Tuesday 20 September 2016

rangmahal ki navi bhom

*| नवमी भोम ||*
*छः हज़ार मंदिर बाहिरी हार के हैं ( बाहिरी हार के मंदिरों की तीनों तरफ दिवाल नहीं हैं मात्र भीतरी दिवाल हैं |बाहिरी दिवाल की जगह छः हज़ार थम्भ हैं और छज्जा हैं ) उन मंदिरों में भीतरी तरफ दिवाल हैं |ग्रिद के दरवाज़ों के आगे चांदे हैं |एक एक चांदे के दोनों तरफ भीतर उतरने के लिए तीन तीन सीढ़ियां लगी हैं |बाहिरी दिवाल की हद पर छः हज़ार थम्भ हैं |उन छः हज़ार थम्भो के आगे बाहिरी तरह एक मंदिर का चौड़ा चारों तरफ फिरता छज्जा बढ़ा हैं |*+ *छः हज़ार थम्भ छज्जा की किनार पर हैं |थम्भो से लगता हुआ कठेड़ा सुशोभित हैं |आगे ढाल दार छज्जा हैं | दो सौ एक छज्जों पर दो सौ एक सिंहासन हैं | एक एक सिंहासन के आस पास छः छः हज़ार कुर्सियां हैं |श्री राज श्री ठकुरानी जी जिस दिशा में विराजते हैं उसी दिशा के तमाम दृश्यों का परस्पर वर्णन करके प्रमुदित होते हैं |*
+ *एक मंदिर की जगह तो बाहिरी हार मंदिर से ले ली गयी हैं और एक मंदिर की जगह आगे बढ़ाई गयीं ;इसीलिए दो मंदिर का चौड़ा और चारों तरफ फिरता छज्जा हुआ |*



श्री लाल दास महाराज जी की वृति  के प्रकाश में श्री रंगमहल की नवमी भोम के दर्शन करते हैं --रंगमहल की नवीं भोम चलते हैं --मेरी सखी आत्म दृष्टि से निरख --नवीं भोम के बाहिरी हार मंदिरों की शोभा जो एक अलग ही प्यारी शोभा लिये हैं --घेर  कर आएं इन मंदिरों की भीतरी दीवार की शोभा आयीं हैं पर देख मेरी सखी ,इन मंदिरों की बाहिरी दीवार और पाखे की दीवार नहीं आयीं हैं --जहाँ बाहिरी दिवार होनी कहिये थी वहां ६००० नूरमयी थंभों की झलकार हैं --इन थंभों के आगे एक मंदिर का चौड़ा छज्जा आया हैं जिसकी किनार पर भी थम्भ हैं और थंभों के दरम्यान नूरमयी जेवरातों का जगमग करता कठेड़ा हैं 


२०१ गुर्ज अपनी जगह पर आने से २०१ झरोखों की शोभा आयीं हैं ,इन झरोखों में सुन्दर नूरी बैठके हैं --आप श्री राज जी जिस दिशा में बैठते हैं वहीं का नजारा रूह को दिखाते हैं 

दो गुर्जो के मध्य एक झरोखा ऐसे २०१ झरोखों की शोभा 

अब देखते हैं --भीतरी दिवार 

इन दिवार में एक बड़ी मेहराब के मध्य दरवाजा आया हैं ,उन द्वार के आगे एक चांदा आया हैं जिनसे तीन सीढ़ी भीतर गली में उतरी हैं --

विशेष बात -यह सारी शोभा अर्थात बाहिरी  हार मंदिर जो झरोखों के रूप में हैं ,मंदिरों के आगे एक मंदिर का छज्जा -यह सब तीन सीढ़ी ऊंची शोभा लिये हैं 

Sunday 18 September 2016

आइए दिल के पथ पर चले

★जागनी के हिंडोले★

अक्षरातीत धाम दूल्हा पिया प्राणनाथ जी के धाम दिल से जहां मारफत के ज्ञान का प्रकटीकरण हुआ ऊसी बंगलाजी की पूवॅ की दिवार से लगकर खडी हूई में दोपहर के सूयॅ रूपी घूम्मटजी की शोभा में अभिवृद्धि करती धाम धनी की शोभा में डूबे जा रही हूँ...घूम्मटजी के प्रांगण में बहेती मंद मंद नूरी हवा एक गजब सी खनक मेरे कानो में घोल रही थी..वह मीठी खनक मेरे दिल को ऐसे खींच रही थी कि मेरी नजर स्वतः ही ऊस और चल पडी ...घूम्मटजी की ईदॅ गिदॅ आए महेलो(मंदिरो) की शोभा देखते ही बनती थी जो धाम के 6000 मंदिरो की याद दिलाती थी, ईसी महेलो के आगे एक मंदिर की गली और गली हे लगता हूआ कमर भर ऊँचा कठेडा और कठेडे से लेकर महेल की छत तक एक बडी महेराब की शोभा बनी हूई थी..यही शोभा सभी महेलो मे आई हूई थी..इन्ही महेराबो मे लगे बडे बडे हिंडोलो से वह नूरी खनक मेरे दिल तक पहूँच रही थी और मुझे रंगमहल के नूरी वह हिंडोलो की याद दिला रही थी...ऐसा महेसूस हो रहा था कि घूम्मट जी की तीनो दिशाओं और पश्चिम मे बंगलाजी के ऊपर बने नूरी हिंडोले रंगमहल की आठवी भोम मे 6000-6000 मंदिरो के बीच में आए थंभो की महेराबो मे इतराते और ताली देते हिंडोलो की भांति, घूम्मट जी पर ताली देते हूए मानो धनी को चूमते हो ऐसा प्रतीत हो रहा था...चार ताली के ऊन हिंडोलो में जहाँ हम और धनी एक संग धनी के दिल मे झूलने का आनंद लिया करते थे वैसे ही ईन बडी महेराबो के हर एक हिंडोलो में जागनी रास का मूलमिलावा नजर आ रहा था...

धाम में वह कंचन रंग, लाल रंग के डांडे, कडिया, अनगिनत रंगो और नंगो की जहां शोभा आई हूई है वहीं इन महेराबो के हिंडोलो मे जागृत हर एक आतम की रहेनी का रंग, समॅपण के नंग, ऐसे झगमगा रहे थे कि मानो ऊससे घूम्मटजी एवम बंगलाजी का पूरा चबूतरा झिलमिला रहा था...

जहाँ ऊन हिंडोलो में धनी के संग झूलते हूए अनगिनत प्रकार ईई मस्तीया किया करते थे वही इन हिंडोलो में मूलमिलावे को देखकर मेरी रूह जागनी लीला में दिल से दिल जगाने की रसम का अप्रतिम आनंद रस अपने दिल मे ऊडेल रही थी...

धाम में और यहाँ चारो दिशाओ मे से हिलोर (झूमते) करते यह हिंडोले इस बात से आश्वत कर रहे थे कि धाम धनी की गुंज चारो दिशाओ मे हो रही है...  

और देखो यह हिंडोले तो धनी धनी, पिया पिया करते घूम्मटजी के बीच के घूम्मट तक आ रहे है और मस्ती के मद मे ऐसे मस्त हो रहे थे कि मैं कैसे ऊसको बयां करू???...

  मैं चारी और घूम घूम कर हिंडोलो की इन इश्कमयी रामत को निहार रही थी की अचानक जैसे धाम में धनी एक हिंडोले से दूसरे हिंडोले पे मुझे ले चलते थे वैसे ही बंगलाजी के ऊपर बने नूरी हिंडोले ने मूसे अपने संग बिठा लिया और फिर क्या मै भी घूम्मटजी की चोटी तक ऊडने लगी, ऊसे चूमने लगी...

वही एक ही पल में सामने पूवॅ के हिंडोले ने मुझे अपने संग ऊठा लिया...ऐसे बारी बारी चारो दिशाओ कै हिंडोले मूझे अपने संग इश्क मे गरक करने लगे और मै भीगी आंखों से धाम में होती वह हिंडोलो की लीला में खोने लगी...

यह मस्ती यह आनंद अविरत चल ही रहा था और मैं ऊसमे धीरे धीरे डूबती जा रही थी..डूबती जा रही थी...चारो दिशाए भी मानो लाल चूनर ओढे हिंडोलो पे सवार होकर धनी को चूम रही थी.. 

और अचानक एक मात्र जहा में बैठी थी वह पश्चिम के हिंडोले की गति कम हो रही थी पर दिल की धडकने बढ रही थी वह नूरी हिंडोला अब घूम्मटजी के दरवाजे तक आ रहा और ऐसे धीरे धीरे मुझे संग ले धनी के दिल में ऐसे समा गया कि मानो बस मूझे आनंद देने, मूझे लेने ही धनी के दिल से प्रगट हूआ हो...बाकी हिंडोले झूम रहे थे..झूमते रहेगें..पर मै समा गई थी..मिट गई थी..मिट गई थी...

Wednesday 14 September 2016

आठवीं भोम चितवन 🌴🌹🌴🌹🌴🌹

आठवीं भोम के अनंत सुख को दिल में लिए बस में सोच रही थी ...
वहीं मुझे एक पल याद आया ।

जब मेरे बुवा का बेटा मेरे भैया भाभी अपने 1 साल के छोटेसे बेटे को लेके मेरे घर आये थे तो वः छोटासा मुन्ना बिना झूले के सोता ही नही था ।
जब तल झूले में सुलाके आधा घण्टा उसे झुलाते रहे तब ही वो सोता है ।

यह बात आज याद आ गई की इतना मासूम छोटासा बच्चा जिसे अभी झूला क्या है..?कैसा है .? उसकी समझ भी नही है फिर भी वो झूले के बिना नही रह सकता रोता है ।

और मुझे पता है समझ है की मेरे अखण्ड घर में मेरे हिंडोले मेरी राह तक रहे है फिर भी उसकी याद नही आती आँख में आंसू का कतरा नही आता है ये केसी समझ है मेरी..??

बस इसी बात को सोचते सोचते आंख मिल गयी ।।

हिंडोले का खयाल दिलकी इतनी गहराई तक गया की सुरुआत में जहा चहरे पे उदासी छाई वही अंदर तक डूबते हुवे इतना आनंद आने लगा की होठो पे मन्द मन्द हंसी छाने लगी  ।

                         हिंडोले के सुख को दिल में लिए बस मेरी आतम तितली की तरह उड़ने लगी ।
पल भर में बलखाती हुवी में गुम्मट जी के दरबार में पहोच गई ।
दंडवत प्रणाम करके जहां परिक्रमा लगा ने गयी वही पर दिल ने सोचा हां हां हां... बिलकुल ऐसे ही तो गोल घेर कर 8 भोम में मंदिर थंभ और गलिया आई हुवी है ।

प्रणाम करने की खुली जगह भी चौक की तरह लगने लगी ...


8 भोम के इन्ही भाव को दिल में लिए सिंहासन् को देखने लगी और पल भर में अपने आप को  मेने जमुना जी के किनारे पर पाया ।

जमुना जी का पानी इतना कोमल मुलायम इतना उज्ज्वल मीठा जेसे आज कुछ अलग बिलकुल नई दुल्हन की तरह ही जमुना जी लग रही है .....


मेने जमुना जी के किनारे लगे पाटघाट पे बेथ कर अपने पैरो को जल में डुबोया और पैर को अंदर बहार करते हुवे जमुनाजी के जल के संग मस्ती करने लगी ।

अभी तो जल की और मेरे पेरो की मस्ती बढ़ ही रही थी की वही जमुना जी के अंदर की मछलिया 🐬🐋 और जल के अंदर की वनस्पती मेरे पैरो में आके गुद गुदि सी करने लगी ।
और में हसने लगी मेरे संग संग जल भी हसने लगा ।
इतना मजा आने लगा की दिल ने कहा केवल पैर भिगोके क्यों बैठी है..?
सखी जल्दी आजाओ जल के अंदर तक डूब जाओ ।

और में बिना देरी किये छल्लांग लिए जमुना जी के अंदर तक चली गयी और पूरा अंग भीगा कर झिलना  करने लगी ।

अंदर तक अभी गयी ही हु की मेरी नजरें मानो एक नया ही सुख ले रही है ।
जल में इतनी सारी मछलिया मेरा स्वागत कर रही है , तो जल की वनस्पति मुझे छूके मानो गले लगा रही है ।

अनंत रंग की मछलिया जल यहा से वहां दौड़ रही है तो मानो जल की गती मछलियो से ही है ऐसा लग रहा है ।
एक रंग में अनेको रंग इतना मनमोहक द्रश्य है की इसे तो बस देखकर ही जाना जा सकता है ।



इस अनमोल सुख को दिल में लेके में जल से बहार निकली और किनारे पर आई देहुरी में जाकर मेने पीया के मन भाए ऐसा सोला सिंगार सजा ...
और अपने कदमो को आगे बढ़ाते हुवे चलने लगी ।
 पायल की छम छम की आवाज के संग में आगे बढ़ती हु अमृत वन के बिच के रास्ते से में आगे चलती चलती धनी के दीदार के लिए बस चली जा रही हु चली जा रही हु ।
इतनी नरम कोमल जीमी है की पैर कदम वही रुक जाना चाहते है की बस इस जीमी का स्पर्स करती ही रहुं करती ही रहुं ।
पर मेरे पैर तो अपने आप सरकते हुवे आगे चले ही जा रहे है ।।

पल भर में देखते देखते चांदनी चौक में पहोच गयी मेरी आतम .....

चांदनी चौक की सोभा को दिल में बसाए में अपने सामने सीढियो को देख रही हु ।
इतनी सुंदर मन मोहक सीढिया है की नजरे कही और देख ही नही रही है ।
इस सुख को दिल में लेते हुवे सीढ़ियो पे आके खड़ी हु में ।
इतनी सुंदर संगीत के वाजिन्त्र समान सीढिया है की उसपे कदम पड़ते है तो एक मधुर संगीतसा बजने लगता है । जो दिल को और बेताब बनाए जा रहा है । प्रेम भरा धीमा धीमा यह मधुर संगीत और उसके साथ बहती हुवी मंद मंद पवन की लहरे दिल को खुस कर रही है ।

सीढियो पे छाई लाल गिलम इतनी मुलायम है की फूलो की कोमलता बिछी हो ऐसा लग रहा है ।

सीढियो के दाए बाए लगे परकोटे को पकड़ कर में सीढियो का सुख लेती हुवी आगे चली जा रही हु ।
और पीया दीदार को पाने के लिए और बेताब हुवे जा रही हु ।

सिढिया चढ़कर धाम दरवाजे की सुंदर सोभा को निहारे जा रही हूँ ।

दरवाजा भी मेरे दिल की धड़कन को जनता है बेताबि को समझता है और पल में ही धाम दरवाजे के किवाड़ अपने आप खुल गए और मेने दहलीज को पार करते हुवे रंगमहोल के अंदर प्रवेश किया ।

पहली भोम में आकर सीधी में बिना कुछ देखे बस सीधा मूल मिलावे में धनी के पास पहोच गयी ।
धनी भी मुझे दूर से देख कर बाहे फैलाये सिंहासन से खड़े हो गए पीया की खुली बाहे मानो मुझे अपनी और खीच रही है ऐसा लग रहा है और में दौड़ कर जाके पिया के गले लग गई।
वही इस मिलन को देख कर ऊपर चन्द्रवा भी खुसी से हम पर फूलो की फुहार करने लगा बरसाने लगा ।
सीढियो पे छाई लाल गिलम इतनी मुलायम है की फूलो की कोमलता बिछी हो ऐसा लग रहा है ।
सीढियो के दाए बाए लगे परकोटे को पकड़ कर में सीढियो का सुख लेती हुवी आगे चली जा रही हु ।
और पीया दीदार को पाने के लिए और बेताब हुवे जा रही हु ।

सिढिया चढ़कर धाम दरवाजे की सुंदर सोभा को निहारे जा रही हूँ ।

दरवाजा भी मेरे दिल की धड़कन को जनता है बेताबि को समझता है और पल में ही धाम दरवाजे के किवाड़ अपने आप खुल गए और मेने दहलीज को पार करते हुवे रंगमहोल के अंदर प्रवेश किया ।

पहली भोम में आकर सीधी में बिना कुछ देखे बस सीधा मूल मिलावे में धनी के पास पहोच गयी ।
धनी भी मुझे दूर से देख कर बाहे फैलाये सिंहासन से खड़े हो गए पीया की खुली बाहे मानो मुझे अपनी और खीच रही है ऐसा लग रहा है और में दौड़ कर जाके पिया के गले लग गई।
वही इस मिलन को देख कर ऊपर चन्द्रवा भी खुसी से हम पर फूलो की फुहार करने लगा बरसाने लगा ।
पीया के गले लगते ही पीया के दिल से मेरे दिल का ये मिलन ऐसा हुवा की पीया मेरे दिल की धड़कन को सुन कर मुझे कहने लगे हिंडोले के आनंद में आज खो जाना है मेरी रूह को..?

और मेंने जवाब में केवल एक मुस्कान दी और पिया समझ गए ।
पीया मेरा हाथ थामे उनके कदमो से कदम मिलाते हुवे पहली भोम की सीढियो वाले मंदिर के पास आके खड़े हो गए ।
और अब पीया ने और ज्यादा प्रेम से हाथ पकड़ कर उनकी उंगलिओ में मेरी उंगलिओ को मिला कर सीढ़ी वाले मंदिर से आगे बढ़ ने लगे ।
गोलाई में आई ये बारीक़ नक्सकारी की शोभा लिए सीढिया इतनी सुंदर लग रही है की बस यही रुक जाए ऐसा लगता है।

बस इसे देखा ही करू इसे छूके दिल के समालु ऐसा लगता है ।
इस सारे अनमोल सुखो को पीया के हाथ को थामें हुवे बस आगे ही आगे चले जा रहे है वही सामने एक अदभुत शोभा वाली महेराब दरवाजे को में अपने सामने देख रही हु ।
इतनी सुंदर फूलो से सजी महेराब बनी है की लगता है ये महेराब नहीं मेरे पिया का दील ही है ।
यहां से अंदर बढ़ते हुवे सामने बड़ा सा चौक देख रही हूँ में ।

चौक के दक्षिण दिशा की और हम आगे बढ़े तो मेने मंदिर की हार देखि एक दीवाल में  2 - 2 दरवाजे इतने सुंदर लग रहे है की बस यह शोभा तो देखते ही बनती है ।
तिन गलिया गलियो पे मुलायम बारीक़ नक्सकारि की हुवी लाल रंग में अनेको रंग लिए हुवे गिलम अपनी और हमे बुला रही हे।

धीरेसे मानो नयी दुल्हन अपने पैर घर में रखती है उसी तरह एक साथ पिया के कदम के साथ कदम मिलाते हुवे हमने पहली गली पर पैर रखे ।
इतनी कोमल गिलम मनो पेरो को चूम रही है ऐसा लग रहा है । गिलम को देखने के लिए मेरी नजरे निचे जमीन से लगी हुवी थी वहीं पिया अपने हाथो से मेरी मुख को अपने हाथो से उपर उठाते हुवे अपनी ऊँगली के इसारे से थंभ महेराब और उसमे सजे हिंडोलों को दिखा रहे है ।
और हिंडोलों को देख कर में इतनी खुश हो रही हूँ की लगता है खुसी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा ।

में दौड़ कर थंभ के गले लग जाती हूं ।
पीया वही गिली में खड़े खड़े ये देख कर हस रहे है।
में थम्भो की बेमिसाल सुंदर से सुंदर शोभा को देखे ही जा रही हु ।
थंभ के ऊपर हाथो को फेर रही हु । ऐसा लगता है की पीया के होठो को छु लिया हो इतने कोमल थंभ मुझसे कह रहे है कितनी देर करदी आने में अब आकर वापस ना जाना ।
और में और जोरो से थंभ के गले लग गयी ।

दो थम्भो के बिच में इतनी सुंदर महेराब बनी है बिलिकुल अनोखी रीत से ।
मनो अलग अलग पंखी आमने सामने बैठे हुवे है और पंखी के मुख के मिलन से महेराब बनी हुवी है ।
अलग अलग अदा से सजे ये थंभ और महेराबे मेरे दिल को खुस कर रही है आनंदित करे जा रही है ।
इस तरह से 4 तरह बनी महेराब और 4 महेरबो के बिच में सोने के कड़े से बंधे जंजीरो से हिंडोले इतने सुंदर लग रहे है की क्या कहा जाए ।
ऐसा लगता है की सेज्या ही सामने है ऐसे बड़े बड़े हिंडोले सजे है हर एक महेराब में ।

जब जंजीरो से खुल कर हिण्डोले लहराने लगे तो इसा लग रहा है की मुझे जल्दी आओ ऐसा कह रहे है बड़ा मझा आ रहा है ऐसा कह रहे है 

यह जो हिंडोले है वह दूर दूर तक जाते है साथ साथ यह हिंडोले गोल गोल घूमते है ।
एक साथ 4 तालिओ का मधुर संगीत बजाते यह हिंडोले गोल घूम कर एक बार इस तरह तो दूसरी बार दूसरी तरह जाते है ।


                         पवन की गती से लहराने वाले यह हिंडोले इतने सुंदर लग रहे है हिंडोले पर मुलायम गादी , सुंदर तकिए अनंत रंग और जंजीरो की मधुर आवाज इन सब से एक पल भी दुर ना हो ऐसा आकर्षण लिए सजे हुवे है ।


धनी मेरे पास आकर अपने हाथो से मेरा हाथ कर हिण्डोले में बैठाया ।और मेरे सामने वाले हिंडोले पे पीया खुद आकर बिराजमान हो गए ।
अभी तो आमने सामने वाले हिंडोले पे ही विराजमान हुवे 4 ताली के लिए आजु बाजू वाले हिंडोले खाली थे अभी तो में कुछ बोलू की तुरन्त पीया खुद अपने अनेको स्वरूप् लिए आस पास वाले हिंडोले पर आ बैठे और ऐसे सभी हिंडोले धनी और मेरी बैठक से भर गए ।
तभी पवन की एक मनमोहक लहर आई और हिंडोले अपने आप हवासे बाते करने लगे हिंडोला जब दूर जाता तो साँसे अंदर तक गहराई में चली जाती है और जैसे ही मेरे और धनी के हिंडोला नजदीक आता है की पीया अपने हाथो से मेरे हाथ में ताली देते है और हमारे साथ साथ आस पास वाले हिंडोले भी ताली देते है ।
ताली की आवाज ऐसी मधुर बजती है की पुरे अर्श में तालिओ की आवाज गुंजायमान हो जाती है ।
ताली के साथ जंजीरो की खन खन , हमारे आभूषण की छन छन छन , तेज सांसो की प्रेम भरी धड़कन , और हसी की आवाज से एक मधुर गीत संगीत बजने लगता है ।
और पूरा परमधाम मानो इस संगीत की धुन पर नाच रहा है ऐसा लगता है ।

थम्भो की दिवालो की नक्सकारी चेतनता के कारण नाचने लगती है ।
इतना आनंद आ रहा है की बस यही पल थम जाए ।
हिण्डोले अपनी रफ़्तार को और खुसी के कारण और बढ़ा रहे है ।
हर तरह तालिओ की आवाज और तेजी से बढ़ने लगी है ।
इस बार जब मेरा झूला पीया के नजदीक आया और पिया ने हाथो में ताली दी की मेने पिया के हाथो को पकड़ लिया थाम लिया अब जिसके कारण हिंडोला अब वहीं रुक गया । में अपने हिंडोले से उत्तर कर पीया के पास उन्ही के हिंडोले में जाकर बेथ गयी। 
और पिया के कन्धे पर सर रखके उनके दिल पर हाथ फेरते हुवे मेने पियासे कहा .....

पीया मेने मेरे दिल में मेरे दिल का ही हिंडोला बनाया है आपके लिए मेरे दिल में ही बस जाइए आप मेरे दिल के हिंडोले ही आराम और विश्राम करिए ।
और पीया यह सुनकर अपने गले सीनेसे लगा लेते है मुझे ।
बस यह सुख और इस पल का आनंद युही बना रहे में पिया के दिल में और पीया मेरे दिल में हमेसा झूला झूलते रहे ।

आठवीं भोम चर्चनी 🙏🏻☘🙏🏻

सातवीं भोम की तरह ही आठवीं भोम की शोभा आई हुवी है .....

फर्क केवल हिंडोलो की संख्या में है , महेराब की शोभा में 
और हिंडोले से बजने वाली सुंदर ताली में ही है ...
बाकी सारी शोभा 7 भोम के समान ही है ..

201 हांस से बना हमारा रंग महोल ।
8 भोम भी बहार से  201 हांस की सुंदर शोभा लिए हुवे है ।।

पूर्व की तरह से अंदर प्रवेश करते है तो सबसे पहले सामने 28 थंभ का चौक आया हुवा है ... 
जो  10 मन्दिर का लम्बा और 5 मन्दिर का चौड़ा है।
चौक की शोभा में पूर्व पश्चिम दिशा में 10-10 थंभ आये है तो आमने सामने उत्तर दक्षिण दिशामे 4 - 4 थंभ आये हुवे है....
 इस जगह चौक आने से खुली जगह बनी हुवी है जिसके कारण बिच के मंदिर नही आये है .....

201 हांस की हद से थोड़ी जगह छोड़के 6 हजार मंदिर की हार घेर कर आई है.,... 

6 हजार मन्दिर को छोड़ क्र आगे पहली एक गली आई हुवी है...

गली से आगे बढ़ते हुवे पहले थंभ की हार आई है ।

उससे आगे फिर एक दूसरी गली बनी हुवी है ।

गली को पार करते हुवे थंभो भी दूसरी हार आई हुवी है ।

थम्भो की हार से आगे चलते हुवे एक और तीसरी गली बनी हुवी है ।

और उससे आगे 6 हजार मंदिर की दूसरी हार आई है ।

इस तरह से 6 हजार मन्दिर के दो हारो के बिच में ही हिंडोले की सोभा थंभ और गलियो में बनी हुवी है 



इस तरह से गिनती में ...

1. 6 हजार मन्दिर
2. 6 हजार थंभ की
3. 6 महेराब पूर्व तरह
4. 6 हजार थंभ की
5. 6 हजार महेराब पश्चिम तरह
6. थम्भो के जोड़ती बिच की उत्तर दक्षिण 6 महेराब 
7. 6 हजार मन्दिर

इस तरह से पूरी शोभा बनी हुवी है ।

12 हजार मन्दिरो के बिच में

12 हजार थंभ बने है और 12 हजार थंभ के ऊपर 18 हजार महेराब सुंदरता लिए हुवे बनी है ।
इन 18 हजार महेराबो में 18 हजार हिंडोले आये है



जहा हम सब रूहे राज जी और स्यामाजी के संग झूला झूलती है ।।