Sunday 13 March 2016

चलो आज हम तीजी भोंम की सैर करते है...!

मारा व्हाला आतमसंबंधी सखीदिल सुन्दरसाथ जी...

धामधनीजी का हुकम आज हो गया है तो... चलो आज हम तीजी भोंम की सैर करते है...!

लो... अभी तो हम बात कर ही रहे थे की मेंरी सूरता धामधनीजी का हुकम... मेहेर प्राप्त करके हद बेहद ब्रह्मांड के पार अखंड परमधाम में आ पोहोंची...!

अरे... यह तो अखंड परमधाम के मध्य स्थित रंगमहल की तीसरी भोंम में आया हुआ 28 थम्भ का चौक हैं । वाह धनी वाह... ऐसा लगता है की... रंगमहल का नूर चहूँऔर झलकारो झलकार करता दिखाई दे रहा हैं । आहा हां... इन अद्वैत नूर मे शीतलता, कोमलता, सुगंध, तेज, दिव्यता, चेतनता के साथ साथ हे मेरे धाम दूल्हा... हम सब सखियो को देने के लिए आप का जो कुछ है वो सब कुछ लाड़ प्यार... इश्क... मतलब सब की सब जोगवाई सामिल हैं...!

हे सखी... मनोरम्य शोभा से युक्त 28 थम्भो का चौक... चारों दिशा में आमनेे सामने थम्भो की अनोखी जुगति... मानो देखते ही बन गयी है...!

10 थम्भ पश्चिम दिशा में है तो 10 थम्भ पूर्व में दिशा में भी शोभित हैं । उत्तर दिशा में 4 थम्भ है तो दक्षिण दिशा में भी 4 थम्भ सुसज्जित दिखाई देता हैं । इन 28 थम्भोके ऊपर छत पर चंद्रवा अनोखी जुक्ति बनाये दिख रहा हैं... नीचे पशमी गिलम मानो हमारे लिए ही बिछी हुई हैं ।

हे सखी... नीचे गिलम का नूर... ऊपर नूरी चंद्रवा की झलकार... और साथ में घेरकर आए हुए 28 थम्भो से दमदम बारिश की तरह बरसता अविरत मखमली नूर ने... आज मुझे भीगो दिया है... तृप्त और परिपूर्ण कर दिया है...! समझो तो... नूरानी इश्क की दमदम बरसती बारिश में मैं लथबथ होती हुई... सराबोर भीगी भीगी सी हूँ...!

28 थम्भ के चौक में बीचोबीच खड़ी खड़ी मैं सोचती हूँ की इतना सारा लबालब इश्कवाला मखमली नूर कहा से आ रहा हे...? दक्षिण दिशा की तरफ देखा तो...

हं..अ..अ..अ...! अब मुझे समझ में आया की इतनी सारी दिल भीतर से भीगोती हुई नूरानी इश्क की बारिश का कारण क्या है...? अरे... यह आसमानी रंग का मंदिर ही तो है...!!!

हो मेरी सखी...!! यही आसमानी मंदिर... हमारे सुभान श्री श्यामाजी महाराणी के सिनगार का मंदिर है... जो मुझे अपनी और खींच रहा है...!

मंदिर की दीवारे भी कितनी अदभूत चित्रामन से सजी हुई हैं...! नक्काशी में आएँ चित्र भी अदभूत चेतन प्रतीत हो रहे हैं...! अरे सखी यह क्या..? हमारी मनुहारी श्री श्यामा जी सखियो के साथ मिलकर सिनंगार सज़ रही हैं...! मेरे दिल में भाव उमड़ रहा है... चल मैं भी श्यामाजी को सिनगार अपने हाथो से करती हूँ...!

अरे ओ मेरे धनीजी की लाडली सखी... तू श्यामाजी के माथे पर लाल बिंदी बराबर लगा तो सही...! और हा... श्यामाजी के हाथो में अच्छी तरह से... धीरे से कंगन पहनाना...!

हो मेरे सुभान... श्यामाजी...! आप अपने दोनों कोमल श्री चरणों को बड़े ही प्यार से मेरी गोद में रख दीजिये...!! हां.. आ..आ.. अब बराबर है...! अब मैं यह झांझरी, घूंघरी, काम्बी, कड़ला... विशेष करके अनवट, बिछुआ... अपने हाथो से आप को पहनाती हूँ...!

हां मेरे प्रिय श्यामाजी... आप के श्री चरणों को स्पर्श कर के मैं कुछ अलग ही अपने आप को महसूस कर रही हूँ...! आप के श्री चरण मेरा जीवन है... उसे मैं कभी भी छोड़नेवाली नहीं हूँ...!

मेरे सुभान श्यामाजी... अब मैं आप को... श्याम रंग की कंचुकी... नीली लाही को चरणीया... सिन्दुरिया रंग जडाव की साडी अपने हाथों से पहनाती हूँ...! अरे... यह सब मैं आप को पहनानेवाली कौन होती हूँ.....??? यह तो मेरी सेवा का भाव रखने के लिए आप श्यामाजी... मेरे हाथो तैयार हो रहे है... बाकी आप खुद ही समर्थ है की एक पल के करोडवे हिस्से में करोडो - करोडो बार सिनगार अपने आप बदल शकते हो...! 

हे सखी... आसमानी मंदिर से आगे सीधेसीधा 28 थम्भ के चौक की पूर्व तरफ लगोलग तीन सीढ़ी ऊंचा... 4 मंदिर लंबा और 1 मंदिर चौड़ा चबूतरा है...! यह चबूतरा... 28 थम्भ का चौक और दो भोम ऊँचे धाम दरवाजे के मंदिर के बराबर ऊपर बनी देहलान के बीच में... मतलब रंगमहल के फिरावे की प्रथम गली में आया है...!

हे सखी... इसी चबूतरा को लगलग आगे पूर्व तरफ 4 मंदिर की लंबी 1 मंदिर की चौड़ी देहलान है... यह देहलान दो भोम ऊंचा धाम दरवाजा के मंदिर की छत के बराबर ऊपर आई है...! और देहलान के लगोलग पूर्व तरफ आगे 10 मंदिर लंबी 2 मंदिर की चौड़ी पड़साल आयी है...!

हे सखी... दूसरी तरह से इस पड़साल के लिए तुम्हे कहू तो... प्रथम भोम में धाम चबूतरा पर... धाम दरवाजा के सन्मुुख बाहर... 2 मंदिर का लंबा - चौड़ा चौक और चौक के दाएँ - बाएँ दोनों तरफ 4 मंदिर के लंबे और 2 मंदिर के चौड़े चबूतरे आये है और यही चबूतरे के बराबर ऊपर दूसरी भोंम के दो झरोखे हैं...! यही दूसरी भोम के दोनों झरोखे एवम प्रथम भोम में धाम दरवाजे की सन्मुख आये 2 मंदिर का लंबा चौड़ा चौक के बराबर उपर तीसरी भोंम मे छत आयी हैं और यही छत तीजी भोंम की पड़साल कहलाती हैं...!

हे सखी... तीसरी भोम में 28 थम्भ के चौक के पूर्व में आयी हुई 2 मंदिर की चौड़ी मध्य की मेहेराब के बराबर नीचे... तीन नूरी सीढिया चबूतरे से उतरती आयी है... उन सीढ़ियो पर बिछी पशमी गिलम और सीढ़ियों के दोनों किनारो पर महकता हुआ कठेडा आज कुछ ज्यादा ही नूर बिखेर रहा है...!

हे सखी... यही 28 थम्भ के चौक की मध्य की मेहेराब के सामने पूर्व तरफ आयी हुई 2 मंदिर लंबी 1 मंदिर चौड़ी देहलांन में हम पियाजी का सिनगार करते है...!

हे सखी... तीजी भोंम की पड़साल की पूर्व दिशा में किनार पर आये हुए 10 थम्भ प्रथम भोंम के जैसे ही ऊपर चले आ रहे हैं । यहाँ पर मध्य में 2 मंदिर की दूरी पर हीरा के दो थम्भ आएँ हैं... उन थम्भ पर 2 मंदिर की मेहेराब हीरा की बनी हैं... और मेहेराब में बीचोबीच कमल का एक फूल झूल रहा है...!

हे सखी... इसी मेहेराबो के नीचे खड़े होकर श्री राजश्यामाजी युगल स्वरूप और हम सब सखिया पशु पक्षीयो का मुजरा देखते है और अपनी नजरो से पूरे परमधाम को अमीरस सींचते है..!

हीरा से बने दोनों मेहेराबी थम्भो के दोनों और क्रमशः माणिक, पुखराज, पाच और नीलवी के थम्भ आये हैं...! उन सभी थम्भो पर दो दो रंग की एक मंदिर की मेहेराब बनी हैं...! इन मेहेराबो के नीचे... कठेड़े को पकड़ कर खड़े होकर देखा तो... सामने दूर दूर तक शोभा ले रहा चाँदनी चौक... लाल हरे रंग के वृक्षों का नूर... सात वन... सात घाट... पाटघाट... अक्षरधाम... सबो का नूर... मानो आसमान तक उनकी जोत आपस मे झिलमिल करती हुई... पूरे परमधाम को रोशन करती हुई दिखती हैं...!

हे सखी... श्री राजश्यामाजी के संग हम सब सखिया 25 पक्ष की सैर को निकलते है तब यही पर पड़साल के कठेडेे से लगकर मनचाही वेगवाले सुखपाल और तख्तरवा खड़े होते है...!

हे सखी... 10 मंदिर की यह तीजी भोंम की पड़साल... 4 मंदिर की देहेलान... 4 मंदिर का चबूतरा... यह सब तीसरी भोंम की ज़मीन से तीन सीढ़ी ऊँचाई पर हैं...! 10 मंदिर की पड़साल में अंदर बाईं और से प्रथम मंदिर नीला रंग का... दूसरा मंदिर नीला ना पीला रंग का... तीसरा मंदिर पीला रंग का है...!

हे सखी... यही पर दूसरे नीले न पीले रंग के मंदिर में... हमारे प्यारे युगल स्वरूप दोपहर भोजन करंने के बाद हमें पान बीड़ा देते है और विश्राम करते है...!

हे सखी... यह क्या... कोई अजब सी कशिश मुझे अपनी और देहलान की और खिंचती प्रतीत होती है...! मेरे कदम अपने आप देहलान की तरफ मूड़े और देखती हूँ तो... हमारे प्रियतम श्री राजजी महाराज पड़साल में सिनगार करने बैठे है...! दूसरी सखियो की तरह... मेरे दिल में भी उमंगें... तरंगे उमडने लगी... मैं भी पियाजी को सिनगार अपने हाथो से करती हूँ...! 

हो मेरे व्हालाजी... श्वेत रंग जडाव को जामा... केसरी इजार... नीलो न पीलो बिच के रंग को पटूका... आसमानी रंग की पीछोरी... झंझरी... घूघरी... कांबी... कडला... यह सब मैं आप को अपने हाथो से पहनाती हूँ...! हे मेरे धनी... आप के स्पर्श मात्र से ही मेरे अंग-अंग रोम-रोम में आप का इश्क दौड़ने लग गया है...!

हे सखी... देख ... पियाजी अपने हाथो से कपोल पर लंबा तिलक बनाकर माथे पर सिन्दुरिया रंग की पाघ पहन रहे है...!

अरे वाह मेरे पिया...! आप पाघ भी अजब तरीके से पहनते हो... पेच से पेच... फूल से फूल बिलकुल मिल गये है...! हमारे पियाजी... हमारे दूल्हा के कारण... देहेलान की शोभा देखते ही बन गयी है...! ऐसा प्रतीत होता है की... तीजी भोम का नूर... नहीं नहीं पड़साल का नूर... नहीं नहीं पूरे परमधाम का नूर... हे सखी... अपने आप चहुँओर देखते देखते ही बढ गया है...! मानो मेरा दिल भी भीतर से अत्यंत सुखदायी... इश्क से लबालब पुलकित हो गया है... सराबोर हो गया है...!

हो मेरे दूल्हा... आसमानी मंदिर की तरफ आप ज़रा नजर करके देखो...! स्वयम् श्यामाजी सखियो को साथ लेकर सामने से हमारी और आ रही है...! चलो हम भी सामने जाकर उन का स्वागत करते है...!

हे सखी... यह क्या...? जूगलजोड़ी का मिलन तो 28 थम्भ के चौक में उतरती तीन सीढियो पर बीच में ही हो गया...! हमारे सुभान श्यामाजी ने अपने हाथो से हमारे दूल्हा के गले में पुष्प का हार... नही नहीं... वरमाला पहना दी...! हमारे धाम दूल्हा भी थोड़े रुकनेवाले थे... उन्होंने भी अपनी दुल्हन श्यामाजी को फूलो का हार पहनाई ही दिया...! मुझे ऐसा लगा की पियाजी ने सीधा मेरे गले में वरमाला दाल दी है...!

हे सखी... देख...देख... अब हमारे धामदूल्हा... हमारे सुभान श्यामाजी की मांग में सिन्दूर भर रहे है... नहीं नहीं... मुझे तो ऐसा लगता है की पियाजी... मेरी मांग में सिंदूर भर रहे है...! अरे यह क्या... सचमुच... मेरे गले में वरमाला के साथ साथ मेरी मांग भी भर गई है...! हे सखी... मेरी तो क्या तुम्हारी और सब सखियो के गले में वरमाला के साथ साथ मांग में सिन्दूर भर गया है...! मानो समय एकदम थम सा गया है... !

सप्रेम प्रणामजी...

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