Sunday 18 June 2017

7 वन चितवन


अभी 5 जून को पर्यावरण दिन मनाया गया....

जिसमें सभी को एक वृक्ष जीवन में बोना चाहिए यह कहा जाता है......

धनी की महेर से 5 जून के दिन की किरण मासी ने दूसरे ग्रुप में 7 घाट का वर्णन किया था....

जिसे पढ़कर पर्यावरण के दिन पूरा दिन अर्श के वनो में घूमता रहा....

एक तरफ फर्श पे 43° तापमान रहता है... पुरे दिन सूर्य अपनी किरणे मानो दिल खोलकर फेके जा रहा है.... उसी समय जब हम बहार गए तो रास्तो के गाँव में लोग दोपहर की कड़ी धूप में वृक्ष के निचे चार पाई डालकर आराम से सो रहे मेने देखे...
एक माँ ने दो वृक्ष के बिच की जगह में साडी बांध कर झुला बनाकर अपने छोटेसे बेटे को सुलाया हुवा था और वृक्ष की छांव में झूले डाल रही थी.....
जहां सिर पर घुम रहे पंखे के निचे भी पसीना लग हो रहा था.....
वहा यह लोग वृक्ष के निचे आराम से सो रहे थे.....

पेड़ो के निचे की इस शीतल ता का अहसस केवल देखते हुवे ही ले रही थी,...

लेकिन दिल मेरे अर्श के पेड़ो की शीतलता याद कर रहा है......

बस दिल मेरे 7 घाटो में ही घूमने लगा है.....

साड़ी के बने उस झूले को देख मुझे मेरे वनो के वृक्ष के झूले याद आ रहे है......


दिल बार बार वनो में ही घुमे जा रहा है,......

बस यह केवल सोचते सोचते ही रात हो गयी.....

रात होने पर भी गर्मी कम नही हो रही थी.... गर्मी के कारण नींद ही नही आ रही थी....
तब दिल 
ठंडी पुरवाई का अहसास करता अर्श के वनो की तरफ जा रहा है......

कही से मेरे कानो में पत्तो की सरसराहट गूंज रही है....
दिल उस सरसराहट के पीछे दौड़ा जा रहा है....
मानो यह पत्तो की आवाज मोहित करके अपने पीछे ले जा रही है......

मेतो आंखे मूंद बस उस आवाज के पीछे पीछे जा रही हूं......

धीरे धीरे गर्मी दूर होती जा रही है और ठंडक सी नजदीक आ रही है....

और फिर एक पल जल की महेक और शीतलता का अनुभव होता है.... तब मेने आंखे खोली तो देखा सामने तो दूध से उज्वल फूलो से भी सुंदर सुगंध वाली जमुना जी बह रही है....

मानो मुझे अपने पास बुला रही है... कह रही है पुरे दिन की गर्मी लगी है आओ ठंडे जल में नहा लो..... आरम मिलेगा और मजा भी आएगा.....

पर दिल न जाने क्यों किनारे पर ही रुक गया...
तब जमुना जी के जल ने जोरो की छलांग लगाई और मुझे उसकी एक लहर के साथ लेकर जमुना जी में डूबा दिया....

ओह....वाह..... कितना ठंडा ठंडा जल है....
मानो बस इसी पानी में डूबे रहने का मन हो रहा है.....

जहां थोड़ी देर पहले जमुना जी के किनारे खड़ी रही थी,.. वही अब जमुना जी से निकलने का मन नही हो रहा था.....

तब जमुना जी ने फिर से एक छलांग लगाई पाल तक के सीधी पाल की देहुरी तक पहोच गयी.....

देहुरी के अंदर बहोत ही सुंदर वस्त्र आभूषण है..
पर इतनी गर्मी में मुझे ज्यादा सिंगार सजकर तैयार होने का मन ही नही हो रहा था.....तब आगे सजे सुंदर वस्त्रो में के पीछे से एक सुंदर मुलायम पतले वस्त्र बहार आकर हाथ में आ गए... उन्हें छू कर ठण्डी का अहसास होने लगा...बस फिर क्या बिना सोचे मेरी आतम ने वः वस्त्र पहन लिए....

आज मुझे आभूषण पहनने का कोई मन नही है धनी मेने दिल ही में धनी से कह दिया,...

तब दूर से बहोत ही तेज हवा लहराई....
मुझे आवाज देकर बाहर बुलाती है....

और में बिना आभूषण के देहुरी से बहार चली आती हु ।                        

में सामने नजर करती हु तो दूर अनार के वन में धनी बैठे हुवे नजर आते है..... धनी कुछ कर रहे है ऐसा मुझे लगा...
मेने देहुरी के सामने वाली रोंस से होते हुवे आगे बढ़ी अनार के बन में.... दिल धनी से मिलने की बहोत ही ज्यादा ख़ुशी में कदम तेजी से बढ़ा रही थी आखिर कार में अनार के वन में अंदर आ पहुची.... मेने देखा धनी अनार के पेड़ो पर जो छोटे छोटे फूल और कलिया लगी है उसे तोड़ कर कुछ कर रहे है..

में धनी के बिलकुल नजदीक आ गयी मे धनी से पूछ रही हूं धनी ये क्या कर रहे है आप..?

तो धनी मुझे देख मुस्कुरा रहे है....
और मेरा हाथ थामे मुझे अनार वन की मुलायम जमीन पर बिठाकर जमीन पर रख्खा थाल दिखा रहे है...
थाल रुमाल से ढका है तो मेने धनी से पूछा धनी क्या है इसमें...?

तब धनी कहते है आँखे बंध करो..?
मेने आँखे बन्ध की तो ऐसा लगा धनी मुझे गले लगा रहे है और गले के पीछे अपना हाथ फेर रहे है....
फिर धनी ने मेरे गालो को चूमते हुवे कहा आँखे खोलो.....

मेने आँखे खोली तो देखा मेरे गले में सुंदर फूलो और कलियो को हार पहना हुवा है....
यह देख में बहोत ही खुश हो गयी...
तभी धनी ने खुद मुझे फूलो का सजा मांग टिका पहना कर माथे को चूमा.....
हाथ में पहोचि, बाजुबन्ध , कानो में बाली सब फूलो के बने आभूषण मेरे अंग पर सज रहे है....

तब धनी कहते है यह फूलो के आभूषण मेंने खुद तुम्हारे लिए बनाए है .... यह सुन कर उन आभूषणो मजा ओर ज्यादा बढ़ गया.....

और में धनी के गले लग गयी...


यह आभूषण इतने कोमल और शीतल है और ऊपर से खुद धनी के हाथ से बने हुवे है इसका आनंद कई ज्यादा बढ़ गया....
आखिर धनी ने मुझे सिंगार सजा कर तैयार कर ही दिया है.....

यह देखकर हवा ने रुख बदला और तेजी से बहने लगी....
अनार वन के पत्ते एक दूसरे से टकराकर मधुर संगीत बजाने लगे है...

धनी मुझे हाथ पकड़ कर अनार के एक वृक्ष के पास ले जा कर उसपर लगे अनार के फल को दिखा रहे है...
कह रहे है यह फल तुम्हारा कब से इंतजार कर रहे है..... 
तब मेने धनी से कहा धनी क्या आप मेरा इंताजर नही कर रहे है..??
धनी कह रहे है बेसब्री से नैना बिचाए राह तकता रहता हूं तुम्हारी..... और में धनी के गले लग गयी...
😍😍😍

यह देख अनार मानो मुस्कुरा रहा है बहोत खुश हो रहा है......
और पत्ते तो जैसे ताली बजा रहे है.....
इस तरह अनार वन में प्रेम का मीठा संगीत बज उठा है...... 


पेड़ो पर बैठे पंखी मीठी आवाज में प्रेम गा रहे है...



घने यह वन.... दूर दूर तक जहां नजर जाती है वृक्ष ही वृक्ष नजर आते है..... वन को लगकर सजी नहर से फव्वारा निकल रहा है उसकी बूंदे मेरे तन को छूती हुवी गुद गुदी कर रही है....                        


वही इतने में मेने एक बंदर को देखा जिसके हाथो में केले थे...
तब मे धनी से कह रही हु धनी चलिए ना हम केल बन में जाए.... 
यह बंदर मानो हमे बुला रहे है.... चलिए ना धनी....

धनी कह रहे है चलो केल बन में घूमने जाए... और धनी का हाथ थामे में वनो की सेर करती हुवी केल बन में आगयी....
हमने सामने देखा की....

केल बन में सारे बंदर आकर हमारा इंतजार कर रहे है....
वः कुछ खेल खेलने को तैयार है... हमे रिझाने के लिए....
पेड़ो पर डोरिया बंधी हुवी है..,..

तब एक बंदर ने इसारो में कहा आइए.... यहां बैठिए....... 🐵

हम केल वन में सजी खुर्सी पर बैठे.....

इतने में देखा तो कई सारे बंदर आकर रस्सी को पकड़ कर कूदने लगे..

कोई झूला खा रहा है...

कई एक दूजे के साथ मस्ती कर रहे है...

इस तरह सभी बंदर हमे रिझा रहे है...







जहां भी नजर करते है हर तरफ केले नजर आ रहे हे.... केले के फूलो से दिल चुराती खुसबू आ रही है.....

केले के वृक्ष के पत्ते बहोत बड़े और ऊपर से उठकर निचे जमीन को छूकर सजे है.....

तब मे धनी से कह रही हु धनी चलिए ना हम भी खेलते है....

धनी कहते है क्या खेलना है...??
तब मेने कहा पीया चलिए केले के पत्ते पर ऊपर से निचे फिसलते है.....

तब धनी हसने लगे.....

और कहा चलो खेलते है....

और हम वृक्ष के तने के आगे आकर खड़े हुवे...
उतने वृक्ष के तने में बहोत ही सुंदर दरवाजा बना है...... जो हमे सामने देखकर अपने आप खुल गया ..... ऐसा लगता है दरवाजा हमारा स्वागत कर रहा है.......

हम तने के दरवाजे से अंदर जाकर अंदर आई सीढियो से ऊपर पेड़ की चांदनी पर आए....


केले के पत्ते मुड़कर सजे है जिससे उन पत्तो पर आसानी से फिसल सके....

मेने धनी से कहा धनी आप पहले फिसले...
धनी ने कह रहे है नही मेरी रूह तुम पहले...

फिर मेने कहां चलिए साथ में एक दूजे का हाथ थामे एक साथ फिसलते है....

धनी ने बिना कुछ कहे हाथ पकड़ लिया है....

और हम जोरो की आवाज करते हुवे.... केले के पत्ते पर सरकते हुवे ओस की बूंद की तरह फिसलते है..... 
ऊपर चाँदनी से सीधा पत्ते पर फिसल कर हम जमीन पर आ गए....

बहोत ही मजा आ रहा हे इस खेल में.....

और उसमें भी धनी का हाथ थाम कर सरकना ओर भी ज्यादा मजा बढ़ा रहा है......

😍😍😍

हम केले के पत्तो पर कई बार ऐसे फिसल रहे है... 

प्रेम का खेल खेल रहे है.....

हर तरफ केले ही केले नजर आ रहे है...

अनेको रंग में यह वृक्ष चमक रहे है......

बस इस वन में खेल खेलते रहे दिल कह रहा है.....

अबकी बार धनी ने कहां इस पत्ते पर से सरकते है.....

और हम केल वन के नहर से लगे वृक्ष के पत्ते से सरकते है..... तो सीधा हम लिम्बोई वन में आ गए है.......

यह खट्टी मीठी महक हमे लिम्बोई वन में खिंच ले आई है......
लिम्बोई वन में हर तरफ  छोटे छोटे खट्टे दिल को ललचाने वाले निम्बू ही नींबू नजर आ रहे है....

मानो हरी पत्तो पर पिली नक्सकारी की हुवी चादर बिछी है ऐसा लग रहा है..... नींबू के पत्ते आकर में छोटे है.... पर हर पत्ता गहरा हरा रंग लिए शोभायमान हो रहा है.....

इसके पत्ते मुलायम है... पत्तो का आकार भी कुछ अलग है......

छत्री आकार में सजे यह वृक्ष उसके निचे बैठे ही रहने को कह रहे है.....

तभी धनी ने कहा आओ यहां बैठते है इस लिम्बोई वन के इस वृक्ष के निचे खुर्सी पर..... 

इस वन की खुसबू इतनी सुंदर है की यहां से उठकर कही और जाने का दिल ही नही कर रहा है....

मानो इस खट्टी सी खुसबू ने मिठास घोल दी है....










नींबू के वन में धनी का कन्धे पर सर रखकर प्रेम भरी गुफ्तगू करने का आनंद ही सुहाना है....


नींबू वः की डालिया एक दूसरे से मिलान करके बहोत ही सुंदर महेराब बनाई है.....

यह वन अनेको रंगो से भरा हुवा है.....

नहर का जल धीरे धीरे बह रहा है....

इस नहर में पक्षी आकर बैठ रहे है और अपनी मधुर मीठी आवाज में प्रेम का धीमा धीमा संगीत बजाते है.....


पूरा लिम्बोई वन इतना चमक रहा है की इसका नूर आसमान में जा रहा है । ऐसा लग रहा है की सोने के फल लगे है ऐसे चमकीले नींबू बार बार आकर्षित कर रहे है ।। इस वन में बहोत ही सुंदर झूले बने है... खुद नींबू ही पुरे एक हार के रूप में बनकर झूला बने है... नींबू का बना झूला बार बार उसकी और आकर्षित किए जा रहा है... तब धनी मेरे दिल की बात जान गए और मेरे कुछ कहने से पहले उन्हों ने ही कहा चलो झूला झूले... में तो जल्दी से खड़ी हो गयी और कहा हा चलिए जल्दी झूला झूले..... धनी के साथ एक ही झूले पर बैठकर झुलने का बहोत ही मजा आ रहा है पवन की पुरवाई आकर झूला झूला रही है ।।                        


तभी धनी ने कहा चलो इस वन के अंदर आए मोहलातो में चलते है....
और हम झूले से उतर कर निम्बू के वृक्ष के तने में आए दरवाजे से होकर अंदर तने में आए महल में जाते है तब मेरी नजरे तने की अंदर आई शोभा को देखती ही रह गयी....

ऐसा लग रहा है रंग मोहोल की हवेलिया यहां वन के वृक्षो में आकर सिमट गयी है 
।इतनी सुन्दरा है की नजरे हटती ही नही है ।।

धीरे धीरे हम पहली मंजिल से होकर दूसरी मंजिल में आ गए और वहां से होकर चांदनी तक पहोच गए ।।

लिम्बोई वन के इस पेड़ की चांदनी पर आकर देखा की इस की डालिया आड़ी नहर तक छुकि हुवी है..... 

तब धनी के साथ मेने इन डाली पर चलते हुवे निचे आई आड़ी नहर में आ गए.....

लिम्बोई वन की हद में आई इस नहर के पानी में भी नींबू की महेक आ रही है..... उस नहर में ताजगी का अनुभव हो रहा है..... हम नहर के अंदर से चलते हुवे अनार वन की नहर में और अनार वन की नहर से हम सीधा अमृत वन के एक भाग में आगे.... 

अमृत वन के एक भाग में आकर में सीधा अमृत वन की रोस पर आ गयी जैसे ही मेने रंग महोल तक ले जाती इस रोस पर कदम रख्खा तो हवा का रुख बदला तेज हवा आने लगी जिससे सभी वनो के फूल उड़कर हमारे ऊपर आ गिरे मानो यह सभी मेरा इस वन में स्वागत कर रहे है और में धाम के सामने मुख करके आगे आई सारी शोभा देख रही हू....

चांदनी चौक में आये लाल हरा वृक्ष नजर आ रहे है सामने यह दोनों वृक्ष झुक रहे है ऐसा लगा मानो दोनों सजदा कर रहे है......

दूर सामने सीढिया और धाम दरवाजा नजर आ रहा है.....

पर आज तो दिल वनो में ही रंगमोहोल को देख रहा है....... 

इतने में धनी ने आकर कहा कहा खो गयी मेरी दुल्हिन....??

क्या रँगमोहल में जाना है..??

मेने कहा धनी जिस जगह आप मेरे साथ होते है वही जगह रंगमोहोल बन जाती है मेरी......

धनी ने फिर से यह सुनकर गले लगा लिया तब मुझे लगा धनी का दिल कह रहा है की.... मेरी प्यारी इतनी देर क्यों करदी इतनी सी बात समझ ने में...?

तब मेरे दिल नें भी मानो यही कह दिया..... यह सब आप जाने में तो अब बस आपको जानू.....

और ऐसा लगा की धनी की बांहों ने और ज्यादा मजबूत पकड़ लिया मुझे कश कर पकड़ लिया बांहों में......

और फिर धनी हाथ पकड़ अमृत वन के दूसरे भाग में ले आए.....

हर तरफ आम ही आम नजर आ रहा है....
आम भी अनेको तरह के है....

कोई आम बड़ा है राजा पूरी जैसा....
कोई आम तोते की चोंच के जैसा नोकदार है तोता पूरी जैसा....
कोई आम उपर से लाल और निचे से हरा है.....
कोई बड़े तो कोई छोटे आम दिखाई पड़ते है....

आम के पेड़ो के पत्ते कभी लाल और कभी हरे दिखाई पड रहे है....

इतना नूर है इस वन का की इसका नूर आसमान को चीरता हुवा ऊपर जा रहा है....











आम के वृक्ष पर कई पंखी आकर बैठे हुवे है...

ऐसा लग रहा है की यह पंखी और फलो ने एक दूसरे को गले लगाया हुवा है......

और दोनों मिलकर कुछ प्रेम भरी बाते कर रहे है...

पंखी अपनी चोंच आम पर फेरता मानो आम को गुदगुदि कर रहा है...

यह सब देखकर प्रेम और ज्यादा बढ़ रहा है.....

आम के वृक्ष के तने ज्यादा बड़े मोटे है जिससे यह सारे वृक्ष घटादार बने हुवे है...

इन वृक्षो में एक पूरी भोम समाई हो इतने कमरे दिखाई दे रहे है...

इसके मूल में से रास्ता बना हुवा नजर आ रहा है....


अमृत वन जो दो हिस्सों में बंटा हुवा है उन दोनों हिस्सों के वृक्ष की डालियो ने निकल कर महेराबे बनाई है...


जिससे अमृत वृक्ष के बिच की धाम में जाती रोंस पर एक मंडप की तरह महेराबे सजी है...

रोंस पर निचे फूलो की गिलम बिछी है....

अमृत वन की डालियो में झूले बहोत ही सुंदर सजे है....

जो दूर तक जा रहे है...

केसर आम की खुसबू पुरे वन को महेका रही है.....

सभी आम गुच्छो में लगे है....

ऊपर से आम के गुच्छे निचे तक आ रहे है....

धनी बड़े प्यार से आम के इस गुच्छो को मेरे गालो से टकराते है... 
आम के छूने पर ऐसा लगा मानो खुद धनी ने छु लिया है.....

और मेने आम को पकड़ कर उसे चूम लिया....


में तो आम के वन को देखती ही रह गयी.....


पीछे मुड़कर देखा तो धनी कहि नजर ही नही आए....

में धनी को पुकारती हुवी आवाज लगा रही हूं....

पीया ..... पीया.....

यह कैसा खेल..??

कहा है..??

तब दूर कहि से आवाज आई.... 

ढूंढो मुझे आओ ढूंढो....

मेने अमृत वन में हर पेड़ के तने के पीछे देखा तने के अंदर देखा... पर धनी नजर नही आए....

मेने कहां आप दूर नही रह पाओगे में आपको पकड़ ही लुंगी,...

इतने में... जांबु वन के एक पेड़ के पीछे से बहोत नूर झलकने लगा...

मुझे पता लग गया धनी मुझे जांबु वन की शेर कराना चाहते है...

तब में भी अमृत वन से होकर जांबु वन में आ गयी,......


जैसे ही में जांबु वन में आई.....मेंने देखा पूरा जांबु वन जाम्बुनी रंग से सजा हुवा है.....

जिस जांबू के पेड़ के पीछे पीया छिपे है उस पेड़ ने मेरे आते ही अपना तना पारदर्शक कर दिया जिससे मुझे पीछे खड़े धनी नजर आ गए....

में सीधा धनी के पीछे जाकर खड़ी रह गयी,...
और पीछे से पीया के कान में बड़ी आवाज में कहा पकड़ लिया पकड़ लिया.....

और इस तरह से हम जांबु वन के वृक्ष के तनो को पकड़ पकड़ कर एक दूसरे को पकड़ने का खेल खेलने लगे.....

कभी वृक्ष की इस हार में दौड़ते कभी उस हार में.....

दौड़ते हुवे फूलो के गहनों से भी आवाज आने लगी.....

हमारी इस मस्ती में पूरा जांबु वन भी झूम उठा है.....

जांबु नी रंग की किरणे ऊपर से निचे निचे से ऊपर आ जा रही है...






पूरे वन में जांबु की महक आ रही है....


धनी कहते है आओ हम जांबु खाते है.....

और धनी आधा जांबु खाकर आधा मुझे खिलाते है.....तब जांबु की मिठास ओर भी ज्यादा बढ़ जाती है.....

😍😍

जांबु भी सारे गुच्छे में लगे हुवे है.....

पवन की लहरे जांबु के गुच्छो को झुलाती है....
तो मानो यह गुच्छे हवा के साथ बात करके खेल रहे है ऐसा लग रहा है....

धनी के हाथो में हाथ लिए वनो में यह घुमना दिलकश है.....

 बार बार धनी मेरे सामने देखा करते है और में सरमा जाती हु...

तब धनी के हाथ की पकड़ मजबूत हो जाती है.....

हवा कानो में आकर धनी का नाम गुनगुनाती है....

और धनी हाथ थामे गोलाई में छत्री की तरह सजे वन नारंगी वन में ले आए.....

कही केसरी रंग , कही थोड़ा पिला कहि थोड़ा हरा और पिला ऐसे रंगो से सजा नारंगी वन आँखों के सामने देख रही हु...... 

हर तरफ गोल आकार में सजी नांरगी ही नांरगी दिखाई दे रही है....










नारंगी वन के वृक्ष एक समान गोलाई में सजे है जिससे उसकी छत एकदम एक समान सीधी लग रही है....


मानो आसमान और जमीन के बिच में हवामें लहराती हुवी चादर बिछी है....

लिम्बोई वन की तरह ही यह नारंगी बन दिखाई दे रहा है....

धनी कहते है आओ हम यहां वन की नहर में पैर डुबाकर किनारे पर बैठते है.....

और हम पश्चिम की तरफ की नहर के किनारे पैर पानी में डुबाए बेथ गए...

पैरो को बार बार पानी में घुमाते है पानी से बहार पैर लाकर पानी के अंदर पैरो से खेल रहे है.....

हमारी नजरे नारंगी बन की सुंदरता को ही देखा कर रही है.....

दूर दूर नजरे जा रही है....

धनी जल के अंदर अपने पैरो से मेरे पैरो को छूकर प्रेम कर रहे है... प्रेम की मस्ती कर रहे है....

नहर के अंदर फूल कमल के फूल सजे है....
नहर में छोटी मछलिया हमारे पैरो को आकर छूती हुवी सरारत कर रही है.....

जिससे मजा बढ़ता ही जा रहा है..... 

वनो की छाव में धनी का साथ और यज मस्ती बस यह पल थम जा दिल यही कहता जाता है.....







वन की नहरो में यु मस्ती करते हुवे..... नजर दूर दूर जा रही है... तो वही नजर एक चबूतरे पर पड़ी....

जिसके ऊपर एक बहोत ही बड़ा वृक्ष नजर आ रहा है.....

जो कुछ अलग ही अदा में खड़ा है और मुझे अपने पास बुला रहा है,...

तब धनी कहते है वो देखो सामने..... बट का वन...... हमे बुला रहा है....

चलो चलना है वहा..??
मेने कहा हा चलिए कितने सुंदर है यह वन....

और हम नारंगी के घाट स चलते हुवे बट के घाट पधारते है.....

बट का वृक्ष बहोत ही बड़ा घनी छाया लिए सजा है....

उसकी बड़वाइया जमीन को छु रही है....

यह वृक्ष बहोत ही बड़ा घना और गहरा है....


बात के वृक्ष पर गोल छोटे छोटे लाल फल लगे है...


बट की बड़वाइया ही झूले है इन बड़वाइओ को पकड़ कर झूला झुलने का आनंद सबसे अलग है.....

ठंडी ठंडी पुरवाई आती हुवी दिल को लुभा रही है ।

मेने धनी से कहा आज कही नही जाना है आज यही बट के वृक्ष के निचे आज आराम करते है...


इतने में ही बट के वृक्ष के निचे सेज सज जाती है...
हम सेज पर लेटे हुवे बट के वृक्ष को निहारते हुवे आज के आनंद की बाते करते है.... 

हवा की लहरे सेज का आनंद बढ़ा रही है....

मेने धनी का हाथ थामे कहा आज हमने कितने सारे फलो के वनो में घुमे मुझे तो हर एक फल के वन का सुख लेते हुवे सेज पर सोना है.....

तब धनी ने कहा नजरे उठाकर ऊपर तो देखो मेरी लाड़ली.......

और जैसे ही मेने बट के वृक्ष को देखा तो एक ही बट के वृक्ष पर सारे के सारे फ़ल लगे दिखाई दिए.... इतने सारे फल एक ही वृक्ष पर देखकर दिल खुसी से झूम उठा...


इन फलो को देखते हुवे ठण्डी ठण्डी पवन में धनी के कन्धे पर सर रखकर इन फलो जैसी मीठी मीठी बाते धनी मुझसे और में धनी से करती हु.....


हमारे सर पर सजे वृक्ष के हर एक पत्ते में धनी नजर आ रहे है मुझे....

तब दिल कह रहा है...

पीया दिलकश तेरा नक्शा है, सूरत तेरी प्यारी है, जिसनें तुजे देखा वः जान से वारी है

हर तरफ हर एक पत्ते में डाली में फूल में फल में धनी ही नजर आ रहे है....

वृक्ष की छांव के साथ में धनी के इश्क़ की छांव में लिपटी हूं.....

आपके इश्क़ की छांव में यु रहना निसबत मेरी है.... मुझे आपमें युही छुपा लीजिए आरझु ये मेरी है

 धनी दिल की बाते सुनकर गले लगा लेते है...

तब हवा तेजी से चलने लगी है.... हवा के साथ सेज पर फूल बिखरे जा रहे है.....

वृक्ष पे पंखी मधुर प्रेम बढ़ाता संगीत बजा रहे है.......                        

आज लगता है आसमान में धनी के हाथ से इश्क़ की शुराहि गिर गयी है...
और आसमान से होकर इश्क़ की शराब धरती पर छलका गयी है....

दिन  क्या करे ढल गया मजबूर होकर चाँद निकला प्रेम में चकचुर होकर.....

यह इश्क़ की रात आई है मस्ती में उसी पल...
जब धनी की उंगलिया खेल रही थी मेरी झुल्फो की सितार पर......

में और पीया बैठ गए है इश्क़ की महफ़िल सजा कर... 
दोनों पी गए इश्क़ की शुराही दिल खोल कर....

यह रात भी चकचुर है
में भी चकचुर हु...
बस एक होना बाकी है 
बाकी सब कुछ है भरपूर....

और इन्ही वृक्ष की छांव की सेज में धनी के दिल में समा गयी......

में से तू ही तू हो गयी....
इश्क़ के दरिया में डूब गयी....

😍🌳🌳