रंगमहल के सामने सात वन की शोभा और मुख्यद्वार के ठीक सामने लगता हुआ अमृत वन जिसके तीसरे हिस्से में चाँदनी चौक आया हैं |
166 मंदिर का लंबा चौड़ा विशाल चाँदनी चौक
चौक में सुंदर मोतियों सी जगमगाती रेती --रेती की उज्ज्वल जोत-- आसमान तक जा रही हैं |अति नरम रेती ..चलो तो घुटनो तक पाँव मानो धँस जाते हैं |
तीनों दिशा में अमृत वन के महेराबी द्वार ---उनमें से झलकते नहेरे चहेबच्चे
क्रीड़ा करते पशु पक्षी
पिऊ पिऊ की गूंजार करते
करतब दिखाते बंदर
और चाँदनी चौक के मध्य में फूलों की रोंस जो सीधा रंगमहल की सीढ़ियों तक आपको ले जा रही हैं
दोनो और चबूतरे जिन पर लाल हरा पेड़ सुशोभित हैं
और दाएँ बाएं दो तीन सीढ़ी ऊँचे चबूतरे जिनपर लाल हरे पैड लहरा रहे हैं
एक चौक की शोभा देख मेरी सखी
उत्तर दिशा 33 मंदिर के चबूतरे को –चारो दिशा उतरती सीढीयां –बाकी जगह नूरमयी कठेड़ा –मध्य में 2 भोंम तीसरी चाँदनी के लालपेड़ की शोभा को –ठीक ऐसे ही दक्षिण मे हरे रंग का पैड़ शोभा ले रहा हैं! इन चबूतरों पर जिस भी दिशा मे बैठ कर धनी जी के संग हांस विलास का मन रूह करती हैं उसी पल वहाँ सिंघासन कुर्सियाँ हाजिर हो जाती हैं ! यहाँ धनी हमे पशु पक्षियों की लीला के दर्श कराते हैं!
चबूतरे के मध्य पेड़ की शोभा ---जिनकी दो भोंम तीसरी चाँदनी आई हैं | पेड़ पहली भोम में कुछ इस तरह से छटरियाँ बड़ा कर छाया करता है कि पूरे चबूतरे पर शीतल छाया पड़ती हैं चबूतरे को उलन्घ कर छाया बाहर नहीं जाती | पहली भोम में सुंदर बैठक और दूजी भोम मे मोहोल की अचरज में डालने वाली मोहोलात की शोभा ---तो आइए चबूतरे पर बैठे-
बैठे --- और देखे चाँदनी चौक की अलौकिक शोभा ---बरखा का आना और मोरो का नृत्य पेश करना ---कोयल की मीठी कूहु कूहु --पपिहा की मीठी आवाज़ --बंदरों के खेल --दोनों पेड़ो के दरम्यान रस्सी बाँध कर उन पर करतब कर आपको रिझाना --और हाथियों की मदमस्त चल आइए उन पर अस्वार हो दूर वनों में चले और धाम के अखंड सुखों की अनुभूति करे
चांदनी चौक में जो रेती बिछी हुई है,उसका तो कहेना ही क्या ।
कोई गोल,कोई त्रिखुनि,कोई चौखुनी, कोई चौरस,अनेक प्रकार के आकारो से जगमगाती नूर बरसाती हम सब रूहो का स्वागत करती है ।
रंग बेरंगी रेती से निकलती आभा सारे आसमान को शुसोभीत कर रही है,जानो रंगो का सागर उमड़ रहा हो ।
चांदनी चौक में जो हरे और लाल पेड आये हुए है उसका नूर चांदनी चौक के सामने शुशोभित अपने रंगमहल को और नुरमयी बना रहा है।देखने से तो ऐसा लग रहा है,जानो रंगमहल का नूर और चांदनी चौक के पेड़ो का नूर एक दूसरे से टकराता नजर आता है ।और उसी टकराव में मस्त होती चली जाती हु ।धनी मुझे इस तरह तहलाती देखते ही अपनी अमी नजर से अपना लाड और प्यार मुझ पर बरसा रहे है और मैं उस लाड प्यार में मस्त हो रही हु ।
बस ऐसा ही लाड प्यार मुझ पे बना रहे और मैं सदा उसी में मस्त रहूं
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