Friday 25 December 2015

मूल बैठक की अलौकिक शोभा (आपनों मूल मिलावा )

💐💐💐रूह आज देखना चाहती हैं अपनी मूल बैठक की अलौकिक शोभा --मेहरों के सागर श्री राज जी रूह को दिखाते हैं कि हे मेरी लाड़ली रूह ,तू मेरे ही चरणों को पकड़ कर बैठी हैं | देख तो अपनी निज बैठक --कैसे तू अपनी सखियों के साथ अंग से अंग लगा कर बैठी हैं --मानो दाड़ीम की कली हो तुम |

आओं तुम्हे दिखाओं तुम्हारी मूल बैठक --

रूह को हक श्रीराज जी अपनी अपार मेहर से दिखा रहें हैं कि रंगमहल का पाँचवा चौक मूल मिलावे का हैं |जिसमें साठ मंदिर हैं और चार दरवाजे चारों दिशाओं में हैं |रंगों नंगों से झिलमिलाते जवेरातों के मंदिर एक रस हैं ,चेतन हैं ,उनकी दीवारों पर आया चित्रामन अद्भुत हैं |घेर कर आएँ इन साठो मंदिरों के दरवाजे सुशोभित हो रहें हैं |

गोलाई में आएँ इन मंदिरों के द्वार एक से बढ़कर एक सुन्दर लग रहें हैं | द्वारों के पल्ले ,चौखट की शोभा वर्णन से परे हैं | पिऊ जी के आशिक अति सुन्दर यह द्वार चेतन हैं जो रूह के आगमन पर स्वतः ही खुल जाते हैं |मंदिरों के दरवाज़ों और किनार पर नूरमयी रत्नों जडित लाल रंग की दोरी सुशोभित हैं | यह दोरी सभी मंदिरों की किनारों पर शोभा ले रही हैं |

रूह की नज़र से देख तो सही ,इनकी शोभा अत्यधिक हैं | इन दोरी के साथ साथ सब स्थानों पर कांगरी की शोभा हैं जिनके बीच में चित्रामन सजे हैं |साठो मंदिरों नई नई जुगति से शोभा ले रहें हैं | कहीं फूलों से महकते मंदिर आएँ हैं तो कई जवेरातों से जड़े मंदिर हैं ,कोई कोई मंदिर एक ही रंग में झलकार कर रहा हैं तो दूसरे मंदिर में अनेक रंग रोशन हैं |

मंदिरों की शोभा को धाम हृदय में बसा कर अब रूह आगे बढ़ती हैं और देखती हैं कि चौसठ थम्भ मंदिरों के बाहिरी और हैं और चौसठ थम्भ अंदर एवं चौसठ थम्भ चबूतरे की किनार पर हैं |

रूह एक एक थम्भ को देख रही हैं , मानो सूर्य के सामने सूर्य हो | एक एक थम्भ की नक्काशी ,उनका चित्रामन का नूर ,उनका जोत ,रूहों के लिए पल-पल बढ़ रहा हैं | नूर के नूर का क्या वर्णन हो ? थम्भो के मध्य का नूर उल्लासित कर रहा हैं | यह नूर धाम धनी श्री राज जी का लाड़ हैं जो उनकी प्यारी रूह को इश्क ,प्रेम की अनुभूति करा रहा हैं |

मध्य में कमर भर ऊँचा चौसठ पहल का गोल चबूतरा जिसके किनारे पर चौसठ थम्भ सुशोभित हैं |

चबूतरे की चारों दिशा में आएँ द्वार ---पूर्व में हरे रंग का द्वार के आस पास नीलवी के थम्भ कितने मनोहारी लग रहे हैं

पश्चिम दिशा में नीलवी के थम्भो के दरम्यान आएँ महेराबी द्वारों के दोनो और पाच के थम्भ की अलौकिक जोत को निरख मेरी रूह

उत्तर दिशा में पुखराज   नंग का द्वार और द्वार के दोनो और माणिक के थम्भ श्री राज जी ने दिखाए

और दक्षिण दिशा में माणिक नंग के लालिमा बिखेरते द्वार के दोनों और पुखराज के थम्भ और मेरी प्यारी रूह अब देख इन चारों द्वारों के मध्य बने खाँचों में आएँ थम्भो की शोभा

श्री राज जी की मेहर से चारों द्वारों के मध्य में आएँ चारों खाँचों में हीरा, लसनिया, गोमादिक, मोती, पन्ना, परवाल, हेम, नूर, चाँदी, कँचन, पिरोजा और कपूरिया के थम्भ आये है ।---वाह क्या अद्भुत शोभा --एक एक थम्भ बड़ी ही युक्ति से सज़ा हैं नूर से --थम्भ के निचली तरफ चार हांस आएँ हैं ,उसके ऊपर आठ और मध्य में थम्भ सोलह हांस का शोभित हैं फिर पुनः आठ और चार हांस क्रमशः आएँ हैं | इस प्रकार से रूह ने देखा कि बहुत ही प्यारी जुगति से थम्भो की शोभा आईं हैं |जिनमें कई कटाव हैं कई प्रकार के अनुपम नक्काशी हैं | अलग अलग प्रकार के चित्रामन है और हर चित्र के जुदे ही भाव हैं | देख तो रूह एक एक रंग का अद्भुत जवेर और उसी में आईं चेतन नक्काशी ,उनके अलग अलग कटाव एक से बढ़कर एक सुंदर हैं |

इस प्रकार से रूह ने चारों खाँचों में आएं अड़तालीस थम्भ और उनकी शोभा को फेर फेर निरखा | सोलह थम्भ चारों द्वारों के हैं -यह चौसठ थम्भ चबूतरे पर सुशोभित हैं |

रूह को श्रीराज जी देखाते हैं -अत्यंत ही सुंदर ,नरम ,चेतन पशमी गिलम (बिछौना)चबूतरे पर बिछी हैं | यह गिलम चबूतरे की किनार पर आएं कठेड़े से जाकर लगी हैं जिसकी शोभा सुखदायी है |प्रियतम श्री राज जी को रिझावन खातिर गिलम एक पल में ही कई रंग रूप धारण करती हैं तो इनके रंग का ,शोभा का वर्णन इन नासूत की ज़ुबान से कैसे हो ?मेरे साथ जी ,एक बड़ी ही खुशहाल करने वाली शोभा देखिए ,दुलीचे को घेर कर श्याम ,श्वेत ,हरित और जर्द (पीला) रंग की अत्यंत ही मनोरम ,तेजोमयी दोरी आईं हैं |नूरी दोरी में कई तरह के कटाव हैं ,कई प्रकार के नूरी चेतन वृक्षों और बेलियों का चित्रामन हैं | जिनमें कई प्रकार के पत्तियाँ और फूलों का जड़ाव हैं |

अब श्रीराज जी की मेहर से रूह की नज़र जाती हैं ऊपर की और – एक अति मनोरम शोभा -थम्भों को भराए कर के नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,महीन -महीन नक्काशी से सज्जित और मोतियों की लड़ो से शोभित चंद्रवा आया हैं |चन्द्रवा के मध्य में भाँति भाँति की चित्र कला चित्रित हैं |चबूतरे की किनार पर आएं थम्भ ,उनकी महेराबे ,थम्भों पर शोभित चंद्रवा ,नीचे नूरी ,नरम दुलीचे की जोत ,उनकी तरंगे आपस में युद्ध करती हुई मनोरम प्रतीत हो रहीं हैं |

चबूतरे के मध्य में सहस्त्र पाँखुड़ी के कमल के फूल पर कंचन रंग के सिंहासन की शोभा हैं ।जिसमें छः पाये छः डांड़े आएँ हैं | जिन पर अद्भुत चित्रामन जगमगा रहा हैं और उन पर नूरी ,चेतन फूल खिले है | एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) |

दोनों स्वरूपों के ऊपर दो नूरी फूलों की शोभा लिए छत्र सुशोभित हैं | दो कलश तो इन छत्रियों पर हैं और छः कलश घेर कर आए हैं | यह आठ कलश हेम ,स्वर्ण के हैं जो आत्मा को अति प्यारे लगते हैं |छत्री की अद्भुत ,झलकार करती हुई शोभा – जिनमें कई रंग नंग हैं और किनारे भी नंगों की जोत से जगमगा रहे हैं | छत्री में कई प्रकार की सोहनी दोरी ,बेलियाँ और चारों और फिरती नूरी कांगरी अति खुशहाल करती हैं |
पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |जिन पर भी अनेक प्रकार की कई सूक्ष्म अत्यंत ही मनोहारी चित्रण हैं |चारों थम्भो पर चारों ओर से चढ़ती कांगरी सुशोभित हैं | कांगरी में कई प्रकार के नूर से भरे फूल ,पत्ते ,बेलें और महीन कटाव आएँ हैं |
सिंहासन पर एक गादी दो पशमी चाकले और दो तकिये पीछे दो दाएँ -बाएँ और मध्य मे एक तकिया रोशन है |

और अब मेरी रूह श्री राज जी अपार मेहर ,उनके लाड़ से दीदार करती हैं --स्वर्णिम जोत से झिलमिलाते अपार सुखदायी सिंहासन पर अद्भुत छबि से विराजे मेरे धाम धनी ,मेरे श्री राज जी -

मेरे प्राणों के प्रीतम श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ चाकले पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |
💐💐💐🙏🙏💥💥💥

Wednesday 23 December 2015

श्रीराज जी की मेहर ,उनके असीम गुण --रूह के भाव

🙏मैं गुम्मट जी मे नमन कर रही हूँ ,अपने धाम दूल्हा युगल स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी के चरणों में ---अखंड सुखों को देने वाले मेरे प्रियतम ,मेरे प्राणाधार

उनके असीम मेहर से मैने खुद को सर्व रस सागर में विहार करते पाया | मेहेरों के सागर मेरे पिया जी मुझे मेहर सागर में ले आएँ | हर और बिखरी रंगिनियाँ ,प्रियतम का लाड़ ,उनका इश्क और प्रीति जिसकी नूरी खुश्बू से मैं भीग रही हूँ --जहाँ तक नज़र करती हूँ वहाँ तक मुझे प्रीतम से बेशुमार अखंड सुख दिखाई दे रहे हैं --आकाश को लगती महा हवेलियाँ ,महा वन और सर्व रस सागर  की रंगीन लहरे मानो सभी मुझे पिया श्री राज जी के अखंड सुखो में डुबो रही हैं |

प्रियतम श्री राज जी मुझे अपनी और बुला रहे हैं -मूल मिलावा में जहाँ हमारी बैठक सजी हैं --जाने की और कदम बढ़ाए ही थे क़ि प्रतीत हुआ की मैं उड़ान भर रही हूँ ,खुद को एक नूरी पक्षी की सवारी करते हुए रोमांचित सी मैं अपने घर के सुखों में झील रही हूँ ---घेर कर आए सागर --चारों और से उठती उनकी जोत मुझे अखंड सुखों की अनुभूति दे रही हैं --प्रीतम श्री राज जी के नूर ,उनकी शोभा ,उनकी वाहिदत ,सिंगार ,इश्क ,ईलम और निसबत  के सुख उनकी मेहर से महसूस करती हुई सागर पार कर छोटी राँग पार कर रही हूँ ,वन की नहरों से गुज़री तो हर और बिखरी हरियाली ,बेशुमार रंग और उनमें क्रीड़ा करते पशु पक्षी

और अब मैं माणिक पहाड़ की हद में हूँ ...इश्क की पराकाष्ठा का प्रतीक मेरा माणिक पहाड़ --पूरे शान के साथ सुशोभित हैं --हर और लालिमा बिखेरता ,इश्क फैलाता और हिंडोलों का झूमना

बारह हज़ार ऊँचे हिंडोले में अपने पिया जी की नज़रो में   नज़र मिला झूलना --
और आगे जवेरो की नहेरें --हर और उनका इश्क ,लाड़ ,प्रीति जहाँ भी नज़र गयीं
मोहोल हो ,मंदिर हो या वृक्ष

मुझे महसूस करा रहे हैं मेरे पिया की हर शाह उनके ही दिल का व्यक्त स्वरूप हैं |हे मेरी रूह तुझे सुख देने की खातिर ही मेने करोड़ो रूप धरे हैं

उनके इश्क रस   भीगी मैं इनकी लाड़ली अंगना और आगे बढ़ रही हूँ -और आगे
क्या अद्भुत दृश्य

आमने सामने झलकार करते अक्षर धाम और मेरे रंगमहल के द्वार और बीच में कलरव करती मेरी जमुना जी

नूर ही नूर ,जमुना जी का तेज यूँ कि मानो जमुना जी आसमान तक प्रवाहित हो रही हों

जमुना जी का जल प्रीतम श्री राज जी का इश्क ही तो हैं जिसकी कोई सीमा नहीं
जमुना जी पार आएँ दोनों पुल और बीच में पाट घाट

मैं पाट घाट पर झीलना कर उनके इश्क में भीगी रंगमहल के मुख्य द्वार के सामने आईं

द्वार खुल गये और पिया जी खुद आ गये मुझे लिवाने के लिए

मेरा हाथ उनके कोमल हस्त कमलों में

उनका स्नेहिल स्पर्श

उनकी मधुर आवाज़

मदहोश सी मैं

नज़रें खोली तो सामने स्वर्णिम सिंहासन पर मेरे युगल प्रियतम श्रीराज-श्यामा

और नज़रों में बस पिया तू ही तू 
💐💐

Tuesday 22 December 2015

धाम दरवाजा

मेरी अर्श की पिया की दुलारी सखिया ।

अर्श को हम दो तरीके से समज सकते है ।

1. इश्क़ से
2. इलम से ।

इश्क़ से हम रोज समजते है और चितबन में चित्त लगाते है ।

लेकिन आज थोड़ा सा इलम से मन हुवा है ।

भूल हो सकती है
पर प्रयत्न कर रही हू पिया के हुकम से।

धाम दरवाजा हमने देखा और समजा ।

पर सही में हमारा धाम दरवाजा हे केसा ...??
जहा हमारा धाम दरवाजा है ।
वहा 10 मंदिर का एक हान्स पड़ता है ।
क्यों की हमारा रंग माहोल 201 हांस में बना है ।

हांस यानि के जहा कोना बनता हों ।

🔻 इस तरह से v आकर में कोना होता है ।

अब वो कोना हमारा धाम दरवाजा जहा पूर्व दिशा में हो वही पे यह एक हांस यानि कोना बन जाता हे।

इस लिए वहा से वो कोना cute हो गया है ।
यानि 10 मंदिर की हांस बना हुवा है ।

इस हांस के मध्य में 2 मंदिर की चौड़ी और 2 भोम की ऊँची मुख्य प्रवेश द्वार की महेराब बनी हे।

हमारा जो दरवाजा यानी 2 किवाड़ हे वह 88 हाथ का लंबा और चौड़ा है ।

यानि 2 किवाड़
1 = 44 हाथ का
1= 44 हाथ का है ।

दरवाजे की चौखट frem सिन्दुरिया रंग की है ।

किवाड़ के बिच में हरे रंग की किनार हे यानि उसे बेनी कहते है ।


और दरवाजे यानि चौखट से लगी दाई और बायी और 56 - 56 हाथ की दीवार आई हुवी है ।


धनि की मेहर से यह रफ picture drow किया है ।

 समजने के लीये

इसी तरह की सोभा हमारे धाम दरवाजे की बनी हुवी है ।

जो चौखट बनी है वह 88 हाथ की है ।

उस चौखट के ऊपर 1 छोटी महेराब बनी हुवी है ।
और सब से ऊपर यानि 2 भोम तक एक बड़ी मेहराब बानी हबी है ।

इस सब से बड़ी मेहराब के अंदर 8 थंब के ऊपर 9 छोटी महेराबे बनी हुवी है ।

यह जो 9 छोटी मेहराब है वह 2 - 2 रंग में बनी है ।

आधी मेहराब 1 रंग की और आधी मेहराब दूसरे रंग की।

यानि एक ही मेहराब 2 रंग में बनी है
उसी के साथ उस 9 मेहराब में
बिच में 1 जरुखा निकाला है ।

झरोखे के दाये बाए जाली द्वार बने है ।

और उस जाली द्वार के दाये बाये 1- 1 दरवाजा बना हुवा है ।

और दरवाजे के आस पास फिर 1 - 1 जाली द्वार बना है ।

हमारा धाम दरवाजा बिलकुल इस तरह से बना है ।

9 छोटी मेहराब की गिनती मे ।

बिच में

1 = झरोखा
2 = दरवाजा
6 = जाली द्वार
_________
9

और इन सब में छोटी छोटी चित्र कारी

रोज गाते हे हम सुबह ।

तासो श्री महामति प्रेम ले तौलती

तिन सो धाम दरवाजा खोलती ।


तो आईये इस धाम दरवाजे को खोल के पिया मिलन को चले ।


रूह जब सुरता से मूल मिलावा पहुँची

मूलमिलावे की तीन सीढियां..
दूल्हे के संग चली में जब जैसे ही अंदर चबूतरे के सामने पहूँची, सबसे पहेले पूवॅ द्रार के सामने आई तीन सीढियों पर ही मेरी नजर रूक गई।ऊन सीढियों ने अपनी बांहे फैला कर मेरा स्वागत किया..मुझे देखते ही रंगबिरंगी नूरी किरणो की गिलम सीढियों पर सज गई और मानो कहे रही हो आओ मेरी सखी मूझे भी छू कर अपनी ही तरह इश्क की मदहोशी में मस्त कर दो...
यह नूरी किरणो की गिलम,रंगबिरंगी यह लताओ से किनारो पे बनी हूई कांगरी,यह पशू पक्षी के मनोहर प्रतिबिंब और अनंत रंगो से सजी हूई यह सीढियाँ जैसे मानो नई दूल्हन की तरह सजी हुई है...मैं जैसे जैसे ऊसकी तरफ आगे बढी वह ऐसे शरमाई की जिससे पूरा मिलावा महेक ऊढा..अहो कितनी प्यारी कितनी कोमल और कितनी मधुर आभा अपने दिल मे यह बसाये हूए थी...जैसे ही मैंने अति नाजूकता से लहेराते हूए कदम पहेली सीढि पर रखा वैसे ही नूरी किरणो की गिलम ने मेरी तलियो को चूमा जिसके रस से मेरा पूरा नूरी बदन एक संकून भरी मस्ती से थम गया..ऐसा आनंद और कहा..चरण ऊढाने को जी ही नहीं कर रहा था..ऐसा लगा की यही रूक जाऊ थम जाऊं..और सीढियां भी ऐसे झिलमिला ऊढी थी कि ऊसे देख कर पूरा परमधाम मस्ती में झूम रहा था...
ऐसे एक एक करके बडी नजाकत के साथ में तीन सीढियां चढी और रूह रूपी ऊन सिढिंयो ने मुझे आनंद के सागर मे अठखेलियां करवाते हूए विदा किया....

Monday 21 December 2015

मुलमिलावे के अखंड सुख --रूह के भाव


इश्क के रस सै भीगी हुई में तो धाम की गलियों मे मदमस्त होकर विहार कर रही ही..पहेली ही भोम की हवेलियों की अलौकिक शोभा से मे अटखेलियां कर रही थी..पर इतने में ही मेरे नूरी हाथो को एक नूरी स्पशॅ हूआ कि जिससे मेरे नूरी तन की सभी नूरी किरने महेक ऊठी और एक अनेरे मस्ती भरे तेज के साथ महेक ने लगी..नजरो से नजरे मिल चूकी थी,मेरे हाथ में धनी का नूरी हाथ था..और ऊनके नैनो के तारो में मेरी पूतलिया एक सूकून भरे आनंद के साथ चमकते तारो की माफिक टमटमा रही थी...
-
नजरे हट नहीं रही थी पलके झपक नहीं रही थी ऊनके नूरी तेज से भरपूर मूख पर हल्की हसी आई और मानो मेरे नैनो की पूतलिया मेरे दिल के संपूर्ण सागर सहित ऊनके नैनो मे डूब गई...धनी ने मेरा हाथ पकडे हूए एक के बाद एई कदम आगे बढाये..वे कहा ले जा रहे थे पता नही मेरी तो नजरे ही ऊनके नैनो से हट नहीं रही थी..बस कदम बढे जा रहे थे..ऐसा लग रहा था मानो सागर के संग लहेरा रही हूँ।कदम बढते जा रहे थे कूछ हवेलियां पार करके धनी मूझे ऊस गोल हवेली में ले चले जहा मूझे वाकई मे जाना था..अंदर जाते ही जैसे कोई महारानी की भांति मेरा स्वागत किया गया..और पूरा परमधाम मानो स्वागत मे खडा था..में तो चलती ही जा रही थी,नडरो से नजरे मिली हूई थी और अब तो ऊनके नैनो के तारो में दिखने वाली मेरी पुतलियों के नैनो में मै धनी के नैन देख रही थी..तीन सिढिया चढ कर आगे बढी तो थंभ,चंद्रवा,गिलम,सिंहासन,तकिये,चाकले और मेरी रूहो के नूर ने मूझे और रोमांच से भर दिया..धनी का हाथ अभी भी मेरे हाथ में ही था,नजरे ऊनकी नजरो से मिली हुई थी..ऐसे मे धनी ने बहूत ही नजाकत से मेरे मूख को मोडा और तब मैने देखा वह नजारा जिसे देखने के लिए में तरसती थी..धनी का हाथ अभी भी मेरे हाथ में था..हाथो ही हाथ में ऊन्होने मूझे ईशारा किया और मैने अपने ही नूरी मूल तन को देखा पल भर को तो ऐसा लगा जैसे मे मूल तन मे विहार करके धनी के दिल मे समा गई.. एक एक कण मे मानो कोटानकोट सूयॅ ऊग आये हो ऐसा नजारा है..अनंत रूहे अनंत नूरी किरणो कि भांति झिलमिला रही है..और ऊन सब का मूल धनी का वह दिल तो मानो आनंद का महासागर बन कर आज मुझे संग लेकर इश्क की मस्ती मे डूब चूका हैं..
एक आधे पल में ही मैने धनी के संग अपने आपको फिर ऊस नूरी सिंहासन पर पाया और वही हाथॅ में हाथ और नैनो से नैन अभी भी मिले हूए थे...

यह मस्ती, यह आनंद,यह सूकून,बस यूंही बना रहे..यूही में बस ऊनमे डूबी रहूं,भीगी रहूं बस यही..बस यही..

Sunday 20 December 2015

वाह वाह क्या नूर बरसा है । मैं 🏿 नाच उठी-चाँदनी चौक से रूह मूल मिलावे की और

आज में चांदनी चौक की सोभा से आगे कदम बढ़ा रही हु दिल से नजरो तक की बात जुबान पे लाना मुश्किल है फिर भी अनंत सुख की एक बूंद को जुबा पे लाने का दिल कर रहा है ।।

जाड़े की रुत की गुलाबी ठंडी मानो पिया के इश्क़ की गर्मी में भीगने के लिए चाँदनी से आगे छम - छम पायल की मधुर ध्वनि और पवन की लहेर के साथ मिल के प्रेम रूपी मंद मंद पिया मिलन का संगीत बजा रही है ।।

मेरी नजर सामने जा रही है ।
भोम भर ऊँचा चबूतरा उस के ऊपर 9 भोम मन मोहक सोभा लिए खड़ा है ।
ऐसा लग रहा हे जेसे पिया ही रंगमहोल बन के मुझे अपनी और खीच रहे है ।

एक और चाँदनी चौक की रोशनी और दूजी और सामने रंगमाहोल की रोशनी मिलन के संगीत में सूर पुर रही है ।

फूलो से सजे कोमल रस्ते पर पैर धीरे धीरे बढ़ाए जा रही हूँ।
मनो दुल्हन अपने दूल्हा से मिलन को सरमाति हुवी कदम भर रही है ।

अर्श की रोशनी ऐसी मुझे देख के मानो स्वागत में खिल गयी है की में उसी को देख रही हु रोशनी को देख ते देखते आगे चली जा रही हूँ
अब में सीढ़ियों के पास आ गयी हूँ ।
सीढियो के नजदीक खड़ी सामने नजर कर रही हु तो मनो इश्क़ के इस मौसम में बढ़ोतरी कर ने में यह रोमांचित कर रही हे सीढिया।



अब में मेरे कदम प्यार से सीढियो पे रख रही हू ।
सीढिया लाल रंग की गिलम से लाली मा फेला रही है ।
जेसे ही उस पे मैनें पैर रखा वेसे ही गलीचा अंदर धस गया।
कोमलता , नरमाई , मनो मखमल से भी गहरी है ।

जेसे जेसे मेरे कदम बढ़ रहे हे सीढियो पे मेरी नजरे सीढ़ियो पे बनी नक्सकारी को देख रही है ।



गिलम पे छोटी छोटी नक्सकारी मनो आगे ही नहीं बढ़ने दे रही है ।
ऊपर से लाल गिलम में से निकलती रोशनी आकर्शित करे जा रही है दिल को मनो बस उसी को देखे जाउ आगे कदम ही ना बढ़ाऊ ।
5 सीढिया दिल को उस शोभा में डुबोते हुवे चढ़ती गयी तो बडी सीढ़ी यानि चांदा आया।
उस चांदे की सुंदरता तो मानो सीढियो से भी अधिक आज लग रही है ।

सीढियो के उत्तर दक्षिण कठेडा परकोटे के रूप में सज धज के खड़े है ।
लगता है सीढिया में खुद हु और कठेडा धनि बन के खड़े हे मेरे लिए ।
मंद मंद पवन के संग गुलाबी ठंड की लालिमा को लेके मेंने सीढिया पार करली ।
और दरवाजे के सामने चौकोर चौक पे आके खडी हो गयी हू।
एक दुल्हन जब अपने दूल्हे के घर जाती है तब सब से पहला उस का प्रेम से स्वागत दरवाजे पे होता है ।
में भी मेरे दूल्हे को मिलने जा रही हु और सामने मेरे घर का धाम दरवाजा में देख रही हु।
बेमिसाल सोभा लेके खड़ा दरवाजा मनो विशेष है ।
2 भोम ऊँची मेहराब के अंदर द्वार की सोभा सुख दे रही है।
दर्पण रंग के दो किवाड लगता है एक में हु और एक पिया है।
में जहा खड़ी हु वहा से मंदिरो की दीवाल  के लगते दो और चबूतरे में देख रही हूँ ।
जिन पर मेने हिरा माणिक पुखराज पाच निलवि और उस में भी अनेको रंग और नंग को देख रही हूँ ।
उस में भी खुले और अक्सी दोनों थंभ मानो पिया के इश्क़ को मेरे उनके मिलन की बधाई दे रहे है ।
और थंबो से निकली रोसनी फूलो की तरह स्वागत कर रही है ।

मेरा हाथ में आगे बढ़ा के धाम दरवाजे को छूती हुवी महेसुस कर रही हु की यह मुझसे कह रहे हे हम तुम्हारे इंतजार में बंध है । जल्दी गले लगा के रूह मुझे खोलो और पिया से मिलने दौड़ लगाओ ।

सिन्दुरिया रंग की चोखट तो मेरे गालो को अपना लाल रंग देके सिणगार करे जा रही है मेरा ।
चोखट के अंदर और हरे रंग की बेनी के अंदर नंग से बनि कांगरि , बेल बुटो की चित्र कारी मनभावन है ।
शीशे के किवाड़ पे अमृत बन की किरणे अपरम्पार सोभा को एक नजर से दिल में समेटे जा रही हू ।
जेसे ही कदम बढ़ाया मेने दरवाजा अपने आप खुल गया।
में मेरा पैर प्रेम से एक हाथ उची चौखट उलंघकर अंदर प्रवेस कर रही हूँ ।
और अब में लंबचोरस मंदिर के अंदर आकर खड़ी रही और बस पिया मिलन की आश लेके दिल में इश्क़ और रोम रोम में राज राज पिया पिया पुकारती हुवी तड़प लिए चल रही हू

मिलन की बेला
मेरा तुजसे
तेरा मुझसे
एक होने का यह पल
जल्दी होगा पूरा मेरे पिया
मेरे पिया मेरे पिया



करो मूल मिलावे का ध्यान..रूह के भाव

करो मूल मिलावे का ध्यान..
मेरे धनी मेरे दूल्हा आपको देखने कि तडप दिल में जगी और तुरंत अपने आप को गौपद वच्छ की तरह मैंने मूलमिलावे के पूवीॅ द्रार के भीतरी तरफ पाया..पर धनी मेरे दूल्हा मेरे प्रीतम यह नजारा मिलावे का....इश्क और साहेबी की बूंदो के रस में मैं वैसे ही भीगी हूई थी पर यह नजारा तो धनी, आप इश्क और साहेबी के सागर में झीलते हूए भीग चूके पूरे मिलावे को आपके दिल में डूबोये हूए है..जिसमें मे अपने आपको भी भीगी हुई पा रही हूँ..
क्या कहूँ?  किसका बरनन करूं? कैसे करूँ? जहा नजर करूँ वहा सिफॅ तुम ही तुम हो...कहाँ है थंभ कहाँ है सखियाँ? कोई नजर नहीं आ रहा धनी..हर जगह सिफॅ तुमही तुम हो ..और कोई नहीं,और कोई नहीं...

Tuesday 15 December 2015

प्रीतम के रंग में रंगी एक रूह के भाव

Hey mere dham dhani , mere praanvalabh ,mere prannath , aap to jante hi hai ye maya kitni balshali hai kyu ki ye b aapki icha se hi bani hai ..aap ye b jante the hum is maya mai aakar apako bhul jayenge aur yaad nai karenge thek waisa hi hua par dhani is maya mai daalkar hum apne asal sukho se door hokar reh gaye hai.. aakhir kab hum apni jamuna ji mai jheelna karenge ..jamuna ji b hume roz pukarti hongi, kab hum kunj van ki reti mai kehelnge ,kab ful bhag aur noor bhag ko niharenge ....dhani aapke saath bitaye har pal , pal pal ruhen yaad kar rhi hai , hume apne wo hindolo ke jhule yaad aa rhe hain , aapke saath jhulna aur wo mudkurana yaad aa rha hai , hey mere dham dhani sabi ruhon ki icchaye poori ho chuki hai ,sabi ne jee bar ke maya dhekh li hai , aapka isw b jaan liya aur aapki mehar b jaan li , hey mere dham dhani is maya mai aap to jante hai is nashvar tan ki seema hai jaise jaise din bad rhe hai is tan ki seema gat rhi hai , hey mere prannath hmare is tan ke rehte hmai apna deedar de aur hmare asal sukho ko hume lota de , ruhon ko apne asal sukho ke bina rehna muskil ho rha hai , har ruh mai tadap aur virha ki agni jal rhi hai , hey mere dhani bas hmare asal sukho ko luta do aapki ruho ki yahi pukar hai....

हे धनी ,आपने मुझे मूल मिलावे में लेकर आएँ आपका शुक्रिया

मेरे प्रियतम मेरे दूल्हा,आपके नैनो और अंगो के इश्क के शरबत से भीगी हूई में अपने आपको चांदनी चौक में महेसूस कर रही हूँ।खूली चांदनी अपने दिल की नूरी रंगबिरंगी इश्क की बरसात चौक पर कर रही है और चौक का दिल भी अपनी नूरी आभा चांदनी तक बिखेर रहा है यह दोनो नूरी किरने के जंग का प्रतिबिंब रंग महोल की दसो भोम की बाहरी तरफ,धाम दरवाजे में और यमुनाजी में झिलमिला रहा है..मैं मस्त मानो इश्क के शराब से भरी हूई एक टक इस नजारे को दिल में बसा रही हूँ...

धाम दरवाजे की शोभा को देखा बस रूक ही गई कि बस यही ठहेर जाऊॅ..कौन सा रंग गिनाऊ में,पल पल धाम दरवाजे की शोभा तो बदल रही है बढ रही है..  और यह दपॅण रंग तो मानो धनी का दिल ही है..धनी का दिल भी एक दपॅण ही है जिसमे हम यह खेल देख रहे है,और देखूं तो स्वतः ही अक्षरब्रह्म और ईतराती यमूनाजी का नजारा दिखाई पडने लगता है..दरवाजे की चौकठ पर नजर रूकी तो देखा धाम से लगते चबूतरे के थंभ का प्रतिबिंब मूझे पुकार रहा है..अब मूल तक पहुंचना है तो सब मिलावा अपने दिल में बसाती हूई अब आगे बढ रही हूँ..धनी के ही 28 अंग हो मानो ऐसे चोक मे अंदर पहूंची तो..धाम की सभी न्यामतो ने मुझे घेर लिया और जैसे धाम की सीढियाँ चढते वक्त धाम से लगते दो चबूतरे जैसे झूम ऊठे थे वैसे ही यह 28 थंभ झूम ऊठे और मूझे एक टक निहारने लगे..इन थंभो के दिल मे उतर कर देखा तो पता चला कि कितना धनी के दिल के राझ कितने रस से भीगे हूए है...जहा देखूँ वहा बस नूरी पशू पक्षी नहेरे लहेरे,फल फूल पत्ते के नजारे दिल को छू रहे है।
❤❤❤
नजर जरा चारो और की तो हवेलियों के नूरी नजारो को देखा..जरा नजर ऊपर की तो चांदनी मे आये अपने दिल को बिखेर रहे फव्वारों को देखा नजर वहीं रूक गई तो मानो ऊन फव्वारों ने अपनी नजर मेरी और फेर कर जरा झूक कर देखा तो ऊनके दिल मे छिपे इश्क की बूंद मेरी नूरी नजरो को चूमती हूई दिल में ऊतर गई..ऊन फव्वारों की नजरो को दिल में बसाती हूई में अब रसोई की हवेली में पहूँची जहा चबूतरे से लगती वही तीन सीढियां और वही नूरी सिंहासन और वही नूरी चरन और वही सूकून...श्याम श्वेत मंदिर और यह सीढियों का मंदिर जहा स बस दसवी चांदनी पे जाने को दिल कर रह है पर महेराबे और दरवाजो की शोभा ने  ऐसा जादू किया कि मैं वही रूक गई थम गई..ऐसी शोभा ऐसे नजारे धनी ने दिखाये कि अब कहाँ तक में कहूँ..??
गली दरवाजे हवेलियां ऐसे पार करती में आगे बढी और बस इस गोल हवेली पे रूक गई..ना जाने कबसे बेताब थी यही मिलावा देखने के लिए तडप रही थी..वही रूक गई ऊस नजारे की महेक मेरे नैनो ऊतर कर दिल में जा बसी..बाहिरी मंदिर ही मानो मिलावा करके बैढे है और मुझे देखते ही ईन मंदिरो ने अपनी बांहे ऐसे फेलाई की मैं अपने आपको रोक न सकी और ईस पाँचवी गोल हवेली के मंदिरो मे जाकर समा गई..

ए मूल मिलावा अपना, नजर दीजे इत । पलक न पीछे फेरिए, ज्यों इसक अंग उपजत ।।

☺ए मूल मिलावा अपना, नजर दीजे इत ।
पलक न पीछे फेरिए, ज्यों इसक अंग उपजत ।। ४० ।।7सागर

तो साथ जी ,हद बेहद से परे परमधाम के मध्य भोम भर ऊँचे चबूतरे पर रंगमहल सुशोभित हैं उनके सम्मुख चाँदनी चौक में आइए ..सौ सीढ़ी बीस चाँदे चढ़ धाम द्वार के सामने आइए ..द्वार खुल गये ..वतन की सुगंधी बन पिया का लाड़ उनका इश्क आपको भीतर खेंच रहा हैं

धाम द्वार पार कर बस अपनी नज़रे उठाइए

28 थम्भो के चौक के महेराबी द्वारों ,और चारों चौरस हवेली के पट (मुख्य द्वार )खुल गये तो ....

तो साथ जी ,देखिए तो यही से प्रियतम की छबि,युगल पिया श्री राज श्यामा जी नज़रों में आ गये -उनका नूर आपकी नज़रों में समा गया तो कोई गली थम्भ नहीं बस

 दौड़ कर उनके चरणों में पहुँच जाएँ और ---

जो मूल स्वरूप हैं अपने, जाको कहिए पर आतम ।
सो पर आत म लेयके, विलसिए संग खसम ।। ४१ ।।

महामत कहे ऐ मोमिनों, करूं मूल स्वरूप बरनन ।
मेहेर करी मासूकने, लीजो रूह के अन्तसकरन ।। ४२ ।।🌷🌷🌷

चाँदनी चौक से मुलमिलावे तक

चाँदनी चौक से मुलमिलावे तक

मैं श्रीराज जी की मेहर उनकी अपार मेहर से खुद को चाँदनी चौक में महसूस कर रही हूँ

मेरे ठीक सामने रंगमोहोल

भोंम भर ऊँचे चबूतरे पर शोभा ले रहा हैं

मेरे दाएँ बाएँ और पीछे अमृत वन के वृक्ष दो भोम के मनोहारी शोभा लिए हैं

ठीक मध्य में आती रोंस जो रंगमहल की सीढ़ियों से जा मिली हैं

दाईं और लाल वृक्ष की शोभा और बाईं और हरा वृक्ष

बिखरी हीरा ,मोती के मानिंद नरम ,चेतन ,सुगंधित रेती का तेज तो आसमान तक झलकार कर रहा हैं

मैं रोंस से सीढ़ियों की और बढ़ती हूँ

नर्मों में अति नरम रोंस

धाम की शीतल सुगंधित हवा के मंद मंद झोंके

नूरी पशु-पक्षियों की पिऊ-पिऊ ,तूही -तूही की मधुर रट

हर और उनका इश्क ,लाड़

मैं सीढ़ियों तक आ पहुँची

मेरे धाम की अलौकिक शोभा लिए बादशाही शोभा से कोट गुणी शोभा से युक्त अत्यंत ही सुंदर सीढ़ियाँ

मैं सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ

सीढ़ियों पर गिलम इतनी कोमल की मेरे पाँव घुटनो तक धँस रहे हैं ,चेतन गिलम  और भी  कोमल हो रही हैं और मैं भी बड़ी ही सावधानी से प्यार से कदम आगे बढ़ा रही हूँ

सीढ़ियों पर दोनो और कठेड़े की शोभा निरख रही हूँ --बहुत ही सुंदर शोभा को धारण किए हैं --चित्रामन में आएँ चेतन फूल अपनी सुगंधी बढ़ा रहे हैं ,पशु पक्षी थिरक उठते हैं और मोती की पुतलियाँ फूलों के आभूषण से मुझे सज़ा रही हैं

मैं धाम द्वार के सन्मुख पहुँचती हूँ --अत्यंत ही सुंदर मेरे धाम का मुख्य द्वार --दर्पण रंग में खिला हुआ --द्वार में प्रतिबिम्बत अलौकिक शोभा --और द्वार स्वतः ही खुल गये

लाल रंग की अति महीन नक्काशी से सजी एक सीढ़ी ऊँची चौखट

मैं बड़ी ही नाज़ुकता से लहंगे को समेटती हुई दिल में अति उमंग ले कर चौखट को पार कर रही हूँ

चौखट पार कर रंगमहल के भीतर आईं

अंग प्रत्यंग में खुशी ,इश्क ,प्रीति की तरंगे

ठीक सामने 28 थम्भ का मनोहारी चौक

पार कर रही हूँ

पहली चौरस हवेली जो की रसोई की हवेली हैं उनकी पूर्व दीवार में आईं ग्यारह मंदिर की दहेलान से होते हुए हवेली के भीतर आईं

उत्तर हाथ को श्याम मंदिर झलकार करता हुआ

सीढ़ियों का और श्वेत मंदिर

सामने देखती हूँ तो एक थम्भ की हार दो गली

पार कर रही हूँ

मध्य आए चबूतरे पर तीन सीढ़ी चढ़ कर आईं

बहुत ही प्यारी शोभा

उत्तर दक्षिण में बड़े द्वारों के आगे आईं दहेलाने

चबूतरा की किनार पर सजे थम्भ

शोभा देखते हुए चबूतरा पार कर चबूतरा की पश्चिम किनार से सीढ़ियाँ उतर रहीं हूँ

पुनः एक थम्भ की हार दो गली

पार कर रही हूँ

आगे पश्चिमी दिवार के मध्य आए बड़े द्वार से बाहर निकली

दोनो और चबूतरों की शोभा देखते हुए आगे बढ़ी

मध्य की गली भी पार की तो पुनः खुद को दो चबूतरों के मध्य पाया

अरे यह तो दूसरी हवेली के पूर्व के मुख्यद्वार के दोनो और आए चबूतरे हैं

पूर्व की दीवार से भीतर गयी

इस तरह से दूसरी ,तीसरी ,चौथी हवेली की शोभा को निरखते जैसे ही चौथी हवेली से बाहर निकली तो देखी एक अद्भुत शोभा

थम्भो की एक हार तो सीधी घूमी हैं और दूसरी गोलाई में ठीक सामने

मूल मिलावा

पूर्व में आया द्वार हरे रंग की शोभा लिए

अत्यंत ही खुशहाल करता हुआ

मैं मुलमिलावे में प्रवेश कर रही हूँ

बहुत ही उल्लासित ,दीदार की आस

ठीक सामने चबूतरा पर हज़ार पांखुड़ी के कमल के फूल पर आया स्वर्णिम सिंहासन और उन विराजे मेरे प्राणों के प्रियतम श्री राज श्यामा जी धाम की सखियों को संग ले कर विराजमान हैं |

श्रीराज जी का बाँया चरण नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर सोभित है |श्री श्यामजी दोनो चरण कमल नूर की चौकी पर रख अद्भुत छब से विराजमान हैं |

श्री ठकुरानी जी सेंदुरियाँ रंग की साड़ी ,श्याम रंग जड़ाव की कंचुकी और नीली लाहिको चरनियां |श्रीराज जी को सेंदुरियाँ रंग को चीरा ,आसमानी रंग जड़ाव की पिछौड़ी ,नीला ना पीला बीच के रंग का पटुका ,केशरियां रंग जड़ाव की इजार ,श्वेत रंग जड़ाव का जामा |

मैं एकटक अपने श्री राज-श्यामा जी निहार रहीं हूँ

Friday 11 December 2015

24 meheraabe

❤❤❤मेरी रूह रसोई के चौक की शोभा दिल में अब आगे बढ़ती हैं | पूर्व दिशा में आई ग्यारह मंदिर की दहेलान ,श्वेत ,श्याम मंदिर ,और उत्तर दक्षिण में झिलमिलाती दहेलानो की शोभा निरखते हुए रूह मेरी हवेली के पश्चिम दिशा में द्वार से रसोई की हवेली से बाहिर निकलती हैं

वाह ! क्या अद्भुत दृश्य है मेरे धाम धाम धनी

एक नज़र में देखा तो लगा की दो थम्भो की जगमगाती ,अपनी और खेंचती हारें और तीन नूरमयी -

फिर से फेर कर देखा तो हर और पिया आप ही आप नज़र आएँ

अभी में पहली रसोई की हवेली की पश्चिम दिशा में ही हूँ और देखती हूँ द्वार के दोनों और चबूतरे --

तीन सीढ़ी ऊँचे चबूतरे --अत्यंत ही नूरी बैठक

और ठीक सामने दूसरी हवेली की पूर्व दीवार में आएँ मुख्य द्वार की शोभा और दाएँ बाएँ चबूतरे --तीन दिशा से उतरती सीढ़ियाँ --घेर कर स्वर्णिम कठेड़ा -

इन दोनो शोभा के बीच मे जाती मनोहारी गली और

आमने सामने झलकार करते द्वार और चबूतरे पर आएँ 24 महेराबों  की अलौकिक शोभा

रूह मेरी देख तो पिया का नूर --हर और से अपने आगोश में समेटता तुझे --हर पल बस पिया तू ही तू रहे मेरी नज़रों ,यही रूह की पुकार 👏👏☺

ruh chali chitvan men


He mere pritam,mere jivan aapki dulhin me aapke sang nuri sidhiyo se ud kar dham darvaje me jhilmilate chandni chauk,amrut van,paatghat aur akshardhaam ke pratibimb ko apne netro me basate hue me 28 thambo ke nuri najaro se ab aage badhi....
jaise aage badhi ki nuri mithi mithi sugandh ne mujhe gher liya..jiski sugandh ki ek hi leher mano karodo svaad liye hue mere netro se meri dil me utar gai..jab andar pahuchi to najara dekhte hi banta tha..dehlaane chauk us par bichi gilam..uttar ki taraf aaye shyaam shvet aur sidhi vale mandir...sidhi vale mandir ko dekhte hi aisa laga ki iski shobha ko bas dekhti hi rahu.
❤💞❤💞❤💞❤
Tin sidhiya chadh kar jab chabutre par pahuchi to bich me vahi nuri sihaasan jise dekhne ko kai varso se tadap rahi thi vahi nuri najare ke saath jhahmagata jhilmilata netro ke samne tha..jiski nuri rangbirangi kirne puri haveli ko roshan kar rahi hai...aur vahi maine dhani aapko apne hatho se pakad kar bithaya aur khudko aapke charno me paya.
Par jaise najar uthai to dhani aaoke paas kabhi apne aap ko to kabhi shyamaji ko baitha huaa paya...me ek tak niharti hi rahi aapki lila ko..aur aap hai ki mand mand muskurate😊😊 hi rahe...aapki hasi ne meri haansi bhula kar mujhe aapki  hasi me vilin kr diya..yahi to me chahti thi..ki ek ho jaau....😍💕😍

ruh ki chitvan

He mere dhani mere piya mere pritam..mere jivan..☺☺aapke hi aagosh se bhigi hui me ab apne aapko dham darvaje ke andar aaye 28 thambho ke chauk me khade hue aapke sang mehsus kar rahi hu..💃💃mere jivan vahi lila fir se dohra do jo hm aate jate yaha baith kar aapke sang kiya karte the..vah baar baar uthan baithna aapke sang hasna bolna..aur ye pure chauk ka unhi baato me aur adhik mithe ras gholna..na jane dhani vah din hamare kaha gaye...andar aai to mano in thambho ne hi raas ki lila ki bhaanti mujhe gher liya💃💃💃💃..aur me ghum ghum ke har ek thambh ko nihaar rahi jisme sirf aur sirf mere pritam aap hi dikhaai de rahe the...
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Mere dhani veise to ginti ka yaha dham me kya kaam par agar karu to bhi 2+8=10, 1+0=1 aakhir me ek aap hi nikal kar aate ho..yahi to vahedat hai..yahi to nisbat hai jiski hme sudh nahi thi jo ab aapne hi krvaai hai...har ek thambh mano jaise aapne singaar saja hai vaise hi saje hue hai💞💞..aur me bas un thabho ki ek ek shobha me apne aap ko duboye jaa rahi hu...kitni madhur aur mithi aavaje hai in thambho ki jo aapke jaise hi mithi mithi baate kr rahe hai aur mujhe keh rahe hai ki mere dulhin yahi ruk jaao jara dekh lu tumhe me ji bhar ke..ya sunte hi me bas baith gai us thambh se lipat kar..bas yah pal yah yahi ruk jaaye aur dil bas thaher sa jaaye ki ab kahi jana nahi...😭😭😭😭😭

mukhydwar se rasoi ki haveli tak

💖मेरी रूह श्री रंगमहल के मुख्य द्वार को पार करके भीतर आईं | खुद को एक नूर से जगमगाती गली में देखा और नज़रे ऊपर उठी तो ठीक सामने 28 थम्भ का चौक मानो मेरी रूह को आमंत्रित कर रहा हैं आओ तो मेरी प्यारी

मैं 28 थम्भ का चौक में जाती हूँ और देखती हूँ अपने घर के पहले चौक की अलौकिक शोभा ---

यह चौक 28 थम्भो से सुशोभित हैं | नूरी थम्भ ...रंगों नंगों से मुस्कराते ये थम्भ धाम की रूहो कों  संदेश भी दे रहे हैं कि देखो तो प्यारी रूहों मेरे पूर्व पश्चिम में दस -दस थम्भ शोभा ले रहे हैं जो प्रतीक हैं दस कर्मेन्द्रियों और दस ज्ञानेन्द्रियों के --

और उत्त्तर और दक्षिण दिशा में चार -चार थम्भो की शोभा आईं हैं जो प्रतीक हैं मन ,चित्त ,बुद्धि और अहंकार --तो रूह तुझे अपने इन सभी वृतियों को एक चित्त होकर श्री राज जी के चरणों में लगाना हैं तो तू पल मैं ही उनकी खिल्वत में प्रवेश पा लेगी --

मेरी रूह को श्री राज जी दिखा रहे हैं चौक की अद्भुत और मनोहारी शोभा

चौक में बिछी पशमी गिलम अत्यंत हो कोमलता लिए हैं और छत पर सुंदर चंद्रवा --

हर शह चेतन मेरे निज घर की

देख तो मेरी रूह ,तेरे आते ही तेरा अभिनंदन -

थम्भो में आएँ चित्रामन के पशु पक्षी नृत्य कर उठे

नक्काशी में आएँ वृक्ष भी सजदे में झुक गये ,फूलों ने अपनी सुगंधी और भी बढ़ा दी और मेरे कदमों की आहट के साथ ही खूब खुशलियाँ उमड़ पड़ी अगुवानी के लिए 💃💃💃💃

मेरी 28 थम्भ के चौक की अलौकिक शोभा देख कर अब आगे बढ़ती हैं और चौक को पार करती हैं और खुद को पाती हैं एक नूर से लबरेज गली

और सामने हैं रसोई की हवेली

रूह देखती हैं अपने धाम की अद्भुत शोभा

रसोई की हवेली की पूर्व दिवाल की शोभा कितनी प्यारी आईं हैं --मध्य में ग्यारह मंदिर की दहेलान --और दहेलान के दोनो और मंदिर

ग्यारह मंदिर की दहलान में रूह प्रवेश करती हैं --एक मंदिर की चौड़ी ग्यारह मंदिर की लंबी यह दहेलान मेरे धाम की सुंदर बैठक हैं | देखिए तो दहेलान में नीचे बिछे नरम गद्दे और उन पर बनी शाही बैठक --गोल तकिये --तो चल मेरी रूह ,आज इन दहेलान में विश्राम करे , श्री राज  जी के संग ,श्री श्यामा जी महारानी के संग इन नूरी बैठकों में बैठ और उनसे मीठी मीठी बाते कर | युगल स्वरूप के नूरी सिंगार को निहार | उनका अलौकिक ,नूरानी स्वरूप ,अमरद शोभा लिए हैं | उनके नयनों की मस्ती ,शोखियाँ --उनके नूरी केशों से आती सुगंधी ---💜💚❤💚💜🙏

🍋रसोई की हवेली की पूर्व दिशा में आईं दहेलान की शोभा देख मेरी रूह आगे बढ़ती हैं और दहेलान को पार कर गली में आती हैं -

नूर से महकती गली घेर कर आईं हैं फिर एक थम्भो की हार पर की और फिर से गली को पर कर मेरी रूह पहुँचती हैं मध्य में आएँ चबूतरा की किनार पर -

तीन सीढ़ी चढ़कर रूह चबूतरा पर आईं --नीचे पशमी गीलम और ऊपर मोतियों की झालर से सज़ा चंद्रवा --घेर कर आएँ थम्भो की शोभा --और चारों दिशा से उतरती सीढ़ियाँ --

चारों और नज़र की तो देखी मेरी रसोई की हवेली की अद्भुत शोभा --

पूर्व दिशा में दहेलान

उत्तर -दक्षिण दिशा में मध्य में आएँ बड़े द्वार से पहले तो मंदिरों की शोभा आईं हैं पर द्वार के पश्चिम की और दहेलानो की शोभा --

यहाँ मंदिरों की पाखे की दिवाल और हवेली की और आईं भीतरी दीवाल नहीं आईं हैं मात्र थम्भो की शोभा हैं और मंदिरों की बाहिरी दीवार की शोभा यथावत आईं हैं

उत्तर दिशा में एक और शोभा मन को भाती हैं कोने से दूसरा मंदिर श्याम मंदिर हैं और उससे लगता सीढ़ियो का मंदिर फिर  श्वेत मंदिर

पश्चिम में मंदिरों की शोभा खुशहाल कर रही हैं |🍌🍉🍇🍓🍈

mukhydwar

रूह मेरी देख --नूरी दर्पणके  द्वार की शोभा -उनमें झलकते प्रतिबिंब -

और उनमें तेरा अक्श

कितना नूरी स्वरूप

सोहना अति सोहना स्वरूप मेरी परआतम का ,

नूर ही नूर ,

लंबे लंबे लहराते नूरी केश ,

गौर वर्ण में लालिमा लिए सुंदर स्वरूप ,

दुल्हन सा सिनगार ,

नूरी आभूषण

वस्त्रों को समेटते हुए बड़ी नाज़ुक प्यारी सी अदा से रूह जैसे ही आगे बढ़ती हैं द्वार स्वतः ही खुल गये ---सुगंधी की लहरें ,पिया के इश्क में मदहोश करती --लहंगे को उठा कर दिल में बड़े ही प्यार लेकर एक सीढ़ी ऊँची चौखट को मेरी रूह पार करती हैं

रूह ने चौखट को जैसे ही पार किया तो उसने देखा कि

धाम द्वार के लिए आया यह मंदिर दो मंदिर का लंबा और एक मंदिर का चौड़ा आया हैं | पूर्ब् और पश्चिम 88-88 हाथ के दर्पण के द्वार शोभा ले रहे हैं और उत्तर दक्षिण पाखे के मंदिर में जाने के वास्ते 33-33 हाथ के द्वार सुशोभित हैं |
पूर्व -पश्चिम में आएं नूरी दर्पण के दरवाजे आमने -सामने झलकार कर रहे हैं | उनकी जोत आपस में टकरा युद्ध करती हुई मनोहारी प्रतीत हो रहीं हैं |

धाम द्वार के वास्ते सुशोभित मंदिर की शोभा को दिल में धारण करती मेरी रूह आगे
बढ़ती हैं और पश्चिम दिशा में आएँ द्वार से चौखट पार कर धाम द्वार को मदमस्त अदा से पार कर रूह रंगमहल के भीतर प्रवेश करती हैं |

 रंगमहल में हर ओर उल्लास का समा हैं | मंद मंद संगीत लहरी , फूलों के पालक पांवडे🌸🌹🌸🌹🌸🌹🙏

rangmahal ka mukhydwar --ruh ki chitvan

Mere dham dhani mere prano ke naath...aisa sukun mehsus ho raha hai dham darvaje ko dekh kar ki kya kahu koi shabd hi nahi hai...koi chij hi aisi nahi hai ki jisse iski upma de saku..aur yah sidhiya..dhani yah sidhiya kaha yah to mano aapke dil ke raaz ho aisa lag raha hai...ek ke baad ek kadam badhati hui mai mano aapke dil me hi utar rahi hu...jaise jaise aage badhti jaa rahi hu vaise vaise mera singaar meri adaaye meri mast aur mast hoti ja rahi hai...aur ho bhi kyu na..har kadam pe jo aapko mehsus kar rahi hu...
Yah sidhiya aapke dil ki tarah hi komal aur ishq se sarabor hai..mai ek kadam aage badhti hu to ve sau Kadam mano aage badh rahi ho aisa mujhe to lag raha hai...dil ke is umang ko mai kaise sambhalu..😍😍dil rupi ishq ka pyaala to bas chalakta jaa raha hai..jsiki sugandh aur masti se chandni chok sahit pura dhaam darvaja masti se jhum utha hai..aur mano baahe failaa kar mujhe jald hi usme samaa jane ke liye bula raha hai... kimaad ko chuaa to laga ki bas aapke dil ko chu liya..kimaad se yah nuri hath hat hi nahi raha hai..mere kagan aur kimaad ke kunde ne jo jugalbandhi ki hai ki ve itne ekras ho chuke hai💃💕💃 ek pal me hi ke alag hona hi nhi chahte...mere dhani me bhi aapse aise hi ekras hone ko betaab thi..tadap rahi thi..ab vo din aaya hai😘😘😘

tartam vani chandni chouk se rasoi ke chouk tak ki shobha

अब कहू चांदनी चौक की,जो आगे अरस के बड़े द्वार।
चारो तरफो चौखुटी,जित नित होत बिहार।।
      अब चांदनी चोक की सोभा का वर्णन करते हे,जो रंगमहल के मुख्य द्वार के सामने आया है। वह समचोरस (चौकोन)आकृति में है, जहा नित्य प्रति प्रेम -आनंद से परिपूर्ण लीलाए होती है।

एह चौक पाच सौ मंदिर भए,एह घाट अमृत वन।
ताको दोनों तरफॉ वन बनया, चांदनी बिच रोसन।।
           यह चौक अमृत वन के अंतर्गत आया है। अमृत वन 2000 मंदिर लम्बा और 500 मंदिर चोडा है।जिसके पश्चिम में रंगमहल के लगातार 166 मंदिर की लंबी- चोडी जगह में अगमगता हुआ, खुले आकास वाला चंदनि  चोक आया है। इसके दोनों तरफ अमृत वन शोभायमान है।

कहु रसोई के चौक की,देखो विवेक इस ठाम।
अस्सी मंदिर की बाखर,जित दस मंदिर सेत स्याम।।
                                                           
              २८थंभ के चौक के सामने पहली चौरस हवेली रसोई की है। इसकी सोभा विवेकपूर्वक देखिये। यह चौक अस्सी मंदिर का है (चारो दीसा में २०-२० मंदिर आये है) हवेली की उत्तर दिसा में (बड़े दरवाजे व् इसान कोण के मंदिर के मध्य) स्याम व स्वेत रंग के मंदिर सहित कुल दस मंदिर आये है।

दस स्याम सेत मुकाबिल, दस के मेहराबी द्वार।
रहे इन के द्वार दीवाल में, ऐ मोमिन देखन हार।।

          उत्तर दिशा में आए स्याम स्वेत सहित दस मंदिरो के सामने हवेली की दक्षिण दिशा में भी दस दस मंदिर सोभित है। उतर और दक्षिण के बड़े दरवाजो के पश्चिम दिशा में दस-दस मंदिर की दहलाने है, जिनकी भीतरी तरफ दस-दस मेहराब    है। तथा बाहिरी तरफ दीवार में दस-दस दरवाजे है. जिनकी शोभा मोमिन ही देखते है।

पैठते इन चौक में, बड़ा कह्या जो द्वार।
पांच बाए पांच दाहिने, दस द्वार मेहराबी द्वार सुमार।।

              रसोई की हवेली में जब पूर्व दिशा से प्रवेश करते है, तो यहां बड़ा दरवाजा व् इसके दाये-बाए के पांच-पांच मंदिरो की जगह में ग्यारह मंदिर की दहलान आयीं है, जिसमे दस-दस सतम्बभो की दो हार आयीं है। दहलान के उतर-दक्षिण में पाँच-पांच मंदिर सोभा ले रहे है।

ए हार द्वार थम्भन की,ताको दहलान मेहराबी द्वार।
यो हार बीस मंदिर की, करे जुगल सरूप बिहार।।

             रसोई की हवेली की पूर्व दिशा में १०-१० स्तम्भो की दो हारे आने से दहलान की सोभा दिखाई दे रही है। दस मंदिर की दहलान के दाये बाए पाँच-पाँच मंदिर आने से बीस मंदिर हुए । यहाँ युगल स्वरूप श्री राज स्यामा जी प्रेम व् आनंदपूर्वक लीला विहार करते है।

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एक हीरे का अरश है, जाकी हास दोए सौ एक।
ऐ हिसाब से बाहिर, कई हवेली मंदिर चौक अनेक।।
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            परमधाम (रंगमहल) एक ही नुरमयी हिरे का है, जिसमे २०१ हास है। इनमें आई नूरी हवेलियों, मंदिरो और चौकों का कोई सुमार (हिसाब,सिमा) नहीं है,


dham dwar-ruh ke bhav



🌸मेरी रूह चल अपने घर परमधाम

खुद को महसूस कर चाँदनी चौक

विशाल चौक जो मेरे निज घर रंगमहल के सम्मुख सुशोभित हैं

दाएँ बाएँ लाल हरे वृक्ष

और चाँदनी चौक के मध्य आईं रत्नों जडित रोंस

मेरी रूह ,इन रोंस पर चल जो तुझे धाम की सीढ़ियों तक ले जा रही हैं

अति विशालता लिए मेरे धाम की सीढ़ियाँ

100 सीढ़ियाँ 20 चाँदों सहित

मेरी रूह सीढ़ियाँ चढ़ रहीं हैं

मन में उल्लास ,उमंग ,अंग अंग में मस्ती

पिऊ पिऊ

तूही तूही

कब सीढ़ियाँ चढ़ ऊपर धाम द्वार के सम्मुख चौक में आ गयीं आभास ही नहीं हुआ

चौक में आते ही रूह आश्चर्य चकित रह जाती हैं कि कब मेरे पिया मुझे यहाँ ले आए

चारों और हीरा के थम्भ ---दो भोंम ऊँचे

श्वेत महक ,नूर ही नूर और दाएँ बाएँ दो मंदिर के चौड़े चार मंदिर के लंबे एक सीढ़ी ऊँचे चबूतरे

और सामने कंचन रंग का मेरे धाम का द्वार ❤

दो भोम के ऊँचे और चौड़े द्वार की शोभा ---पहली भोम में  , तो मध्य में एक मंदिर का दरवाजा सुशोभित हैं और दरवाजे के दाएँ बाएँ लाल रंग की नंगों से जडित अत्यन्त नूरी चेतन दिवाल की मनोहारी शोभा हैं |

नूरी दर्पण का दरवाजा ,हरित रंग जड़ाव की बेनी और लाल रंग की चौखट


नूरी दर्पण का झिलमिलाता द्वार ..

उनमें मेरी रूह तेरा नूरी प्रतिबिंब --अपना नूर महसूस तो कर

कुंडो की सांकॅल की शोभा देख मेरी रूह


और एक अद्भुत शोभा

नूरी दर्पण के द्वार में झलकते सामने आएँ अमृत वन की झलकार

वनो का प्रतिबिंब --वनो में आएँ नहेरें चहेबच्चे

क्रीड़ा करते पशु पक्षी

पिऊ पिऊ की रट लगाए

और अब देखे मेरी रूह

दर्पण रंग के द्वार के ऊपर की शोभा

एक बड़ी महेराब में नौ महेराब

ठीक मध्य में झरोखा

दो दरवाजे और छः ज़ालियाँ

ऊपर के द्वारों के आगे दो मंदिर का चौक हैं एक भोम नीचे तो इन द्वारों के आगे कठेड़ा आया हैं |

इन द्वार में खड़ी हो मेरी रूह और देख शोभा

सामने दो मंदिर का चौक

उतरती सीढ़ियाँ


चाँदनी चौक
आओं कुछ लीलाओं में आय --महसूस कर मेरी रूह

हम कुछ सखियाँ दो मंदिर के चौक में आएँ --शोभा निरख ही रहे हैं कि ऊपर आएँ झरोखा और द्वारों में सखियाँ दौड़ दौड़ कर आ गई और फूलों की बरखा से हमारा अभिनंदन🌹🌹🌹🌹🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌹🌹🌹🌹

धनी के गुण तो देखो !

धनी के गुण तो देखो ! मुझे अपने साथ लेकर ,मेरी ऊँगली पकड़कर एक एक सीढ़ी की शोभा और चांदे की शोभा दिखाते हुए 100 सीढ़ी 20 चांदा पार करवाते है और चांदनी चौक के धाम दरवाजे के सामने लाकर मुझे उस नूरी दरवाजे की शोभा दिखाते है,जो दो भोम ऊंचा है

धनी मुझे जिस चबूतरे पर लाये है वो नूरी है,जिस पर बिछी गिलम लालिमा से भरपूर है ।ये गिलम इतना मूलायम है की मेरे आधे पैर तो उसी में डूब गए है ।
इस चबूतरे की किनार पर सुंदर कठेडे की शोभा दिखाई दे रही है,वो मुझे अपनी ओर खिंच रहा है,आकर्शित कर रहा है ।इस चौक के ऊपर सुन्दर नूरी कुर्सियां आई हुई है जिसमे मैं बैठ जाती हु और मेरे संग मेरी प्यारी सखिया बैठ जाती है ।ये बैठक की शोभा बेसुमार दिखाई दे रही है ।नीचे लालिमा से भरपूर गिलम और ऊपर तेजोमय चंद्रवा के बीच की हम सब रूहो की बैठक बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रही है । जब मेरी नजर आसमान की ओर जाती है तो जात जात के पंखी अपना हुन्नर दिखाते हमें अपने लाड प्यार से रिझाते है ।कोई गुलाटी मारते हुए उड़ते है तो कोई चक्कर लगाते हुए उड़ते है । मेरी नजर चांदनी चौक पर पड़ती है तो सभी प्रकार के पशु अपनी अपनी अदा से नृत्य करते है ।सब पसु आपस में प्यार बरसाते हुए नजर आते है और हमें रिझाने की कोसिस करते है ।
धनी से अर्ज है की यही नज़ारे को कायम करे ताकि मेरी आतम को यही नजारा बहुत ही अच्छा लगता है क्योंकि वो आपके नूर से बना हुआ है ,आपकी परछाई ही है ।हे धनी आपकी दुल्हन यही चाहना लेकर जिए जा रही है ।

rangmahal ke mukhydwar tak-ruh ki chitvan

मेरे धाम की सोहनी सीढ़ियाँ मैं चढ़ रही हूँ --अति कोमल

सीढ़ियाँ और भी कोमल होकर रूह का अभिनंदन कर रही हैं और मेरी रूह भी बहुत ही चतुराई से कदम आगे बढ़ा रहीं हैं

धाम की खुश्बू ,सुकून ---100 सीढ़ियाँ 20 चान्दो सहित पार कर के मैं धाम द्वार के सम्मुख पहुँची

देखिए ना श्री राज जी अपनी रूह को कितनी प्यारी मनमोहक शोभा दिखा रहे हैं

अपने घर की -दो मंदिर के लंबे चौड़े चौक में खड़ी हैं हम सखिया --मुख हमारा मुख्य द्वार की और --तो देखे सामने बादशाही द्वार मेरे घर --और ठीक पीठ पीछे की और उतरती सीढ़ियाँ ..उनकी अलौकिक मनोहारी शोभा --चाँदनी चौक --जहाँ तक नज़र गयी चाँदनी चौक ही नज़र आया ..इतना अधिक विस्तार ,,रेती का नूर ..सुगंधी के झोंके
और अब देखे दोनों और दाएँ बाएँ आएँ चबूतरों की अत्यंत ही सुंदर शोभा
श्री राज जी की अपार मेहर से रूहें देखती हैं की दोनों और चार चार मंदिर के लंबे और दो दो मंदिर के चौड़े एक सीढ़ी ऊँचे चबूतरे आएँ हैं |

चबूतरे की पूर्व किनार पर हीरा ,माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के नूरी थम्भ शोभा ले रहे हैं | थम्भो के मध्य अति सुंदर रत्नों से जडित ,फूलों से महकती रेलिंग की शोभा आईं हैं |

चबूतरे की पश्चिम की और देखिए बाहिरी हार मंदिर हैं वहीं आएँ हैं |
चबूतरे पर अति कोमल गिलम बिछी हैं और छत पर मनोहारी मोतियों की झालर से युक्त चंद्रवा हैं

और मेरी धाम की अखंड निसबती सखी --गिलम पर आईं नूरी चेतन कुर्सियों और सिंहासन की शोभा मानों तुझे बुला रही हैं आ जाओ ना मेरी प्यारी सखी

फूलों से सुंदर कोमल बैठक हमारे लिए --उन पर विराजमान हुए और देख रहे हैं सामने --चाँदनी चौक में देखिए जूथ के जूथ पशु पक्षी उमड़ पड़े आपके दीदार की एक झल्क की खातिर --अपनी अपनी फ़ौजों के साथ --और वो एक अद्भुत दृश्य --दूर जमुना जी पाल पर खड़े महाबिलंद हाथी --अपनी सुंड में जल भर आपकी और बरसा रहे हैं जैसे कि यह उनका पिऊ वंदना का अपना अनोखा अंदाज हो

नूरी रंग बिरंगे घौड़े --उनकी ऊँचे आसमान में उड़ान
छोटी छोटी चिड़ियों आ आ कर आपको फूल पेश कर रही हैं | आपके ज़ुल्फो में गुलान की कली लगा कर प्रसन्न होती हैं |
और देखिए धाम की मनोहारी सीढ़ियों से आती मोती की पुतलियाँ आपके लिए इश्क रस से भर भर प्याले ला रही हैं |


mere rangmahak ki sidhiyan-ruh ki chitvan

Me apne aap ko dham darvaje ke samne hi sampurn singar se susajj khade hue dekh rahi hu....meri najar dham darvaje ki apratim shobha ko nihaar rahi hai...ek hi vaaaky me sari shobha ka varnan agar kahu to..mano dhani ki komal sugandhit anek ras se bhini hui chhati hi mano samne na ho..aisa me dham darvaje ko nihaarte hue mehsus kr rahi hu....aur yah mithi mithi aavaje mano aabhushano ki tarah mere ird gird jhalkaar karti hui mere dil ko bhigo rahi hai...darpan rang me me kabhi apni to kabhi dhani ki to kabhi dhani ke sang meri to kabhi pure paramdham ki shobha ko nihaar rahi hu...kitna adbhut najara hai..dil khushi se jhum utha ..kahi thaher na jaaye...tham na jaye....😭😭

rangmahal ki sidhiyaan

देख तो मेरी सखी ,अपने धाम की अलौकिक सीढ़ियाँ ---सीढ़ी दो मंदिर की जगह ले कर आईं हैं | सीढ़ी एक हाथ की ऊँची आई है और एक हाथ की ही चौड़ाई आईं हैं |

चले अपने कदम बढ़ाए और सीढ़ी चढ़े जैसे ही कदम सीढ़ी पर रखा -अहो ,अति कोमल गिलम -पाँव वही धँस से रहे हैं -मानो पिऊ की प्यारी अंगना भी कह उठी -एक पल रुक जा रूह मेरे पास ,कुछ देर मुझसे भी बतिया

रूह के कदम वही थम जाते हैं |अत्यंत की कोमल ,नक्काशी से सज्जित ,नूरी सीढ़ियों पर आईं गिलम पर --और देखो ना सखी हम वही बैठ गये पहले ही सोपान (सीढ़ी ) पर और देख रहे हैं सीढ़ियों की अपार शोभा ---

पहले पाँच सीढ़ी की शोभा आईं --फिर पाँचवीं सीढ़ी से लगते चाँदे की शोभा हैं | पुनः पाँच सीढ़ी फिर चान्दा..इस तरह से सौ सीढ़ियों और बीस चाँदे की शोभा आईं हैं | सीढ़ियाँ तो सौ ही हैं ---5,10,15,इस तरह इन सीढ़ियों के साथ ही आगे चाँदे की शोभा हैं | सीढ़ियों और चाँदों पर अलग अलग गिलम की शोभा हैं |

तो चले अपनी सिर्फ़ अपनी मंज़िल की ओर --और हमारी मंज़िल हैं मूल मिलावा जहाँ हमारे मूल तन श्री राज जी के चरणों तले बैठे हैं |
अति उलास हैं अंग अंग में ---पिऊ के बहुत नज़दीक हैं हम और हर कदम पर वो हमारे साथ हैं |


सखियों के संग सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं | अत्यंत ही कोमलता ,नर्माई लिए गिलम रूह के लिए और भी कोमलहो रही हैं और रूह भी बड़ी ही सावधानी से चतुराई से प्यार से अपने कदम आगे रखती हैं | प्रत्येक पाँचवे सोपान के साथ ही चान्दा --और दोनो और आए स्वर्णिम कठेड़े

जिनके चित्रामन में आएँ पशु पक्षी भी आनंद से झूम उठे प्यारी रूह के आगमन पर
फूलों की बरखा --इत्र की बरखा से रूह का अभिनंदन
पिऊ पिऊ तूही तूही की गूंजार
पुतलियों का मनभावन नृत्य
चित्रामन में पेड़ भी झुक कर सिजदा कर रहे हैं
सुगंधी
और नूर का आलम
हर और से एक ही पुकार पिया मेरे
बस तूही तूही तू

साथ जी ,यहाँ का जर्रा जर्रा चेतन हैं ,श्री राज जी के ही धाम हृदय का व्यक्त स्वरूप हैं | पच्चीस पक्षों में उन्हींका  धाम हृदय क्रीड़ा कर रहा हैं | इसी भाव से हमे शोभा लेनी हैं |

chandni chouk -ruh ke bhav

जब में ने अपने आप को आईने में देखा तभी सामने मुझे मेने नहीं पर अर्श के राजा को देखा बस उन्हें आईने में मेने छूने को हाथ उठाया की वह छलिया भागा ।
में भी उसे पकड़ ने के लिये भागी तो मेंने देखा की मे जिस कमरे में खडी थी वहा से में अनेको प्रकाश में जूठ की जिमि से दूर सत्य की जमीन पर मेने खुद को पाया ।

उफ़
कोमलता सब्द जो मेने फर्श में सुना उस का सही अर्थ मुझे अर्श की जमीन पर पैर रख के मिला ।

मेने अपने आप को एक चोरस चौक में पाया ।
एक सामान पूरा चौक है।
उसके ऊपर छत नहीं थी मेने ऊपर देखा तो आँखे मानो गल गयी उस अद्वितीय सोभा में।
अनंत रंगो से आकाश सजा था मनो रंगों और फूलो की वर्षा कर रहा है मुज पर ।

 एक तो चोकोर चौक है और ऊपर छत नहीं है अब समजी में की यह मेरा मन मोहक चाँदनी चौक है ।

मन को बार बार लुभाती ऐसी इसकी सोभा को में एक नजर बस देखती ही रही ।

में देखि जा रही हूँ और मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ ।

अनेको रतनो , नंगो  से जडा चोखूना चबूतरा कमाल है ।

 याहा मुझे पास पास बुला रहे दो वृक्ष खड़े है कमाल की अदा लिए हुवे ।

यह दो पेड़ दो चबूतरे के ऊपर बने है ।

एक और हरा पेड़ है
दूजी ओर लाल पेड़ है ।

दोनों पेड़ चोरस चबुतरे पर सजे हे।

जहा चबूतरा देख रही हु तो नजरे उपर उठ नहीं रही है ।

एक नज़ारे में ही ऐसे खो जाती हु की आगे नजर करना ही भूल जाती हूँ ।

पेड़ जिस चबूतरे पे खड़ा है ।
वह चबूतरा भी चोकोर है ।

चारो और 3 3 सीढिया सोने की उतरती बनि हुवी है

सोना भी केसा है एक ही रंग का नहीं है ।
सोने का भी कई रंग जलकार कर रहा है ।

इतनी खुसी आनंद है कहि मस्ती में खुद को भूल के गिर ना जाऊ इस लिए खुद मेरे दूल्हा मेरे लिए कठेडा बन के मानो खड़े हो गए है ।
चोकोर चौक के फिरते कठेडा बना हुवा है ।
चौक पे गिलम बछि हुवी है ।

लाल पेड़ जो आम का है में उस कठेड़े पर आके खड़ी हो गई हूँ ।

पिया जो भागे थे वह पेड़ के तने के पीछे छिप गए थे ।
मेने उन्हें पकड़ लिया ।

पिया का हाथ पेड़ के तने को छूके खड़े थे ।
पिया के हाथ पे मेरा हाथ मेने रखा और पिया से मीठी मीठी बाते करने लगी ।

पिया और में पेड़ के तने को पकड़ कर खेलने लगे।

और एक पल में पिया पेड़ के तने के अंदर चले गए

पेड़ का तने की जो सोभा मेने बहार से देखि उस से अधिक सोभा पेड़ के तने के अंदर देख रही हूँ ।

एक पल के लिए नजरे पलक जपका ना भूल गयी है ।

इतनी सुंदरता सुंदरता का सही नजारा मानो आज मेने देखा है ऐसा लग रहा है ।

तने के अंदर सीढिया सजी है।
वह भी कैसे??
मनो संगीत के पियानो की तरह सजी है ।

जहा पिया का पहला कदम एक सीढ़ी पे रखा वहीँ मनो मधुर संगीत बजने लगा दूसरे मेरे कदम पर भी संगीत बजने लगा ।

सीढियो पे संगीत और भूषणों की मधुर ध्वनि दोनों का मिलन इतना प्रेम भरा मौसम खड़ा कर रहा हे की मानो ऐसा संगीत ना कभी सुना मेने ।

सीढिया चढ़ के जब पेड़ के अंदर का नजारा देखा अनेको महल बने है ।
मानो यही मेरा ठिकाना है ।

बहार पेड़ को देखा तो नंगो से जड़ित पत्ते जो चेतन हे ।
जो चीख चीख कर मुझे बुला रहे है।

पेड़ पे पक्सीया गुन गुना कर प्रेम बरसा रहे है ।

पेडो से लाल हरे रंग की किरणे सागर की लहरो की तरह आकाश में उठती में देख के उसी में ज़िलने लगी हूँ ।

ऐसा लग रहा हे की जो पेड़ निचे हे उनकी किरनों से आकाश में भी पेड़ के समान थंब बन गए है ।

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और जोत जो बिरिख की,
सो भी बिच आकाश और बन।
पार नही इन जोत की
पर एह रंग और रोसन ।।

परिक्रमा 3/ 25

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इन पेड़ो की डालियो ने चबूतरे के बराबर हद तक छाया कर रखी है ।

यह 2 पेड़ की 2 भोम और 3 चांदनी है ।

अब मेरी नजरे धीरे से सर्माते हुवे चांदनी चौक की जमीन पर नजर करती हूँ ।

हीरा
माणिक
मोती
पन्ना
परवाल
हेम
कंचन
अनेको नंगो और रंगो से जगमगाहट करती रेती बिछी हुवी है ।

रेती भी ऐसी है जो सब्दो में बयान नहीं कर सकती ।

2 खूंनि
3 खुनी
4 खुनी
गोल
चौकर
अनेको आकर में सुशोभित है।

यह रेत मानो आइना है ।
जहा हर जगह रेती में मेरा और पिया का प्रतिबिम्ब दिख रहा है ।

हर रेट में पिया को देख के गले लगाने का ❤ व्याकुल हो रहा है ।

जेसे ही में रेत पे बैठ के हाथ में ले रही हूँ ।
की मानो फूलो को पकड़ा है वेसे रेत मेसे महक आ रही है ।
नरमाई मानो पिया के गाल को छु लिया हो ऐसा लग रहा है ।

खड़ी हुवी की रेत में अंदर पैर धस गया मेरा ।

लगता है रेत ने मुझे गले लगाया है ।


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इत जोत जिमि की क्यों कहूँ
हुओ आकाश जिमि एक ।
सोभा क्यों कहु आगू अर्श के
जानो सबसे एह विसेक ।।
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मेरे 3  तरह अमृत बन की दलिया खुश्बुदार मंद मंद हवा के जोको से लहरा रही है ।

दाये बाए अमृत बन की डालिया लंबी जाकर रंगमहोल के मंदिरो की दीवालों और ज़रोखे से लगी हुवी में देख रही हू ।

1 भोम के ज़रोखे से में उतरकर अमृतबन की 2 भोम से दौड़ के सातो घाटो में जा सकती हू ।

इस सोभा का क्या कहु जहा नजर एक नज़ारे से दूसरी और जा ही नहीं पाती है।

और ऊपर से मेरे उनका इश्क़ हाय हाय कहा ना जाए इसा पल है ।

बस यह पल थम्ब जाये
में उनमे वो मुझमे समां जाये ।
यह पल यही थंभ जाये ।

PREM PRANAM JI



chandni chouk men aaye vano ki shobha




Vaaani me aisa aata hai ki jo saat van hai unki daliya rangmohal ke jharokho se milti hai...to que yah ki kya ye chandni chok ki jo jagah hai..vah upar tak khali rehti hai yaa..in do laal aur hare pedo ki daliya bhi rangmohal ke jharokho se milti hai..??

वाणी में यह वर्णन आता हैं कि रंगमहल की पूर्व दिशा में जो वन लगे हैं --केल ,लिबोई और अनार --इनकी डालियां रंगमहल के झरोखों से एक रूप मिलन करती हैं | इन वनो के पहली हार वृक्ष जो रंगमहल की और आए हैं वह 22 सीढ़ियाँ वनों की बना कर 22 हाथ ऊँचे उठकर एक मंदिर का छतरिमंडल बढ़ा कर रंगमहल के पहली भोंम के झरोखों से मिलान करते हैं और इन वृक्षों की दूसरी भोम छज्जो से मिलान करती हैं

लेकिन जो लाल हरे वृक्षों का वर्णन चाँदनी चौक में आया हैं यह रंगमहल से मिलान नहीं करते

इन वृक्षों की अलौकिक शोभा आईं हैं | सरकार श्री जी कहते हैं कि यह वृक्ष आपके स्वागत के लिए हैं |

33 मंदिर का लंबा चौड़ा चबूतरा ---तीन सीढ़ी ऊँचा --चारों दिशा से उतरती सीढ़ियाँ --घेर कर कठेड़ा-और ठीक मध्य एक मंदिर का तना जो 75 हाथ सीधा ऊपर को जाता हैं -इसके बाद वृक्ष हर दिशा में डालियां बढ़ा कर चंद्रवा करता हैं |पहली भोंम की शोभा तो बरामदे की तरह --

दूसरी भोंम मे तना फिर से उठा --और अब इन वृक्ष ने जो छत डाली --उनकी डालियों ने कुछ इस तरह से जुगति कि यहा शोभा एक बड़े से हाल की माफिक ---33 मंदिर का लंबी चौड़ी फूलों की शोभा --नीचे फूल ऊपर फूल --चारों और महेराबी द्वार ---फुलो के सिंहासन कुर्सियाँ --और छत पर गुमट कलश


चाँदनी चौक की अलौकिक शोभा


रंगमहल के सामने सात वन की शोभा और मुख्यद्वार के ठीक सामने लगता हुआ अमृत वन जिसके तीसरे हिस्से में चाँदनी चौक आया हैं |

166 मंदिर का लंबा चौड़ा विशाल चाँदनी चौक

चौक में सुंदर मोतियों सी जगमगाती रेती --रेती की उज्ज्वल जोत-- आसमान तक जा रही हैं |अति नरम रेती ..चलो तो घुटनो तक पाँव मानो धँस जाते हैं |

तीनों दिशा में अमृत वन के महेराबी द्वार ---उनमें से झलकते नहेरे चहेबच्चे

क्रीड़ा करते पशु पक्षी
पिऊ पिऊ की गूंजार करते
करतब दिखाते बंदर

और चाँदनी चौक के मध्य में फूलों की रोंस जो सीधा रंगमहल की सीढ़ियों तक आपको ले जा रही हैं


दोनो और चबूतरे जिन पर लाल हरा पेड़ सुशोभित हैं

और दाएँ बाएं दो तीन सीढ़ी ऊँचे चबूतरे जिनपर लाल हरे पैड लहरा रहे हैं

एक चौक की शोभा देख मेरी सखी

उत्तर दिशा 33 मंदिर के चबूतरे को –चारो दिशा उतरती सीढीयां –बाकी जगह नूरमयी कठेड़ा –मध्य में 2 भोंम तीसरी चाँदनी के लालपेड़ की शोभा को –ठीक ऐसे ही दक्षिण मे हरे रंग का पैड़ शोभा ले रहा हैं! इन चबूतरों पर जिस भी दिशा मे बैठ कर धनी जी के संग हांस विलास का मन रूह करती हैं उसी पल वहाँ सिंघासन कुर्सियाँ हाजिर हो जाती हैं ! यहाँ धनी हमे पशु पक्षियों की लीला के दर्श कराते हैं!

चबूतरे के मध्य पेड़ की शोभा ---जिनकी दो भोंम तीसरी चाँदनी आई हैं | पेड़ पहली भोम में कुछ इस तरह से छटरियाँ बड़ा कर छाया करता है कि पूरे चबूतरे पर शीतल छाया पड़ती हैं चबूतरे को उलन्घ कर छाया बाहर नहीं जाती | पहली भोम में सुंदर बैठक और दूजी भोम मे मोहोल की अचरज में डालने वाली मोहोलात की शोभा ---तो आइए चबूतरे पर बैठे-

बैठे --- और देखे चाँदनी चौक की अलौकिक शोभा ---बरखा का आना और मोरो का नृत्य पेश करना ---कोयल की मीठी कूहु कूहु --पपिहा की मीठी आवाज़ --बंदरों के खेल --दोनों पेड़ो के दरम्यान रस्सी बाँध कर उन पर करतब कर आपको रिझाना --और हाथियों की मदमस्त चल आइए उन पर अस्वार हो दूर वनों में चले और धाम के अखंड सुखों की अनुभूति करे

चांदनी चौक में जो रेती बिछी हुई है,उसका तो कहेना ही क्या ।
कोई गोल,कोई त्रिखुनि,कोई चौखुनी, कोई चौरस,अनेक प्रकार के आकारो से जगमगाती नूर बरसाती हम सब रूहो का स्वागत करती है ।
रंग बेरंगी रेती से निकलती आभा सारे आसमान को शुसोभीत कर रही है,जानो रंगो का सागर उमड़ रहा हो ।

चांदनी चौक में जो हरे और लाल पेड आये हुए है उसका नूर चांदनी चौक के सामने शुशोभित अपने रंगमहल को और नुरमयी बना रहा है।देखने से तो ऐसा लग रहा है,जानो रंगमहल का नूर और चांदनी चौक के पेड़ो का नूर एक दूसरे से टकराता नजर आता है ।और उसी टकराव में मस्त होती चली जाती हु ।धनी मुझे इस तरह तहलाती देखते ही अपनी अमी नजर से अपना लाड और प्यार मुझ पर बरसा रहे है और मैं उस लाड प्यार में मस्त हो रही हु ।
बस ऐसा ही लाड प्यार मुझ पे बना रहे और मैं सदा उसी में मस्त रहूं 

चितवनि

परमधाम की चितवनी

हमारी आत्मा इस फानी संसार में अपने स्थूल शरीर और जीव रूपी साधन से अपने मूल स्वरूप ,अपने निज घर और अपने धाम धनी को याद करती हैं उसी को चितवन कहते हैं |धाम शब्द का उच्चारण होते ही हमारे धाम हृदय में रंगमहल और वहां का अलौकिक लीला बिहार याद आना चाहिए जो हम श्री युगल स्वरूप श्री राज-श्यामा जी के संग परमधाम में करते हैं | तो आइए साथ जी,हम अपनी सुरता को परमधाम में लें चलें और श्रीराज जी के मेहर ,उनके जोश और तारतम वाणी से परमधाम के पच्चीस पक्षों की अति मनोहारी शोभा के आत्मिक दृष्टि से दर्शन करें ,श्री राज-श्यामा जी के स्वरूप सिनगार को अपने धाम हृदय में बसाएं और उनके साथ परमधाम में अखंड लीला बिहार करें |