मूलमिलावे की तीन सीढियां..
दूल्हे के संग चली में जब जैसे ही अंदर चबूतरे के सामने पहूँची, सबसे पहेले पूवॅ द्रार के सामने आई तीन सीढियों पर ही मेरी नजर रूक गई।ऊन सीढियों ने अपनी बांहे फैला कर मेरा स्वागत किया..मुझे देखते ही रंगबिरंगी नूरी किरणो की गिलम सीढियों पर सज गई और मानो कहे रही हो आओ मेरी सखी मूझे भी छू कर अपनी ही तरह इश्क की मदहोशी में मस्त कर दो...
यह नूरी किरणो की गिलम,रंगबिरंगी यह लताओ से किनारो पे बनी हूई कांगरी,यह पशू पक्षी के मनोहर प्रतिबिंब और अनंत रंगो से सजी हूई यह सीढियाँ जैसे मानो नई दूल्हन की तरह सजी हुई है...मैं जैसे जैसे ऊसकी तरफ आगे बढी वह ऐसे शरमाई की जिससे पूरा मिलावा महेक ऊढा..अहो कितनी प्यारी कितनी कोमल और कितनी मधुर आभा अपने दिल मे यह बसाये हूए थी...जैसे ही मैंने अति नाजूकता से लहेराते हूए कदम पहेली सीढि पर रखा वैसे ही नूरी किरणो की गिलम ने मेरी तलियो को चूमा जिसके रस से मेरा पूरा नूरी बदन एक संकून भरी मस्ती से थम गया..ऐसा आनंद और कहा..चरण ऊढाने को जी ही नहीं कर रहा था..ऐसा लगा की यही रूक जाऊ थम जाऊं..और सीढियां भी ऐसे झिलमिला ऊढी थी कि ऊसे देख कर पूरा परमधाम मस्ती में झूम रहा था...
ऐसे एक एक करके बडी नजाकत के साथ में तीन सीढियां चढी और रूह रूपी ऊन सिढिंयो ने मुझे आनंद के सागर मे अठखेलियां करवाते हूए विदा किया....
दूल्हे के संग चली में जब जैसे ही अंदर चबूतरे के सामने पहूँची, सबसे पहेले पूवॅ द्रार के सामने आई तीन सीढियों पर ही मेरी नजर रूक गई।ऊन सीढियों ने अपनी बांहे फैला कर मेरा स्वागत किया..मुझे देखते ही रंगबिरंगी नूरी किरणो की गिलम सीढियों पर सज गई और मानो कहे रही हो आओ मेरी सखी मूझे भी छू कर अपनी ही तरह इश्क की मदहोशी में मस्त कर दो...
यह नूरी किरणो की गिलम,रंगबिरंगी यह लताओ से किनारो पे बनी हूई कांगरी,यह पशू पक्षी के मनोहर प्रतिबिंब और अनंत रंगो से सजी हूई यह सीढियाँ जैसे मानो नई दूल्हन की तरह सजी हुई है...मैं जैसे जैसे ऊसकी तरफ आगे बढी वह ऐसे शरमाई की जिससे पूरा मिलावा महेक ऊढा..अहो कितनी प्यारी कितनी कोमल और कितनी मधुर आभा अपने दिल मे यह बसाये हूए थी...जैसे ही मैंने अति नाजूकता से लहेराते हूए कदम पहेली सीढि पर रखा वैसे ही नूरी किरणो की गिलम ने मेरी तलियो को चूमा जिसके रस से मेरा पूरा नूरी बदन एक संकून भरी मस्ती से थम गया..ऐसा आनंद और कहा..चरण ऊढाने को जी ही नहीं कर रहा था..ऐसा लगा की यही रूक जाऊ थम जाऊं..और सीढियां भी ऐसे झिलमिला ऊढी थी कि ऊसे देख कर पूरा परमधाम मस्ती में झूम रहा था...
ऐसे एक एक करके बडी नजाकत के साथ में तीन सीढियां चढी और रूह रूपी ऊन सिढिंयो ने मुझे आनंद के सागर मे अठखेलियां करवाते हूए विदा किया....
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