Saturday 27 February 2016

khadokali me jhilan ke sukh

mere me itani umang uthi ki mei ek sapna dekhne lagi mei khuli aankho se thagi si dek rahi hu 
Meri ruh to bina pankho ke udi ja rahi h
jese use to ishq ke par lag gaye seedha jakar khadokali ki pal pat ruki aur behisab aanand se bhar kar sab ruho mei ja mili Ab jo meri ruh ne ruho aur shree Raj shyama ke saath milkar aanand liye uska varnan karna sambhav hi nahi h Nur ki ruhe Nur ki khadokali aur shree RAjshyamaji ke mukh to Nur se aise jhalkare mar rahe h jese sara paramdham raji ka mukharbind ban jana chahta h meri ruh toRaji ke mukh ki shobha dekh kar Najre hi nahi hata pa rahi lagata h meri ruh unke hirdaye me sama gai 

Friday 26 February 2016

भुलवनी की अद्भुत अलौकिक लीलाओ में हुई जो मेरे रूह मग्न,,,

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भुलवनी की अद्भुत अलौकिक लीलाओ में
हुई जो मेरे रूह मग्न,,,
अपार आनंद में खो गई दिल में  उठी कई तरंग
पिया का  वह प्यार वह लाड वह मनुहार
याद आई अपनी घर की जहा हम करते थे पल पल विहार
चाहतो ने नई नई अंगडाइयां लेने लगी
पिया मिलन की आस अब और बढ़ने लगी
आई है इस दिलमे अब उमंगो की बहार
अब तेरी बाँहो में खोने को ये दिल है और बेकरार
हर पल हर घड़ी पिया अब तेरी ही ख्याल में खोउ
तेरी थी ...बस एक तेरी ही बनकर यहाँ अब दिन रात रहु
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मेरी सखी चले खड़ोकली में

प्रणाम जी --मेरी रूह भुलवनी की लीला कर अब झीलना के सुख लेना चाहती हैं  | भुलवनी  के मध्य चौक में विराजमान श्रीराज-श्यामा जी के संग मेरी रूह ने अखंड सुख लिए भुलवनी  की रामतो के --कभी श्रीराज जी के स्वरूप में खुद को भुला बैठे तो कभी प्रतिबिंबों में उलझा दिया श्री राज जी --इश्क ईमान की परीक्षा कि रूह कैसे आगे बढ़ कर मुझे रिझाती हैं --चारों और नूरी दर्पण में प्रीतम की मधुर छब --हर पल पिया का साथ --

और अब झीलना के लिए रूह चलना चाहती हैं तो प्यारी रूह की इच्छा जान कर धाम दूल्हा श्रीराज जी भी संग हुए खड़ोकली जाने के वास्ते --
उत्तर दिशा  की और चले  --चबूतरा से उतरे ही थे कि ठीक सामने आए मंदिर के द्वार खुल गये और एक रास्ता --बादशाही रास्ता प्रस्तुत --मेरे अर्श के बादशाह के लिए --
50 मंदिर का लंबा द्वार --दर्पण की झलकार --अपनी और खींचता द्वार --अरशे मिलावा ने जैसे ही कदम बढ़ाए कि चित्रामन से निकल कर घौड़े ,हंस हाजिर और देखिए तो सुंदर सी बग्घी भी सेवा में उपस्थित और उनमें जुटे श्वेत अश्व --चारों और से पुकार मेरे पिया मुझ पर अस्वार होइए --मैं आपको खड़ोकली में लेकर के चलता हूँ --
श्रीराज -श्यामा जी बग्घी पर अस्वार हुए ..कुछ सखियाँ भी संग में ..कोई घौड़ो पर तो कोई हंस पर इठलाते हुए अस्वार हुए और चले खड़ोकली की और --
नूर की झलकार --जहाँ नज़र गयीं वहीं एक एक प्रतिबिंब के हज़ारों प्रतिबिंब और सब के सब चल रहे हैं खड़ोकली की और --जल क्रीड़ा की उमंग दिलों में समाई हुई --
अंग प्रत्यंग में उल्लास --मधुर संगीत की स्वर लहरी और प्राण वल्लभ का अत्यंत ही मीठा ,सुखदायी साथ -- भुलवनी  पार की --
बाहर आते ही त्रिपोलिए के दर्शन --दो थम्भो की हारों में आईं तीन नूरी गलियाँ --एक एक थम्भ की शोभा अनुपम और उनकी महेराबों में सुंदर नक्काशी --चित्रामन के पशु पक्षी भी झूम उठे पिऊ का दर्शन पा


त्रिपोलिया पार कर मंदिर की भी पार किया --साजो समान से युक्त मंदिर --मंदिर से बाहर निकलते ही पुनः दो थम्भो की हारों में आईं तीन नूरी गलियाँ --इन्हे भी मस्ती में भरी रूह ने पार किया तो ठीक सामने मंदिरों की बाहिरी हार --
मंदिर के भीतर आए --नूर मेरे धाम का धाम का --विशालता लिए मंदिर जिसमें सुख सुविधा के सभी साजो समान --नूर ही नूर मेरे पिया का लाड़ मुझपे लुटाता हुए और मंदिर की बाहिरी दीवार में आए जाली द्वार और उनसे आता तेज ,प्रकाश --करोड़ो सूर्यों से तेज पर शीतल प्रकाश ,रूहों को खुशहाल करता हुआ


बाहिरी हार मंदिरो को भी पार कर बाहर आए तो खुद को पुल पर देखा जो रंगमहल को खड़ोकली को जोड़ रहा हैं --आने जाने का एक रास्ता --मेरी रूह प्राण प्रियतम मेरे युगल पिया के संग पुल से होते हुए खड़ोकली की नूरी पाल पर आए --सिंहासन कुर्सियाँ हाजिर श्रीराज -श्यामा जी और साथ के वास्ते --पाल पर विराजमान हुए -
जगमगाती नूरी पाल ---और विशाल खड़ोकली में जल की लहरें ,दूध से उज्जवल और मिश्री से भी कोट गुना मीठा जल --जल में चारों दिशा से जल चबूतरा पर उतरती हीरा के सीढ़ियाँ और शेष जगह घेर कर हीरे ,माणिक से जगमगाता कठेड़ा --और पाल की शोभा तो देखिए --नूर ही नूर पसरा हुआ --पाल की उत्तर ,पूर्व और पश्चिम दिशा से ताड़ वन की और कठेड़ा और ताड़वान की डालियां जल चबूतरा पर एकल छतरिमंडल करती मनोरम प्रतीत हो रही हैं --खुश्बू ही खुश्बू ..मेरे धाम की सुगंधी --और दक्षिण दिशा में रंगमहल के झरोखे


और वनो से पक्षी आ रहे हैं रूहों को रिझावन की आस लेकर --मोरों का नृत्य कर प्रसन्न करना तो नन्हीं चिड़ियों की उछाल कूद ,चहचाहत --
उन नन्ही चिड़ियाँ का मेरी रूह प्यार से अपनी हथेली में लेती हैं उनकी नन्ही नन्ही आँखों में पिऊ का दीदार मुझे रोमांचित कर गया--और खूबखूशालियाँ हाजिर इश्क रस से भरे प्याले लेकर




और अब चली रूह नूरी जल में --सीढ़ियों से उतर खड़ोकली के जल चबूतरा पर आई --कमर तक गहरा जल चबूतरा पर रूह को भिगो रहा हैं --जल में जल क्रीड़ा करती रूहें ,एक दूसरे पर प्रेम में भर जल उछालती मस्ती में डूबी रूहें --जल को आसमानी क ऊँचाइयों में उछालती मेरी रूह --हर और नूर ही नूर ,जल ही जल --नज़रों में बस पिया तू ही तू --




वनों के छतरिमंडल ने भी फूल बरसा जल क्रीड़ा में और रस भर दिया ,जल में बिखरे फूल उनकी सुगंधी में सराबोर में रूह --धाम धनी के संग जल क्रीड़ा के सुख ले झीलती हैं अर्श के आब से --
 झिलना कर रूहें और श्रीराज श्यामा जी पाल पर आते हैं और सिनगार सजने के लिए भुलवनी के मध्य में आए चौक में पधारते हैं और रूच रूच कर सिंगार सजाते हैं युगल जोड़ी को ,आज मेरे श्यामा श्याम भुलवनी के इन चबूतरा पर नूरी सिंगार सज जब विराजे तो उनके नूर के आगे कुछ नज़र नहीं आया --तूही ही तू की गूँज 🙏💥💥💥💥💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧

Monday 22 February 2016

वो ही प्यारा वो ही में वो ही तू जेसे छब और दर्पण ।।

आज जब में अपने आप को दर्पण के सामने खड़े हो के देख रही थी तब ही एक पल में दिल थम सा गया आँखे पलक झपकना भूल गयी ।
बहार हो रही आवाज भी मुजे सुनाई नहीं दे रही थी ।
मानो लगा कही दूर जहा बिलकुल भी आवाज ही ना हो ऐसी जगह में आ गयी हु ।

दर्पण में खुद को देख के जब यह शांति का माहोल बना तब में आँखों को बन्ध कर के प्राण पीया के खयालो में खों सी गयी ।

और चितबन के सुनहरे पथ पे कदम बढ़ाने का दिल कहे जा रहा था ।

मेरी परआत्म की नजर यानी में अर्श की आतम आतम दृस्टि से चल रही हु ।

पन्ना जी से चल के परमधाम का रास्ता देख ने कदम बढ़ रहे है ।

आखिर कदमो को कोमलता चेतना मिली ।
में जमुना जी की पाल पे आ गयी ।

जमुना जी के मीठे उज्जवल जल में स्नान करके देहुरी में साज सिंगार सज के कदम आगे चले जा रहे है दिल में ख़ुशी है तो साथ ही मस्ती का खेल खेलने की पिया के संग नयी रामत करने का दिल कह रहा है ।
अभी तो खेल खेलने का दिल में लेके में बढ़ ही रही हु ।
चादनी चौक से चलके सो सीडिया पार कर के धाम दरवाजे में खुद को निहार के चली ही जा रही हु ।
इंतजार जहा नही हो रहा वहा कदम भी साथ देते हुवे दिल के उमंग लिए बढ़ रहे है ।
आखिर मूल मिलावे में आके धनी से मिल के उनकी आँखों से आँखों मिली तो पिया मुझे देख के मंद मंद मुस्कुरा रहे है नटखट सी अदा से। 

मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरे दिल की बात को जान ने वाले दूल्हा मुझे कह रहे है चलो मेरे प्राणों से प्रिय प्रिये आज खेल खेलते है एक दूजे को निहारते है ।
तब दिल की खुशि और बढ़ गयी ।
 और पिया मेरा हाथ थामे मुझे आगे ले जा रहे है ।
पिया का हाथ थामना ही एक इश्क़ की  गुद  गुदी सा खेल मानो हाथ खेल रहे है ऐसा लगता है ।

दिल में आज नया उमंग तरंग लेके आगे चल रहे है ।
में पिया को देखे ही जा रही हु और पल भर में कब दूजी भोम में आ गयी पता ही ना चला उन्हें निहारते निहारते ।

मेरे शीस महल में जहा हर ज़रा ज़रा शीसे का दर्पण का बना है वहा हम आ पहोंचे ।

में शीस महल को देख के खुद के अनंत प्रतिबिंब देख के गोल गोल घूम रही हु । 

पिया मुझे कहते है मेरी रूह मिलन का सुनहरा पल इस शीस महल में मिलता है ।
जहा खुद में ( धनि ) ही दर्पण बना खड़ा हु और उस में तुम्हारी छबि यह सुनहरा मिलन हे मेरा और तुम्हारा जहा मुज में तुम समा जाती हो ।

इस शीस महल को भुलभुलव नी कहते है क्यों की यहा हम एक दुजे को भूल के एक होने की रामत हँसी के साथ खेल ते है ।

जहा में और तुम इतने एक हो जाते है में दर्पण बन के और तुम मुज में प्रतिबिंब बन के की और फिर भी तुम मुझे पकड़ ने के लिए खुली आंखो से आँख मिचोली का खेल खेलते है ।

यही तो भुलवनि है ।
में यह नजारा देख के इतनी खुश हो रही हु की उसे सब्दो में बया नहीं कर सकती ।
दिल की ख़ुशी की कोई भाषा नहीं होती है वह तो अपने आप मुख पे झलक आती है में अपने आप को शीस महल के शीसे में देख रही हु मेरे मुख पे लाली मा छा गयी है । 

पिया कहते है चलो रूह आज खेल खेलते है भुलवनि का ।
तुम मुझे ढूंढो ।
 और प्रेम का खेल खेलते है ।
हर एक दरपन में पिया नजर आ रहे है ।
एक और दरपन का नूर प्रेम के इस खेल में बढ़ रहा है तो दूजी और पिया की हर छबि का नूर और साथ ही मेरी भी हर छबि का नूर झलकार कर रहा है ।
इस पिया के अभुसन और वस्त्रो के नंग और रंग की रोसनी और मेरे भी आभुसन और वस्त्रो की रोशनी हर एक दर्पण को सजा रही है ऐसा लग रहा है ।

और हर तरह अनंत रंगो का मोहल सा छा गया है लगता है जेसे हाथो में रंग लेके हवा में उछाल दिए है ।⁠⁠⁠⁠








हर तरह 10 दिशा में छत से लेके जमीन तक हर तरफ पिया का और मेरा प्रतिबिंब ऐसे खेल रहा है की दर्पण भी चेतन  ता के गुण से नाच ने लगे है ।
अनेको रंगो से सजे दर्पण में नक्सकारी देख के दिल और भी ज्यादा खुश हो रहा है ।

अब मानो खेल का मजा आ रहा है ।
जहा पिया को पकड़ ने में दौड़ती हु और उनकी छबि को दर्पण में असल समज के जेसे ही पकड़ने जाती हु तो जाके दर्पण में टकरा जाती हु ।

यह देख पिया हँसे जा रहे है जोर से और में भी हँस रही हु ।
पिया के हँस ने की आवाज हर और एक संगीत बन के छा गई है जिस संगीत से खेल का मजा और ज्यादा बढ़ गया है ।
एक क्षण के लिए में ठहर सी गयी तो पिया चपल ता से बाहे फेला रहे है जे अपने पास बुला रहे है में जेसे ही उनसे गले मिलने दौड़ के जाती हु की फिर से दर्पण में टकरा जाती हु। 


यह देख के दर्पण की चित्र कारी भी हँस ने लगी है ।





फिर से में टकरा गयी दर्पण में यह देख के पिया और हर चित्रकारी हर दर्पण हँस ने लगे साथ में मेभी हँस ने लगी हु ।

पिया और चपलता से चंचल नटखट अदा से मुझे नैनो से इश्क़ का घायल करने वाले इसारे करके बुला रहे है ।
और में मुग्ध सी हो के उनके नैनो की डोरी से खिची जाती हु की फिर से छलिया मुझे छल लेते है और में दर्पण में उनकी छबि से टकरा जाती हु ।
अब में बार बार टकरा के आखिर उस छलिया को पकड़ने के लिए दिल में सोचती हु की अब में बैठ जाती हूँ ।
में बैठ जाउगी तो उन्हें लगेगा में थक गयी हु और वो मेरे पास आ जायेगे ।

और में उन्हें पकड़ लुंगी।
यह सोचक में शीसे से ही बनी खुर्शी पे जाके बैठ जाती हु ।

खुर्सी भी दर्पण की इतनी सुंदर है की क्या कहना उस सोभा का ।।











दिल के राजा से कहा कोई राझ छिप सकता है ।
वो ही तो दिल है मेरा ।
उन्हें पता है दिल की हर एक बात को ।
एक पल के लिए वह पास आये ऐसा लगता है और कह रहे है अभी खेल खत्म नहीं हुवा है ।
अभी से बैठ गयी ।
और में समजी पिया सच में पास आ गए और में उन्हें पकड़ ने हाथ आगे किया की देखा फिर से छबि को ही पकड़ लिया ।

फिर से में पिया को पकड़ ने के लिए खड़ी हो गयी ।

अब तो आप को पकड़ ही लुगी यह कहके खड़ी होकर उन्हें पकड़ ने पकड़ ने के लिए जाती हू ।
पिया हाथो से ताली की आवज करके पास बुलाते है आओ सजनी आओ .....
उफ़... उनकी अदा ...
खेल में भी बस प्यार बढ़ा रहे है ।
ताली की आवाज को सून के उस और दौड़ के पकड़ ने जाती हु और इस बार आप को गले से लगा लुगी यह कह के पिया ही खड़े है यह मान के बाहे फेला के पकड़ ने जाती हु तो फिर से छबि को ही पकड़ लिया ।
दर्पण की इस भोम में खेल ते खेलते उनके इश्क़ में साँसों ने भी गति ज्यादा कारली है ।
में दर्पण में टकराई तो मेरी गर्म साँसों ने दर्पण को और ज्यादा सजा दिया ।
ओस की बूंदों की तरह साँसों की हवा ने दर्पण पे बुँदे बना दी ।

अब का नजारा हर एक नज़ारे से बढ़ के बन गया ।
एक तो दर्पण में 10 दिशा में पिया ही पिया दिख रहें है ।
उस पे साँसों की ओस की बूंदे भी दर्पण जेसी ही लग रही है ।
गोल गोल दाने के रूप को लीये इस बूंदों में भी अब पिया की छबि दिख रही है ।

और ज्यादा छबिया पिया की दिख ने लगी ।

अब तो लगा पिया जेसे पकड़ में नही आ पायेगे ।
पर इश्क़ की गर्मी की ठण्ड में वह भी दूर कहा रह सकते है ।
और इस बार प्रतिबिंब को नहीं पिया को पकड़ ही लुंगी इस ईमान के साथ आगे बढ़ती हूँ पिया से दिल की कोई बात कहा छिपि है ।
इश्क़ के ईमान को देख वह भी अब दूर नहीं रह सके और इस बार मेने सोचा और पिया से कहा अब में आप को नही पकड़ने वाली आप की छबि को ही पकडूगी। 
और यह सोच के की इस बार भी में छबि से टकरा जाउगी पर इस बार ऐसा नहीं हुवा ।
और सच में इस बार पिया को ही पकड़ लिया ।

मेने पकड़ा नहीं है उन्हों ने खुद आके अपना हाथ मुझे पकड़ाया है यह जानती हू फिर भी पिया को पकड़ ही लिया यह सोच के खुश हो रही हूँ।
आखिर पीया पकड़ में आही गए। 
और वह भी यही दिखा रहे है की मेने उन्हें पकड़ ही लिया ।
और पूछ रहे है मजा आया खेल में ।
और में मुस्कुराके कहती हु पिया आप को मजा आया 
मुझे तो बहोत ही मजा आया जितना सुख आप के हाथ को पकड़ के आप के नर्म स्पर्स से मिल रहा है उतना ही सुख आप की छबि को पकड़ के मिल रहा था ।
और पिया हँस के कहते है तो चलो एक बार फिर खेलते है ।
और में कहती हु इश्क़ का खेल तो आप से पल पल खेल ते रहना ही चाहती हु पिया ।


और इतने में इस माया के नश्वर तन का पर्दा बिच में आ गया और आँखे खुल गयी ।
आँखे खुल ने के बाद भी उस सुख का खुमार मुस्कान होठो पे और दिल में है ।

पिया बस इतना ही कहना है ।
अर्श में इश्क़ का वह खेल हमेसा खेलना है मुझे ।

फर्श के इस खेल से अब आजाद करदे मुझे ।

फर्स की आँखे अब की बार ऐसे बंध हो 
की अर्श में आँखे खुल जाये हमेसा के लिए मेरी ।


ऐसा करदे अब पिया ।
प्राणों में बन के G1 की धारा 
पल पल सजाये अर्श सारा
महेके सुमन या
महके नूर सारा
हर रूप में  
वो ही प्यारा
वो ही में वो ही तू 

जेसे छब और दर्पण ।।

Sunday 21 February 2016

ab Piya hi Piya rahe bas,


Maya dekh ke aayi rooho ko Piya Arsh ka sukh de rahe hain. Moolmilave me pyaar bhari baate aur dher saari haansi majak karke jab Piya rooh ko leke Moolmilave se nikalke Arsh ka sair karane nikle to rooh khusi se jhoom uthi. Ab ki baar ki khushi ka koi thikana nahin. Kyon ki, rooh ye jaan gayi ki ye Dhaam asal me Dhani ka dil hi hain. Har kan kan me Piya hain. Dhani apne ishq ke karan hi karodo saroopse rooh ko sukh de rahe hain. Ab to rooh bhi itrati huwi chalne lagi, ishq se sarabor, halke kadamse mast chaal se.

Sidhiyan chadhake Piya rooh ko dooji bhom le chale. Hire jaise pardarshi divaal, thamb, farsh, chandrava wale 12000 mandiro ke taraf ishara karte hain Piya. Rooh pulkit ho gayi. Dhani ne kaha, Sakhi, chalo ek khel khelte hain. In mandirome pravesh karen, aur tum mujhe pakadke ang lagalo to jeet tumhari. Rooh raaji huwi aur in mandirome pravesh kiya.

Andar se dekhne par in mandiro ki alag hi sobha hain. Har chij pardarshi aur chamkeele. Ek hi sakhi ke anant pratibimb. Farsh-chandrava-dival har taraf chalte-bolte pratibimb. Rooh ko kahin Dhani dikhaai dete hain, wo doudi chali jaati hain lekin waha to divaal hi milta hain. Mandirke bichse dekhe to ye lagta bhi nahi ki dival, farsh, chandrava wagera hain. Bas har taraf pratibimb dikhaai de rahe hain. Har pratibimb pyaar se pukaar rahe, har pratibimb noor bhare. Rooh iss sobha me kuchh aise kho gayi ki khud ko bhool gayi.

Aise me rooh ko Dhani apne najdik dikhaai diye. Rooh unki aur badi jaa rahi thi ki rooh ki nazren piya ke pratibimb ki nazrose mili. Rooh kuchh aise doob gai ki khud ko bhool gayi.

kabhi aise khelme gayi thi rooh, jahan Khuda ko bhooli baithi thi
ab aise khel hain Arsh ke, rooh Khuda me khud ko bhool gayi

jab saamne Dhani chal diye, rooh chounk ke uthi aur muskaate huwe fir se Piya dhoondne lagi. Nigaho se jo khumaar piya tha, usi mastime doobi huwi rooh khelme magan Dhani ko dhoondti rahi. Chhaliya, kabhi dikh bhi jaate to nazre mila ke chaal kar lete aur rooh besudh ho jaati.

Pehro ye anand ki leela karne ke baad jab Dhani ne aawaz diya aur pichhe se aake rooh ke haat pakad liye, tab kahi jaake rooh Piya se mil saki. Piya aur rooh muskaate huwe ek duje se mile. Fir Dhani ne rooh ke haat pakadke Bhulvani ke mandiro se nikala aur chabutre ki sobha dikhate huwe Khadokli ki taraf le chale. Pyaar bhari baate aur jhilna singaar karke Piya rooh ke paas baithe. Rooh apne Dhani ki sobha, unke nazro ki jaam aur dilme umadte Ishq ki lehrome aise kho gayi ki Dhani me hi samaa gayi. Uski haal kuchh aisi ho gayi, na wo bol saki na kuchh soch sakti, 
ab Piya hi Piya rahe bas, rooh to kahin nahi