परमधाम की चितवनी
हमारी आत्मा इस फानी संसार में अपने स्थूल शरीर और जीव रूपी साधन से अपने मूल स्वरूप ,अपने निज घर और अपने धाम धनी को याद करती हैं उसी को चितवन कहते हैं |धाम शब्द का उच्चारण होते ही हमारे धाम हृदय में रंगमहल और वहां का अलौकिक लीला बिहार याद आना चाहिए जो हम श्री युगल स्वरूप श्री राज-श्यामा जी के संग परमधाम में करते हैं | तो आइए साथ जी,हम अपनी सुरता को परमधाम में लें चलें और श्रीराज जी के मेहर ,उनके जोश और तारतम वाणी से परमधाम के पच्चीस पक्षों की अति मनोहारी शोभा के आत्मिक दृष्टि से दर्शन करें ,श्री राज-श्यामा जी के स्वरूप सिनगार को अपने धाम हृदय में बसाएं और उनके साथ परमधाम में अखंड लीला बिहार करें |
हमारी आत्मा इस फानी संसार में अपने स्थूल शरीर और जीव रूपी साधन से अपने मूल स्वरूप ,अपने निज घर और अपने धाम धनी को याद करती हैं उसी को चितवन कहते हैं |धाम शब्द का उच्चारण होते ही हमारे धाम हृदय में रंगमहल और वहां का अलौकिक लीला बिहार याद आना चाहिए जो हम श्री युगल स्वरूप श्री राज-श्यामा जी के संग परमधाम में करते हैं | तो आइए साथ जी,हम अपनी सुरता को परमधाम में लें चलें और श्रीराज जी के मेहर ,उनके जोश और तारतम वाणी से परमधाम के पच्चीस पक्षों की अति मनोहारी शोभा के आत्मिक दृष्टि से दर्शन करें ,श्री राज-श्यामा जी के स्वरूप सिनगार को अपने धाम हृदय में बसाएं और उनके साथ परमधाम में अखंड लीला बिहार करें |
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