Friday, 11 December 2015

chandni chouk -ruh ke bhav

जब में ने अपने आप को आईने में देखा तभी सामने मुझे मेने नहीं पर अर्श के राजा को देखा बस उन्हें आईने में मेने छूने को हाथ उठाया की वह छलिया भागा ।
में भी उसे पकड़ ने के लिये भागी तो मेंने देखा की मे जिस कमरे में खडी थी वहा से में अनेको प्रकाश में जूठ की जिमि से दूर सत्य की जमीन पर मेने खुद को पाया ।

उफ़
कोमलता सब्द जो मेने फर्श में सुना उस का सही अर्थ मुझे अर्श की जमीन पर पैर रख के मिला ।

मेने अपने आप को एक चोरस चौक में पाया ।
एक सामान पूरा चौक है।
उसके ऊपर छत नहीं थी मेने ऊपर देखा तो आँखे मानो गल गयी उस अद्वितीय सोभा में।
अनंत रंगो से आकाश सजा था मनो रंगों और फूलो की वर्षा कर रहा है मुज पर ।

 एक तो चोकोर चौक है और ऊपर छत नहीं है अब समजी में की यह मेरा मन मोहक चाँदनी चौक है ।

मन को बार बार लुभाती ऐसी इसकी सोभा को में एक नजर बस देखती ही रही ।

में देखि जा रही हूँ और मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ ।

अनेको रतनो , नंगो  से जडा चोखूना चबूतरा कमाल है ।

 याहा मुझे पास पास बुला रहे दो वृक्ष खड़े है कमाल की अदा लिए हुवे ।

यह दो पेड़ दो चबूतरे के ऊपर बने है ।

एक और हरा पेड़ है
दूजी ओर लाल पेड़ है ।

दोनों पेड़ चोरस चबुतरे पर सजे हे।

जहा चबूतरा देख रही हु तो नजरे उपर उठ नहीं रही है ।

एक नज़ारे में ही ऐसे खो जाती हु की आगे नजर करना ही भूल जाती हूँ ।

पेड़ जिस चबूतरे पे खड़ा है ।
वह चबूतरा भी चोकोर है ।

चारो और 3 3 सीढिया सोने की उतरती बनि हुवी है

सोना भी केसा है एक ही रंग का नहीं है ।
सोने का भी कई रंग जलकार कर रहा है ।

इतनी खुसी आनंद है कहि मस्ती में खुद को भूल के गिर ना जाऊ इस लिए खुद मेरे दूल्हा मेरे लिए कठेडा बन के मानो खड़े हो गए है ।
चोकोर चौक के फिरते कठेडा बना हुवा है ।
चौक पे गिलम बछि हुवी है ।

लाल पेड़ जो आम का है में उस कठेड़े पर आके खड़ी हो गई हूँ ।

पिया जो भागे थे वह पेड़ के तने के पीछे छिप गए थे ।
मेने उन्हें पकड़ लिया ।

पिया का हाथ पेड़ के तने को छूके खड़े थे ।
पिया के हाथ पे मेरा हाथ मेने रखा और पिया से मीठी मीठी बाते करने लगी ।

पिया और में पेड़ के तने को पकड़ कर खेलने लगे।

और एक पल में पिया पेड़ के तने के अंदर चले गए

पेड़ का तने की जो सोभा मेने बहार से देखि उस से अधिक सोभा पेड़ के तने के अंदर देख रही हूँ ।

एक पल के लिए नजरे पलक जपका ना भूल गयी है ।

इतनी सुंदरता सुंदरता का सही नजारा मानो आज मेने देखा है ऐसा लग रहा है ।

तने के अंदर सीढिया सजी है।
वह भी कैसे??
मनो संगीत के पियानो की तरह सजी है ।

जहा पिया का पहला कदम एक सीढ़ी पे रखा वहीँ मनो मधुर संगीत बजने लगा दूसरे मेरे कदम पर भी संगीत बजने लगा ।

सीढियो पे संगीत और भूषणों की मधुर ध्वनि दोनों का मिलन इतना प्रेम भरा मौसम खड़ा कर रहा हे की मानो ऐसा संगीत ना कभी सुना मेने ।

सीढिया चढ़ के जब पेड़ के अंदर का नजारा देखा अनेको महल बने है ।
मानो यही मेरा ठिकाना है ।

बहार पेड़ को देखा तो नंगो से जड़ित पत्ते जो चेतन हे ।
जो चीख चीख कर मुझे बुला रहे है।

पेड़ पे पक्सीया गुन गुना कर प्रेम बरसा रहे है ।

पेडो से लाल हरे रंग की किरणे सागर की लहरो की तरह आकाश में उठती में देख के उसी में ज़िलने लगी हूँ ।

ऐसा लग रहा हे की जो पेड़ निचे हे उनकी किरनों से आकाश में भी पेड़ के समान थंब बन गए है ।

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और जोत जो बिरिख की,
सो भी बिच आकाश और बन।
पार नही इन जोत की
पर एह रंग और रोसन ।।

परिक्रमा 3/ 25

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इन पेड़ो की डालियो ने चबूतरे के बराबर हद तक छाया कर रखी है ।

यह 2 पेड़ की 2 भोम और 3 चांदनी है ।

अब मेरी नजरे धीरे से सर्माते हुवे चांदनी चौक की जमीन पर नजर करती हूँ ।

हीरा
माणिक
मोती
पन्ना
परवाल
हेम
कंचन
अनेको नंगो और रंगो से जगमगाहट करती रेती बिछी हुवी है ।

रेती भी ऐसी है जो सब्दो में बयान नहीं कर सकती ।

2 खूंनि
3 खुनी
4 खुनी
गोल
चौकर
अनेको आकर में सुशोभित है।

यह रेत मानो आइना है ।
जहा हर जगह रेती में मेरा और पिया का प्रतिबिम्ब दिख रहा है ।

हर रेट में पिया को देख के गले लगाने का ❤ व्याकुल हो रहा है ।

जेसे ही में रेत पे बैठ के हाथ में ले रही हूँ ।
की मानो फूलो को पकड़ा है वेसे रेत मेसे महक आ रही है ।
नरमाई मानो पिया के गाल को छु लिया हो ऐसा लग रहा है ।

खड़ी हुवी की रेत में अंदर पैर धस गया मेरा ।

लगता है रेत ने मुझे गले लगाया है ।


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इत जोत जिमि की क्यों कहूँ
हुओ आकाश जिमि एक ।
सोभा क्यों कहु आगू अर्श के
जानो सबसे एह विसेक ।।
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मेरे 3  तरह अमृत बन की दलिया खुश्बुदार मंद मंद हवा के जोको से लहरा रही है ।

दाये बाए अमृत बन की डालिया लंबी जाकर रंगमहोल के मंदिरो की दीवालों और ज़रोखे से लगी हुवी में देख रही हू ।

1 भोम के ज़रोखे से में उतरकर अमृतबन की 2 भोम से दौड़ के सातो घाटो में जा सकती हू ।

इस सोभा का क्या कहु जहा नजर एक नज़ारे से दूसरी और जा ही नहीं पाती है।

और ऊपर से मेरे उनका इश्क़ हाय हाय कहा ना जाए इसा पल है ।

बस यह पल थम्ब जाये
में उनमे वो मुझमे समां जाये ।
यह पल यही थंभ जाये ।

PREM PRANAM JI



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