Saturday 30 April 2016

मेरी प्यारी रूह ,आजा

आज मेरी प्यारी सखी क प्यारे भाव मन में हिलोरें ले रहे थे तो पिया ने जैसे चुपके से कहा ये सुख तो सब के है मेरी प्यारी रूह।आजा आज तुझे भी इश्क़ रास में सरबोरकर दू।और मेरी रूह चिंतन करते हुएअपने निज घर पहुच गई।जमुना जल में झीलना कर रंग महल के चांदनीचौक में जैसे ही प्रवेश किया ठंडी मीठी सुगन्धित बयार ने जैसे अंग अंग इश्क़ में भीगा दिया।मेरी रूह हौले हौले अपने कदम बढ़ा रही थी,दिल जोरो सेधड़क रहा था की पिया ने हाथ बढ़ाया।उनका कोमल गुलाबी स्पर्श पाकर मन रोमांचित हो गया।पिया ने कहा चल मेरी लाड़ली तुझे सुखसेज्या में ले चलु।मेरी आँखे बन्द ही थीऔर उसी बन्द आँखों में पिया क कोमल हाथो का स्पर्श पा के बेसुध सी उनके साथ चली जा रही हु।ये क्या अपने आप को रंग परवाली मंदिर क बाहर पाया।द्वार स्वतः ही खुल क स्वागत को आतुर थे।द्वार खुलते ही ऐसी ठंडी ठंडी हवा क झोके आये कीअंग अंग में अंदर तक सिहरन पैदा हो गई।पिया क कोमल हाथ मुझे अंदर ले आये।आँखे खोली तो खुद तो एक अदभुत मंदिर क अंदर पाया।पिया बोले आ मेरी लाड़ली कब से तेरे इंतजार में बैठा हु।तुझे गले लगाने।कहा खो गई थी तू।पिया की इन बातो को सुनकर आँखे छलक गई😭😭अपने हाथो से उन आंसुओ को पोछ के पिया बोले आ बैठ मेरे पास तुझे देखता रहू।वहाँ की अधभुत सोभा नूरी तकिये नूरी बेड नूरी गिलम हर कोई मुझे बाहे फैलाये बुला रहा था।पिया की आँखे मुझे कह रही थी की इस आपार सुख को छोड़ मेरी प्यारी तू कहा भटक रही थी।आ तुझे आज पूरा विश्राम दू।मेरी आँखे खुली की खुली ही रह गई।आज यहाँ की सेज्या देख कर धनि संग एकाकार हो जाने को जी चाहता है,उनके इश्क़ रंग में घुलमिल जाने को जी चाहता हैजिसमे रूह का अस्तित्व ही खत्म होकर पिया ही पिया रह जाये,और मेरी इस चाहना को एक पल में समझ गए मेरे पिया।हाथ पकड़ मुझे सेज्या पे बिठाया और अपने साथ यू एकाकार कर लिया की रूह अपना अस्तित्व खो कर धनि में विलीन हो गई।

ये सयन खण्ड हमारा , ये सेज्या , ये तकिये , ये चादर , ये अर्श का ज़रा जरा तुम्हारी राह तक रहे है

आज की रात अनोखी रात लग रही है मेरे तन को मेरे मन को मेरे दिल को ।

गर्मी की इस रुत में फर्श पे पोछा लगाके बिना कोई पलंग बिना कोई चद्दर गद्दा के फर्श पे लेटे लेटे खिड़की से आ रही मंद पवन की लहरे नजरो को  खिड़की के बहार देखने को व्याकुल करती है ।


जब मेरी नजरे खिड़की के बहार के नजारे  को देख रहे थी ।

घने खुले बादलो में सोले कलाओ से खिला आज का पुनम का चांद , और चांद की शीतल चांदनी मुझे उसकी और खीच रही थी । और तारे मुझे जुगनु की तरह टीम टिमाते हुवे और पास खिचे जा रहे थे ।
उसपे एक पल में ठंडी पवन की ऐसी लहर आई की मेरी आंखे बंध हो गयी और एक गहरी सांस लेते हुवे मेने करवट ली। 

और में उस पवन की लहर बनके दूर दूर तक उड़ने लगी ।।
पवन सी लहराती हुवी में एक पल में देखते ही देखते गुम्मट जी में पहोंच गयी ।
गुम्मट वाले का दरबार आज की सुहानी पुनम की रात में ऐसे चमक रहा था की मुझे अर्श की के सुख में खो जाने को मानो कहे रहा था ।

मेंने गुम्मट जी में प्रणाम करते हुवे सिंहासन पे बिराजमान धनी को निहारा ।

पातघाट रूप सिंहासन पे धनी मुझे बुला रहे हे झिलना करने और इस चांदनी रात में जमुना का जल बहता हुवा मुझे अर्श तक ले चला ।

और में पल भर में जमुना के किनारे जल में पेरो को डुबाये बैठे हुवे निहारा ।

रात का ये हसीन समा सर पे चांद की छाया

देखके मुझे ऐसा लगा में चकोर हु और में मेरे चाँद मेरे पीया को निहारने चली हु।
पिया मन भाये सिंगार सज के ।
जमुना से आगे बढ़ के में अमृत बन से चलती हुवी चांदनी चौक में आई ।
आकाश में चाँद और जमीन पे चांदनी चौक एक दूसरे के पर्याय लग रहे है ।

चांदनी चौक से में थोड़े दक्षिण की और गयी कुंज निकुंज के मन्दिर में ।
और वहा से इस चांदनी में खिले महकते हुवे फूलो को अपनी चुनरी में भरके अब में आगे बढ़ी ।

ये फूलो की महेक एक अनोखी ताजगी भर रही थी ।
मानो कुछ कह रही थी मुझे ।

में इन फूलो की खुश्बू में खोती हुवी सीढिया चढ़ के धाम दरवाजे से आगे रंगीन रंग महोल में अंदर आगे चली ।

जेसे ही अंदर पैर बढ़े की फूलो की महेक और बढ़ गयी और में जेसे खुद को भुल गयी ।
और अब मेरे कदम न जाने अपने आप बढ़ने लगे ।
ये कदम कहा बढ़ रहे थे मुझे खबर नही पर बस एक मन मोहक महोल शीतलता हर तरह छायी हुवी थी ।

जो एक अलग ही आनंद मुज में भर रहा था ।
और ये अनोखा महोल मुझे लाल रंग से सजी रंग परवाली में ले चला ।

जेसे ही मेरे रंग परवाली के मन्दिर का दरवाजा खुला ।
ना कभी देखि ना सोची ऐसी अनंत सुंदरता को धारण किये हुवे मेरा सयन खण्ड सजा हुवा था ।
और आज इस सयन खण्ड को खुद मेरे धनी ने मेरे लिए सजाया हुवा था ।
हमारी 3 भोम में हुवी सुबह की शादी के बाद की यह सुहानी रात पुनम की एक अलग अहसाह अलग इश्क़ अलग प्रेम बरसा रहा था मौसम ।

सामने सजी सेज्या जिसपे सफेद गद्दा सफेद चादर मुझे पास बुला रही थी ।

इतनी सुंदर सेज्या की क्या कहना ।
सेज्या पे हाथ जब मेने फेरा तो इतना कोमल अहेसास इतनी नर्म ये शोभा की किस सब्द में उस सुख सेज्या का वर्णित करु ।
सेज्या की ईस कोमलता को छूके मेरी चुनरी में सजे फूल याद आये मुझे ।

मेरे लिए मेरे पिया ने खुद सजाया ये सयन खंड देखके मुझे भी मेरे पीया को रिझाने का दिल हुवा ।

और मेंने पल भर में उन फूलो सारे फूलो को मेरे पिया के लिए सेज्या पे सजा दिए ।
जैसे ही फूलो ने सेज्या को और सुंदर सजाया की धनी फूलो की महेक से खिचे हुवे रंग परवाली में पधारे ।
पीया का स्वागत करते हुवे ये फूलो पीया के आने पर और ज्यादा खुश्बू बिखेरने लगे ।
और पीया मुझे सामने देख के ख़ुशी से गले लग गए ।

पिया मेरे गले लगते हुवे मेरे कान में कहने लगे ।
मेरी रूह मेरे नूरी तन कब से में तुम्हारा इंतजार कर रहा हु ।
ये  सयन खण्ड हमारा , ये सेज्या , ये तकिये , ये चादर , ये अर्श का ज़रा जरा तुम्हारी राह तक रहे थे ।
और पिया ने हाथ थामे नूरी सेज्या पे मुझे बिठाया ।
और मेरे साथ ही मेरे पीया मेरे पैरो पे सर रख के लेटे ।

ये अभी तक सिर्फ सेज्या थी ।
लेकिन अब पीया के संग इन पलो से ये सुख सेज्या बन रही है मेरी। 

पीया के घुंघराले बालो में हाथ फेरते हुवे पीया के नैनो में नैन मिलाते हुवे मेने इशारो में कहा अब रह्यो न जावहि पीया आपके बिन ।
और पिया लेटे थे तो बैठ गए और नजरो से नैनो से गले लगा लिया ।।

इस कोमल नर्म सुख सेज्या पे जब पीया साथ है तब यहा सयन की लीला नही पर जाग्रति की असल लीला पिया के साथ है मेरी ।


जेसे ही पीया ने गले लगाया सफेद चादर इश्क़ के इस रंग में लाल हो गयी ।
इश्क़ का लाल रंग तो अभी बस चढ़ना सुरु ही हुवा है ।

पिया ने मुझे अपने नजदीक बिठाके इस सुख सेज्या पे भात भात के सुख देके रिजा रहे है ।

पहले पिया मेरे नजदीक आके मुझे खिड़की से आकाश की और इसारा करते हुवे चाँद दिखा रहे है 
पर मेरी नजरें मेरे पास बैठे चाँद को निहारना चाहती है पर मेरे गुण अंग इंद्री मेरे रहे ही नही ।
मेरा सब कुछ आज पिया में समाया डूबा हुवा है ।

पीया जेसे रिझाये वेसे में रीझना और पीया जेसे रीझना मुझसे चाहे उस तरह में उन्हें रिझाना चाहती हु ।
उस खिड़की से सुख सेज्या पे पड रही चांदनी ,
और मन्द मन्द बहता हुवा ठंडा पवन हमे और पास लाने में मदद कर रहे थे ।


आज मेने किसी भी आभूषण का सिंगार नही किया था ।
क्यों की आज मुझे पीया के इश्क़ के आभूषण से सजना है ।

पीया के इश्क़ के लाल रंग में रंगना है
आज इश्क़ की रात छिड़ी है ऐसा लग रहा है ।
मुलायम रात में पिया का साथ सुख ही सुख दे रहे है ।

पिया से नजरे ऐसे मिली है मानो जाम झलकते मिले है 
आज लगता है इश्क़ की गजल रचने वाली है ।

आज दिल के सारे अरमान बहार निकलके पीया से मिलेगे ऐसा लग रहा है ।
चांदनी रात में मेरी आँखों में इश्क़ के तारे सजे है आज ।
"आज तन ,मन , दिल से पीया की बनी हु सही मायनेमे ।"

पिया मेरे हाथ को पकड़ के इश्क़ रूपी चूड़ी खनका रहे है ।
बिंदिया चाँद से भी ज्यादा चमक रही है ।
तो पैर की पायल मधुर संगीत सयन खण्ड में बिखेर रही है ।
और इन इश्क़ के पलो में पिया का होले से गले लगाना 😊😊 

............ क्या कहना इस सेज्या पे इस सुख का  ।
दीवानगी का महोल ऐसे सजा हे रंग रंगली परवाली में की सयन तो यहां होही नही सकता है ।
आशिक की आशिकी का नसा ऐसा छा रहा है की बहेकने के लिए दिल तैयार है ।

ये इश्क़ ही ऐसा हे की नींद का आँखों से रिस्ता टूट गया है ।
बस प्यार ही प्यार ऐसा है की ना पीया मुझे ना में पीया को सोने दे ।
अखंड इश्क़ की रात में नींद आयेभी तो आये कैसे .?
इश्क़ की लीला में पीया की अंगड़ाई कयामत ढा रही है मुज पे ।
और उस पे धड़कनो की बढ़ी रफतार इश्क़ के लाल रंग को और गहेरा करती है ।
सांसो की गर्मी , पिया के फूलो से भी नर्मी अधर अर्श के कण कण के चेतना भर रहे है  ।
और मेरे साथ हर जरे जरे की प्यास मानो बुजा रहे है पीया ।
पिया इश्क़ के इन रंगो से मुझे रिझा रहे है ।
अब अखंड अद्वैत में एक होने के लिए इश्क़ का और बढ़ाव मेरा अस्तित्व पिया में समाये जा रहा है ।

पिया के बाहो के समुन्दर में मेरा कश्ती सा तन सागर से ऐसे मौज दे रहा है की में बह जाती हु पिया में ।
मुझसे मेरी चुनरी की तरह लिपटे पियामें में एक हो गयी ।
इस सुख सेज्या पे इश्क़ के इस लाल रंग में मेंने खुद को खो दिया ।

जेसे दो रंग मिलने पे जुदा नही हो सकते उसी तरह में पीया में मिल गयी ।

और पीया मुझमे ।

अद्वैत की जमीन पे अद्वैत का असल सुख इस रंग परवाली में कहा नही जाता ज्यादा ।


बस इस सुख को तो खुद खोके जाना जा सकता है ।





इश्क का रंग

इश्क की थाप पे थिरकते हूए मूझ पर इश्क का ऐसा रंग चढा की,ऊस लाल रंग की लालिमा पूरी निरत की हवेली में फैल गई..मैं थिरक रही थी और धनी मूस्कुरा रहे थे वे जानते थे यह लाल रंग किस लिए चढा है..जैसे जैसे समय आगे बढ रहा था वैसे वैसे यह लाल रंग और गहेरा होता जा रहा था..कूछ ही पलो में मेरा पूरा बदन प्रवाल के नंग की भाति गहेरा लाल रंग लिए चमकने लगा..बस ऊसी पल धनी ने जरा हल्के से इशारा किया चलने को..पर मेरे तो पैर ही नहीं रूक रहे थे.. मैं तो थिरक रही थी ..धनी जान गए की मै नहीं रूकने वाली थी...मैं थिरक रही थी..धीरे से वे मेरे पास आए और मुझे जैसे कोई गूलाब के फूल को उठाया हो वैसे दोनो हाथो से उठा लिया और चल दिए..जैसे ही धनी ने मूझे अपनी गोद में ऊठाया ऊसी पल मेरा और धनी का पूरा सिनगार गेहरे लाल रंग में बदल गया...पाँचवीं भोम में जाने की सीढियों पे धनी मूझे अपनी गोद में ऊढाए हूए सीढियां चढ रहे थे..मैं बस ऊनके गले मे अपनी बांहे डाले ऊनके नैनो मे ऊमड रहे गहेरे लाल रंग के सागर में डूबे जा रही थी..मेरे पल्लू मे लगी घूघरीया सीढियों के संग मिलाप करती हूई ऐसी तान छेड रही थी कि जिसमे हमारे पीछे पीछे चल रहा पूरा परमधाम लाल हूए जा रहा था..  धनी जैसे मूझे लेकर पाँचवी भोम में पहूँचे रत्न जडित लाल गिलम अपने आप ही धनी के पैरो मै बिछ गई..धनी ने अपनी बाहो से मूझे नीचे ऊतारा तो मेरे पेटीकोट में लगी लाल छोटी धूधरियो को लाल गिलम चूमने लगी..ये नजारा देख कर मैं और धनी हस पडे....धनी ने धीरे से मेरा हाथ थामा और हम चल दिए अब अपनी मंझिल की और..जैसे जैसे आगे बढ रहे थे वैसे वैसे मेरे गालो पर लाल लालिमा और बढती जाती थी...मध्य मे आए नौ चोक मे से पूवॅ के एक चोक को पार करते हूए हम बिल्कुल बीच में आए चोक में पहूँचे जहाँ ना जाने कितने मंदिर झिलमिला रहे थे..धनी त्रैपुडे से चलकर मूझे बीच में आए हूए मंदिर में ले चले..इस बीच के मंदिर के इदॅ गिदॅ आए हूए मंदिर तो मानो ऐसे लग रहे थे कि मूलमिलावा ही ना बैढा हो! हर मंदिर में हर वो सामग्री थी जो दिल पे लाल रंग को और गहेरा करने के लिए काफी थी...वह नजारा ही दिल छू लेने वाला होता था जब धनी हर एक मंदैर में अनेको रूप लेकर हाजिर हो जाते थे..और हर एक मंदिर में बस सोने की नही पर एक दूसरे में खोने की लीला अनंत तक जारी रहेती थी.....बस ऊसी लीला को इस जहाँ की भाषा मे शयन कहे दिया,पर जहाँ पर बस ईश्क के लाल रंग में डूबने को एक होने को बेताब हम क्या शयन करेगें..अद्वेत में भी अद्वेत होनी की लीला ही रंग परवाली की लीला है,ऊसके दिल में डूब कर बिखर जाने की लीला ही रंग परवाली की लीला है.. धनी के संग जैसे ही मैं मंदिर में पहूची धनी के हीठो की लालिमा के लाल रंग ने मूझे घेर लिया..ऊनक बांहे मेरे गले में थी और मेरी ऊनके गले में..मैं ऊनके नैनो से ऊनके दिल में ऊतर रही थी तो वे मेरे नैनो से मेरे दिल में ऊतर रहे थे...कुछ ही पलो में एक दूसरे के दिल मे ऊतरने की लीला भी थम गई और दो की जगह पूरे मंदिर में एक ही धडकन सुनाई देने लगी.. .

Monday 18 April 2016

5 भोम । रंग परवाली ✍🏻 चर्चनी ✍🏻

5 भोम ।
रंग परवाली 

✍🏻 चर्चनी  ✍🏻

हमारा रंग भवन 9 भोम 10 आकाशी की नूरी शोभा से शुशोभित है ।

जिस में 5 भोम जिसे रंग परवाली कहते है ।
जहां हम सयन की अनंत और अद्वैत लीला करते है ।

रंग परवाली तक का रास्ता पसार करते समय खास मुख्य शोभा को हम दिल में बसा ले तो 5 भोम का आनंद और बढ़ जाता है ।


जैसे की ।

🍧रंग परवाली का स्थान
🍧रंग परवाली तक पहोचने तक की सोभा ।
🍧 रंग परवाली के अंदर की शोभा ।
🔹 दो पुडा
🔹 त्रि पुडा
🔹 चौपुड़ा 

इन सब की शोभा सुंदरता बेमिसाल है ।

जितना इनका सुख चितवन में लेंगे उतना ही सुख इन शोभा को चर्चनी में समजने पे मिलता है ।
जब हम रंग महोल में धाम दरवाजा पार करके अंदर आते है ।

वही 28 थंभ का चौक आगे आता है ।

रंग महोल को गोल घेर के 6 हजार मंदिर की दो हार आई हुवी है ।

यहां से आगे ।

4 चौरस

4 गोल

इस तरह से कुल 4 चौरस हवेली के 4 फिरावे

और गोल हवेली के 4 फिरावे आये हुवे है ।


जैसे की ।

पहले 4 चौरस हवेली पार करके 






फिर 4 गोल हवेलिया आई है ।

⚫पहली गोल मूल मिलवा




फिर से  4 चौरस 

इस तरह से कुल 4 बार गोल और 4 बार चौरस हवेलियो के फिरावे आये हे ।

जिस से 231 चौरस और
231 गोल हवेलिया आई है ।

इन हवेलिओ को पार करके 
आगे पंच महोलो का 9 फिरवा आया है ।

9 फिरावा किस तरह से ..??

4 चौरस + 4 गोल = 8
और पंच महोल का 9 फिरावा हुवा ।


इस तरह से हम इन हवेलिओ को पार करके आगे बढ़ते है ।
जैसे ही हम पंच महोल की हवेलिओ को पार करते है आगे फूलो के बगीचे फ़वारे की शोभा आती है ।


और बिलकुल मध्य में 9 चौक आये है ।
9 चौक 

4 दिशा में = 4
4 कोनों में = 4
बिच में     = 1
____________

          कुल= 9  चौक आये हे
इन 9 चौक के 4 कोनों में 4 बड़े स्तुन यानि पानी के पाइप आये है ।

इस पानी के पाइप को फिल पाई कहते है ।
यानी की हाथी के पैर जैसा बड़ा पाइप है ।

इस पाइप से 9 भोम तक हर जगह पानी जाता है ।


यह पाइप ऊपर 10 आकाशी में जाके खुलता है ।
9 चौक के मध्य में जो चौक है ।
वह रंग परवाली मंदिर है हमारा ।
जहा हम धनी के साथ रंगो से भरी प्रेम की आनंद की लीला करते है ।

" दो से एक होने " की लीला


अनंत अद्वैत लीला करते है ।
इस चौरस रंग परवाली भोम में ।

3 शोभा महत्व की है ।

🔹 दो पुडा
🔹 त्रि पुडा
🔹 चौपुड़ा 

पुडा यानि की रास्ता ।

2 रास्ते गुजरते है उसे दो पुडा
3 रास्ते गुजरते है उसे 
त्रि पुडा

और 4 दिशा में रास्ता गुजरता है उसे चौपुडा कहा जाता है ।
इस चौपुड़े ,त्रिपुड़े , और दोपुड़े के बिच में

 मन्दिरो , गलियो , थंभ , महेराबो की बेमिशाल शोभा आई हुवी है ।

इन सब शोभा को दिल में बसाये हम  5 भोम रंग परवाली मंदिर में धनी के साथ सुख सेज्या पे सयन करे ।रंग परवाली मंदिर में हम रात के 9 pm से सुबह के 6 am तक सयन लीला हकीकत से मारफत की लीला करते है ।

🌺🌺🌺🌺 मेरी रूह चल रंगमहल की पाँचवी भोम

🌺🌺🌺🌺 मेरी रूह चल रंगमहल की पाँचवी भोम 

ख़ुद को महसूस करें पाँचवीं भोम 

28 थम्ब के नूरी चौक से चले भीतर की और

सामने हवेलियों के फिरावे हैं आउर हवेलियों के मध्य त्रिपोलियों की शोभा हैं 

मेरे पिया मुझे लेकर मध्य नूर से महकती गली से लेकर आगे बढ़ते हैं 

नूर ही नूर बरसता हुआ और दोनों और हवेलियों के फिरावे

चौरस हवेली के चार फिरावे फिर गोल हवेली के चार फिरावे ,इस तरह से आठ फिरावे और नवा पाँच मोहोलों का 

तो धाम धनी श्री राज जी के संग भीतर को चल रही हूँ और दोनों और गली और हवेलियों की अपार शोभा 

नूर ,इश्क़ की बरखा में भिगोता समा ,मध्यम संगीत लहरी और सुहावनी रात में जगमगाती हवेलियाँ 

रंगीनियाँ बिखेरती ,तेज़ के अंबार 

चौरस ,गोल ,चौरस ,गोल इस तरह से आठ फिरावे पार किए आगे पंचमोहोल 

अद्भुत शोभा 

एक एक हवेली में पाँच पाँच मंदिर अपनी और रूह को खींचते

पंचमोहोल भी रूह ने पार किया तो ख़ुद को पाया धनी संग 28मंदिर की फुलवारी में 

बेशुमार बाग़ बग़ीचे ,नहेरों और चहबच्चों की अपार शोभा 

रूह को उल्लासित करते सुगंधी के पूर 

और ठीक सामने 630मंदिरों की दीवार ,,,तीन चौकों की तीन हार 

तो धनी ने रूह से मीठी आवाज़ से कहा ,आगे बढ़ ,यह तेरा ही तो असल मुक़ाम हैं ,सामने द्वार हैं तेरे लिए 

आगे बढ़ और दूर कर रंगपरवाली मंदिर में आ 

मैं वही हूँ ,आ तो मेरी सखी 

मंत्रमुग्ध सी मैं सीधा आगे बढ़ती हूँ और कुछ ही पलों में ख़ुद को रंगपरवाली मंदिर के सामने पाती हूँ 

और देखती हूँ ,,अपार ख़ुशहाल करने वाली मनोरम शोभा 

दो मंदिर की लम्बाई चौड़ाई में आया यह मंदिर और चारों दिशा में मुख्य्द्वार के समान शोभित द्वार और भीतर गयी तो 

बेहद ही सुखदायी शोभा 

नूर ही नूर बरसता हुआ ,पिया जी ,वाला जी के लिए आरामदायक सेज्या और 

उन पर विराजे मेरे प्राण वल्लभ 

उनके चरणों में नमन कर रही हूँ और जैसे ही सर ऊपर उठाया तो ख़ुद को मरी सेज पर प्रियतम श्री राज जी के सम्मुख देखा और बर मैं उनकी नज़रों में खो जाना चाहती हूँ🌺🌺🌺🌺🌺👏🏻👏🏻👏🏻

Tuesday 12 April 2016

Chitvan me Ruh chli chothi bhom

Chothi bhom  
Neerat ki haveli me nratye karne ko tarasta mere mann ishq se saraboor hokar nratye karne ke liye udan bhar raha h mann ki teevr ichcha ke karan apni ruh ko paat ghat par paya Ruh kya dekhti h  mere preetam to pehale hi pat ghat par khde h jese vo jante h ki meri Ruh kitni pyasi h apni Ruh ko pran preetam ne ishq Ropi chunari odhai aur ruh ko sidha nirat ki haveli me le gaye

Waah  kya haveli saj gayi Esi shobha jo aaj tak kabhi sochi n thi shuk aanad aur masti ke sare gun sakshat dikhai dene lag gaye jese hi piya singhyasan par baithe ye kya esa shigar kabhi dekha n tha ruh to piya ki aakho ki gehraiyo me kho gyai Raji ne jab eshara kiya tab apne ko dekha ye kya hua  mere lehege me to chamkte huye chaad sitare utar aaye h fool  boote beleeya aur pankhi cheetrro se ud  ud kar ruh ke lehnge me sajne ko bekrar h sab kuch chetan khushbu se bharpoor h pairo me ghughru kabi kadla bichua h payal to abhi se nratye karne ke liye cham cham kiye ja rahi h kangan aapas me khanak khanak kar meethi dwani kar rahe h aisa shangar ki ruh apne par hi mohit ho gayi
Mere priye preetam jese hi singghyasan se uthte h usi shad dhoolak ki thap aur sare bajantr baj uthte h jse unhai intjaar ho Raji uthe aur nratye shuro h piya ne aage aakar mere haath dhame aur Ek alag hi nratye shuru hua dono dhire dhire thirakne lage nratye karte huye Rukna fir hath chodkar teji se ghumkar haath pakadna es tareh nratye me easi lay ban gayi jese hajaro bijliya chamk rahi h aur ek sarkal ban gaya
Majal h piya aur ruh us sarkal se ek inch bhi bahar nikle h  ye nratye ki khubi h ruh to divano ki tarah nachi ja rahi h
ese patanga apne aashik par mohit hokar jal jata h usi tarah aaj ruh bhi aapne piya par lut jana chahti h aur ruh kya dekhti h uske paav to h hi nahi aur dhire dhire ruh apne piya me vileen ho gayi

😍पिया से मिलके आये नैन...😍

😍पिया से मिलके आये नैन...😍                                     आज मैं चली चितवन मे ..
पन्नाजी के घुम्मट जी मे राजजी के दर्शन करकें सिहासन पे बिराजमान श्री राज श्यामाजी के चरणों में बैठे बैठे पाटघाट के चबूतरे पर खुदको बैठा हुआ पाया। जमुनाजी में झीलन कर पिया मन भाये सिनगार किया। सात घाट सात वन पार कर, चांदनी चौक में आकर खड़ी हो गई। सौ सीडी की लाल पशमी गिलम मुझे महसूस कर झूम उठी और मुझे चूम उठी। कहती है कबसे तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं मेरे पियाजी अब आ रही हो ... मेरे पाव रखते ही वो अधिक कोमल हो गई। मैं आगे बढ़ीं सामने दर्पण रंग के द्वार को देखा और उसके अन्दर अपना सिनगार देख कर मेरा दिल पिया मिलन को और अधिक तडप उठा। दरवाजे से अन्दर २८ थम्भ के चौक में पहुंची। नौ फिरावे के चार चौरस हवेली पार कर मैं पांचवी गोल हवेली में गई। वहाँ की अदभूत और मन को हरने वाली नूरी शोभा को देखते ही दिल खुशी से झूम उठा। पिया मिलन की आस और बढ़ गई। नीचे बीछी हुई मखमली एक रंग से अनेक रंगों की बौछार करतीं गिलम, उपर सजा हुआ चन्द्रवां, और पूरे मिलावे की शोभा को बढाता हुआ सिंहासन। सिंहासन की शोभा को देख पिया के चरणों में ही बैठीं रहूँ यही दिल से आवाज आई। फिर एक आवाज आइ और मैं पिया को ढूंढती हुई मूल मिलावे से आगे बढ़ीं।आवाज़ का पीछा करते करते मैं रसोई की हवेली, श्याम श्वेत मन्दिर से सिढियो वाले मन्दिर से सीडी चढके दुसरी भोम उसके बाद तीसरी भोम को पार किया। फिर एक आवाज आई। नीले पीले मन्दिर से होते हुए मैं आगे बढ़ने लगी।
वो आवाज़ मुझे खींचे जा रही थी अपनी ओर .... और मैं अपने आप चली जा रही थी।
वो आवाज़ मुझे चौथी भोम में लेकर गई।

वो चौथी भोम जहाँ हर रुह आशिक़ हो जाती हैं।
और अपनी आशिकी में अपने पिया को मासूक कर देती है।
आशिक़ मेरा नाम ....

चौथी भोम में प्रवेश कर देखा तो नूर ही नूर दिखे जा रहा है। पूर्व की ओर देखा तो २० मन्दिरो की शोभा मन मोह लेती है। जहाँ २० नीले रंग के थम्भ भी शोभायमान है। दक्षिण में भी २० मन्दिर और लाल रंग के २० थम्भो की हार आइ है। पश्चिम में श्वेत रंग के और उत्तर में पीले रंग की शोभा अधिक मनोरंजक है। आगे बढ़ते हुए मैं चबूतरे से अन्दर की ओर चली। अन्दर देखा तो मेरे प्राण प्रियतम मेरे आशिक़ सिंहासन पर विराजमान हैं। और वो अपने घूंघरु की आवाज से मुझे अपने पास आने पर विवश कर रहे है। 
उन्होंने मुझे देखते ही जोर से मुझे ऐसे गले लगा लिया कि मेरी धडकन और उनकी धडकन एक हो गई ... और दिल ने कहा अब कभी भी दूर जाने की जिद्द ना करना ....
मुझसे कहा सबने एक से बढ़कर एक नृत्य कर मुझे रिझा लिया पर मैं और ये हवेली तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।
चलो क्या तुम मुझे नहीं रिझाओगी? आओ मेरी प्यारी मेरे पांव तुम्हारे साथ थीरकने को बेताब है।

पिया मनचाहा सिनगार एक पल में सज गया जैसे कि पिया ने ही मुझे सिनगार करा रहे हैं। मेरे पैरों में घूंघरु पिया ने कुछ इस तरह बांध दिये की मैं नाचने को बेचन हो उठी।

जैसे मोर और मोरनी
जैसे बादल और बीजली
जैसे आंखें और काजल
जैसे पूर्वा और  पवन
जैसे चांद और चांदनी
जैसे सागर और लेहेर
इन सब को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही मैं और मेरे पिया ....
पिया ने जैसे ही घूंघरु की थाप दी कि .........
 मैं दीवानी हो गई।

पिया ने अपने में मुझे ऐसे रंग दिया कि मैं झूम उठी और सारे बाजन्त्र बज उठे।
 कभी मृदंग बजता कभी सेहनाई 
कभी तंबूरा तो कभी बंसी
 कभी ढोलक तो कभी अमृती 

जब भी जैसे पांव उठते वैसा ही संगीत बज उठता।
और पिया मुझे ऐसी निगाह से देखते की मैं शरमाती हुई और आशिकी मे डूब जाती। पता ही नहीं चला कौन आशिक़ है और कौन मासूक। और पिया भी साथ में झूम उठे। 
मैं पिया में और पिया मुझमें कुछ इस तरह खो गए की हम एक ही धडकन के सूरो में नाच उठे।
" नज़र जो तेरी लागी 

 मैं दीवानी हो गई...."







Sunday 3 April 2016

❤💃इश्क की थाप-निरत की हवेली में💃❤

पशू पक्षी पैड पौधे सागर लेहरे महल मंदिर सभी धनी के दिदार में झूम रहे थे और मैं भी पडसाल में खडी खडी ऊन्ही के दिदार में ऊनमे समाती जा रही थी..पर अचानक ही धनी ने अपनी तीरछी नजर मेरी और फेंकी तो वह नजर तीर की भांति दिल में समा गई..अब तक की दिदार की मदहोशी से शांत हो रहा दिल  एक दम ही दिल में चूभी हूई नजरो के तीर के ताल पर थिरकने पर मजबूर हो गया..और मानो रोम रोम में ऐसी लेहरे ऊमडने लगी कि दिल धनी के दिल पर इश्क की थाप देने के लिए बेकरार होने लगा....
धनी मेरी यही बेकरारी यही ऊत्सूकता भाप कर मेरे दिल को थामे मूझे निरत की हवेली की और लेकर चल दिए...निरत की यह चौथी चोरस हवेली पिया के आने की आहट से दूल्हन की तरह स्वतह ही सज गई..चारो दिशाओं में देखे तो नूर ही नूर बरस रहा था,हम पूवॅ की और खडे खडे इस नई सजी हूई दूल्हन के नजारे को दिल में बसा रहे थे,चारो दिशाओ से भांति भांति के रंग की नूरी रंगबिरंगी किरने ऊसके मुख्य रंगो के साथ मिलकर एक अनेरे दृश्य का निरूपण कर रही थी..और देखो तो पूवॅ की सफेद,दक्षिण की लाल,उत्तर की पीली और पश्चिम की नीली(ब्ल्यू) किरनो ने मिलकर हवेली के बीच में आए हूए चबूतरे पर बिछी हूई गिलम पर अपने दिल को मानो ऐसे बिखेरा है जैसे कि कोई चित्रकार केनवास पे अपने दिल को बिखेरता हो...पूवॅ की नीली दहेलान को पार करके धनी के संग मैं थंभो की एक हार को पार करते हूए हवेली के चबूतरे पर पहुंची.. चबूतरे की गिलम पर पाँव पडते गिलम की हसी पूरे शरीर में फैल गई और मैं भी हँस पडी...वहाँ धनी के पैरों ने जैसे ही गिलम को छूआ नूरी सिंहासन अपने आप चबूतरे पर सज गया .. सिंहासन सजते ही धनी के नूरी हाथ को थामे मैंने ऊन्हे ऊसी नूरी सिंहासन पे बिराजित किया...जैसे ही धनी बिराजित हूए ऐसे ही चबूतरे पर आई हूई थंभो की हार में शोभित सभी पशू पक्षी धनी के दिदार में मग्न होने लगे,और तीनो दिशाओ में आए हूए मंदिरो में से भी सभी प्रकार की खूबखूशालिया  धनी के संग आज झूमने के लिए बहार आने लगी.. चबूतरे और थंभो की हार के बीच में पडती गली पूरी पशू पक्षीओ और अन्य खूबखूशालियो से भर गई,कि मानो आज कोई विशेष रामत ना होने वाली हो!..और हो भी क्यो ना,दिल थिरक ऊठा है जो धनी के लिए..धनी से नजरे मिलते ही पैर थिरकने को तैयार हो गए... मैंने धीरे धीरे धनी की और अपने कदम बढाये,जैसे जैसे कदम बढाती ऐसे ऐसे मेरे पैरो में झांझरी,घूघरी,कांबी,कडला एक के बाद एक नए ही रूप में सजने लगे..धनी के पास पहुंच कर जरा ऊनकी और झूकी तो मानो ऊस नजारे को पीने पूरी हवेली ही थम सी गई....धनी के दोने कंधो पे मैं दोनों हाथों के बाजूओ को मोडे ऊनकी नजरो से नजरे मिलाई हूई अपने दाए पैर को बाए पैर में मोड कर ऊन पर कमर में से झूकी हूई मैं एक मनमोहक अदा में खडी थी...नजरो से दिल के अमीरस को पीते हूए जैसे ही मैंने अपने दाए पैर के अग्र भाग की थाप गिलम पर दी तो मानो जैसे किसी तालाब मे कंकर डालने पर ऊससे ऊठने वाली तरंगे सभी किनारो को छू जाती है ऐसे ही इश्क की इस थाप की लहेरे पूरे परमधाम में फैल गई,और मानो पूरा धाम ही ऊस इश्क की थाप में थाप मिलाने तैयार हो गया.. धनी ने अपने रसीले होठो से मेरे होठो पे  सभी सूर ऐसे अंकित किए कि फिर तो मैं कहाँ रूकने वाली थी..पैर अपने आप ही अलबेली थाप देते हूए थिरक रहे थे..कमर मानो टूट कर अभी बिखर ही जाने वाली हो ऐसे लहेरा रही थी..कलाइयाँ भांति भांति के मोड पे मूडती हूई धनी के दिल को जीत रही थी..ठोलक,त्रांसे,मंजिरे,बांसूरी की मधूर आवाज मेरे कानो मे रस घोल रही थी और मैं ऊन्ही सूर पे अपने आप को भूल कर निरत कर रही थी..जिस किसी अंग की कारीगरी में नृत्य में करती जाती थी..ऊस ऊस अंग का नया सिनगार होता जाता था...कूछ ही पल में मैं एक नए ही जो पूरे घाम के दिल से निकला वैहे सिनगार में सज गई थी..थंभ और चबूतरे की गली में बैठे पशू पक्षी,धनी और पूरा धाम मेले नृत्य को बडी तल्लीन ता से पी रहे थे...और यह हवेली तो मेरे साथ मै जैसे ही गोल घूमू वह भी गोल घूम रही थी...और मेरा रूप रंग भी जैसे जैसे नृत्य आगे बढ रहा था वैसे वैसे और नित नवीन रूप मे खिल रहा था..उत्तर की और मै जाती तो पूरे धाम को मै पीले रंग सी प्रतीत होती,पश्चिम की और मूडती तो सफेद रंग की,पूवॅ की और मूडती तो नीले रंग की और दक्षिण की और मूडती तो लाल रंग की.. वास्तव में ऐसा ईसलिए दिख रहा था की मै जिस किसी दिशा की और मूडती तो ऊस दिशा के मंदिर या थंभ के रंगो कि किरने भी मेरे साथ ताल से ताल मिला कर नृत्य कर रही थी...नृत्य का खूमार अब अपने चरम पै था..पशू, पक्षी, पैड पौधे, थंभ, हवेलियां, चबूतरे महल,नहेरे,धजाए,हिंडोले सबके सब ताल मिला ईर मेरे संग झूम रहे थे.. और प्रियवर ईस अदभुत दृश्य को निहारते हूए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे..ये हम नहीं ऊनका दिल ही झूम रहा था..और ऊसी पल मैने धनी को अपने संग पाया ममैं ऊनकी बाहो में थी ऊनकी नजरे मेरे दिल में इश्क की थाप दे रही थी..मै ऊस थाप को बस पीये जा रही थी,पीये जा रही थी....और नृत्य चल ही रहा था अविरत..पूरा धाम झूमते ही जा रहा था,झूमते ही जा रहा था...
👆इश्क की थाप,धनी के संग❤💃

Friday 1 April 2016

धरती नाचे अंबर नाचे में नाचू मेरा प्रीतम नाचे

अर्श में अनेको गुण है ।
जेसे की ...

नूर , आभा , प्रफुल्लता , चमक , सौंदर्य , कोमलता , चेतनता , सिगन्धितता , आनंद , उमंग , उल्लास , इश्क़ , प्रेम etc....

और दो गुण 

संगीत  🎵🎻🎸🎼
और
 निरत  💃🏻💃🏻

जब दिल अनंत आनंद खुसी में हो तब अपने आप यह दो गुण उभर आते है ।
खुसी और आनंद में दिल खुदब खुद नाचने लगता है मयूर बन के पंख फेला के 
और दिल की धड़कने संगीत बन जाती है। 

मेरे दिल की खुसी आनंद भी दुल्हन से अर्धांग्नी बनके इश्क़ के संगीत और निरत में झूमे ही जा रहा है ।
💃🏻🎸💃🏻💃🏻🎻💃🏻
धनी से अंखड शादी के बाद ।

मेरा दिल धनी को अलग अलग अदाओ से रिझाने के लिए ही कहे जा रहा है ।

आशिक़ का दावा करने वाली आतम मुझे बार बार आज आशिक़ बन के अपने धनी को रिझाने को कहे रही है ।

दिल की इसी आवाज में  में ऐसे खो गयी गहराई तक की खुद को भूल गयी ।
इस फानी दुनिया को भूल के आगे बढ़ चली ।

मेने खुद को दिल के संगीत से पन्ना जी में खड़ा पाया जहां संगीत की तान पे धनी की आरती चल रही थी मेने गुम्मट जी की परिक्रमा दबे पाउ करते हुवे धनी के आगे आके खड़ी हो गयी। 
धनी को और उनकी बैठक को गुम्मट जी के सिंहासन को निहारते हुवे मेरी आत्म ने खुद को अर्श में पाट घाट पे पाया ।

गर्मी की रुत में जमुना जी का जल मुझे अपनी और प्रेम भरे स्वागत से फुहार बन के उछलता हुवा नजर आया ।

जमुना जी की बूंद बूंद ने ऐसा भिगो दिया की तन मन रोम रोम में एक आकर्षण , खुशबु , मधहोसी , नशा भर दिया ।

जमुना जी की जल की तरंगे लहरो के मधुर संगीत में निरत करती हुवी मछलियो को मेने देखा और दिल ने कहा आज इसी निरत से इसी अदा से पीया को रिझाना है अपने और करीब लाना है ।

बस अब कहना ही क्या ...
पीया मन भाये ऐसा सिंगार सजके जमुना जी से आगे बढ़ी तो वनो को वृक्षो को देखा। 

वृक्षो में भी आज संगीत और निरत को ही देखा मेने ।
इश्क़ की मन्द मंद हवा के झोके मधुर संगीत बजाते हुवे वृक्षो को छु रहे है 
और हर पता पता डाली डाली उस संगीत ने झूलती हुवी निरत कर रही है जेसे मुझे एक अदा सीखा रही है पीया के ऐसे रिझाना ।

में दिल में इस शोभा को लिए आगे चली चांदनी चौक को निहार के सीढिया चढ के आगे चली ।
चौक से धाम दरवाजो को निहारते हुवे पार करके आगे चली ।

मूल मिलावे में जाके धनी का हाथ थामे उन्हें रसोई की हवेली ले चली ।
धनी सब बात मेरे दिल की जानते है फिर भी मुझसे पूछ रहे है मेरी प्यारी कहा ले चली ....
मेने खुद के मुख पे ऊँगली करते हुवे इशारे से कहा कुछ मत पूछे बस मेरे संग चलिए ।

रसोई की हवेली में सीढियो वाले मन्दिर की सीढियो से आगे बढ़ते हुवे धनी का हाथ कस के थामे उनके कदम से कदम मिलाते हुवे उन्हें आगे ले जा रही हु ।
थोडा आगे चलके पीया को आगे किया मेने और उनकी आँखों पे हाथ रखके उनकी पलके बन्ध करके उन्हें 4 भोंम के दरवाजे के सामने लाके खड़ा किया ।
पीया के नैनो से हाथ हटाते ही पिया ने सामने निरत की हवेली को देखा पीया कहने लगे आज नित नयी लीला इश्क़ की में से आज कोनसी लीला में मुझे खुद में और खुद मुज में डूबना चाहती में मेरी रूह ।

मेंने पीया के दिल पे तुरंत हाथ रखा और  मेरा सिर श्रवण अंग पिया के दिल पे रखते हुवे मेने कहा राज रशिक आज आप के दिल की धड़कन के संगीत में नाचने का दिल है ।
खुद नाचना है आप को संग नचाना है ।

धनी हसते हुवे मेरे सामने देखते है तो दिल की धड़कन के संगीत ने सुर पुरने लगी उनकी मीठी हँसी ।
पिया के हाथ को थामे पिया को चौथी भोम के अंदर ले चली ।
बड़े चौक में जहा सुंदर गिलम बिछी है जिसकी कोमलता का क्या कहना ऐसी गिलम पर 4 कदम आगे बढ़े ।

निरत की चौरस हवेली में जिसकी सोभा थम्भो मंदिरो से घेरी हुवी अनंत रंगो नंगो से सजी है ।

आज का निरत आज का संगीत कुछ नया है यह महेसुस मुझे करा रही थी हवेली। 
धनी को मेंने सुंदर सजे सिंहासन पे बिठाया ।
पल भर में मन चाहया संगीत का सिंगार मेरा हो गया। 
  कंचुकी , साडी , चरनियां और पिया मन भावन आभूषण का सिंगार सज के पीया को मेंने निहारा ।
और मीठी मुस्कान से पीया को रिझाते हुवे मेने नजर की तो अभी कोई भी बाजिन्त्र नजर नही आया ।

क्यों की आज मेरे बाजिन्त्र संगीत सब कुछ मेरा और धनी का दिल और दिलो की धड़कने जो है ।

जेसे ही मेने पीया को देखा तो पीया के दिल की धड़कने और तेज हो गयी ।
और धड़कनो से निकलने वाले संगीत स्वरूप् तरंगो ने बहते हुवे दिल से बहार आके स्वरूप् ने रूप लिया ।
हर एक धड़कन की तरंग अलग अलग बाजिन्त्र बन गयी। 


और ऐसे सज धज के बाजिन्त्रो ने अपनी जगह ली के मानो मेने अभी अभी इन्हें अपने हाथो से रखा है ।
पीया को आज आशिक़ बनके रिझाना है उनके इश्क़ ने नाचना है। 
बस दिल यही पुकार रहा है ।
अब बाजिन्त्र तैयार है पीया रीझने को तो में उन्हें रिझाने को तैयार हु ।


मेने घुटनों के बल बेठके निरत की एक अदा बनाते हुवे अपने चरणीये को खिलता हुवा गुलाब बनाते हुवे एक मनमोहिनी अदा बनायी ।
जो मेरे पिया मन भाये ।
बाजिन्त्रो ने जेसे ही अपने आप बजने की पहली ताल दी 
तो मेने भी दोनों हाथो को जोड़ ते हुवे ताली बजाके ताल दी ।
मेरी बन्ध ताली को मेंने बेल बूटे फूलो से सजी गिलम पर हाथ रखे तो फूलो ने चेतना तो को लिए आनंद में आके मेरे बन्ध हाथो में भर गए ।

मेने अपने हाथो की बन्ध हथेलियो को जोडे हुवे रखते ही दिल तक बिच में लाके धनी को प्रणाम करने की मुद्रा से पलको को मिचते हुवे इश्क़ का सिजदा किया ।
और बन्ध हाथो को खोलके फूलो को पिया पे उछालते हुवे प्यार किया। 


पीया ने मेरा इश्क़ भरा सिजदा कबूल करते हुवे उन फूलो में से एक गुलाब के फुल को अपने हाथो में लेके महेक लेते हुवे मुझे प्यार दिया।
बस अब क्या ।
इस इश्क़ की मजेदार मस्ती ने और जोर पकड़ा ।
और निरत की छन छन थैई थैई कार का मोहल सजने को तैयार हुवा। 
ताली की ताल देते हुवे पीया मन पिया को खुद में समाये लेने के भाव से पैरो ने थिरकना चालू किया पीया के दिल की धड़कन के बने बाजिन्त्रो ने ताल दिया तो तो मेरे मुख से पिया पिया तुही तुही और अनेको सूर में स्वर के साथ आलाप दिए ।
हर एक आभूषण  भी संगीत दे रहा है 
पीया मेरे शब्द बनके छा रहे है तो में उनकी गजल बनके गा रही हु ।

एक मधुर मीठा मन को लुभाने वाला संगीत और उस में इश्क़ के बोल सब्द इतना मधुर मिलन बना रहे है की उफ़.... क्या कहना ।

पीया निरत की हर एक अदा पे घायल हो रहे है ।
पीया अपने हाथो से फूलो की बरसात मुज  पे किये जा रहे है ।।

ए पल बस थम जा आज ।

जब मेने पेरो की गति को तेज करते हुवे घूमर किया तो चरणीये ने ऐसे गोल घूमते हुवे अदा ली के मानो में एक खिले गुलाब के बिचमें हु ।

एक पल में पेरो को मोड़ना तो दूजे पल आगे पीछे करना पेरो की इन हर अदा पे धनी रीझ रहे है ।
खुश हो रहे है ।

अब दिल भी बड़ा आशिकी अंदाज का है जहा ताल संगीत आलाप के बादसाह बेठे है वहा उन्हें बेठे कैसे रहने दे ।

आखिर एक आदा लिए कमद को लटकती चाल लिए पेरो की पायल की छम छम करते हुवे में आगे बढ़ी पीया के सामने हाथ आगे करते हुवे पिया ने भी एक पल भी देरी ना करते हुवे अपना हाथ मेरे हाथ में रखते हुवे खड़े हुवे। 

जिस पल का इन्तजार था वो अब आया है ।।
अब दिल ने करवट ली संगीत ने सुर बदले ।
जितने मीठे प्रेम पूर्ण पहले बजे अब उसे भी ज्यादा प्रेम इश्क़ सरारत लेते हुवे बजने लगे है। 


मेरे आभूषण भी पीया का स्पर्श पाके कुछ अलग अदा से बजने लगे है।
अब कहना ही क्या ।
पीया के हाथो में हाथ रख्खे हुवे नाचना ।।
कभी गोल घूम के उनके उनके सिने से लगना तो कभी एक साथ पेरो को हमरा चलना हाय हाय आज संगीत और निरत रूपी खंजर से मरने का जी चाहता है ।
दिलो जान लूटा के आज नाचने को जी चाहता है ।

रात के मधुर मौसम में संगीत का साथ निरत का ताल और पिया का प्यार क्या कहना ।।
पीया के साथ निरत को देख के दीवालों गिलम थंभ चन्द्रवा सब पे बनी नक्सकारी पुतलिया चेतन होके नाचने लगे है। 

मयूर उड़ के बाजिन्त्र पे आके बैठ गया है तो 
सिर पे चन्द्रवा फूलो की बरसात करे जा रहा है हम पे

तो पुतलिया भी नाच उठी है छन... छन... छम ...छम ...














मेरे कंगन ने ऐसी खनकार की है की पिया और पास आ गए है  ।
मेरी इन चुडिओ ने पिया को ला दिया है और पास
पीया के दिल की बोली ने मुजको सवारा प्यार भर ।


इस इश्क़ भरे निरत को संगीत को बड़ी रांग तक हेवेलिओ तक सभी खुबखुसालि पसु पक्षी देख रहे है तालियो की ताल से और ज्यादा इस पल को मधुर बना रहे है।








आज आशिक़ बन के बस मेरे धनी को रिझाना था मेरे धनी के होठो की लाली देख मैंने महेसुस किया मेरे दूल्हा आज माशूक बन के रीझे है 

दसो दिशाए नाच उठी है ना आज लखि रंग है ना सफेद ना पिला दसो दिशाए नूर बिखेरती हुवी अनंत रंगो से संगीत की तरंगे बन के नाच रही है। 
झरा झरा नाच उठा है ।

अब धनी के दिल से लग के मेने निरत बन्ध किया तो पिया बोले अब मुझे आशिक़ बन के तुम्हे रिझाना है।
तुम्हारी लालीमा को और बढ़ाना है ।
में खुस होती हुवी मुस्कुराती हुवी गिलम पे बैठी धनी भी मेरे साथ बैठे और इतने में एक मधुर सहनाई का संगीत बजा जो इतना मधुर आकर्षित करने वाला है की क्या कहना बस इतने में पिया के हाथो में पान बीड़ा सज के आ गया आज पिया ने पहले मुझे आधा पान खिलाया और मेने आधा धनी को खिलाते हुवे अपना सिर उनके दिल पे रखा ।


मधुर सहनाई की आवज समर्पण के सुख को याद दिला रही है।
धरती नाचे
अंबर नाचे
में नाचू 
मेरा प्रीतम नाचे
अंग अंग नाच रह्यो 

आज इश्क़ में।

ruh ke bhav

Mere subhan  mere mehboob Ruho ke aashik  aur ham ruhe aapki 
Kabhi   kabhi mere preetm apni kisi ruh ko najar me lekar apna laad lutane ka khel karne lagte h aur aaj mai unki najar me h .jese hi teeji bhom ki dehlaan me preetm se najre mili fir ruh hosh me kaha rahi vo ruh to preetm ke Naino me nihare ja rahi h  kya dekhti h 
Ye Nain hai yan pura sagar hi Naino me sama gaya h Naino ki etni gehrai etna ishq etni lajjat etne gun chanchl  chatur pal  pal rang badlte kabhi Nain ki putli gehri kali jese baadl ghanere kale ghir aaye h kabhi matiyale kabhi neele jese sagar hilore le raha h  jab mere nain aur shree Raji ke nain milte h to har taraf Noor hi Noor dikhai deta h
Shree Raji ke Nain rupi baan aashik ruh ke seene me chubh kar kehar dha  gaye us kehar se bhi mehar ho gai
Aur Naino se ishq rupi sharab chalk   chalk kar baahr a rahi h esse pehle ki vo gire meri Ruh ne hatho ke pyale banaye aur pine bheth gayi peeti ja rahi  peeti ja rahi h aur achanak mere mehboob ne Apni palkai band karni shuru kar di  kyo ki mere shbhan jante h Ruh ko kitni peelani h sanjme sanjme dete h aur Ruh khwab se bahar a gai

Pranamji