Thursday 10 March 2016

खड़ोकली में जल परी सी बन के तैरना

आज जब में बहार से थक के घर आई ।
और स्नान कर के में लेटी तो मेरे दिल से एक आवाज आई।। 
उस आवाज में मेने जोरो से मस्ती में बहते हुवे मधुर पानी की आवाज सुनी ।
उस पानी से निकलने वाली लहरे मुझे तरंग बना के अपने साथ खीच के ले चली ।

मेने अपने आप को एक ही क्षण में दूसरी भोम में खड़ा पाया ।
में शीसे में अपने आप को देख ही रही थी की मुझे मेंरा प्रतिबिम्ब नही दिखा। 
शिशे में देख खुद को रही थी पर प्रतिबिंब मेरे पिया का दिखाई दे रहा था ।
पीया को देख के में खुश हो के झूम उठी और गोल गोल मस्ती में घूम ने लगी । उसी पल पिया ने अचानक थाम लिया और रोका । 
इतनी देर करदी आने में आज ..?
कब से राह तक रहा हूँ ।
बस इतना सुन के खुसी और बढ़ गयी ।
क्यों की जो पीया का हाल है वही मेरे दिल का हाल है ।
वो आने की राह तक रहे थे और में उनके पास जाने की राह तक रही थी ।
दोनों के हाल के मिलन से जो हाल इश्क़ का छाया एक प्यास मिटने का हाल बना वह तो सब्दातित है ।

बस पीया के गले लग के उनके दिल की आवाज सुन रही थी ।
वही पानी की कल कल बहती मधुर आवज जो मुझे खीच लायी है  ।
वो आवाज धनी की दिल की थी ।
जिसे मेने सुना उसे मुझे महसूस करना है छूना है यह बात दिल में आई है की पिया ने बोला चलो इस बहती पानी की आवाज में हम दोनों जाके डूबते है ।
जिस के इश्क़ में डुबी हु आज उस इश्क़ के साथ डूबने का मजा दिल ले रहा है ।

उस आकर्षण भरी जल की आवाज खीच रही थी किस और खीच रही है वह समज नही आ रहा था पर बस जादू चला के अपने आप मेरे कदम सरकते हुवे चल रहे थे ।

मन्दिरो में से निकल के 3 रास्ते वाली रौंस पे आके में खड़ी हु पीया के साथ ।

पीया मुझसे कह रहे है दिल में तुमने जिस आवाज को सूना वह आज खड़ोकली में जाने का कह रही थी ।





आखिर अब हम हमारे swimming pool पे आके खड़े है ।
 अभी दिल में आये उस से पहले ही पलक झपकने से पहले ही झिलना के वस्त्र अंग पे सज गए। 
पीया पे झिलना के वस्त्र देख के यह समज ही नही पा रही थी की कोन किस को सजा के खड़ा है ।
पीया से वस्त्र सुंदर लग रहे है की 
वस्त्र से पिया चमक रहे है ।
अभी तो आँखों से पीया को देख ही रही हु की देखते देखते कहा ओझल हो गए पता ही नही चला ।
इतने में देखा तो पिया खड़ोकली में दिखाई दिए ।
अपना हाथ आगे करके मुझे बुला रहे है आओ झिलना करे ।
अभी तो में जरा सा झुक के अपना हाथ आगे बढ़ाती की फिर पीया ओझल हो गए ।
और कुछ समज पाती उस से पहले पीछे आके प्रेम का थक्का देके खड़ोकली में छलांग लगवा दी ।
और खुद बी छलांग मार के खड़ोकली में आ गए ।

खड़ोकली का पानी स्वेत रंग का दूध से भी उज्ज्वल भुलवनी के कांच की तरह ही दिख रहा है पानी में पीया और मेरी प्रतिबिंब जिसका बयान नही हो सकता ।


जल का स्वेत रंग पल भर में अनेको रंग में रंग गया ।
इतनी गहराई से सजा जिस में और अंदर तक जाने का दिल कर रहा है ।
उतने में मेरे तन पे एक गुद गुदी सी होने लगी ।
मधुर जल की ध्वनि मन्द मन्द पवन की ठंडी लहर और उस पे गुद गुदी से हँस ने की आवाज ऐसा मधुर संगीत बाज रही थी की इस पल में और प्रेम बिखेर रही थी ।
जब देखा तो यह गुद गुदी एक मस्त मछली आके कर रही थी ।🐬 
मछली को हाथ में लेके मेने सहलाया तो वो खुसी से कूद के पिया के हाथो में चली गयी।
पिया ने अपने हाथो से उस पे जल की बुँदे डाली तो उस ने भी पानी में जोर से कूद के पानी को उछाला और पानी की बुँदे मुज पे और पिया पे आके सिमट गयी ।


उसी क्षण पिया ने जल में खिले कमल को हाथ में लिया और कमल को मेरे नजदीक लाके कमल के पत्तो पे लगे पानी की बूंदों को मूज पे लहराया ।

अब पीया हाथो को थाम के खड़ोकली की गहराई में ले चले ।
जितना सुख जल के ऊपर था उस से ज्यादा सुख आनंद जल की गहराई में मिल रहा है ।
ऐसी गहराई जिसे मापा नही जा सकता ।


इतने में गहराई के जल ने ऐसी छ्लांग लगायी की हम जल के ऊपर आ गए फिर से ।

जल में जल क्रीड़ा का झिलना का आनंद सब से अलग आनंद है ।
पीया मुज पे जल को उछाल रहे हे तो में भी पिया पे जल को फ़ेक रही हु ।
इतनी खुसी इतना आनंद है की इस खुसी का क्या कहना।

खड़ोकली पे ताड के वृक्ष की छाया सुंदरता को और बढ़ाए जा रही है ।
पिया के साथ इस प्रेम के खेल को देख के वृक्ष की डालिया नाच रही है ।

खड़ोकली में जल परी सी बन के तैर ना और पीया का पास आके पकड़ना प्रेम की लीला को देख जल भी फुव्वारे बन के उछले जा रहे है ।

सूखे होने से ज्यादा मस्ती और प्रेम भीग के मिल रहा है ।
पिया पास आके गले लगाते है की वृक्ष की डालिया जल तक आ गयी ।

इन डालियो पे लगे फल के गुच्छो को पीया जब रूह के गालो से लगाते है तब ☺☺☺


और जब एक फल तोड़ के पहले रूह को खिलाते है और फिर खुद खाते है फिर रूह को खिलाते है तो हर बार फल जी मिठास और ज्यादा हो जा रही है ऐसा लगता है ।
ठंडे जल में इश्क़ की गर्मी प्रेम की गहराई की गर्मी 
उस गर्मी को बढ़ाती हवा
 जल की सुगंध 
वृक्ष की छाया 
मस्ती को और बढ़ाने में मदद कर रही है ।

आज लगा खड़ोकली में नही पर पिया के इश्क़ के जल में झिलना किया है ।

और यह जल देखते ही देखते शराब बन गया जो ऐसा नशा छा  गया की बस अब ।
ये नशा कभी ना उतरे ।

बस आगे युही ज्यादा से ज्यादा चढ़ता ही जाए ।
तेरे इश्क़ का नशा है

जिस में बस मझा ही मझा है।



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