Thursday 17 March 2016

धाम धनी संग तीजी भोंम चले

खडोकली में झीलने के बाद धाम धनी अब मुझे बडी बैठक की और ले चले,जहाँ से इस खेल का आगाझ हूआ था..जहाँ हाक हम सबको अपने नैनो से सींचते थे और हम ऊसी नैनो में डूब जाते थे..खडोकली से भूलवनी के मंदिरों से होते हूए हम मंदिरो की सीढियों से ऊपर की भोम की और चले.. आगे धनी और पीछे मेरे सहित पूरा धाम ..जैसे जैसे सीढियाँ चढ रहे थे वैसे वैसे सीढियाँ और खिल रही थी..और हमारे प्रतिबिंब चारो और झलकार कर रहे थे..सीढियाँ भी ऐसे अनेको रंग और नंगो से सजी थी कि मानो अपने माशूक के लिए अभी अभी सज के निकली हो..धाम धनी की यह लटकती चाल तो मानो पूरे परमधाम के दिल में मचल रही है..और मेरे तो नैन ही आज इस चाल में ऊलझ गए थे..एक ही पल में हम तीसरी भोम की भीतरी तरफ पहूँच गए..धनी यहां भी वैसे ही पहेले की तरह मेरा हाथ थामा और मूझे नजीक खींच कर अपना हाथ मेरे नाजूक कंधो पर रखा..और मूझे अपने संग ले वे आगे बढे...हवेलियों को पार करके हम पूवॅ की और आगे बढे और 28 थंभ के चौक में पहूँचे..जहाँ जी भर के आसमानी रंग के मंदिर के धाम धनी ने दिदार करवाये..जहाँ से पूवॅ की और देखा तो कमर भर ऊँचा चबूतरे का नैन दिदार कर रहे थे..यह चबूतरा तीजी भोम की सतह से कमर भर ऊपर आया हूआ था और वहा जाने के लिए तीन सीढियाँ भी आई हूई थी....मैं आसमानी रंग के ऊस सिनगार के मंदिर को निहार ही रही थी कि मेरे कंधे पे मीठी सी सरवराहट हूई,मैंने देखा तो धनी का हाथ वहां नहीं था पर मनोहर मीठे रसीले दो पंखी कंधे पे फैली हूई खूशबू में खोए जा रहे थे,यह दृश्य दिल ईओ ईस तरह छू गया कि मूझे यह आभास ही नहीं हूआ कि धनी हाथ मेरे कंधे पे नहीं है..ऊन मीठे पक्षीओ की मग्नता से जब मैं बहार नीकली तो पाया कि धनी मेरे संग नहीं है और ऊसी पल मेरे कानो से ऊनकी मधूर आवाज टकराई,ना जाने वे मूझे आवाज दे रहे थे..मैं भी पगली..! जैसे ही नजर धनी की और गई उन्हें देखते ही मेरा नया सिनगार वहीं खडे खडे हो गया,मेरे ईस नए सिनगार को देखने की मूढे सुध ही नहीं रही क्योंकि वे भी नए सिनगार में ऐसे सजे थे कि क्या कहूँ...नजर हटे तभी तो कूछ बरनन करू ना?.. ऊसी पल फिरसे मीठी रस धोलती आवाज मेरे कानो से होकर दिल में समा गई,वे मूझे पूकार रहे थे आवाज दे रहे थे..वे वही खडे थे जहाँ मैं उन्हें सिनगार करवाती थी..मेरे पैर अब अपने आप ही उनकी तरफ बढ रहे थे,जैसे जैसे मैं बढ रही थी वैसे वैसे वे भी मेरी और आगे बढ रहे थे...हम दोनो आगे बढ रहे थे,कुछ ही पल मे चबूतरे से लगती बीच की सिढी में हमारा मिलन हो गया..ऊन्होने जैसे ही मेरी मांग की और दृष्टि की अपने आप ही मेरी मांग भर गई..मूझे ऐसा लगा जैसे ऊसी पल पूरे परमधाम की मांग भर गई हो... अपनी बाहो मे लेते हूए वे मूझे चबूतरे पर ले चले..4 मंदिर का लंबा और 1 मंदिर का चौढा यह चबूतरा आया हूआ था,जिस पर नूरी जगमगाती अनेको रंग को अपने दिल मे समेटी हूई गिलम बिछी हूई थी..चबूतरे के तीनो और उत्तर,दक्षिण और पश्चिम में तीन तीन नूरी सीढियाँ ऊतरी हूई थी जिसकी शोभा देखते ही दिल बैठ जाता था..धनी मूझे संग ले अब आगे बढे और दहेलान में आकर रूके..और मूझे दहेलान की हर एक शोभा दिखाई..यह तीन-तीन महेराबे,नूरी थंभ और दहेलान के दाये-बाये आए हूए यह नूरी मंदिर..मैं इस पूरी शोभा को अपने दिल में मानो बसा रही हूँ..और यह अक्शी महेराबे तो देखिए,ऊसे जितना भी देखे जी ही नहीं भर रहा...सभी मंदिर आपस में जूडे हूए है.सभी मंदिरो में जाने के लिए दरवाजे भीतरी तरफ है और हर एक मंदिर के आते छोटा चबूतरा और तीन तीन सीढियाँ ऊतरी हूई है..धाम धनी मूझे हरे व पीले रंग की महेराब के बीच में आए दूसरे मंदिर की जो दहेलान से दक्षिण की और आया है ऊसमे ले चले....जैसे ही मैं धनी के संग भीतर गई तो मापो पूरा परमधाम ही ईस एक मंदिर मे सज गया और वही सूख शैज्या पर धाम धनी बिराजमान दिखे... ईसी शैज्या के नीचे रखे पान बीडा को मैंने ऊठाया और धनी के होठो से अभी लगाया ही था कि..बीडे की लालिमा ऊनके होठो पर ऐसे सज गई मानो मैंने चूम लिया हो उन्हें...मंदिर की शोभा को देखने के बाद धनी अब ले चले मूझे वही पडसाल में जहाँ से यह रब्द शूरू हूआ था ..ठान ली है कि अब कूछ ना बोलूंगी..हम दोनो 10 मंदिर लंबी और 2 मंदिर चौढी ऊस पडसाल की बीच की बडी महेराब पर खडे थे..धनि की पाघ से मस्ती कर रहे ऊस माणेक के फूल को तो कभी धपी की पाघ को मैं एक ही टस देख रही थी..धनी ने नजर मेरी और की,हमारी नजरे मिलते ही हम दोनो के होठो पे एक मदमस्त हसी छा गई..धनी धीरे से मेरे नूरी मूख को फेरा और कहा 'देख ये तेरा विश्राम है,यहा की रानी है तूं' और मैं दिदार करने आए पूरे धाम की शोभा को बस देखती रही..देखती रही...बस देखती ही रही....

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