Monday, 21 December 2015

मुलमिलावे के अखंड सुख --रूह के भाव


इश्क के रस सै भीगी हुई में तो धाम की गलियों मे मदमस्त होकर विहार कर रही ही..पहेली ही भोम की हवेलियों की अलौकिक शोभा से मे अटखेलियां कर रही थी..पर इतने में ही मेरे नूरी हाथो को एक नूरी स्पशॅ हूआ कि जिससे मेरे नूरी तन की सभी नूरी किरने महेक ऊठी और एक अनेरे मस्ती भरे तेज के साथ महेक ने लगी..नजरो से नजरे मिल चूकी थी,मेरे हाथ में धनी का नूरी हाथ था..और ऊनके नैनो के तारो में मेरी पूतलिया एक सूकून भरे आनंद के साथ चमकते तारो की माफिक टमटमा रही थी...
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नजरे हट नहीं रही थी पलके झपक नहीं रही थी ऊनके नूरी तेज से भरपूर मूख पर हल्की हसी आई और मानो मेरे नैनो की पूतलिया मेरे दिल के संपूर्ण सागर सहित ऊनके नैनो मे डूब गई...धनी ने मेरा हाथ पकडे हूए एक के बाद एई कदम आगे बढाये..वे कहा ले जा रहे थे पता नही मेरी तो नजरे ही ऊनके नैनो से हट नहीं रही थी..बस कदम बढे जा रहे थे..ऐसा लग रहा था मानो सागर के संग लहेरा रही हूँ।कदम बढते जा रहे थे कूछ हवेलियां पार करके धनी मूझे ऊस गोल हवेली में ले चले जहा मूझे वाकई मे जाना था..अंदर जाते ही जैसे कोई महारानी की भांति मेरा स्वागत किया गया..और पूरा परमधाम मानो स्वागत मे खडा था..में तो चलती ही जा रही थी,नडरो से नजरे मिली हूई थी और अब तो ऊनके नैनो के तारो में दिखने वाली मेरी पुतलियों के नैनो में मै धनी के नैन देख रही थी..तीन सिढिया चढ कर आगे बढी तो थंभ,चंद्रवा,गिलम,सिंहासन,तकिये,चाकले और मेरी रूहो के नूर ने मूझे और रोमांच से भर दिया..धनी का हाथ अभी भी मेरे हाथ में ही था,नजरे ऊनकी नजरो से मिली हुई थी..ऐसे मे धनी ने बहूत ही नजाकत से मेरे मूख को मोडा और तब मैने देखा वह नजारा जिसे देखने के लिए में तरसती थी..धनी का हाथ अभी भी मेरे हाथ में था..हाथो ही हाथ में ऊन्होने मूझे ईशारा किया और मैने अपने ही नूरी मूल तन को देखा पल भर को तो ऐसा लगा जैसे मे मूल तन मे विहार करके धनी के दिल मे समा गई.. एक एक कण मे मानो कोटानकोट सूयॅ ऊग आये हो ऐसा नजारा है..अनंत रूहे अनंत नूरी किरणो कि भांति झिलमिला रही है..और ऊन सब का मूल धनी का वह दिल तो मानो आनंद का महासागर बन कर आज मुझे संग लेकर इश्क की मस्ती मे डूब चूका हैं..
एक आधे पल में ही मैने धनी के संग अपने आपको फिर ऊस नूरी सिंहासन पर पाया और वही हाथॅ में हाथ और नैनो से नैन अभी भी मिले हूए थे...

यह मस्ती, यह आनंद,यह सूकून,बस यूंही बना रहे..यूही में बस ऊनमे डूबी रहूं,भीगी रहूं बस यही..बस यही..

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