दूल्हे के संग भूलभूलवनी की क्रीडा का अप्रतिम आनंद लेने के बाद,प्रितमजी मेरी कलाई थामे अति ऊत्साह में मुझे ऊत्तर दिशा की और ले जा रहे है,और मेरा रोमरोम अनायास ही ऊनके पीछे खींचा जा रहा है ..ऐसा महसूस हो रहा है मानो कोई आशिक अपनी प्रियतमा को अपना दिल दिखाने ना ले जा रहा हो.. धनी मेरी नाजूक पतली कलाई थामे उत्तर की और चल रहे थे,तो इस नजारे से पूरे धाम की नजर एक कूतूहल वश आने वाली शूभ घडी की और संकेत करती हूई ईसी और मूड गई..रंगमहल की दूजी भोम में बहेने वाली वह नूरी मदहोश कर देने वाली हवाए भी उत्तर की और मूड गई..और वह भी देखो कितने अदब से चल रही है हमारे संग ..एक संग और ईसकी ईबादत तो देखो साथजी धनी से एक कदम भी वह आगे नहीं हो रही...मैं तो बस आँख मूंदे चल रही हूं..मेरा रोमरोम धनी के दिल मेरे दिल तक आ रही खडोकली की बूंदो से भीगे जा रहा है..
भूलभूलवनी के 120 मंदिर में से बीच के 30 मंदिर में रंगमहल से लगते हूए ऊत्तर दिशा में बाहरी और ताडवन की जिमी में यह खडोकली आई हूई हैं,धनी ने जैसे ही मुझे अपने पास खींचते हूए मेरी मूंदी हूई आँखो के खोला तो मंदिरो की दो हार को पार करके अब मैंने अपने आपको धनी के संग ऊत्तर दिशा के मंदिर की बाहरी और पाया..और सामने ही अपने धनी के दिल में विहार करने के स्थान खडोकली को पाया...
कितनी अदभूत अनेरी महेकती धनी के दिल की नजरो रूपी रूह को सूकून देने वाली यह खडोकली थी..जिसके ऊत्तर,पश्चिम और पूवॅ तीने तरफ चांदो से सीढियाँ ऊतरी हूई थी..इससे लगते भीतरी तरफ 1मंदिर की चौडी रौंस है,और यहाँ तीनो दिशाओं में कूल 90 मंदिर है पर गिनती में 88 मंदिर गिने जाते हैं,इन मंदिरों की भीतरी तरफ जल भरा हूआ है इसलिए भीतरी तरफ दरवाजे नहीं है,बल्कि आगे की तरफ हर मंदिर में दो-दो दरवाजे और एक एक झरोखा झलकार कर रहा है..ये झरोखे तो मानो किसी डाली पे एक ही हार में बैठे हूए रंगबिरंगी तोते का परिरूप ही ना हो..वैसे तो गिनती के हिसाब से कहेते है कि खडोकली तीन भोम गहेरी है,एक भोम जिमी के अंदर,दूसरी भोम चबूतरे पर,और तीसरी भोम प्रथम भोम तक...पर वास्तव मे ईसकी गहेराई वही रूह जान पाती हे जो धनी के दिल की गहराई को पा सकी हो...
साथजी याद किजीए कभी हम ही कभी खडोकली मे झीलने के बाद भूलभूलवनी में रामत करते थे,तो कभी रामत के बाद धनी के संग झीलते थे..आज मेरे दिल को थामे धनी मूझे झीलने का आनंद देने ल्याए है और मेरे संग यह पूरा धाम ही देखो झीलने के लिए कैसे बेताब है,पह तो आप रूह की नजर से दिल को सवाँरे हूए मेरे संग चले तभी पता चले..कोई नासमझ ही होगी जो प्रितमजी के संग यूं भीगना नहीं चाहेगी..यह ताडवन की खिलखिलाहट,छज्जो कि लज्जा से भीगी हूई अंगडाई की सरवराहट और पूरे धाम की यह मुस्कुराहट यही दशाॅ रही हे कि बस अब मैं धनी के संग खडोकली में भीगने वाली हूँ..धनी मूझे भीगोने वाले है ..और मैं तो बस यही अरमा से सजी हूई हूँ कि धनी बस मुझे भीगोते रहे,भीगोते रहे....कभी मैं ऊन्हे भीगो रही हूँ,तो कभी वे मूझे भीगो रहे हैं तो कभी खडोकली हमे भीगो रही है..तो कभी ये मंदिर हम दोनो को भीगो रहे है .. और यही लीला पूरे धाम में चल रही है सभी एक दूसरे को भीगो रहे है..सभी इस खडोकली के रस में भीग रहे है..कभी धनी मूझे जल के भीतर मेरे पाँव पकड कर खींच रहे है और खडोकली की सतह पे बिछी हूई गिलम तक ले जाकर फिर ऊपर की और धक्का दे रहे है तो कभी मैं..एसी दिल खूश कर देने वाली क्रीडा हम कर रहे है.. जिसमे धाम का जरेॅ जराॅ झूम रहा है,ईतरा रहा है..तो कभी धनी मूझे बाहो में लेके ऊनके दिल से नूरी अंगो से भीगो रहे है..और यह नजारा देखके सभी वन पशू पक्षी बाग बगीचे फव्वारे सभी इश्क के अपने आप में गलतान करने वाले सरबत को पी रहे हैं...साथजी देखिए धनी का दिल,मेरा दिल,और खडोकली का दिल एक होते हूए भी कैसे एक दूसरे में भीग रहे है... प्रणामजी
भूलभूलवनी के 120 मंदिर में से बीच के 30 मंदिर में रंगमहल से लगते हूए ऊत्तर दिशा में बाहरी और ताडवन की जिमी में यह खडोकली आई हूई हैं,धनी ने जैसे ही मुझे अपने पास खींचते हूए मेरी मूंदी हूई आँखो के खोला तो मंदिरो की दो हार को पार करके अब मैंने अपने आपको धनी के संग ऊत्तर दिशा के मंदिर की बाहरी और पाया..और सामने ही अपने धनी के दिल में विहार करने के स्थान खडोकली को पाया...
कितनी अदभूत अनेरी महेकती धनी के दिल की नजरो रूपी रूह को सूकून देने वाली यह खडोकली थी..जिसके ऊत्तर,पश्चिम और पूवॅ तीने तरफ चांदो से सीढियाँ ऊतरी हूई थी..इससे लगते भीतरी तरफ 1मंदिर की चौडी रौंस है,और यहाँ तीनो दिशाओं में कूल 90 मंदिर है पर गिनती में 88 मंदिर गिने जाते हैं,इन मंदिरों की भीतरी तरफ जल भरा हूआ है इसलिए भीतरी तरफ दरवाजे नहीं है,बल्कि आगे की तरफ हर मंदिर में दो-दो दरवाजे और एक एक झरोखा झलकार कर रहा है..ये झरोखे तो मानो किसी डाली पे एक ही हार में बैठे हूए रंगबिरंगी तोते का परिरूप ही ना हो..वैसे तो गिनती के हिसाब से कहेते है कि खडोकली तीन भोम गहेरी है,एक भोम जिमी के अंदर,दूसरी भोम चबूतरे पर,और तीसरी भोम प्रथम भोम तक...पर वास्तव मे ईसकी गहेराई वही रूह जान पाती हे जो धनी के दिल की गहराई को पा सकी हो...
साथजी याद किजीए कभी हम ही कभी खडोकली मे झीलने के बाद भूलभूलवनी में रामत करते थे,तो कभी रामत के बाद धनी के संग झीलते थे..आज मेरे दिल को थामे धनी मूझे झीलने का आनंद देने ल्याए है और मेरे संग यह पूरा धाम ही देखो झीलने के लिए कैसे बेताब है,पह तो आप रूह की नजर से दिल को सवाँरे हूए मेरे संग चले तभी पता चले..कोई नासमझ ही होगी जो प्रितमजी के संग यूं भीगना नहीं चाहेगी..यह ताडवन की खिलखिलाहट,छज्जो कि लज्जा से भीगी हूई अंगडाई की सरवराहट और पूरे धाम की यह मुस्कुराहट यही दशाॅ रही हे कि बस अब मैं धनी के संग खडोकली में भीगने वाली हूँ..धनी मूझे भीगोने वाले है ..और मैं तो बस यही अरमा से सजी हूई हूँ कि धनी बस मुझे भीगोते रहे,भीगोते रहे....कभी मैं ऊन्हे भीगो रही हूँ,तो कभी वे मूझे भीगो रहे हैं तो कभी खडोकली हमे भीगो रही है..तो कभी ये मंदिर हम दोनो को भीगो रहे है .. और यही लीला पूरे धाम में चल रही है सभी एक दूसरे को भीगो रहे है..सभी इस खडोकली के रस में भीग रहे है..कभी धनी मूझे जल के भीतर मेरे पाँव पकड कर खींच रहे है और खडोकली की सतह पे बिछी हूई गिलम तक ले जाकर फिर ऊपर की और धक्का दे रहे है तो कभी मैं..एसी दिल खूश कर देने वाली क्रीडा हम कर रहे है.. जिसमे धाम का जरेॅ जराॅ झूम रहा है,ईतरा रहा है..तो कभी धनी मूझे बाहो में लेके ऊनके दिल से नूरी अंगो से भीगो रहे है..और यह नजारा देखके सभी वन पशू पक्षी बाग बगीचे फव्वारे सभी इश्क के अपने आप में गलतान करने वाले सरबत को पी रहे हैं...साथजी देखिए धनी का दिल,मेरा दिल,और खडोकली का दिल एक होते हूए भी कैसे एक दूसरे में भीग रहे है... प्रणामजी
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