मेरी रूह चल आज तुझे मैं तीजी भोंम की सैर कराओं --श्रीराज जी के हुकम से रूह की सुरता हद बेहद के ब्रह्मांड के पार परमधाम पहुँचती हैं | परमधाम के मध्य स्थित रंगमहल की तीसरी भोंम में रूह खुद को 28 थम्भ के चौक में महसूस करती हैं |
रूह का मुख धाम दरवाजे की और हैं अर्थात रूह पूर्व दिशा की और मुख किए खड़ी हैं | रंगमहल का नूर चारों और झलकार कर रहा हैं | इन नूर मे शीतलता ,नरमाई ,सुगंधी ,तेज ,प्रकाश ,चेतनता और श्री राज जी का लाड़ उनकी प्रीत सभी समाहित हैं |
सर्वप्रथम रूह की नज़र जाती हैं 28 थम्भ के चौक की मनोहारी शोभा पर -- मनोरम शोभा से युक्त चौक --चारों दिशा में थम्भो की अनोखी जुगत --दस थम्भ पश्चिम दिशा और दस थम्भ पूर्व में शोभित हैं और उत्तर दक्षिण 4-4 थम्भ सुसज्जित हैं |इन 28 थम्भो को भराए कर छत पर चंद्रवा की शोभा आईं हैं और नीचे पशमी गिलम बिछी हैं |
नीचे गिलम की जोत और ऊपर नूरी चंद्रवा की झलकार और घेर कर आए थम्भो से बरसता नूर ---नूर की बारिश में भीगी मेरी रूह की नज़र दाईं और गयी तो देखा --दूसरी हार मंदिर का आसमानी रंग का मंदिर --ओह! यह तो सिनंगार का मंदिर हैं --मेरे सुभान श्री श्यामा जी के सिंगार का मंदिर --देख तो मेरी रूह --मंदिर की दीवारे भी अद्भुत चित्रामन से सजी हैं |--नकाशी में आएँ चित्र ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो सखियाँ बड़े ही मनुहार से श्री श्यामा जी सिनंगार सज़ा रही हैं | उनके माथे पर लाल बिंदी सज़ा रही हैं तो कोई सखी उन्हें कंगन पहना रही है तो कोई सखी उनके चरणों को बड़े ही प्यार से अपनी गोद में कर झांझरी ,घूंघरी ,काम्बी ,कड़ला को अपने हाथों से स्पर्श कर महसूस कर रही हैं --ये तो सखियाँ सेवा की चाह रखती हैं नहीं एक पल के करोडवे हिस्से में मेरी श्री श्यामा महारानी नये नये सिंगार सजती हैं अपनी आशिक रूहों के लिए
28 थम्भ के चौक की शोभा निहारते मेरी रूह अब आगे बढ़ रही हैं --जैसे ही मैं 28 थम्भ के चौक की पूर्व किनार पर पहुँची तो एक प्यारी सी शोभा नज़र आई --28 थम्भ के चौक की मध्य की महेराब जो धाम दरवाजे के ठीक सामने 2 मंदिर की चौड़ी आई हैं --वहाँ तीन नूरी सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं
सुंदर सीढ़ियाँ --दो मंदिर की जगह में उतरती सीढ़ियाँ और उन पर बिछा पशमी गिलम और दोनों किनारों पर नूरी महकता हुआ कठेड़ा--मैं अब सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ --अत्यंत ही नरमाई लिए गिलम --सीढ़ी चढ़ कर जब ऊपर पहुँची तो देखा की मैं चार मंदिर के लंबे और एक मंदिर के चौड़े चबूतरा पर हूँ | यह चबूतरा 28 थम्भ के चौक और धाम द्वार के मध्य आई एक मंदिर की गली में आया हैं |
मेरी रूह बार बार देखती हैं उत्तर से दक्षिण चार मंदिर के लंबे और पूर्व से पश्चिम एक मंदिर चौड़े तीन सीढ़ी ऊँचा चबूतरा की प्यारी सी शोभा
चबूतरा की पश्चिमी किनार पर चार थम्भ आए हैं ..चार थम्भो में तीन महेराब जिनमें मध्य की दो मंदिर की महेराब से उतरती सीढ़ियों की शोभा मेरी रूह ने देखी | यह थम्भ 28 थम्भ के चौक के ही हैं | चबूतरा के उत्तर दक्षिण दिशा मे देखा --यहाँ दोनों और गली में 25 हाथकी जगह लेकर सीढ़ी गली में उतरी हैं और शेष जगह कठेड़ा आया हैं ---और चबूतरा की पूर्व दिशा में चार मंदिर की दहेलान की शोभा रूह ने देखी
मेरी रूह चार मंदिर के चबूतरा को शोभा को अपने धाम हृदय में बसा कर आगे बढ़ती हैं और चार मंदिर के चबूतरा को जैसे ही पार करती हैं तो खुद को चार मंदिर की दहेलान में देखती हैं --यह दहेलान धाम दरवाजे के मंदिर के ठीक ऊपर आईं हैं | तीसरी भोंम में द्वार के लिए मंदिर नहीं आया हैं --यहाँ तो दहेलान की शोभा आईं हैं | दरवाजे के मंदिर के ठीक ऊपर यहाँ चार थम्भ खुले आए हैं और दाएँ बाएँ का एक- एक मंदिर और नहीं आने से चार मंदिर की दहेलान की शोभा बन गयीं हैं | धामद्वार के ऊपर के जगह में दो मंदिर की महेराब आईं हैं और इन महेराब के दोनों और एक एक मंदिर के महेराब आईं हैं |
मेरी रूह इन शोभा को बार बार देखती हैं --चार मंदिर की दहेलान की शोभा की झलकार सुखदायी हैं | एक और शोभा --दहेलान के दाएँ बाएँ आएँ तीन-तीन मंदिर भी कुछ तरह से शोभा ले रहे हैं क़ि ज़रूरत पढ़ने पर दहेलान रूप में परिवारित हो जाते हैं --यही कारण हैं कि दस मंदिर के हांस की यह जगह जो तीन सीढ़ी ऊँची आईं हैं दस मंदिर की दहेलान के नाम से भी जानी जाती हैं |
रूह जब दहेलान की शोभा देख कर आगे बढ़ी तो दो मंदिर के चौड़े --पश्चिम से पूर्व और दस मंदिर के लंबे उत्तर से दक्षिण छज्जा पर पहुँचती हैं यही तीजी भोंम की पड़साल हैं |
दूसरी तरह से देखे तो धाम द्वार के सम्मुख आएँ दो मंदिर का चौक और चौक के दाएँ बाएँ आएँ चार मंदिर के लंबे और दो मंदिर के चौड़े चबूतरा जिनकी दूसरी भोंम झरोखा कहलाती हैं --इन पर एक छत तीसरी भोंम मे आईं हैं यही तीजी भोंम की पड़साल हैं |
तीजी भोंम की पड़साल की पूर्व दिशा में दस थम्भ आएँ हैं जो पहली भोंम से चले आ रहे हैं |मध्य में दो मंदिर की दूरी पर हीरा के थम्भ आएँ हैं जिन पर हीरा की दो मंदिर की महेराब आईं हैं और हीरा के थम्भो के दोनों और माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिन पर दो दो रंग की एक मंदिर की महेराब आईं हैं |
इन महेराबो में आकर कठेड़े को पकड़ कर खड़े होइए और सामने दूर दूर तक शोभा ले रहे चाँदनी चौक की झलकार देखिए | लाल हरे वृक्षों का नूर देखे कैसे आसमान तक उनकी जोत जा रही हैं |
सात वन की शोभा --यमुना जी का नूर देखिए
रूह का मुख धाम दरवाजे की और हैं अर्थात रूह पूर्व दिशा की और मुख किए खड़ी हैं | रंगमहल का नूर चारों और झलकार कर रहा हैं | इन नूर मे शीतलता ,नरमाई ,सुगंधी ,तेज ,प्रकाश ,चेतनता और श्री राज जी का लाड़ उनकी प्रीत सभी समाहित हैं |
सर्वप्रथम रूह की नज़र जाती हैं 28 थम्भ के चौक की मनोहारी शोभा पर -- मनोरम शोभा से युक्त चौक --चारों दिशा में थम्भो की अनोखी जुगत --दस थम्भ पश्चिम दिशा और दस थम्भ पूर्व में शोभित हैं और उत्तर दक्षिण 4-4 थम्भ सुसज्जित हैं |इन 28 थम्भो को भराए कर छत पर चंद्रवा की शोभा आईं हैं और नीचे पशमी गिलम बिछी हैं |
नीचे गिलम की जोत और ऊपर नूरी चंद्रवा की झलकार और घेर कर आए थम्भो से बरसता नूर ---नूर की बारिश में भीगी मेरी रूह की नज़र दाईं और गयी तो देखा --दूसरी हार मंदिर का आसमानी रंग का मंदिर --ओह! यह तो सिनंगार का मंदिर हैं --मेरे सुभान श्री श्यामा जी के सिंगार का मंदिर --देख तो मेरी रूह --मंदिर की दीवारे भी अद्भुत चित्रामन से सजी हैं |--नकाशी में आएँ चित्र ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो सखियाँ बड़े ही मनुहार से श्री श्यामा जी सिनंगार सज़ा रही हैं | उनके माथे पर लाल बिंदी सज़ा रही हैं तो कोई सखी उन्हें कंगन पहना रही है तो कोई सखी उनके चरणों को बड़े ही प्यार से अपनी गोद में कर झांझरी ,घूंघरी ,काम्बी ,कड़ला को अपने हाथों से स्पर्श कर महसूस कर रही हैं --ये तो सखियाँ सेवा की चाह रखती हैं नहीं एक पल के करोडवे हिस्से में मेरी श्री श्यामा महारानी नये नये सिंगार सजती हैं अपनी आशिक रूहों के लिए
मेरी रूह बार बार देखती हैं उत्तर से दक्षिण चार मंदिर के लंबे और पूर्व से पश्चिम एक मंदिर चौड़े तीन सीढ़ी ऊँचा चबूतरा की प्यारी सी शोभा
चबूतरा की पश्चिमी किनार पर चार थम्भ आए हैं ..चार थम्भो में तीन महेराब जिनमें मध्य की दो मंदिर की महेराब से उतरती सीढ़ियों की शोभा मेरी रूह ने देखी | यह थम्भ 28 थम्भ के चौक के ही हैं | चबूतरा के उत्तर दक्षिण दिशा मे देखा --यहाँ दोनों और गली में 25 हाथकी जगह लेकर सीढ़ी गली में उतरी हैं और शेष जगह कठेड़ा आया हैं ---और चबूतरा की पूर्व दिशा में चार मंदिर की दहेलान की शोभा रूह ने देखी
मेरी रूह चार मंदिर के चबूतरा को शोभा को अपने धाम हृदय में बसा कर आगे बढ़ती हैं और चार मंदिर के चबूतरा को जैसे ही पार करती हैं तो खुद को चार मंदिर की दहेलान में देखती हैं --यह दहेलान धाम दरवाजे के मंदिर के ठीक ऊपर आईं हैं | तीसरी भोंम में द्वार के लिए मंदिर नहीं आया हैं --यहाँ तो दहेलान की शोभा आईं हैं | दरवाजे के मंदिर के ठीक ऊपर यहाँ चार थम्भ खुले आए हैं और दाएँ बाएँ का एक- एक मंदिर और नहीं आने से चार मंदिर की दहेलान की शोभा बन गयीं हैं | धामद्वार के ऊपर के जगह में दो मंदिर की महेराब आईं हैं और इन महेराब के दोनों और एक एक मंदिर के महेराब आईं हैं |
रूह जब दहेलान की शोभा देख कर आगे बढ़ी तो दो मंदिर के चौड़े --पश्चिम से पूर्व और दस मंदिर के लंबे उत्तर से दक्षिण छज्जा पर पहुँचती हैं यही तीजी भोंम की पड़साल हैं |
दूसरी तरह से देखे तो धाम द्वार के सम्मुख आएँ दो मंदिर का चौक और चौक के दाएँ बाएँ आएँ चार मंदिर के लंबे और दो मंदिर के चौड़े चबूतरा जिनकी दूसरी भोंम झरोखा कहलाती हैं --इन पर एक छत तीसरी भोंम मे आईं हैं यही तीजी भोंम की पड़साल हैं |
तीजी भोंम की पड़साल की पूर्व दिशा में दस थम्भ आएँ हैं जो पहली भोंम से चले आ रहे हैं |मध्य में दो मंदिर की दूरी पर हीरा के थम्भ आएँ हैं जिन पर हीरा की दो मंदिर की महेराब आईं हैं और हीरा के थम्भो के दोनों और माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ आएँ हैं जिन पर दो दो रंग की एक मंदिर की महेराब आईं हैं |
इन महेराबो में आकर कठेड़े को पकड़ कर खड़े होइए और सामने दूर दूर तक शोभा ले रहे चाँदनी चौक की झलकार देखिए | लाल हरे वृक्षों का नूर देखे कैसे आसमान तक उनकी जोत जा रही हैं |
सात वन की शोभा --यमुना जी का नूर देखिए
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