतना मधुर मीठा फल मीठी मीठी सुगंध उन्हें खाने के लिए मानो पास खिचती हो ऐसा लगता है ।                        





कहि सीताफल , कहि काजू , कहि अमृत , कहि सफरजन , कहि अंजीर तो कहि दाडम लटकते हुवे बहोत ही सुंदर दीखते है ।

सारे फल चांद की चांदनी में चमकते हुवे और ज्यादा सुंदर दीखते है।।










आम तो मानो बड़े जोरो से पुकार रहा है जरा पास तो आओ .... मुझे चखतो लो ।

हर फल खुसी में झूम रहा है ।
गुलाबी ठंडी की लहरे ऐसी तेजी से बढ़ रही है की हर एक फल हवामे झूलने लगा ।
आसमान में बादल आने लगे बादल के साथ हवा तेज होने लगी ।
चांद मानो बादल के साथ लुका छुपी खेल रहा हो ऐसा लगने लगा ।
तारे तो और नूर बिखेर ने लगे ।।

हम धीरे धीरे बढ़ते हुवे चौक में आके खडे हो गए ।
कोनो में आये चहेबच्चो के फुवारे से प्रेम भरी बुँदे उड़ उड़ कर हम पर आने लगी ।जो हमे और पास लाने लगी ।
चौक में आज सिंहासन नही सेज बिछी हुवी थी। 
हम सेज पर जाके बेथ कर चांदनी के नूरी प्रेम मयी नजारे को देखने लगे ।
मानो सभी हमारे प्रेम रास में सामिल होने सजे है ऐसा लगने लगा ।
हर सितारा अनंत रंग बिखेरने लगा तो चाँद हमारे नजदीक आ गया अनेको रंग रंगीला होता हुवा ।।




                        पीया के साथ इस सेज पर लेटे हुवे आसमान में बादलो और  चाँद की सरारत हम देखने लगे ।

ठंडी लहरे प्रेम की आग बढ़ा रही थी जो लौ पीया के दिल में जल रही थी प्रेम की यह हवा वही लौ मेरे अंदर जलाने लगी ।
इस प्रित पर रंगो की बौछार करने लगी।।
चांदनी में यह रूप और ज्यादा निखरने लगा ।
जो पीया मन भाने लगा।
हर तरह जैसे इश्क़ का नशा चढ़ने लगा है ।
पिया का हाथ अंग अंग को छेड़ने लगा तो ऐसा लगा की सितार के तार छेड़ के बजने लगे हो , कुछ तो जैसे हुवा ,
दिल के तार खनक खनक करने लगे है 
रोम रोम इश्क़ से भरने लगा,
रग रग में इश्क़ दौड़ने लगा ।।
बस अब ये रात जकड़ लू
ये चांद पकड़ लू ।
इस सुहानी रात को रात ही रहने दू दिन ना होने दू ।

और मेने अपने घने काले बादल रूपी बालो से पीया का चाँद जैसा मुखड़ा छुपा लिया ।।

छिप गया बादल में जाके चांद सरमा गया ।।

बस यह  पल यह चांदनी रात यह फूलो की महक , ये घास की मखमलता , यह फलो का रस और यह ठण्डी वहा यही रुक जाए ।
यही थम जाए ।
यही बस जाए ।

जैसे बादल के चांद छिपा
में पीया में छिप जाउ ।
या उनको मुझमे छिपालु ।

बस ए पल रुकजा यही ।
पुरे चांद की ये 
आधी रात है ,
पीया में पिघला ए ये जाती है ,
पिघलती हु उतनी
जितनी पीया पास लाते है ।
सजती है रात इतनी
जितना प्यार सजाता है ।

गालो के हल्के से मोड़ पे
दो पल को पलके ओढ़ के
सरमाति है 
झुक जाती है 
 पीया के चहरे पे आके रुक जाती है ।

सजती है रात इतनी
जितना प्यार सजाता है ।

.... चर्चनी .......दसवीं आकासी

दसवीं आकासी
   

...... चर्चनी .......


सब से पहले 1 से 9 भोम में बनी सोभा को देखे ।
निचे बनी गयी सोभा पर ऊपर आकाशी यानी हमारी चाँदनी में बहोत ही सुंदर खुली सोभा बनी हुवी है ।


1. निचे की भोम में जो सबसे मध्य में नौ (9) चौक बने है। इन नौ चौक के बिलकुल लाइन में ऊपर चांदनी में 200 हांस का एक कमर भर ऊंचा चबूतरा बना है ।
इन 200 हांस का चुबुतरा बिलकुल मध्य में है ।
इसकी चार दिशाओ में 3-3 सीढिया उतरी हुवी है ।
 और चार कोनों में चहेबच्चा की बहोत ही सुंदर सोभा दिखाई देती है ।
चौक के फिरते कठेडा बना हुवा है ।
चौक में सुंदर सिंहासन और खुर्शिया आई है जहा हम धनी के साथ सुहानी चांदनी में बैठते है ।

2. उसके बाद निचे की भोम में पंचमोहलाते आई हुवी है ।
इन पंच मोहलातो की जगह  सीधे लाइन में उपर चाँदनी पर फलदार वृक्ष आए हुवे है यानी फलो का मानो सुंदर बागीचा बना है ।

3. उसके आगे निचे की भोम में जहां गोल हवेलिया आयी हुवी है उसके सीधे लाइन में चांदनी के उपर अनंत रंगो से सजे घास की सोभा आयी हुवी है ।
मानो अनंत रंगो की गिलम बिछी हो ऐसा लगता है ।

4.  उसके आगे निचे की भोम में आई चोरस हवेलिओ की सीधी लाइन में चाँदनी के ऊपर अनेको प्रकार के फूलो के बगीचे बने हुवे है ।

5.  निचे की भोम के हवेलिओ के बिच में जो गलिया बनी हुवी है उन सभी गलियो की सोभा की जगह में ऊपर चांदनी पर बगीचो में नहरो की सोभा बनी हुवी आई है । जहां कोनो की जगहों में चहबच्चे की सोभा आई हुवी है।

6. और निचे भोमो में जो 6 हजार मंदिरो की हार आई है इन मन्दिरो की सोभा के ऊपर चांदनी में दहलान उसमे गुमटियां गुमटियों के उपर कलश , कंगूरे ,  धजा , पताका , उसमे छोटी छोटी घुंघरिया लगी हुवी सोभा बनी हुवी है ।


पूनम की मध्य शीतल रात को हम धनी के साथ अपनी सुखो की चाँदनी में आते है ।
और पीया के साथ प्रेम और आनंद की लिलाए करती है ।

❤🙏🏻❤

Friday 14 October 2016

*सुख चाँदनी चढ़ाय के ,पूर्णिमा की मध्य रात*

दसवीं भोम

*सुख चाँदनी चढ़ाय के ,पूर्णिमा की मध्य रात*

* चाँदनी की किनार पर बाहिरी हार मंदिरों की जगह में दस कम छः हज़ार दहेलानें हैं |एक एक दहेलान में आठ आठ महेराबे देखने में मालूम होती हैं |किंतु संख्या छः छः महेराबों की हैं |दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं*

प्रेम प्रणाम जी साथ जी ,

आज रूह श्री रंगमहल की दसवीं चांदनी की शोभा निरखना चाहती हैं --धाम की चांदनी को अपने धाम ह्रदय में बसाना चाहती हैं ..तो श्री राज जी की मेहर ,उनके जोश के बल पर अपने कदम आगे बढ़ाती हैं और -

ब्रह्म मुनि श्री लाल दास महाराज जी की छोटी वृति के प्रकाश में दसवीं चांदनी की अलौकिक शोभा को देखती हैं                         
सर्वप्रथम नजर करते हैं --चाँदनी की बाहिरी किनार पर -- तो निज नज़रों में शोभा आती हैं की यहां बाहिरी हार मंदिरों के स्थान पर दहलान सुशोभित हैं -5990  दहलाने --एक एक दहलान की शोभा बहुत ही अद्भुत --

शोभा को हृदयगम करने के लिये एक दहलान के भीतर चले --बेहद ही प्यारी शोभा दहलान की --चारों दिशा में दीवार की शोभा और ऊपर नूरमयी छत की झलकार --एक नजर में देखे तो लगा कि यह भी मंदिर हैं --पर गहराई से देखते हैं  तो यह खुली दहलान हैं जहाँ रूह अपने प्रियतम श्री राज जी के संग हाँस  विलास करती हैं ..


दहलान के  चारों दिशा में आयीं दीवारें  मनोहारी शोभा लिये हैं --उनमें एक बड़ी नूरमयी मेहराब में तीन मेहराब शोभित हैं  --मध्य की मेहराब में नूरी रत्नों से जड़ित दीवार आयीं हैं और मध्य की इस मेहराब के दोनों और खुली मेहराबें शोभा ले रही हैं --इस तरह एक दहलान में आठ मेहराबें (खुली मेहराब )दिखती हैं पर गिनती में छह ही मेहराबें हैं क्योंकि पाखे की मेहराब दूसरे दहलान में काम देती हैं

 *दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं |उस दहेलान के अंदर दस दस थम्भों की चार हारें हैं और चार-चार की दस हारें हैं बाहिरी तरफ खुला एक मंदिर भर का छज्जा हैं जिसकी किनार पर कठेड़ा लगा हैं | कठेड़ा के बाहिरी तरफ ढालदार छज्जा हैं और भीतर की तरफ चाँदनी से कमर भर ऊँची एक मंदिर की खुली रोंस हैं जिसके किनार पर कठेड़ा सुशोभित हैं |दो सौ एक हांस में दो सौ एक चाँदे हैं |एक एक चाँदे के दोनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं |* 


घेर कर आयीं दहलान की शोभा निरख अपनी निज नजर को पूर्व दिशा की और करते हैं  -- जहाँ दस मंदिर के दरवाजा का हान्स हैं --दरवाजे की दहलान दस मंदिर की लंबाई लिये हैं और मंदिर की चौड़ी हैं --दस नूर भरे थंभों की चार हारें चौड़ाई तरफ से दिख रही हैं और लंबाई में दहलान की शोभा देखे तो चार चार थंभों की दस हारें शोभित हैं ।

दस मंदिर के हान्स में जो मध्य में दो मंदिर का दरवाजा आया था --और दरवाजा के दोनों और चार चार मंदिर हैं --उनकी जगह यहाँ दसवीं चांदनी में दस दस थंभों की दो हारें आयीं हैं --थंभों की एक हार दहलान के भीतरी और जो एक मंदिर का चौड़ा और लंबा तो घेर कर उठा हैं --उन चबूतरा की किनार पर दस थम्भ आएं हैं --दस थम्भ दहलान के बाहिरी तरफ जो दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी जो पड़साल की जगह आयीं हैं उसकी पूर्वी किनार पर दस थम्भ आएं हैं --छज्जा की शोभा हैं 

इस प्रकार घेर आईं इन दहलान के बाहिरी और जो एक मंदिर का छज्जा निकल हैं उसकी बाहिरी किनार पर कठेड़ा आया हैं आगे ढालदार छज्जा की शोभा हैं -

दहलान के भीतरी तरफ भी एक मंदिर का चौड़ा चबूतरा उठा हैं --एक मंदिर की रोंस के रूप में इसकी भीतरी किनार पर 201  हांसों से चांदों से सीढियां चांदनी पर उतरी हैं --एक एक चाँद से तीन तीन उतरती सीढियां देखे


 *मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा हैं |उस चबूतरा के चार कोण पर चार चहेबच्चें हैं |चेहेबच्चा के तीनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं ,एक तरफ से चबूतरा मिल गया हैं और चबूतरा के मध्य में गज भर ऊँचा सिंहासन हैं |सिंहासन को घेर कर चारों तरफ सीढ़ियाँ धरी हैं |श्रीराज श्री ठकुरानी जी तथा समस्त सुंदर साथ पूर्णिमा की रात्रि को इस चाँदनी पर पधारतें हैं |चबूतरा के ऊपर खड़े होकर देखने से दसों दिशाओं की वस्तु देखने में आती हैं |इस चबूतरा के चारों तरफ अनेक रमणीय बगीचे (फुलवारियाँ) हैं और वे बगीचे नहेरें ,चहेबच्चे और फुहारों से युक्त होकर अपार शोभा को धारण किए हैं *| 


अब नजर करते हैं चांदनी के मध्य भाग में --यहाँ एक कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं --और चबूतरा के चारों कोण पर चहबच्चे आएं हैं जिनसे निर्मल ,उज्जवल जल के फव्वारें उछल रहे हैं -चेहेबच्चों  को घेर कर आयीं रोंस एक तरफ से चबूतरा से मिल गयी हैं और तीन तरफ से तीन सीढियां चांदनी पर उतरी हैं 

--चबूतरा के मध्य में ऊंचा सिंहासन सुशोभित हैं --सिंहासन को घेर कर कुर्सियां धरी हैं --आप श्री राज श्याम जी पूनम की उज्जवल ,धवल रात्रि में चांदनी पर पधारते हैं --चबूतरा पर खड़े हो दसों दिशाओं की शोभा नज़रों में आती हैं -- 

मध्य आएं इन चबूतरों के चारों तरफ बाग़ बगीचों की शोभा आयीं हैं ..नहरें चेहेबच्चों की मनोहारी शोभा आयीं हैं





*एक एक देहेलान की चाँदनी पर दो दो गुमतियाँ हैं |छः हज़ार मंदिरों की जगह पर देहेलान की चाँदनी के किनार में छः हज़ार कंगुरें हैं | उन कंगुरों के बीच बीच में कांगरी हैं एवम् हांस हांस पर एक एक गुर्ज हैं |तिन प्रत्येक गुर्ज पर गुमट की अपार शोभा हो रही हैं |गुर्जों की संख्या दो सौ एक हैं |गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |*

चबूतरा पर सिंहासन कुर्सियों पर बैठ कर नजर चारो और घुमाई तो देखा --बाग़ बगीचों की मनोहारी शोभा --उठते फव्वारें -- चबूतरे के साथ लगते मेवों के बगीचे शोभित हैं तो कहीं फूलों की सुगंधी में सराबोर करते फूलों के बगीचे हैं और बीच-बीच में आईं दूब–रंगों की अदभुत छटा  बिखेरती दूब –जिन पर सुसज्जित दुलीचों पर रूहें श्री राज जी के संग रमण करती हैं | खुली चाँदनी के नीचे आईं फूलों की नूरी बैठकों पर श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं | देखिए खूब खुशालियाँ हाजिर हैं -मेवों से भरे थाल लेकर और मनुहार कर के प्रेम के साथ धाम दूल्हा को आरोगवाती हैं |


किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की --एक एक दहलान पर दो दो गुम्मतियां आयीं हैं --दहलान की चांदनी की किनार पर कंगूरों की शोभा --कंगूरों के बीच बीच में कांगरी की  शोभा आयीं हैं --201  हांसों में गुरजों की शोभा आयीं हैं --गुरजों पर गुम्मट की अपार शोभा आयीं हैं --गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |

*इन सर्व शोभा को देखकर प्रथम भोम को जाना हैं |उतरते उतरते प्रथम भोम में आकर पूर्व दिशा के दरवाजे से होकर तीनों घाटों का अवलोकन कर रौंस में होकर दक्षिण दिशा में बटपीपल की चौकी में जाइए |
पूर्व की तरफ पचास हांस में तीन घाट है |दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |*

इन सम्पूर्ण शोभा को ह्रदय में बसा कर प्रथम भोम में चले --सीढ़ी वाले मंदिर जो पहली चौरस हवेली में आया हैं उसी की सर पर चौरस बगीचा आया हैं --इन बगीचे में उत्तर तरफ चार थंभों की शोभा हैं --जिनमें पूर्व ,पश्चिन और दक्षिन तरफ अकशी  थम्भ हैं उत्तर की और खुले थम्भ --खुली मेहराब --इन मेहराब से होकर सीढियां इतराते उतरते प्रथम भोम में पहुंचे --पूर्व दिशा के द्वार के सामने आकर पूर्व में आतें सात वनों की शोभा देखी --चांदनी चौक की जगमगाती शोभा --दक्षिन दिशा में चले --बटपीपल की चौकी में नहरों चेहेबच्चों के ऊपर धाम धनि संग हिंडोलों में झूले --

रंगमहल के पूर्व दिशा में धाम की दीवार से लगते तीन वन हैं --दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |

* दसमी भोम के ऊपर देहेलान की चाँदनी ग्यारहवीं चाँदनी मानी जाती हैं |जो किनार किनार में एक मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं | गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे शोभायमान हैं* |


फिर से चांदनी की शोभा में  --देखिए --दसवीं भोम के ऊपर दहलान की चांदनी ग्यारवहीं चांदनी हुई --जो चांदनी की किनार में घेरकर कर एक  मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं |तो गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे अपार शोभा लिये हैं