Friday 14 October 2016

*सुख चाँदनी चढ़ाय के ,पूर्णिमा की मध्य रात*

दसवीं भोम

*सुख चाँदनी चढ़ाय के ,पूर्णिमा की मध्य रात*

* चाँदनी की किनार पर बाहिरी हार मंदिरों की जगह में दस कम छः हज़ार दहेलानें हैं |एक एक दहेलान में आठ आठ महेराबे देखने में मालूम होती हैं |किंतु संख्या छः छः महेराबों की हैं |दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं*

प्रेम प्रणाम जी साथ जी ,

आज रूह श्री रंगमहल की दसवीं चांदनी की शोभा निरखना चाहती हैं --धाम की चांदनी को अपने धाम ह्रदय में बसाना चाहती हैं ..तो श्री राज जी की मेहर ,उनके जोश के बल पर अपने कदम आगे बढ़ाती हैं और -

ब्रह्म मुनि श्री लाल दास महाराज जी की छोटी वृति के प्रकाश में दसवीं चांदनी की अलौकिक शोभा को देखती हैं                         
सर्वप्रथम नजर करते हैं --चाँदनी की बाहिरी किनार पर -- तो निज नज़रों में शोभा आती हैं की यहां बाहिरी हार मंदिरों के स्थान पर दहलान सुशोभित हैं -5990  दहलाने --एक एक दहलान की शोभा बहुत ही अद्भुत --

शोभा को हृदयगम करने के लिये एक दहलान के भीतर चले --बेहद ही प्यारी शोभा दहलान की --चारों दिशा में दीवार की शोभा और ऊपर नूरमयी छत की झलकार --एक नजर में देखे तो लगा कि यह भी मंदिर हैं --पर गहराई से देखते हैं  तो यह खुली दहलान हैं जहाँ रूह अपने प्रियतम श्री राज जी के संग हाँस  विलास करती हैं ..


दहलान के  चारों दिशा में आयीं दीवारें  मनोहारी शोभा लिये हैं --उनमें एक बड़ी नूरमयी मेहराब में तीन मेहराब शोभित हैं  --मध्य की मेहराब में नूरी रत्नों से जड़ित दीवार आयीं हैं और मध्य की इस मेहराब के दोनों और खुली मेहराबें शोभा ले रही हैं --इस तरह एक दहलान में आठ मेहराबें (खुली मेहराब )दिखती हैं पर गिनती में छह ही मेहराबें हैं क्योंकि पाखे की मेहराब दूसरे दहलान में काम देती हैं

 *दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं |उस दहेलान के अंदर दस दस थम्भों की चार हारें हैं और चार-चार की दस हारें हैं बाहिरी तरफ खुला एक मंदिर भर का छज्जा हैं जिसकी किनार पर कठेड़ा लगा हैं | कठेड़ा के बाहिरी तरफ ढालदार छज्जा हैं और भीतर की तरफ चाँदनी से कमर भर ऊँची एक मंदिर की खुली रोंस हैं जिसके किनार पर कठेड़ा सुशोभित हैं |दो सौ एक हांस में दो सौ एक चाँदे हैं |एक एक चाँदे के दोनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं |* 


घेर कर आयीं दहलान की शोभा निरख अपनी निज नजर को पूर्व दिशा की और करते हैं  -- जहाँ दस मंदिर के दरवाजा का हान्स हैं --दरवाजे की दहलान दस मंदिर की लंबाई लिये हैं और मंदिर की चौड़ी हैं --दस नूर भरे थंभों की चार हारें चौड़ाई तरफ से दिख रही हैं और लंबाई में दहलान की शोभा देखे तो चार चार थंभों की दस हारें शोभित हैं ।

दस मंदिर के हान्स में जो मध्य में दो मंदिर का दरवाजा आया था --और दरवाजा के दोनों और चार चार मंदिर हैं --उनकी जगह यहाँ दसवीं चांदनी में दस दस थंभों की दो हारें आयीं हैं --थंभों की एक हार दहलान के भीतरी और जो एक मंदिर का चौड़ा और लंबा तो घेर कर उठा हैं --उन चबूतरा की किनार पर दस थम्भ आएं हैं --दस थम्भ दहलान के बाहिरी तरफ जो दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी जो पड़साल की जगह आयीं हैं उसकी पूर्वी किनार पर दस थम्भ आएं हैं --छज्जा की शोभा हैं 

इस प्रकार घेर आईं इन दहलान के बाहिरी और जो एक मंदिर का छज्जा निकल हैं उसकी बाहिरी किनार पर कठेड़ा आया हैं आगे ढालदार छज्जा की शोभा हैं -

दहलान के भीतरी तरफ भी एक मंदिर का चौड़ा चबूतरा उठा हैं --एक मंदिर की रोंस के रूप में इसकी भीतरी किनार पर 201  हांसों से चांदों से सीढियां चांदनी पर उतरी हैं --एक एक चाँद से तीन तीन उतरती सीढियां देखे


 *मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा हैं |उस चबूतरा के चार कोण पर चार चहेबच्चें हैं |चेहेबच्चा के तीनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं ,एक तरफ से चबूतरा मिल गया हैं और चबूतरा के मध्य में गज भर ऊँचा सिंहासन हैं |सिंहासन को घेर कर चारों तरफ सीढ़ियाँ धरी हैं |श्रीराज श्री ठकुरानी जी तथा समस्त सुंदर साथ पूर्णिमा की रात्रि को इस चाँदनी पर पधारतें हैं |चबूतरा के ऊपर खड़े होकर देखने से दसों दिशाओं की वस्तु देखने में आती हैं |इस चबूतरा के चारों तरफ अनेक रमणीय बगीचे (फुलवारियाँ) हैं और वे बगीचे नहेरें ,चहेबच्चे और फुहारों से युक्त होकर अपार शोभा को धारण किए हैं *| 


अब नजर करते हैं चांदनी के मध्य भाग में --यहाँ एक कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं --और चबूतरा के चारों कोण पर चहबच्चे आएं हैं जिनसे निर्मल ,उज्जवल जल के फव्वारें उछल रहे हैं -चेहेबच्चों  को घेर कर आयीं रोंस एक तरफ से चबूतरा से मिल गयी हैं और तीन तरफ से तीन सीढियां चांदनी पर उतरी हैं 

--चबूतरा के मध्य में ऊंचा सिंहासन सुशोभित हैं --सिंहासन को घेर कर कुर्सियां धरी हैं --आप श्री राज श्याम जी पूनम की उज्जवल ,धवल रात्रि में चांदनी पर पधारते हैं --चबूतरा पर खड़े हो दसों दिशाओं की शोभा नज़रों में आती हैं -- 

मध्य आएं इन चबूतरों के चारों तरफ बाग़ बगीचों की शोभा आयीं हैं ..नहरें चेहेबच्चों की मनोहारी शोभा आयीं हैं





*एक एक देहेलान की चाँदनी पर दो दो गुमतियाँ हैं |छः हज़ार मंदिरों की जगह पर देहेलान की चाँदनी के किनार में छः हज़ार कंगुरें हैं | उन कंगुरों के बीच बीच में कांगरी हैं एवम् हांस हांस पर एक एक गुर्ज हैं |तिन प्रत्येक गुर्ज पर गुमट की अपार शोभा हो रही हैं |गुर्जों की संख्या दो सौ एक हैं |गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |*

चबूतरा पर सिंहासन कुर्सियों पर बैठ कर नजर चारो और घुमाई तो देखा --बाग़ बगीचों की मनोहारी शोभा --उठते फव्वारें -- चबूतरे के साथ लगते मेवों के बगीचे शोभित हैं तो कहीं फूलों की सुगंधी में सराबोर करते फूलों के बगीचे हैं और बीच-बीच में आईं दूब–रंगों की अदभुत छटा  बिखेरती दूब –जिन पर सुसज्जित दुलीचों पर रूहें श्री राज जी के संग रमण करती हैं | खुली चाँदनी के नीचे आईं फूलों की नूरी बैठकों पर श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं | देखिए खूब खुशालियाँ हाजिर हैं -मेवों से भरे थाल लेकर और मनुहार कर के प्रेम के साथ धाम दूल्हा को आरोगवाती हैं |


किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की --एक एक दहलान पर दो दो गुम्मतियां आयीं हैं --दहलान की चांदनी की किनार पर कंगूरों की शोभा --कंगूरों के बीच बीच में कांगरी की  शोभा आयीं हैं --201  हांसों में गुरजों की शोभा आयीं हैं --गुरजों पर गुम्मट की अपार शोभा आयीं हैं --गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |

*इन सर्व शोभा को देखकर प्रथम भोम को जाना हैं |उतरते उतरते प्रथम भोम में आकर पूर्व दिशा के दरवाजे से होकर तीनों घाटों का अवलोकन कर रौंस में होकर दक्षिण दिशा में बटपीपल की चौकी में जाइए |
पूर्व की तरफ पचास हांस में तीन घाट है |दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |*

इन सम्पूर्ण शोभा को ह्रदय में बसा कर प्रथम भोम में चले --सीढ़ी वाले मंदिर जो पहली चौरस हवेली में आया हैं उसी की सर पर चौरस बगीचा आया हैं --इन बगीचे में उत्तर तरफ चार थंभों की शोभा हैं --जिनमें पूर्व ,पश्चिन और दक्षिन तरफ अकशी  थम्भ हैं उत्तर की और खुले थम्भ --खुली मेहराब --इन मेहराब से होकर सीढियां इतराते उतरते प्रथम भोम में पहुंचे --पूर्व दिशा के द्वार के सामने आकर पूर्व में आतें सात वनों की शोभा देखी --चांदनी चौक की जगमगाती शोभा --दक्षिन दिशा में चले --बटपीपल की चौकी में नहरों चेहेबच्चों के ऊपर धाम धनि संग हिंडोलों में झूले --

रंगमहल के पूर्व दिशा में धाम की दीवार से लगते तीन वन हैं --दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |

* दसमी भोम के ऊपर देहेलान की चाँदनी ग्यारहवीं चाँदनी मानी जाती हैं |जो किनार किनार में एक मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं | गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे शोभायमान हैं* |


फिर से चांदनी की शोभा में  --देखिए --दसवीं भोम के ऊपर दहलान की चांदनी ग्यारवहीं चांदनी हुई --जो चांदनी की किनार में घेरकर कर एक  मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं |तो गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे अपार शोभा लिये हैं

Thursday 13 October 2016

9 भोम चितवन

9 भोम चितवन


पन्ना जी की परिक्रमा करके जब में गुम्मट जी की शोभा ऊपर से लेके निचे तक निहार रही थी ।

वही मेरी नजरें गुमट्ट जी के गुम्मट पर सजे पंजे पर पड़ी ।

पंजे की शोभा को दिल में बसाए बस उसे में देख रही थी धीरे धीरे पंजे की हर एक ऊँगली को गिन रही थी ।
उंगलिओ को गिनते हुवे मुझे एक ऊँगली ने मानो इसारा करके कुछ कह रही थी ऐसा लगने लगा था ।
और उस एक ऊँगली के खयालो में मेने अपने आप को सीधा अर्श की नवमीं भोम पर दक्षिण दिशा में खड़ा हुवा पाया ।
जहां से मेरे पीया अपनी उंगलिओ के इसारे से नटखट अदाओ से मुझे रिझाते है प्रेम करते है ।

9 भोम में मेने खुद को तो पाया लेकिन धनी कहा है ....
पिया पीया की आवाज लगाते हुवे में पिया को ढूंढने लगी ।
ऐसा लगा मानो नवमी भोम में भी पीया लुकाछुपी खेलने लगे है ।

दक्षिण दिशा के छज्जे से घूमते हुवे में पश्चिम और उत्तर की और तक घूमने लगी पिया को ढूंढती हुवी ।
यह मेरा घूमना भी जेसे में खुद नही घूम रही थी पर पीया की उंगलिया ही मुझे घुमा रही थी ऐसा लग रहा था ।
आखिर कार खुद मुझे अर्श में बुलाकर पीया दूर कैसे रह सकते है ......
ना दक्षिण में , ना पश्चिम में , ना उत्तर में पीया मुझे मिले तो पूरब की पूर्वाहि में।

जहां हर बार में पिया को देखने के लिए बेचैन होकर इंतजार करती हु वही इस बार व्याकुल होकर धनी मेरा इंतजार कर रहे थे नवमीं भोम में ऐसा लगा मुझे ।।
ऐसा लगा इस पल की जो हाल मेरा है वहीं हाल पीया का है ।
जितना व्याकुल मेरा दिल है उससे भी ज्यादा व्याकुल पीया का दिल मेरे लिए है ।
जितना इंतजार मुझे पिया का है उससे ज्यादा इंतजार पीया को मेरा है ।।

बस पीया को देख कर तुरंत उनके गले लग गई में । ऐसा लगा पूरा अर्श इन बाहोमे ही समाया हुवा है ।
कहि और नजर जाए भी तो जाए केसे जहा नजारा ही सुंदर मिल गया है मेरी नजरो यही ।।
पीया ने भी कसके गले लगा लिया मुझे क्यों की यही जन्नते बहार है मेरी ।

उसी पल पूरब की और से धीमी धीमी पुरावाइ कानो में आके गुन गुना ने लगी ।

और प्यार में झुकी नजरें पूर्व की और उठी मेरी ।
पीया ने कहा आओ इस प्रेम भरे नजारे को सुंदरता को मिलकर निहारे हम ।
देखो सब ने कितनी सुंदरता बिखेर दी है तुम्हारे आनेकी खुसी में ।

और पीया सिहाशन की बजाय मेरे पास खुर्शी पर आके बैठ गए ।

इतनी मुलायम खुर्सिया और उसपे पीया का साथ क्या कहना ......
सामने कठेडा और आस पास दो थंभ की शोभा इतनी सुंदर लग रही है की मानो आगे नजरे जाहि नही पा रही है मेरी ।

थंभ की सुंदरता तो इतनी ज्यादा खिली खिली हुवी है की मानो मुस्कुरा रहे है ऐसा लगता है ।
आस पास फूलो और बेलो की नक्सकारी चेतना के कारण खिल उठी है जिससे एक अदभुत शोभा बन गई है ।
उसपे धीरे धीरे बहता हुवा पवन फूलो को छूता हुवा आ रहा है जिससे हर तरह एक अनोखी खुसबू छा गई है यह खुसबू इतनी मनमोहक है की यह धीरे धीरे पीया से नजदीकी और प्रेम बढ़ा रही है ।

कुर्सी की शोभा भी बहोत ही प्यारी है और उसपे बैठे मेरे सहजादे इतने सुंदर लग रहे है की मानो मुझे ऐसा लग रहा है की वो कुर्सी में खुद ही हु और मेरे दिल की सेज पर पीया बैठे है ।।
पिया ने धीरे से मुझे अपने और पास खीच लिया और मेरे कन्धे पर अपना एक हाथ रखते हुवे प्यार करने लगे ।

और दूसरे हाथ से अपनी तीन उंगलिओ को अंगूठे के साथ जोड़ कर एक ऊँगली को सीधी करते हुवे दूर आसमान की और उस ऊँगली थोडासा ऊपर किया ।
मेरी नजरे ऊपर देखने की बजाय पीया की ऊँगली को ही देखती रह गई ।
कितनी कोमल मुलायम सफेद लालीला लिए हुवे गुलाबी ऊँगली इस सुख को नजारे को छोड़ नजरें और कुछ देखे भी तो क्या देखे .....
उतने में पीया ने मेरे कन्धे पर रखे हुवे हाथ को मेरी हड़पचि से लगाया और उसे प्यार से धीरे से ऊँचे उठाते हुवे ऊपर आसमान की और नजरें फिराते हुवे आसमान की शोभा दिखाने लगे ।।


आसमान में संध्या के समय का ढलता हुवा सूरज धनी दिखाते है ।
इतना मनमोहक द्रश्य जहा ढलता हुवा सूरज नए नए रंग बिखेर रहा है ।
केसरिया रंग बिखेरता हुवा धीरे धीरे आसमान को लालिमा से भर दिया सूरज ने ।
वही एक तरह सूरज आधा देख रही हु तो दूजी और अनंत रोसनी बिखरता हुवा चांद सामने आ गया ।
दूर आसमान में सजा चांद मानो छज्जे के किनारे तक आ गया है ऐसा लग रहा है मानो चाँद मुझसे दूर नही पर बहोत ही नजदीक है जिसे में हाथ आगे कर के छु सकती हु ऐसा लगता है ।
चाँद भी आज मस्ती में है ऐसा लग रहा है ।
जो पल पल में रंग बदलने लगा ।
कभी लालिमा तो कभी सफेदी तो कभी गुलाल की तरह गुलाबि रंग बिखेरने लगा ।
धनी की ऊँगली मुझे चाँद दिखा रही थी लेकिन धनी खुद चाँद को छोड़ मुझे देख रहे थे ।
मेरा चांद तो धनी खुद है लेकिन उनकी चांदनी तो मेही हु ।

एक और चाँद और उसकी सीतलता और उसपे मंद मंद हवा कानो में संगीत की तरह बज रही थी जो इस इस पल को और रोमान्चित और आकर्षित बना रही है  ।
रंग बदलता नटखट चाँद

कभी सफेदी तो कभी गहराई बखेर रहा है आसमान में ।
बस दिल यही थम जाने को चाहता है ।
सांसे यही रुक जाने को कहती है ।

धीरे धीरे पीया अपनी उंगलि को आसमान की और से निचे करते हुवे सामने की और लाते है ।
मुझे चांदनी चौक दिखाते है ।
हमे रिझाने के लिए चांदनी चौक में पशू पंखी सभी आ गए है धनी इस प्यारे नजारे को मुझे बड़े प्यार से दिखाते है ।
पसु पंखी अपनी मस्तीमे नए नए अंदाज से खेलते हुवे हमे रिझाते है खुश करते है 



वहीं धनी अपनी नरम कोमल ऊँगली की दिशा को जरा बदलते हुवे आगे बढ़ा रहे है और अनंत रंगो की आभा बिखेर रहे वनो को दिखा वनो की चाँदनी हर एक वृक्ष को दिखा रहे है ।
वनो के वृक्ष पर लटकते हुवे गुच्छे दार रस भरे फल , फलो के साथ मस्ती करते पंखी तितलिया धनी अपनी एक ऊँगली के इसारे मुझे दिखा रहे है ।
यही समज नही पा रही हु की यह मनमोहक नजारे देखु की सब नजारो से सुंदर मेरे पीया के हाथ की उंगलि को देखती रहु .😍

दूर दूर धनी वनो के साथ जमुना जी की शेर करवा रहे है ।
जमुना किनारे आये वृक्ष किनारे बैठे पंखी वृक्ष की डालियो में मस्ती करती तितलिया , पर वाले घोड़े यह सब इतने सुंदर लग रहे है की बस इसे देखती ही रहु इस नजारे को छोड़ नजरे और कही नही जाए पूरा मोसम भी इस सुंदरता को बढ़ाने में मानो लग गया है ......
इतना सुंदर सुहाना मोसम जो सुंदरता के साथ साथ धनी से नजदीकियां प्रेम बढ़ा रहा है ।।

पंख वाले घोड़े को अभी में जमुना किनारे देख ही रही थी की वही पल भर में उड़के आसमान में चल दिए ।
मोर पंख फेलाए नाचने लगे मोसम ने धीरेसे करवट ली वही दूर धीरे से आसमान में से रुई से भी कोमल ऐसी बर्फ गिरने लगी ।
जो ठंडी ठंडी ब्यार फेलाने लगी चारो और ।












इन सभी पशू पंखी जनवरो को अभी तो बस नजरे बिछाए देख ही रही थे की वही एक सुंदर पंखी अनोखा खेल खेलने हमारे सामने आ गया ।
उसकी यह अदाए उसपे प्रेम बरसा ने लगी थी ।
इतना मनमोहक झूला झूलता हुवा यह पंखी सामने आके थोड़ी देर खेल खेलके धनी की उस ऊँगली पे जा बैठा और पीया की ऊँगली पे बैठ कर मेरे गालो को छु गया ।
पिया भी मेरे कन्धे पर रखे अपने हाथो से और नजदीक खीच कर अपने गले लगा लिया मुझे ।
इस सुख का क्या कहना जहा सुंदरता के साथ पीया का प्यार मिल रहा है।
जहा मोसम भी नजदीकियां बढ़ाने में लगा हुवा है ।
वही से धनी आगे दूर दूर तक अक्षरधाम, जवेरो की नहरे , महानद , बन की नहरे , छोटी - बड़ी रांग की  हवेलिया और दूर दूर नजरे जाए वहा तक फैला अनंत रंगो से सजा सागर धनी दिखा रहे है ।
हर तरह धनी के इश्क़ का जल, पशू पंखी जानवर हरी हरियाली , अनन्त रंग सब कुछ धनी खुद ही मेरे लिए बने हुवे है ऐसा लगता है ।
दूर दरका नजारा भी मानो धनी के उंगलिके इसारे से बिलकुल नजदीक पास है ऐसा लगता है ।
बनो के वृक्षो का रंग उसपे बहते जल की खिल खिलाहट भरी आवाज जो पिया पीया पुकार रही है और उसपे अनंत रंग से सजा सभी रसो से भरा सर्वरस सागर मुझे अपनी और खीच रहा है ।





हर जरे जरे को निहारते हुवे में पीया के पास से खड़ी होके कठेड़े पर आके बैठ गई ।
पिया के सामने बैठकर उनकी आँखों में आँखे डाल बस देखती ही रही ।
आज मुह से नही पर इसरो इसारो  में बाते हो रही थी ।
और पियाने इसारे में कहा आज यही खाना और सोना भी यही है ।
आज यही रसोई हवेली और यही रँगपरवाली है ।

और उतने में ही मेरे सामने पश्चिम दिशा की और यानी छज्जे से दीवाल की और अपने आप चौकी और सब लग गया खाना भी प्यारी खूब खुसालिया लेके आ गयी ।












जब पीया के नजदीक आके मेने पीया को अपने हाथो से बड़े प्रेम से भोजन आरोगाया तब पीया ने भी मुझे अपने हाथो से भोजन खिलाया ।
यह नजारा देख मौसम भी मानो खुद पर इतराने लगा और चारो और ठण्डी पवन फूलो की महेक बिखरने लगा चांद आसमान से मानो जमीन पर आ गया ऐसा लगने लगा ।
चारो और पीया का प्रेम ही प्रेम बरसने लगा ।

जब धनी के साथ सुख सेज्या पर आगे बढ़ने लगे तब चारो और आसमान में सितारे चमकने लगे ।
सुख सेज्या भी मानो हमारा इंतजार कर रही थी ऐसा लगा ।
और इस लाल सेज पर लालिमा से युक्त पीया का प्यार जब पीया ने करवट ली तो में गुलाल बन कर पुरे सेज पर बिखर गई और पीया की लालिमा में खो गई ।
बस पिया पिया तुही तू बन गई .....