आज में चांदनी चौक की सोभा से आगे कदम बढ़ा रही हु दिल से नजरो तक की बात जुबान पे लाना मुश्किल है फिर भी अनंत सुख की एक बूंद को जुबा पे लाने का दिल कर रहा है ।।
जाड़े की रुत की गुलाबी ठंडी मानो पिया के इश्क़ की गर्मी में भीगने के लिए चाँदनी से आगे छम - छम पायल की मधुर ध्वनि और पवन की लहेर के साथ मिल के प्रेम रूपी मंद मंद पिया मिलन का संगीत बजा रही है ।।
मेरी नजर सामने जा रही है ।
भोम भर ऊँचा चबूतरा उस के ऊपर 9 भोम मन मोहक सोभा लिए खड़ा है ।
ऐसा लग रहा हे जेसे पिया ही रंगमहोल बन के मुझे अपनी और खीच रहे है ।
एक और चाँदनी चौक की रोशनी और दूजी और सामने रंगमाहोल की रोशनी मिलन के संगीत में सूर पुर रही है ।
फूलो से सजे कोमल रस्ते पर पैर धीरे धीरे बढ़ाए जा रही हूँ।
मनो दुल्हन अपने दूल्हा से मिलन को सरमाति हुवी कदम भर रही है ।
अर्श की रोशनी ऐसी मुझे देख के मानो स्वागत में खिल गयी है की में उसी को देख रही हु रोशनी को देख ते देखते आगे चली जा रही हूँ
अब में सीढ़ियों के पास आ गयी हूँ ।
सीढियो के नजदीक खड़ी सामने नजर कर रही हु तो मनो इश्क़ के इस मौसम में बढ़ोतरी कर ने में यह रोमांचित कर रही हे सीढिया।
अब में मेरे कदम प्यार से सीढियो पे रख रही हू ।
सीढिया लाल रंग की गिलम से लाली मा फेला रही है ।
जेसे ही उस पे मैनें पैर रखा वेसे ही गलीचा अंदर धस गया।
कोमलता , नरमाई , मनो मखमल से भी गहरी है ।
जेसे जेसे मेरे कदम बढ़ रहे हे सीढियो पे मेरी नजरे सीढ़ियो पे बनी नक्सकारी को देख रही है ।
गिलम पे छोटी छोटी नक्सकारी मनो आगे ही नहीं बढ़ने दे रही है ।
ऊपर से लाल गिलम में से निकलती रोशनी आकर्शित करे जा रही है दिल को मनो बस उसी को देखे जाउ आगे कदम ही ना बढ़ाऊ ।
5 सीढिया दिल को उस शोभा में डुबोते हुवे चढ़ती गयी तो बडी सीढ़ी यानि चांदा आया।
उस चांदे की सुंदरता तो मानो सीढियो से भी अधिक आज लग रही है ।
सीढियो के उत्तर दक्षिण कठेडा परकोटे के रूप में सज धज के खड़े है ।
लगता है सीढिया में खुद हु और कठेडा धनि बन के खड़े हे मेरे लिए ।
मंद मंद पवन के संग गुलाबी ठंड की लालिमा को लेके मेंने सीढिया पार करली ।
और दरवाजे के सामने चौकोर चौक पे आके खडी हो गयी हू।
एक दुल्हन जब अपने दूल्हे के घर जाती है तब सब से पहला उस का प्रेम से स्वागत दरवाजे पे होता है ।
में भी मेरे दूल्हे को मिलने जा रही हु और सामने मेरे घर का धाम दरवाजा में देख रही हु।
बेमिसाल सोभा लेके खड़ा दरवाजा मनो विशेष है ।
2 भोम ऊँची मेहराब के अंदर द्वार की सोभा सुख दे रही है।
दर्पण रंग के दो किवाड लगता है एक में हु और एक पिया है।
में जहा खड़ी हु वहा से मंदिरो की दीवाल के लगते दो और चबूतरे में देख रही हूँ ।
जिन पर मेने हिरा माणिक पुखराज पाच निलवि और उस में भी अनेको रंग और नंग को देख रही हूँ ।
उस में भी खुले और अक्सी दोनों थंभ मानो पिया के इश्क़ को मेरे उनके मिलन की बधाई दे रहे है ।
और थंबो से निकली रोसनी फूलो की तरह स्वागत कर रही है ।
मेरा हाथ में आगे बढ़ा के धाम दरवाजे को छूती हुवी महेसुस कर रही हु की यह मुझसे कह रहे हे हम तुम्हारे इंतजार में बंध है । जल्दी गले लगा के रूह मुझे खोलो और पिया से मिलने दौड़ लगाओ ।
सिन्दुरिया रंग की चोखट तो मेरे गालो को अपना लाल रंग देके सिणगार करे जा रही है मेरा ।
चोखट के अंदर और हरे रंग की बेनी के अंदर नंग से बनि कांगरि , बेल बुटो की चित्र कारी मनभावन है ।
शीशे के किवाड़ पे अमृत बन की किरणे अपरम्पार सोभा को एक नजर से दिल में समेटे जा रही हू ।
जेसे ही कदम बढ़ाया मेने दरवाजा अपने आप खुल गया।
में मेरा पैर प्रेम से एक हाथ उची चौखट उलंघकर अंदर प्रवेस कर रही हूँ ।
और अब में लंबचोरस मंदिर के अंदर आकर खड़ी रही और बस पिया मिलन की आश लेके दिल में इश्क़ और रोम रोम में राज राज पिया पिया पुकारती हुवी तड़प लिए चल रही हू
मिलन की बेला
मेरा तुजसे
तेरा मुझसे
एक होने का यह पल
जल्दी होगा पूरा मेरे पिया
मेरे पिया मेरे पिया
जाड़े की रुत की गुलाबी ठंडी मानो पिया के इश्क़ की गर्मी में भीगने के लिए चाँदनी से आगे छम - छम पायल की मधुर ध्वनि और पवन की लहेर के साथ मिल के प्रेम रूपी मंद मंद पिया मिलन का संगीत बजा रही है ।।
मेरी नजर सामने जा रही है ।
भोम भर ऊँचा चबूतरा उस के ऊपर 9 भोम मन मोहक सोभा लिए खड़ा है ।
ऐसा लग रहा हे जेसे पिया ही रंगमहोल बन के मुझे अपनी और खीच रहे है ।
एक और चाँदनी चौक की रोशनी और दूजी और सामने रंगमाहोल की रोशनी मिलन के संगीत में सूर पुर रही है ।
फूलो से सजे कोमल रस्ते पर पैर धीरे धीरे बढ़ाए जा रही हूँ।
मनो दुल्हन अपने दूल्हा से मिलन को सरमाति हुवी कदम भर रही है ।
अर्श की रोशनी ऐसी मुझे देख के मानो स्वागत में खिल गयी है की में उसी को देख रही हु रोशनी को देख ते देखते आगे चली जा रही हूँ
अब में सीढ़ियों के पास आ गयी हूँ ।
सीढियो के नजदीक खड़ी सामने नजर कर रही हु तो मनो इश्क़ के इस मौसम में बढ़ोतरी कर ने में यह रोमांचित कर रही हे सीढिया।
अब में मेरे कदम प्यार से सीढियो पे रख रही हू ।
सीढिया लाल रंग की गिलम से लाली मा फेला रही है ।
जेसे ही उस पे मैनें पैर रखा वेसे ही गलीचा अंदर धस गया।
कोमलता , नरमाई , मनो मखमल से भी गहरी है ।
जेसे जेसे मेरे कदम बढ़ रहे हे सीढियो पे मेरी नजरे सीढ़ियो पे बनी नक्सकारी को देख रही है ।
गिलम पे छोटी छोटी नक्सकारी मनो आगे ही नहीं बढ़ने दे रही है ।
ऊपर से लाल गिलम में से निकलती रोशनी आकर्शित करे जा रही है दिल को मनो बस उसी को देखे जाउ आगे कदम ही ना बढ़ाऊ ।
5 सीढिया दिल को उस शोभा में डुबोते हुवे चढ़ती गयी तो बडी सीढ़ी यानि चांदा आया।
उस चांदे की सुंदरता तो मानो सीढियो से भी अधिक आज लग रही है ।
सीढियो के उत्तर दक्षिण कठेडा परकोटे के रूप में सज धज के खड़े है ।
लगता है सीढिया में खुद हु और कठेडा धनि बन के खड़े हे मेरे लिए ।
मंद मंद पवन के संग गुलाबी ठंड की लालिमा को लेके मेंने सीढिया पार करली ।
और दरवाजे के सामने चौकोर चौक पे आके खडी हो गयी हू।
एक दुल्हन जब अपने दूल्हे के घर जाती है तब सब से पहला उस का प्रेम से स्वागत दरवाजे पे होता है ।
में भी मेरे दूल्हे को मिलने जा रही हु और सामने मेरे घर का धाम दरवाजा में देख रही हु।
बेमिसाल सोभा लेके खड़ा दरवाजा मनो विशेष है ।
2 भोम ऊँची मेहराब के अंदर द्वार की सोभा सुख दे रही है।
दर्पण रंग के दो किवाड लगता है एक में हु और एक पिया है।
में जहा खड़ी हु वहा से मंदिरो की दीवाल के लगते दो और चबूतरे में देख रही हूँ ।
जिन पर मेने हिरा माणिक पुखराज पाच निलवि और उस में भी अनेको रंग और नंग को देख रही हूँ ।
उस में भी खुले और अक्सी दोनों थंभ मानो पिया के इश्क़ को मेरे उनके मिलन की बधाई दे रहे है ।
और थंबो से निकली रोसनी फूलो की तरह स्वागत कर रही है ।
मेरा हाथ में आगे बढ़ा के धाम दरवाजे को छूती हुवी महेसुस कर रही हु की यह मुझसे कह रहे हे हम तुम्हारे इंतजार में बंध है । जल्दी गले लगा के रूह मुझे खोलो और पिया से मिलने दौड़ लगाओ ।
सिन्दुरिया रंग की चोखट तो मेरे गालो को अपना लाल रंग देके सिणगार करे जा रही है मेरा ।
चोखट के अंदर और हरे रंग की बेनी के अंदर नंग से बनि कांगरि , बेल बुटो की चित्र कारी मनभावन है ।
शीशे के किवाड़ पे अमृत बन की किरणे अपरम्पार सोभा को एक नजर से दिल में समेटे जा रही हू ।
जेसे ही कदम बढ़ाया मेने दरवाजा अपने आप खुल गया।
में मेरा पैर प्रेम से एक हाथ उची चौखट उलंघकर अंदर प्रवेस कर रही हूँ ।
और अब में लंबचोरस मंदिर के अंदर आकर खड़ी रही और बस पिया मिलन की आश लेके दिल में इश्क़ और रोम रोम में राज राज पिया पिया पुकारती हुवी तड़प लिए चल रही हू
मिलन की बेला
मेरा तुजसे
तेरा मुझसे
एक होने का यह पल
जल्दी होगा पूरा मेरे पिया
मेरे पिया मेरे पिया
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