Tuesday 29 March 2016

निरत की हवेली में प्रवेश

आज मेरी रूह ने निरत की हवेली में जैसे ही प्रवेश किया ।चारो तरफ रंग बिरंगा सुगन्धित माहोल था।थम्ब रंग बिरंगे चंद्रवा रंग बिरंगा निचे गिलम रंग बिरंगी।सामने मेरे राजश्यामा जी का सिंहासन रंग बिरंगा।जैसे ही मैंने हवेली में कदम रखा ठंडी रिमझिम फुहार से मेरा अंग अंग सराबोर होने लगा।ऐसे में मैंने देखा पिया मेरे करीब आ के अपना हाथ आगे कर बोले ओ मेरी प्यारी रूह आ जा।तेरा ही इंतजार ये रंगीन समां कर रहा था।उनके हाथो का कोमल स्पर्श पा के मैं ठिठक सी गई।एक टकउनको ही निहारती रही।ऐसे में रंग बिरंगी फुहारे रंगो की हमे इश्क़ रंग से भिगो दिया।पिया मुझे आगे ले गए और खूब खुशालियो के हवाले कर दिया।उन्होंने पिया को भाये ऐसा नूरी सिंगआर मेरा किया।सफ़ेद लहंगा सफ़ेद नूरी आभूषण ।सारा सिंगार white और नूर ही नूर।जब मई सज धजके पिया क सामने आई तो उनकी कातिल नजर ने मुझे शर्म से भिगो दिया।फिर तो मेरे सफ़ेद नूरी सिंगार पे पियाने इश्क़ रंगो की ऐसी फुहार छोड़ी की मैं उनफुहरो की बूंदों में रंग बिरंगी हो गई।वो फुहार पिया क इश्क़ का ही तो रूप था।जिसने असज मुझे रंग बिरंगा क्र दिया।मेरा सिंगार रंगिनमोतियो की तरह नूरी होकर जगमगाने लगा।और मेरा अंगपत्यंग थिरकने लगा।पिया एक टक मुझे और मई उन्हें निहार रही हु।पिया की निगाहे मेरे जिस अंग तो निहारती वो अंग पूरी नजाकत से थिरकते हुए पिया को रिझाने लगा।वो होटो को देखते तो वो थिरकने लगते।पिया की नजरे आँखों पे जाती तो मै आँखों क इशारे करते थिरकने लगती।इसी तरह जहा जहाँ पिया की नजरे जाने लगी मेरा वो अंग इश्क़ रस में डूब क्र नाचने लगा।मेरे साथ मेरी प्यारी साखियॉ भी निरत क्र रही ह।कुछ पिया क आसपास बैठी निरत का आनद ले रही है।बड़ा प्यारा स्म बना ह आज।आज फिर जीने की तम्मना है आज फिर मरने का इरादा है।💃🏻💃🏻💃🏻💃🏻💃🏻👯👯💥💥💥❤💛💚💙💜❣❣💕💕💕💞💓💗💖💘💝






❣❣Ishq Ki Holi..❣❣

❣❣Ishq Ki Holi..❣❣                              Aaj mene jab subah ko aankh kholi to pahela chahera mere rajji ka dikha.. Wo mere samne Bethe he.. Mene dekha Ki rajji sirf mere aankh khulne Ki pratixa me Bethe he.. Jese hi meri aankh khuli ... 
Piya ne mujhe chum liya.. Or mere gaalo pr chumte hue mujhe holi Khelne ko kaha.. "Chalo meri rooh aaj holi khelte he.. Yeh tumhari holi Ki shuruaat mere ishq se.. "
Piya me to aapke ishq me hi rangi Hu... Or aapke ishq ke sundar bhala koi rang ho skta he...? Piya ne hste hue mujh pr jor se rang chhant Diya.. Bole mujhe rang sko to manu..
Me unke pichhe dodi.. Thambh me se rang liya mene or piya pe dala pr piya nahi rang paye.. Piya fir dode.. Mene pasami gilam ka rang liya.. Laal rang piya pe dala.. Piya fir bachke bhage .. Chandni chowk se hum saat ban me Gaye.. Hare- hare vrux se hara rang piya pr dala or piya fir Bach Gaye.. Wo mujhpe hans rahe he.. Dekho me kese tum ko douda raha Hu.. Piya jamunaji ke paas aakar ruk Gaye.. Me piya ko pakdu usse pahele wo jamunaji pr dod chale.. Me jamunaji pr thehar gai.. Piya dikh hi nahi rahe.. Or piya ne pichhe se aakar mujhe jamunaji me dhakka de Diya..or me jamunaji ke rangin jal me gir gai..
Aaj dekha to jamunaji ka jal safed nahi tha.. Piya ke kehne pr aneko rang me jamunaji beh  rahi thi.. Dekha to piya mere pichhe .. Or jor se mujh pr jal feka.. Me is ishq me Puri tarah se bhig gai..
Fir piya ne mujhe jal me dubo Diya..or piya jal se nikl ke kunj-nikunj vano me bhage.. Piya kaha.. Pakad sko to pakdo or rang do mujhe.. 
Me bhi piya ke pichhe bhagi or kunj-nikunj vano ke phoolo ko ek-ek krke mene ikttha kiya.. Sabse sungandhit or khubsurat phoolo ko samet Kr mene piya ke liya rang taiyaar kiya.. Piya jhule pr jhul rahe the or mene pichhe se jakar piya ko us rango se rang Diya.. 
Piya ne mujhe apne paas jhule pr bithaya or kaha .. Meri rooh me bhi to tere ishq se hi ranga huaa Hu.. Or mujhe baho me lekar piya fir apne rang me mujhe rang Diya.. Aaj me mere priyatam ke ishq me rang gai.. Or me jhoom uthi...😃🤗🤗❤🙏🏻

चौथी भोम 🌹

चौथी भोम 🌹
चौथी भोम की चोरस हवेली में निरत की लीला होती है निरत की भोम चेतन ,नूरमयी ,प्रकाशमान और इश्क की सुगंधी से लबरेज हैं श्री राज स्यामाजी  चबूतरे के मध्य पर नुरमयी सिंहासन पर विराजमान होते है 
नवरंग बाई और उनके जूथ की सखियां सुभान के सामने दिल मे प्यार ही प्यार ले कर निरत की लीला कराते है नवरंग बाई अलौकिक निरत,मृदंग बाई  मृदंग बजाते , तान बाई ताल से ताल मिलाते  हैं और सेन बाई सुरीले स्वर में गायन कर रही हैं केल बाई मधुर कण्ठ से राग गाते है   झरमर बाई  मधुर झरमरी बजाते है 
मोरबाई बांसुरी  बजाते है 
"बांसुरी  राज जी नहीं बजते "

मुरली बजावत मोरबाई,बेनबाई बजंत्र ।
तानबाई तान मिलावत,निरत जामत इन पर ।।

इस निरत की लीला का प्रतिबिंब पुरे परमधाम में पड़ता है सभी जगह निरत दिखाई देता है 

साथजी जिस तरह live telecast होता है वेसे ही पुरे परमधाम में अनंत अखंड प्रतिबिंब दिखाई देता है और सुमधुर स्वर युक्त सरगम का संगीत की ध्वनि पुरे परमधाम में बजती है और वो ध्वनि परमधाम के थंभ,दीवाल से टकरा के प्रतिध्वनि उत्पन होती है उसका वर्णन शब्दों में हो नहीं सकता जिस की अनुभूति ही हो सकती है

Sunday 20 March 2016

पिया के इश्क़ में आराम और विश्राम है

आज मेरा दिल बड़ी बैठक के बारे में सखियो के भाव् पढ़ रहा था ।

इश्क़ के उन भाव् को पढ़ते पढ़ते दिल उस इश्क़ में ही खो गया ।

और मेरे अर्श दिल ने अपने ही इश्क़ की गहराई में डूबने की तैयारी करते हुवे ।

मेने अपने आप को जमुना जी के गहरे जल में भीगा हुवा पाया ।

जमुना जी का जल बहता हुवा जोर से आया और जल की उस इश्क़ की तूफानी मस्ती में में बहती चली गयी ।

मछली बन के तैरती हुवी पाल पे आके सज धज के आगे चली ।

इश्क़ के पंख लगाये तितली बन के उड़ने लगी ।


चांदनी चौक , सीढ़ियां , धाम दरवाजा को झुके उड़ती हुवी बढ़ती चली ।

और आके पहली भोम में जमीन पर कदम रखे ।

पहली भोम में सामने देखा तो रसोई घर से मीठी सुगंध खीच रही थी। 
उस महक के पीछे पीछे में खिची जा रही थी। 

आगे जाके देखा तो स्याम स्वेत मंदिर को देख के लगा यह महेक यही से आ रही होगी ।

पर नही ।
यह महेक मुझे श्याम स्वेत मन्दिर के बिच के सीडी वाले मन्दिर से आ रही थी ।

यह सीढियो वाला मन्दिर जो 9 भोम तक जाता है ।

यह महेक इन सीढियो से आ रही थी ।

आगे जाके देखा तो सीढियो पे पिया खड़े थे ।

अब समज आया की महेक बन के पिया अपने पास मुझे खीच रहे थे ।

उनकी नजरो में नजरें मिली की होंठ मुस्कुराने लगे ।

पिया ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और एक पल की भी देरी किये बिना मेने अपना हांथ पिया के हाथ में दे दिया ।

इस समय मेने देखा की मेरे पिया ने आज सिर्फ वस्त्रो का सिंगार किया है।

आभूषण का सिंगार नही था आज ।

आभूषण के सिणगार बिना भी पिया बादसाह शहेनसा लग रहे थे ।

बस पिया के हाथो में हाथ थामे सीढियो से पिया के कदमो पर मेरे कदम रखते हुवे आगे चल रहे थे ।

देखते देखते ही हम 3 भोम  में आ गए ।

3 भोम सागर के समान लग लग रही थी ।
पिया का सामने देखके मुस्कुराना मेरी नजरे झुकना मानो सागर की लहरे पास होके मस्ती में झूम रही हो ऐसा प्रतीत हो रहा था ।

पिया हाथ थामे में मुझे पड़साल में ले गए ।
झरुखा पिया के साथ मुझे देख के खुस हो रहा था ।

पिया ने अपनी नजर से मुझे इसरा करते हुवे चांदनी चौक को दिखाया ।

हमारे इस मिलन को देखने अर्श के सभी पसु पंखी चांदनी चौक में आके खड़े थे ।

मुझे ऐसा लग रहा था की ।

आज पीया के साथ शादी है और यह सभी पशु पंखी बाराती बन के आये है ।

बंदरो के हाथ में सहनाई , ढोल , नगारे 
जेसे अखण्ड मिलन को संगीत से सजाने आये है ।

और मीठी कोयल की कुह... कूह ... 
मेना का आलाप

मयूर का पंख लहराके नाचना पुरे महोल को रोमांचित बना रहा है ।
मेने तोता को देखा तो तोता उड़के हाथो पे बैठ गया ।
और मेरे कान में कुछ कह गया ।

एक और तितली आके गुन गुना गयी ।
मुझे कह गयी सखी आज इश्क़ का मौसम है ।
दुल्हन से  अर्धांग्नी बन ने का पल है ।
आधे से आज पूरा होने का दिन है ।
एक पल समज नही पायी पर दिल को सुनके खुसी मिल रही थी ।

धनी का सामने देख के मुस्कुराना आज रोम रोम में एक नया अहसास भर रहा है ।

चांदनी चौक में पंखी आकाश में उड़ रहे थे पंख लहरा के रामत कर रहे थे नाच रहे थे ।

तो जमीन पर जमीन के पशु बाजिन्त्र बजा रहे थे ।
खेल कर रहे थे ।

इन इश्क़ की लीला में मेने देखा पिया के पैर भी आलाप दे रहे थे ।

मेरा दिल यह देख खुसी से झुमें जा रहा था ।




अब पिया ने हाथ थामे दहलान में ले चले ।

दहलान में चौकी पर बैठे पिया और सामने मुझे बिठाया ।

हम आमने सामने में उनकी आँखों में देख ही रही थी की सारे आभूषण पल भर में सामने आ गए ।

अब आभूषण को देख के समज आया की पीया ने आज आभूषण का सिंगार क्यों नही किया था ।

क्यों की आज मुझे उन्हें अपने हाथो से जो सजाना था ।

दहलान में बैठ के पिया के साथ प्यार की मीठी मीठी बाते करते हुवे खुसनुना हवा के संग जो मेरे बालो को लहराते हुवे जा रही थी । 
मेने पिया का आभूषण का सिंगार किया ।

मांथे पे पाघ
नाम में बेसर
कानो में कुण्डल
गलमें हार
हाथो में मुन्दरिया 
पहोची
बाजुबद से सजाया ।

अंत में मेरे जिव के जीवन मेरे दूल्हा के चरणों का सिगार किया ।

झांझरी
घुघरी
काम्बि
कडली पहनाई और चरणों को चूम के प्रणाम किये ।

पिया अपना सिंगार मेरी आँखों में देख रहे थे ।

पिया ने इसरा करते हुवे मुझे दुल्हन का सिंगार करने को कहा ।


में पिया को दिल में बसाए मन्दिरो में जाके सिंगार करने गयी ।










पीया के हुकम से सारी खूब खुसालिया मुझे तैयार करने आ गयी थी ।

मुझे हर तरह से सजा दिया था ।

एक दुल्हन की तरह फिर भी कुछ अधूरा लग रहा था मेरे सिंगार में मुझे ।

दिल जोरो से  पिया पिया पुकार रहा था ।

में सज धज के मन्दिर से बहार आई ।
पायल की छन छन से पिया ने मेरे आनें की आहत जान ली ।

जितना में उन्हें देखने बेताब थी ।
उतना वो भी बेताब थे ।

मुझे बेताबी थी की पिया मुझे देखे जिनके लिए ये रूप ये सिंगार किया हे जब तक पिया की नजरे ना पड़े ये सिंगार अधूरा है ।

में कदम को तेज करते हुवे आगे चली ।

बड़े चौक की 3 सीढियो के सामने आके में खड़ी हु ।

पिया भी सामने आके खड़े हे ।

आखिर वो पल नजदीक आया जहां पूर्ण होने का पल था ।

3 सीढियो पे में एक सीढ़ी उपर चढ़ि और पिया एक सीढ़ी निचे उतरे ।
और बिच की सीढ़ी पे मिलन सुहाना बना ।

यह मिलन सब मिलन से अलग है ।

सारे पंखी आके छत पे हमारे गोल गोल घेर के खड़े ही गए ।

तो पशु भी आके आधे धनी के पीछे आधे मेरे पीछे हो गए ।


उतने में एक खूब खुसालि हाथो में थाल लेके आई ।
थाल में सिंदूर , फूलो का हार लेके आई ।

इतने में सारे पशु ने संगीत का सुर सहनाई के राग को छेड़ा ।

और पंखी ओ ने मधुर स्वर छेड़े ।

पीया को मेने फूलो का हार पहनाया ।

तो पीया ने अपने हाथो में सिंदूर मांग में भर के ।

दुल्हन से अर्धाग्नि बना ने का सुख दिया ।

पशु पंखिओ ने फूलो की वर्षा करते हुवे उड़ने लगे ।

अब ना वो वो रहे
ना में में रही ।

अब हम हुवे ।

अद्वैत की भूमि में अद्वैत हुवे ।
सिंदूर से पिया ने मांग सजाई 
हमारे इश्क़ को गहराई दिलादि ।

पवन बसन्ती मन मधुबन से यह संदेश लायी है ।
दो सांसो की , दो रूह की आज मिलन रुत आई है ।
अब बसे तुजे देखा करू
तूजे प्यार करु ।

हर सिंगार यही बोले तुजे प्यार करू 

बस तुजे देखा करू
अब पीया के संग बैठी ।
सामने मेवा मिठाई सज के बेठे थे ।

पर आज तो मेरा नास्ता मेरा खाना पीना सब कुछ बस पिया का दीदार पीया का प्यार है ।

में तो बस उन्हें देखती रही और पिया ने अपने हाथो से आज की शुभ घड़ी पे मिठाई खिला के मुह मीठा करवाया ऐसा लगा ।

अब इश्क़ का एक और अंदाज निरत का आया ।

पीया के संग झूमना यह भी इश्क़ का अंदाज है ।

निरत के इस समय में पीया के दिल ने खुद मधुर संगीत छेड़ा 
और छन छन छनक ने लगी मेरी पायलिया ।
सुध बुध खोके बस पैरो ने छन छन करना सुरु किया।
आखिर पीया ने आके हाथ थामा और खुद भी आज संग संग झूमने लगे ।
आखिर आज में और तुम से हम हुवे हे ।

आके अब सिंहासन पर बेठे ।
मेरे दिल ने किया पिया इस खुसी को बढ़ाते हुवे चलिए सैर करने ।


उतने में घोड़े आ गए ।
हम घोड़े पे सवार होके बनो में घूमने चले ।

बनो में पशू पंखी आके मस्ती करने लगे ।

मेने पिया के लिए फूलो का हार बनाया अपने हाथो से और पीया ने अपने हाथ से आज पान बिडा बनाया मेरे लिए ।

☺☺☺☺







बनो से फल फूल पान बीड़ा मेवा लिए ।
और फिर ....
में झूले पे बेठी ।

और पिया मुझे झूला रहे है ।


 अब घूम के हम बड़ी बैठक में वापिस आये ।


और आके राज के हाथ से आज भोजन लेने के लिए राज भोग ले आये में ।



 पीया के हाथ से जो भोग आरोगू वही राज के हाथ में आते है राजभोग बन गया ।

पीया ने अपने हाथो से मुझे अरोगाया और मेने पीया को ।

सुहाना यह पल बस यही थम जाए ।
हम सामने एक दूजे पे युही इश्क़ बरसाए ।

राज भोग के बाद पिया मंदिर में ले आये मुझे ।
और यहां सब से सुंदर सुख मीला ।

पुहले पीया ने पान बीड़ी को अपने मुख में लेके आधा खाया ।
और आधा जब मुझे अपने हाथ से खिलाया ।
इस सुख का क्या कहना ।
जो सुख इस पल में था ।
वह बस यही थम जाए ।
पीया के इश्क़ में छुइ मुई से बन के सरमाना ।
उनका पास आके मुस्कुराना ।
छुइ मुई सी बन बेठी बाहो ने ऐसा घेरा। 
अब समय हुवा पिया आराम का ।।

पिया के इश्क़ में आराम और विश्राम है ।

बस यही रूह का घर है ।

Thursday 17 March 2016

✍🏻 चर्चनी ✍🏻 त्रिजी भोम ।

✍🏻  चर्चनी  ✍🏻

त्रिजी भोम ।


हमारा रंग महोल 201 हांस का है ।
पूर्व दिशा जहा से हम अंदर जाए वहा 10 मंदिर का एक हांस होने से वहा हांस की सोभा की जगह धाम दरवाजा बना हुवा है ।

धाम दरवाजा 2 भोम का ऊँचा यानी भुलभुलवनि की 2 भोम तक आया है ।

इस से 3 भोम में 10 मन्दिर के हांस की जगह में एक खुला बहार की और निकला हुवा छज्जा आया है इसे 
झरोखा या
पड़साल कहते है।
यह 10 मंदिर का लंबा और 2 मंदिर का चौड़ा है ।

पड़साल की तिन तरफ यानी दक्षिन , पूर्व , और उत्तर की और कठेडा बना हुवा है जिस को पकड़ कर हम खड़े रह सकते है ।
जहां से हम पूर्व की और मुख करके खड़े होके पूर्व की और आयी सोभा को देख सकते है ।

जेसे की चांदनी चौक 
7 घाट
7 बन
जमुना जी 
Etc....

यह पदसाल हमारे धाम दरवाजे से बहार की और है ।

यह 3 भोम का 1 भाग हुवा पदसाल ।


अब धाम दरवाजे बिलकुल ऊपर तीसरी भोम में 4 मन्दिर की लंबी और 1 मंदिर की चौड़ी दहेलान आई है ।
इस दहलान में 4-4 सखिया राज जी महाराज को सिंगार कराती है ।

दहलान का लग के दक्षिण और उत्तर दिशा में मंदिर आये हुवे है । जिस में दक्षिण दिशा दहलान को लग के आये हुवे 3 मन्दिर ख़ास है ।

जिस में दहलान को लग के आया पहला मन्दिर नीला रंग का आया है ।

3 तीसरा मन्दिर पिला रंग का आया है ।

1 ओर 3 मन्दिर के बिच का मन्दिर यानि 2 दूसरा मन्दिर नीला पिला रंग का आया है ।

क्यों की पहले मन्दिर का नीला रंग 2 मन्दिर में गिर रहा है और 3 मन्दिर का पिला रंग भी आधा 2 मन्दिर में गिरने से इन दोनों रंगो से आधा आधा सज के निले-पिले रंग का मन्दिर सजा हुवा है ।



यह दहेलान तीसरी भोम का 2 भाग हुवा ।

इसी दहलान को लग के आगे पश्चिम दिशा की और 4 मंदिर का लंबा और 1 मन्दिर का चौड़ा चबूतरा आया हुवा है ।

यह चबूतरा ground floor में धाम दरवाजे के अंदर की और पहली गली आई है उस के ऊपर यह चबूतरा बना हुवा है 3 भोम मे ।

यह तीसरी भोम का 3 भाग शोभा है ।

चबूतरे से लग आगे पश्चिम दिशा की और 28 थंभ का चौक आया हुवा है ।

चबूतरे से 28 थंभ के चौक में जाने के लिए 3 सीढिया आई हुवी है ।

इन सीढियो का सुख अर्श की हर एक सीढ़ी से ज्यादा मुझे मिलता है ।

28 थंभ के चौक के दक्षिण दिशा में आये हुवे मन्दिरो की दूजी हार में आसमानी रंग का मन्दिर आया हुवा है जिस में 4-4 सखिया श्यामाजी को सिंगार सजाती है ।


28 थंभ का चौक तीसरी भोम का 4 भाग है ।

इस तरह से हमारी बड़ी बैठक की शोभा आई है ।

जिस में 3 भाग ख़ास है ।

1.. पड़साल
2.. दहलान 
3.. चौक 


दहलान दस मन्दिर का, झरोखे दस सामिल ।
माहे चौक दस मन्दिर का,
हुए तीनो मिल कामिल ।।


तीसरा हिस्सा एक हांस का,
ए जो दस झरोखे ।
द्वार स्तंभ आगूं इन,
ना दीवाल बिच इनके ।।




धाम धनी संग तीजी भोंम चले

खडोकली में झीलने के बाद धाम धनी अब मुझे बडी बैठक की और ले चले,जहाँ से इस खेल का आगाझ हूआ था..जहाँ हाक हम सबको अपने नैनो से सींचते थे और हम ऊसी नैनो में डूब जाते थे..खडोकली से भूलवनी के मंदिरों से होते हूए हम मंदिरो की सीढियों से ऊपर की भोम की और चले.. आगे धनी और पीछे मेरे सहित पूरा धाम ..जैसे जैसे सीढियाँ चढ रहे थे वैसे वैसे सीढियाँ और खिल रही थी..और हमारे प्रतिबिंब चारो और झलकार कर रहे थे..सीढियाँ भी ऐसे अनेको रंग और नंगो से सजी थी कि मानो अपने माशूक के लिए अभी अभी सज के निकली हो..धाम धनी की यह लटकती चाल तो मानो पूरे परमधाम के दिल में मचल रही है..और मेरे तो नैन ही आज इस चाल में ऊलझ गए थे..एक ही पल में हम तीसरी भोम की भीतरी तरफ पहूँच गए..धनी यहां भी वैसे ही पहेले की तरह मेरा हाथ थामा और मूझे नजीक खींच कर अपना हाथ मेरे नाजूक कंधो पर रखा..और मूझे अपने संग ले वे आगे बढे...हवेलियों को पार करके हम पूवॅ की और आगे बढे और 28 थंभ के चौक में पहूँचे..जहाँ जी भर के आसमानी रंग के मंदिर के धाम धनी ने दिदार करवाये..जहाँ से पूवॅ की और देखा तो कमर भर ऊँचा चबूतरे का नैन दिदार कर रहे थे..यह चबूतरा तीजी भोम की सतह से कमर भर ऊपर आया हूआ था और वहा जाने के लिए तीन सीढियाँ भी आई हूई थी....मैं आसमानी रंग के ऊस सिनगार के मंदिर को निहार ही रही थी कि मेरे कंधे पे मीठी सी सरवराहट हूई,मैंने देखा तो धनी का हाथ वहां नहीं था पर मनोहर मीठे रसीले दो पंखी कंधे पे फैली हूई खूशबू में खोए जा रहे थे,यह दृश्य दिल ईओ ईस तरह छू गया कि मूझे यह आभास ही नहीं हूआ कि धनी हाथ मेरे कंधे पे नहीं है..ऊन मीठे पक्षीओ की मग्नता से जब मैं बहार नीकली तो पाया कि धनी मेरे संग नहीं है और ऊसी पल मेरे कानो से ऊनकी मधूर आवाज टकराई,ना जाने वे मूझे आवाज दे रहे थे..मैं भी पगली..! जैसे ही नजर धनी की और गई उन्हें देखते ही मेरा नया सिनगार वहीं खडे खडे हो गया,मेरे ईस नए सिनगार को देखने की मूढे सुध ही नहीं रही क्योंकि वे भी नए सिनगार में ऐसे सजे थे कि क्या कहूँ...नजर हटे तभी तो कूछ बरनन करू ना?.. ऊसी पल फिरसे मीठी रस धोलती आवाज मेरे कानो से होकर दिल में समा गई,वे मूझे पूकार रहे थे आवाज दे रहे थे..वे वही खडे थे जहाँ मैं उन्हें सिनगार करवाती थी..मेरे पैर अब अपने आप ही उनकी तरफ बढ रहे थे,जैसे जैसे मैं बढ रही थी वैसे वैसे वे भी मेरी और आगे बढ रहे थे...हम दोनो आगे बढ रहे थे,कुछ ही पल मे चबूतरे से लगती बीच की सिढी में हमारा मिलन हो गया..ऊन्होने जैसे ही मेरी मांग की और दृष्टि की अपने आप ही मेरी मांग भर गई..मूझे ऐसा लगा जैसे ऊसी पल पूरे परमधाम की मांग भर गई हो... अपनी बाहो मे लेते हूए वे मूझे चबूतरे पर ले चले..4 मंदिर का लंबा और 1 मंदिर का चौढा यह चबूतरा आया हूआ था,जिस पर नूरी जगमगाती अनेको रंग को अपने दिल मे समेटी हूई गिलम बिछी हूई थी..चबूतरे के तीनो और उत्तर,दक्षिण और पश्चिम में तीन तीन नूरी सीढियाँ ऊतरी हूई थी जिसकी शोभा देखते ही दिल बैठ जाता था..धनी मूझे संग ले अब आगे बढे और दहेलान में आकर रूके..और मूझे दहेलान की हर एक शोभा दिखाई..यह तीन-तीन महेराबे,नूरी थंभ और दहेलान के दाये-बाये आए हूए यह नूरी मंदिर..मैं इस पूरी शोभा को अपने दिल में मानो बसा रही हूँ..और यह अक्शी महेराबे तो देखिए,ऊसे जितना भी देखे जी ही नहीं भर रहा...सभी मंदिर आपस में जूडे हूए है.सभी मंदिरो में जाने के लिए दरवाजे भीतरी तरफ है और हर एक मंदिर के आते छोटा चबूतरा और तीन तीन सीढियाँ ऊतरी हूई है..धाम धनी मूझे हरे व पीले रंग की महेराब के बीच में आए दूसरे मंदिर की जो दहेलान से दक्षिण की और आया है ऊसमे ले चले....जैसे ही मैं धनी के संग भीतर गई तो मापो पूरा परमधाम ही ईस एक मंदिर मे सज गया और वही सूख शैज्या पर धाम धनी बिराजमान दिखे... ईसी शैज्या के नीचे रखे पान बीडा को मैंने ऊठाया और धनी के होठो से अभी लगाया ही था कि..बीडे की लालिमा ऊनके होठो पर ऐसे सज गई मानो मैंने चूम लिया हो उन्हें...मंदिर की शोभा को देखने के बाद धनी अब ले चले मूझे वही पडसाल में जहाँ से यह रब्द शूरू हूआ था ..ठान ली है कि अब कूछ ना बोलूंगी..हम दोनो 10 मंदिर लंबी और 2 मंदिर चौढी ऊस पडसाल की बीच की बडी महेराब पर खडे थे..धनि की पाघ से मस्ती कर रहे ऊस माणेक के फूल को तो कभी धपी की पाघ को मैं एक ही टस देख रही थी..धनी ने नजर मेरी और की,हमारी नजरे मिलते ही हम दोनो के होठो पे एक मदमस्त हसी छा गई..धनी धीरे से मेरे नूरी मूख को फेरा और कहा 'देख ये तेरा विश्राम है,यहा की रानी है तूं' और मैं दिदार करने आए पूरे धाम की शोभा को बस देखती रही..देखती रही...बस देखती ही रही....

Monday 14 March 2016

पशु पक्षियों का मुजरा लेवे, सुख नजरों सबो को देवे। पीछे बैठे करे सिनगार, सखियाँ करावे मनुहार।।

 TEESRI BHOM KA NOOR JO,NOOR IN MOOKH KAHYA N JAYE
BADI BEITHAK NOOR IN BHOME,IT NOOR AAP DIDARE AAYD


JESE HI DHANI TEESRE BHOM KI PADSAAL PAR AAYE
PURA CHANDNI CHOUK HRIYDAY GRAHI SANGEET....V
PHULO KI PANKHUDIYO KI BOCHAR SE....UNKI BHINI..BHINI MADUR SUGANDH SE BHAR GAYA.....AAKASH BHI KHUSH HOKAR BAADLO KE SAATH ALAG SA INDRADHANUSHI NOOR LEKAR ATHKHELIYA KARTA HUA NOOR KI JYOTIPUNJ LEKAR UPSTHIT HO GAYA....ALAG SA SHAMA ......JAHA APAAR JYOTI KI KIRNE PARASPAR SANGHARSH KARTI SI PRATIT HO RAHI H....PARAM SHAKTI KE SAATH PARAM JYOTI KI ADBHUT PARIKARMA HO RAHI H.....ESSA PRATIT HO RAHA H MANO VAHI NOOR BAHAR H VAHI NOOR ROOHO KE  DIL ANDAR BHI H.....NOOR NAACH RAHA ,NOOR GA RAHA H,NOOR ABHINANDAN KAR RAHA H O
SRAVATRA  NOOR KA HI JALVA H.....

MUKH NOOR CHOUK BHAR PURAN,NOOR DAS MANDIR PADSAAL
IN BHOM NOOR RUHE DEKHHI,TO NOOR BADLE NOOR HAAL

MERI ROOH NE BHI DHANI CHARNO ME PRANAM KIYA...UNKI NAJAR JESE HI MERI NAJRO SE MILI...NENO NE ISQ KI BHASHA BOLKAR ISQ SE ISQ KO ISQ ME RANG DIYA VATAVARAN HI UTSAHIT HOKAR DIL KE BHAV ANUSAR JHUMNE LAGA......
LAGA DHANI NE MERE DIL KI SABHI ADHURI IKCHAO KO PURN KAR DIYA H........
KYOKI HAM AASHIK ROOHE HI TO DHANI KE GUJH KO SAMGH SAKTI H....VASTRA SINGAR BHI AAJ DHANI NE MERE IKCHANUSAR HI DHAARAN KIYE HEIN.....MENE BHI UNKE DIL ME APNE DIL KA DARSHAN KIYA.....AAJ TO DHANI NE JAMKAR ISQ KI LAJJAT DENE ME KOI KAMI N KI KYOKI ISQ KI LAJJAT ISQ KE SWAROOP HI PA SAKTE H JO AAJ DHANI NE APNI ANGNA JAAN MUJH PAR NYOCHAWAR KI H........

TEEJI BHOM KI JO PADSAAL, THOUR BADE DARVAJE VISHAL
DHANI AAWAT H UTHI PRAT ,VAN SEENCHAT AMRIT AGAADH

PRATHKAL DHANI 6 BAJE SHYAMAJI OUR SAKHIYO KE SAATH.......RANGPARVALI MANDIR SE TEEJI BHOM KI PADSAAL ME SIHASHAN PAR VIRAJMAAN HOTE H......TAB SAAMNE CHANDNI CHOK ME...............................
AAYE DARVAJE AAGE KHADE,KHILOUNE ATI GHAN
SHYAMSHYAMA JI SAATH KO,PASHU PAKHI LEVE DARSHAN

ISKE PASCHAT CHAR SAKHIYA SHRI RAJJI KO DEHLAAN ME AABHUSHAN SHRINGAAR KARTI H.............CHAR SAKHIYA SHRI SHYAMA MAHARANI KO AASMANI RANG KE MANDIR ME BADE PREM SE SHRINGAR KARATI H......TATPSCHAT SAB SAKHIYA.........
6---6HAJAR MANDIRO KI DONO HARO ME JAKAR AEK DUSRE KA SHRINGAR KARTI H.......JUTTH KE JUTTH SAKHIYA ...JAB SAKHIYA SAJKAR AATI H DHANI UNHE DEKHKAR PHULE NAHI SAMATE.....UNKA LAAD UNKI VYAKULTA SAKHIYO KO SAB SAMAJH AA RAHI H......SAB SAKHIYA SHRI SHYAMA MAHARANI KO AASMANI RANG KE MANDIR SE LEKAR 28 THAMBH KE CHOUK ME PAHUCHTI H.....SHYAMAJI KE IRDGIRD SAKHIYO KA SAMUH ESSA DIKHAI DE RAHA H MANO SURYA NE APNI KIRNO KO CHARO OUR BIKHERKAR USME OUR.....OUR LALIMA BHAR DI HO............................................
                                CHOUK SE CHALKAR SHYAMA MAHARANICHABUTRE KI SEEDHI TAK AATI H VAHI SHRIRAJJI MAHARAJ SHRI SHYAMAJI KI DIL KI 42IKCHCHA JANKAR AGUVANI KARNE KE LIYE SEEDHI KE PASS AATE H....RAJJI AEK SEEDHI UTRATE Here.....SHYAMAJI AEK SEEDHI CHADHTI H.....MADHY KI SEEDHI ME SHRI RAJJI KA SHRI SHYAMAJI SE MADHUR MILAN HOTA H...........
ARSH MILAVA LE CHALI, APNE SANG SUBHAN
KIYA CHAHYA SAB DIL KA,AANGU AAYE LIYE MEHARBAAN
ISKE PASCHAT  MEVA MITHAI AAROGNE KI LEELA
7.30 BAJE AKCHAR BHAGVAN KI DARSH LEELA,KUCH SAKHIYO KA YUGAL PIYA KE PASS BEITHNA, KUCH SAKHIYO KA VANO SE SAAK TARKARI LANE KI LEELA
KUCH KA RASOI KE MANDIRO ME SE PADSAAL TAK AANE JANE KA KRAM BANA RAHTA H.....ISI SAMAY NAVRANGBAI OUR UNKA JUTTH DHANI KO RIJHANE KE LIYE MADHUR RAG RAGNIYA V NRITYA PESH KARTA H....CHAR GHADI ISI ME VYATIT HO JATE H....9 BAJTE HI VANO SE SAB SAKHIYA VAPIS AA JATI H...11..15 PAR lAADBAI DHANI SE BHOJAN KI AAGYA MANGTI H...BADE MANUHAR SE BHOJAN LEELA  PASCHAT SAKHIYO KA PRATHAM BHOM ME BHOJAN AAROGNE KI LEELA HOTI H....


DHANI TO ANGNA KE BHAVO KA RASPAAN HI KARTE H.MERI ROOH NE AAJ TEESRI BHOM KI PADSAAL ME APNE BHAV OUR SHARDHA KE ANUSAAR SINGAR KARVAKAR.......SWAYM OUR SAMAST SAKHIYO KA VAHEDATT KE ANUSAR SHRINGAR KIYA...BHOJAN LEELA KI.....PASCHAT SUKHPALO OUR TAKTARVA ME DHANI KE SAATH PURE PARAMDHAM  KI PARIKRMA KAR APNE DIL KI SEJYA PAR    KHILVATKHANA OUR RANGMAHAL BANAYA....SAMAST RASO OUR DIL KE BHAVO KA BHOG LAGA KAR DIL ME RANGPARVALI MANDIR ME SHYAN LEELA KAR HAMESHA KE LIYE AARAM OUR VISHRAM KARNE KE LIYE VIRAJMAAN KAR LIYA....IS PRAKAR PARAM SUHAGIN BANKAR DHANI KI LEELA ME KHOI RAHEGI..USKE SUNDAR MUKH KI LALIMA KO DEKH.....DEKHKAR SAKHIYA BHI PREM ME BHEEGKAR PARAM SUKH KA AANAND MAHSOOS KAREGI....DHANI KE DIL RUPI PARAMDHAM ME VICHRAN KARTI RAHEGI.................................

Sunday 13 March 2016

चलो आज हम तीजी भोंम की सैर करते है...!

मारा व्हाला आतमसंबंधी सखीदिल सुन्दरसाथ जी...

धामधनीजी का हुकम आज हो गया है तो... चलो आज हम तीजी भोंम की सैर करते है...!

लो... अभी तो हम बात कर ही रहे थे की मेंरी सूरता धामधनीजी का हुकम... मेहेर प्राप्त करके हद बेहद ब्रह्मांड के पार अखंड परमधाम में आ पोहोंची...!

अरे... यह तो अखंड परमधाम के मध्य स्थित रंगमहल की तीसरी भोंम में आया हुआ 28 थम्भ का चौक हैं । वाह धनी वाह... ऐसा लगता है की... रंगमहल का नूर चहूँऔर झलकारो झलकार करता दिखाई दे रहा हैं । आहा हां... इन अद्वैत नूर मे शीतलता, कोमलता, सुगंध, तेज, दिव्यता, चेतनता के साथ साथ हे मेरे धाम दूल्हा... हम सब सखियो को देने के लिए आप का जो कुछ है वो सब कुछ लाड़ प्यार... इश्क... मतलब सब की सब जोगवाई सामिल हैं...!

हे सखी... मनोरम्य शोभा से युक्त 28 थम्भो का चौक... चारों दिशा में आमनेे सामने थम्भो की अनोखी जुगति... मानो देखते ही बन गयी है...!

10 थम्भ पश्चिम दिशा में है तो 10 थम्भ पूर्व में दिशा में भी शोभित हैं । उत्तर दिशा में 4 थम्भ है तो दक्षिण दिशा में भी 4 थम्भ सुसज्जित दिखाई देता हैं । इन 28 थम्भोके ऊपर छत पर चंद्रवा अनोखी जुक्ति बनाये दिख रहा हैं... नीचे पशमी गिलम मानो हमारे लिए ही बिछी हुई हैं ।

हे सखी... नीचे गिलम का नूर... ऊपर नूरी चंद्रवा की झलकार... और साथ में घेरकर आए हुए 28 थम्भो से दमदम बारिश की तरह बरसता अविरत मखमली नूर ने... आज मुझे भीगो दिया है... तृप्त और परिपूर्ण कर दिया है...! समझो तो... नूरानी इश्क की दमदम बरसती बारिश में मैं लथबथ होती हुई... सराबोर भीगी भीगी सी हूँ...!

28 थम्भ के चौक में बीचोबीच खड़ी खड़ी मैं सोचती हूँ की इतना सारा लबालब इश्कवाला मखमली नूर कहा से आ रहा हे...? दक्षिण दिशा की तरफ देखा तो...

हं..अ..अ..अ...! अब मुझे समझ में आया की इतनी सारी दिल भीतर से भीगोती हुई नूरानी इश्क की बारिश का कारण क्या है...? अरे... यह आसमानी रंग का मंदिर ही तो है...!!!

हो मेरी सखी...!! यही आसमानी मंदिर... हमारे सुभान श्री श्यामाजी महाराणी के सिनगार का मंदिर है... जो मुझे अपनी और खींच रहा है...!

मंदिर की दीवारे भी कितनी अदभूत चित्रामन से सजी हुई हैं...! नक्काशी में आएँ चित्र भी अदभूत चेतन प्रतीत हो रहे हैं...! अरे सखी यह क्या..? हमारी मनुहारी श्री श्यामा जी सखियो के साथ मिलकर सिनंगार सज़ रही हैं...! मेरे दिल में भाव उमड़ रहा है... चल मैं भी श्यामाजी को सिनगार अपने हाथो से करती हूँ...!

अरे ओ मेरे धनीजी की लाडली सखी... तू श्यामाजी के माथे पर लाल बिंदी बराबर लगा तो सही...! और हा... श्यामाजी के हाथो में अच्छी तरह से... धीरे से कंगन पहनाना...!

हो मेरे सुभान... श्यामाजी...! आप अपने दोनों कोमल श्री चरणों को बड़े ही प्यार से मेरी गोद में रख दीजिये...!! हां.. आ..आ.. अब बराबर है...! अब मैं यह झांझरी, घूंघरी, काम्बी, कड़ला... विशेष करके अनवट, बिछुआ... अपने हाथो से आप को पहनाती हूँ...!

हां मेरे प्रिय श्यामाजी... आप के श्री चरणों को स्पर्श कर के मैं कुछ अलग ही अपने आप को महसूस कर रही हूँ...! आप के श्री चरण मेरा जीवन है... उसे मैं कभी भी छोड़नेवाली नहीं हूँ...!

मेरे सुभान श्यामाजी... अब मैं आप को... श्याम रंग की कंचुकी... नीली लाही को चरणीया... सिन्दुरिया रंग जडाव की साडी अपने हाथों से पहनाती हूँ...! अरे... यह सब मैं आप को पहनानेवाली कौन होती हूँ.....??? यह तो मेरी सेवा का भाव रखने के लिए आप श्यामाजी... मेरे हाथो तैयार हो रहे है... बाकी आप खुद ही समर्थ है की एक पल के करोडवे हिस्से में करोडो - करोडो बार सिनगार अपने आप बदल शकते हो...! 

हे सखी... आसमानी मंदिर से आगे सीधेसीधा 28 थम्भ के चौक की पूर्व तरफ लगोलग तीन सीढ़ी ऊंचा... 4 मंदिर लंबा और 1 मंदिर चौड़ा चबूतरा है...! यह चबूतरा... 28 थम्भ का चौक और दो भोम ऊँचे धाम दरवाजे के मंदिर के बराबर ऊपर बनी देहलान के बीच में... मतलब रंगमहल के फिरावे की प्रथम गली में आया है...!

हे सखी... इसी चबूतरा को लगलग आगे पूर्व तरफ 4 मंदिर की लंबी 1 मंदिर की चौड़ी देहलान है... यह देहलान दो भोम ऊंचा धाम दरवाजा के मंदिर की छत के बराबर ऊपर आई है...! और देहलान के लगोलग पूर्व तरफ आगे 10 मंदिर लंबी 2 मंदिर की चौड़ी पड़साल आयी है...!

हे सखी... दूसरी तरह से इस पड़साल के लिए तुम्हे कहू तो... प्रथम भोम में धाम चबूतरा पर... धाम दरवाजा के सन्मुुख बाहर... 2 मंदिर का लंबा - चौड़ा चौक और चौक के दाएँ - बाएँ दोनों तरफ 4 मंदिर के लंबे और 2 मंदिर के चौड़े चबूतरे आये है और यही चबूतरे के बराबर ऊपर दूसरी भोंम के दो झरोखे हैं...! यही दूसरी भोम के दोनों झरोखे एवम प्रथम भोम में धाम दरवाजे की सन्मुख आये 2 मंदिर का लंबा चौड़ा चौक के बराबर उपर तीसरी भोंम मे छत आयी हैं और यही छत तीजी भोंम की पड़साल कहलाती हैं...!

हे सखी... तीसरी भोम में 28 थम्भ के चौक के पूर्व में आयी हुई 2 मंदिर की चौड़ी मध्य की मेहेराब के बराबर नीचे... तीन नूरी सीढिया चबूतरे से उतरती आयी है... उन सीढ़ियो पर बिछी पशमी गिलम और सीढ़ियों के दोनों किनारो पर महकता हुआ कठेडा आज कुछ ज्यादा ही नूर बिखेर रहा है...!

हे सखी... यही 28 थम्भ के चौक की मध्य की मेहेराब के सामने पूर्व तरफ आयी हुई 2 मंदिर लंबी 1 मंदिर चौड़ी देहलांन में हम पियाजी का सिनगार करते है...!

हे सखी... तीजी भोंम की पड़साल की पूर्व दिशा में किनार पर आये हुए 10 थम्भ प्रथम भोंम के जैसे ही ऊपर चले आ रहे हैं । यहाँ पर मध्य में 2 मंदिर की दूरी पर हीरा के दो थम्भ आएँ हैं... उन थम्भ पर 2 मंदिर की मेहेराब हीरा की बनी हैं... और मेहेराब में बीचोबीच कमल का एक फूल झूल रहा है...!

हे सखी... इसी मेहेराबो के नीचे खड़े होकर श्री राजश्यामाजी युगल स्वरूप और हम सब सखिया पशु पक्षीयो का मुजरा देखते है और अपनी नजरो से पूरे परमधाम को अमीरस सींचते है..!

हीरा से बने दोनों मेहेराबी थम्भो के दोनों और क्रमशः माणिक, पुखराज, पाच और नीलवी के थम्भ आये हैं...! उन सभी थम्भो पर दो दो रंग की एक मंदिर की मेहेराब बनी हैं...! इन मेहेराबो के नीचे... कठेड़े को पकड़ कर खड़े होकर देखा तो... सामने दूर दूर तक शोभा ले रहा चाँदनी चौक... लाल हरे रंग के वृक्षों का नूर... सात वन... सात घाट... पाटघाट... अक्षरधाम... सबो का नूर... मानो आसमान तक उनकी जोत आपस मे झिलमिल करती हुई... पूरे परमधाम को रोशन करती हुई दिखती हैं...!

हे सखी... श्री राजश्यामाजी के संग हम सब सखिया 25 पक्ष की सैर को निकलते है तब यही पर पड़साल के कठेडेे से लगकर मनचाही वेगवाले सुखपाल और तख्तरवा खड़े होते है...!

हे सखी... 10 मंदिर की यह तीजी भोंम की पड़साल... 4 मंदिर की देहेलान... 4 मंदिर का चबूतरा... यह सब तीसरी भोंम की ज़मीन से तीन सीढ़ी ऊँचाई पर हैं...! 10 मंदिर की पड़साल में अंदर बाईं और से प्रथम मंदिर नीला रंग का... दूसरा मंदिर नीला ना पीला रंग का... तीसरा मंदिर पीला रंग का है...!

हे सखी... यही पर दूसरे नीले न पीले रंग के मंदिर में... हमारे प्यारे युगल स्वरूप दोपहर भोजन करंने के बाद हमें पान बीड़ा देते है और विश्राम करते है...!

हे सखी... यह क्या... कोई अजब सी कशिश मुझे अपनी और देहलान की और खिंचती प्रतीत होती है...! मेरे कदम अपने आप देहलान की तरफ मूड़े और देखती हूँ तो... हमारे प्रियतम श्री राजजी महाराज पड़साल में सिनगार करने बैठे है...! दूसरी सखियो की तरह... मेरे दिल में भी उमंगें... तरंगे उमडने लगी... मैं भी पियाजी को सिनगार अपने हाथो से करती हूँ...! 

हो मेरे व्हालाजी... श्वेत रंग जडाव को जामा... केसरी इजार... नीलो न पीलो बिच के रंग को पटूका... आसमानी रंग की पीछोरी... झंझरी... घूघरी... कांबी... कडला... यह सब मैं आप को अपने हाथो से पहनाती हूँ...! हे मेरे धनी... आप के स्पर्श मात्र से ही मेरे अंग-अंग रोम-रोम में आप का इश्क दौड़ने लग गया है...!

हे सखी... देख ... पियाजी अपने हाथो से कपोल पर लंबा तिलक बनाकर माथे पर सिन्दुरिया रंग की पाघ पहन रहे है...!

अरे वाह मेरे पिया...! आप पाघ भी अजब तरीके से पहनते हो... पेच से पेच... फूल से फूल बिलकुल मिल गये है...! हमारे पियाजी... हमारे दूल्हा के कारण... देहेलान की शोभा देखते ही बन गयी है...! ऐसा प्रतीत होता है की... तीजी भोम का नूर... नहीं नहीं पड़साल का नूर... नहीं नहीं पूरे परमधाम का नूर... हे सखी... अपने आप चहुँओर देखते देखते ही बढ गया है...! मानो मेरा दिल भी भीतर से अत्यंत सुखदायी... इश्क से लबालब पुलकित हो गया है... सराबोर हो गया है...!

हो मेरे दूल्हा... आसमानी मंदिर की तरफ आप ज़रा नजर करके देखो...! स्वयम् श्यामाजी सखियो को साथ लेकर सामने से हमारी और आ रही है...! चलो हम भी सामने जाकर उन का स्वागत करते है...!

हे सखी... यह क्या...? जूगलजोड़ी का मिलन तो 28 थम्भ के चौक में उतरती तीन सीढियो पर बीच में ही हो गया...! हमारे सुभान श्यामाजी ने अपने हाथो से हमारे दूल्हा के गले में पुष्प का हार... नही नहीं... वरमाला पहना दी...! हमारे धाम दूल्हा भी थोड़े रुकनेवाले थे... उन्होंने भी अपनी दुल्हन श्यामाजी को फूलो का हार पहनाई ही दिया...! मुझे ऐसा लगा की पियाजी ने सीधा मेरे गले में वरमाला दाल दी है...!

हे सखी... देख...देख... अब हमारे धामदूल्हा... हमारे सुभान श्यामाजी की मांग में सिन्दूर भर रहे है... नहीं नहीं... मुझे तो ऐसा लगता है की पियाजी... मेरी मांग में सिंदूर भर रहे है...! अरे यह क्या... सचमुच... मेरे गले में वरमाला के साथ साथ मेरी मांग भी भर गई है...! हे सखी... मेरी तो क्या तुम्हारी और सब सखियो के गले में वरमाला के साथ साथ मांग में सिन्दूर भर गया है...! मानो समय एकदम थम सा गया है... !

सप्रेम प्रणामजी...

Thursday 10 March 2016

28 थम्भ के चौक से चल कर तीजी भोम की अलौकिक शोभा

मेरी रूह चल आज तुझे मैं तीजी भोंम की सैर कराओं --श्रीराज जी के हुकम से रूह की सुरता हद बेहद के ब्रह्मांड के पार परमधाम पहुँचती हैं | परमधाम के मध्य स्थित रंगमहल की तीसरी भोंम में रूह खुद को 28 थम्भ के चौक में महसूस करती हैं | 

रूह का मुख धाम दरवाजे की और हैं अर्थात रूह पूर्व दिशा की और मुख किए खड़ी हैं | रंगमहल का नूर चारों और झलकार कर रहा हैं | इन नूर मे शीतलता ,नरमाई ,सुगंधी ,तेज ,प्रकाश ,चेतनता और श्री राज जी का लाड़ उनकी प्रीत सभी समाहित हैं | 

सर्वप्रथम रूह की नज़र जाती हैं 28 थम्भ के चौक की मनोहारी शोभा पर -- मनोरम शोभा से युक्त चौक --चारों दिशा में थम्भो की अनोखी जुगत --दस थम्भ पश्चिम दिशा और दस थम्भ पूर्व में शोभित हैं और उत्तर दक्षिण 4-4 थम्भ सुसज्जित हैं |इन 28 थम्भो को भराए कर छत पर चंद्रवा की शोभा आईं हैं और नीचे पशमी गिलम बिछी हैं |
 नीचे गिलम की जोत और ऊपर नूरी चंद्रवा की झलकार और घेर कर आए थम्भो से बरसता नूर ---नूर की बारिश में भीगी मेरी रूह की नज़र दाईं और गयी तो देखा --दूसरी हार मंदिर का आसमानी रंग का मंदिर --ओह! यह तो सिनंगार का मंदिर हैं --मेरे सुभान श्री श्यामा जी के सिंगार का मंदिर --देख तो मेरी रूह --मंदिर की दीवारे भी अद्भुत चित्रामन  से सजी हैं |--नकाशी में आएँ चित्र ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो सखियाँ बड़े ही मनुहार से श्री श्यामा जी सिनंगार सज़ा रही हैं | उनके माथे पर लाल बिंदी सज़ा रही हैं तो कोई सखी उन्हें कंगन पहना रही है तो कोई सखी उनके चरणों को बड़े ही प्यार से अपनी गोद में कर झांझरी ,घूंघरी ,काम्बी ,कड़ला को अपने हाथों से स्पर्श कर महसूस कर रही हैं --ये तो सखियाँ सेवा की चाह रखती हैं नहीं एक पल के करोडवे  हिस्से  में मेरी श्री श्यामा महारानी नये नये सिंगार सजती हैं अपनी आशिक रूहों के लिए

 28 थम्भ के चौक की शोभा निहारते मेरी रूह अब आगे बढ़ रही हैं --जैसे ही मैं 28 थम्भ के चौक की पूर्व किनार पर पहुँची तो एक प्यारी सी शोभा नज़र आई --28 थम्भ के चौक की मध्य की महेराब जो धाम दरवाजे के ठीक सामने 2 मंदिर की चौड़ी आई हैं --वहाँ तीन नूरी सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं

 सुंदर सीढ़ियाँ --दो मंदिर की जगह में उतरती सीढ़ियाँ और उन पर बिछा पशमी गिलम और दोनों किनारों पर नूरी महकता हुआ कठेड़ा--मैं अब सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ --अत्यंत ही नरमाई  लिए गिलम --सीढ़ी चढ़ कर जब ऊपर पहुँची तो देखा की मैं चार मंदिर के लंबे और एक मंदिर के चौड़े चबूतरा पर हूँ | यह चबूतरा 28 थम्भ के चौक और धाम द्वार के मध्य आई एक मंदिर की गली में आया हैं | 

मेरी रूह बार बार देखती  हैं उत्तर से दक्षिण चार मंदिर के लंबे और पूर्व से पश्चिम एक मंदिर चौड़े तीन सीढ़ी ऊँचा चबूतरा की प्यारी सी शोभा 

चबूतरा की पश्चिमी किनार पर चार थम्भ आए हैं ..चार थम्भो में तीन महेराब जिनमें मध्य की दो मंदिर की महेराब से उतरती सीढ़ियों की शोभा मेरी रूह ने देखी | यह थम्भ 28 थम्भ के चौक के ही हैं | चबूतरा के उत्तर दक्षिण दिशा मे देखा --यहाँ दोनों और गली में 25 हाथकी  जगह लेकर सीढ़ी गली में उतरी हैं और शेष जगह कठेड़ा आया हैं ---और चबूतरा की पूर्व दिशा में चार मंदिर की दहेलान की शोभा रूह ने देखी
मेरी रूह चार मंदिर के चबूतरा को शोभा को अपने धाम हृदय में बसा कर आगे बढ़ती हैं और चार मंदिर के चबूतरा को जैसे ही पार करती हैं तो खुद को चार मंदिर की दहेलान में देखती हैं --यह दहेलान धाम दरवाजे के मंदिर के ठीक ऊपर आईं हैं | तीसरी भोंम में द्वार के लिए मंदिर  नहीं आया हैं --यहाँ तो दहेलान की शोभा आईं हैं | दरवाजे के मंदिर के ठीक ऊपर यहाँ चार थम्भ खुले आए हैं और दाएँ बाएँ का एक- एक मंदिर और नहीं आने से चार मंदिर की दहेलान की शोभा बन गयीं हैं | धामद्वार के ऊपर के जगह में दो मंदिर की महेराब आईं हैं और इन महेराब के दोनों और एक एक मंदिर के महेराब आईं हैं |


मेरी रूह इन शोभा को बार बार देखती हैं --चार मंदिर की दहेलान की शोभा की झलकार सुखदायी हैं | एक और शोभा --दहेलान के दाएँ बाएँ आएँ तीन-तीन मंदिर भी कुछ तरह से शोभा ले रहे हैं क़ि ज़रूरत पढ़ने पर दहेलान रूप में परिवारित हो जाते हैं --यही कारण हैं कि दस मंदिर के हांस की यह जगह जो तीन सीढ़ी ऊँची आईं हैं दस मंदिर की दहेलान के नाम से भी जानी जाती हैं |

रूह जब दहेलान की शोभा देख कर आगे बढ़ी तो दो मंदिर के चौड़े --पश्चिम से पूर्व  और दस मंदिर के लंबे उत्तर से दक्षिण छज्जा पर पहुँचती हैं यही तीजी भोंम की पड़साल हैं |

दूसरी तरह से देखे तो धाम द्वार के सम्मुख आएँ दो मंदिर का चौक और चौक के दाएँ बाएँ आएँ चार मंदिर के लंबे और दो मंदिर के चौड़े चबूतरा जिनकी दूसरी भोंम झरोखा कहलाती हैं --इन पर एक छत तीसरी भोंम मे आईं हैं यही तीजी भोंम की पड़साल  हैं |

तीजी भोंम की पड़साल की पूर्व दिशा में दस थम्भ आएँ हैं जो पहली भोंम से चले आ रहे हैं |मध्य में दो मंदिर की दूरी पर हीरा के थम्भ आएँ हैं जिन पर हीरा की दो मंदिर की महेराब आईं हैं और हीरा के थम्भो के दोनों और माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिन पर दो दो रंग की एक मंदिर की महेराब आईं हैं |
इन महेराबो में आकर कठेड़े को पकड़ कर खड़े होइए और सामने दूर दूर तक शोभा ले रहे चाँदनी चौक की झलकार देखिए | लाल हरे वृक्षों का नूर देखे कैसे आसमान तक उनकी जोत जा रही हैं |

सात वन की शोभा --यमुना जी का नूर देखिए


खड़ोकली में जल परी सी बन के तैरना

आज जब में बहार से थक के घर आई ।
और स्नान कर के में लेटी तो मेरे दिल से एक आवाज आई।। 
उस आवाज में मेने जोरो से मस्ती में बहते हुवे मधुर पानी की आवाज सुनी ।
उस पानी से निकलने वाली लहरे मुझे तरंग बना के अपने साथ खीच के ले चली ।

मेने अपने आप को एक ही क्षण में दूसरी भोम में खड़ा पाया ।
में शीसे में अपने आप को देख ही रही थी की मुझे मेंरा प्रतिबिम्ब नही दिखा। 
शिशे में देख खुद को रही थी पर प्रतिबिंब मेरे पिया का दिखाई दे रहा था ।
पीया को देख के में खुश हो के झूम उठी और गोल गोल मस्ती में घूम ने लगी । उसी पल पिया ने अचानक थाम लिया और रोका । 
इतनी देर करदी आने में आज ..?
कब से राह तक रहा हूँ ।
बस इतना सुन के खुसी और बढ़ गयी ।
क्यों की जो पीया का हाल है वही मेरे दिल का हाल है ।
वो आने की राह तक रहे थे और में उनके पास जाने की राह तक रही थी ।
दोनों के हाल के मिलन से जो हाल इश्क़ का छाया एक प्यास मिटने का हाल बना वह तो सब्दातित है ।

बस पीया के गले लग के उनके दिल की आवाज सुन रही थी ।
वही पानी की कल कल बहती मधुर आवज जो मुझे खीच लायी है  ।
वो आवाज धनी की दिल की थी ।
जिसे मेने सुना उसे मुझे महसूस करना है छूना है यह बात दिल में आई है की पिया ने बोला चलो इस बहती पानी की आवाज में हम दोनों जाके डूबते है ।
जिस के इश्क़ में डुबी हु आज उस इश्क़ के साथ डूबने का मजा दिल ले रहा है ।

उस आकर्षण भरी जल की आवाज खीच रही थी किस और खीच रही है वह समज नही आ रहा था पर बस जादू चला के अपने आप मेरे कदम सरकते हुवे चल रहे थे ।

मन्दिरो में से निकल के 3 रास्ते वाली रौंस पे आके में खड़ी हु पीया के साथ ।

पीया मुझसे कह रहे है दिल में तुमने जिस आवाज को सूना वह आज खड़ोकली में जाने का कह रही थी ।





आखिर अब हम हमारे swimming pool पे आके खड़े है ।
 अभी दिल में आये उस से पहले ही पलक झपकने से पहले ही झिलना के वस्त्र अंग पे सज गए। 
पीया पे झिलना के वस्त्र देख के यह समज ही नही पा रही थी की कोन किस को सजा के खड़ा है ।
पीया से वस्त्र सुंदर लग रहे है की 
वस्त्र से पिया चमक रहे है ।
अभी तो आँखों से पीया को देख ही रही हु की देखते देखते कहा ओझल हो गए पता ही नही चला ।
इतने में देखा तो पिया खड़ोकली में दिखाई दिए ।
अपना हाथ आगे करके मुझे बुला रहे है आओ झिलना करे ।
अभी तो में जरा सा झुक के अपना हाथ आगे बढ़ाती की फिर पीया ओझल हो गए ।
और कुछ समज पाती उस से पहले पीछे आके प्रेम का थक्का देके खड़ोकली में छलांग लगवा दी ।
और खुद बी छलांग मार के खड़ोकली में आ गए ।

खड़ोकली का पानी स्वेत रंग का दूध से भी उज्ज्वल भुलवनी के कांच की तरह ही दिख रहा है पानी में पीया और मेरी प्रतिबिंब जिसका बयान नही हो सकता ।


जल का स्वेत रंग पल भर में अनेको रंग में रंग गया ।
इतनी गहराई से सजा जिस में और अंदर तक जाने का दिल कर रहा है ।
उतने में मेरे तन पे एक गुद गुदी सी होने लगी ।
मधुर जल की ध्वनि मन्द मन्द पवन की ठंडी लहर और उस पे गुद गुदी से हँस ने की आवाज ऐसा मधुर संगीत बाज रही थी की इस पल में और प्रेम बिखेर रही थी ।
जब देखा तो यह गुद गुदी एक मस्त मछली आके कर रही थी ।🐬 
मछली को हाथ में लेके मेने सहलाया तो वो खुसी से कूद के पिया के हाथो में चली गयी।
पिया ने अपने हाथो से उस पे जल की बुँदे डाली तो उस ने भी पानी में जोर से कूद के पानी को उछाला और पानी की बुँदे मुज पे और पिया पे आके सिमट गयी ।


उसी क्षण पिया ने जल में खिले कमल को हाथ में लिया और कमल को मेरे नजदीक लाके कमल के पत्तो पे लगे पानी की बूंदों को मूज पे लहराया ।

अब पीया हाथो को थाम के खड़ोकली की गहराई में ले चले ।
जितना सुख जल के ऊपर था उस से ज्यादा सुख आनंद जल की गहराई में मिल रहा है ।
ऐसी गहराई जिसे मापा नही जा सकता ।


इतने में गहराई के जल ने ऐसी छ्लांग लगायी की हम जल के ऊपर आ गए फिर से ।

जल में जल क्रीड़ा का झिलना का आनंद सब से अलग आनंद है ।
पीया मुज पे जल को उछाल रहे हे तो में भी पिया पे जल को फ़ेक रही हु ।
इतनी खुसी इतना आनंद है की इस खुसी का क्या कहना।

खड़ोकली पे ताड के वृक्ष की छाया सुंदरता को और बढ़ाए जा रही है ।
पिया के साथ इस प्रेम के खेल को देख के वृक्ष की डालिया नाच रही है ।

खड़ोकली में जल परी सी बन के तैर ना और पीया का पास आके पकड़ना प्रेम की लीला को देख जल भी फुव्वारे बन के उछले जा रहे है ।

सूखे होने से ज्यादा मस्ती और प्रेम भीग के मिल रहा है ।
पिया पास आके गले लगाते है की वृक्ष की डालिया जल तक आ गयी ।

इन डालियो पे लगे फल के गुच्छो को पीया जब रूह के गालो से लगाते है तब ☺☺☺


और जब एक फल तोड़ के पहले रूह को खिलाते है और फिर खुद खाते है फिर रूह को खिलाते है तो हर बार फल जी मिठास और ज्यादा हो जा रही है ऐसा लगता है ।
ठंडे जल में इश्क़ की गर्मी प्रेम की गहराई की गर्मी 
उस गर्मी को बढ़ाती हवा
 जल की सुगंध 
वृक्ष की छाया 
मस्ती को और बढ़ाने में मदद कर रही है ।

आज लगा खड़ोकली में नही पर पिया के इश्क़ के जल में झिलना किया है ।

और यह जल देखते ही देखते शराब बन गया जो ऐसा नशा छा  गया की बस अब ।
ये नशा कभी ना उतरे ।

बस आगे युही ज्यादा से ज्यादा चढ़ता ही जाए ।
तेरे इश्क़ का नशा है

जिस में बस मझा ही मझा है।