Friday, 26 February 2016

मेरी सखी चले खड़ोकली में

प्रणाम जी --मेरी रूह भुलवनी की लीला कर अब झीलना के सुख लेना चाहती हैं  | भुलवनी  के मध्य चौक में विराजमान श्रीराज-श्यामा जी के संग मेरी रूह ने अखंड सुख लिए भुलवनी  की रामतो के --कभी श्रीराज जी के स्वरूप में खुद को भुला बैठे तो कभी प्रतिबिंबों में उलझा दिया श्री राज जी --इश्क ईमान की परीक्षा कि रूह कैसे आगे बढ़ कर मुझे रिझाती हैं --चारों और नूरी दर्पण में प्रीतम की मधुर छब --हर पल पिया का साथ --

और अब झीलना के लिए रूह चलना चाहती हैं तो प्यारी रूह की इच्छा जान कर धाम दूल्हा श्रीराज जी भी संग हुए खड़ोकली जाने के वास्ते --
उत्तर दिशा  की और चले  --चबूतरा से उतरे ही थे कि ठीक सामने आए मंदिर के द्वार खुल गये और एक रास्ता --बादशाही रास्ता प्रस्तुत --मेरे अर्श के बादशाह के लिए --
50 मंदिर का लंबा द्वार --दर्पण की झलकार --अपनी और खींचता द्वार --अरशे मिलावा ने जैसे ही कदम बढ़ाए कि चित्रामन से निकल कर घौड़े ,हंस हाजिर और देखिए तो सुंदर सी बग्घी भी सेवा में उपस्थित और उनमें जुटे श्वेत अश्व --चारों और से पुकार मेरे पिया मुझ पर अस्वार होइए --मैं आपको खड़ोकली में लेकर के चलता हूँ --
श्रीराज -श्यामा जी बग्घी पर अस्वार हुए ..कुछ सखियाँ भी संग में ..कोई घौड़ो पर तो कोई हंस पर इठलाते हुए अस्वार हुए और चले खड़ोकली की और --
नूर की झलकार --जहाँ नज़र गयीं वहीं एक एक प्रतिबिंब के हज़ारों प्रतिबिंब और सब के सब चल रहे हैं खड़ोकली की और --जल क्रीड़ा की उमंग दिलों में समाई हुई --
अंग प्रत्यंग में उल्लास --मधुर संगीत की स्वर लहरी और प्राण वल्लभ का अत्यंत ही मीठा ,सुखदायी साथ -- भुलवनी  पार की --
बाहर आते ही त्रिपोलिए के दर्शन --दो थम्भो की हारों में आईं तीन नूरी गलियाँ --एक एक थम्भ की शोभा अनुपम और उनकी महेराबों में सुंदर नक्काशी --चित्रामन के पशु पक्षी भी झूम उठे पिऊ का दर्शन पा


त्रिपोलिया पार कर मंदिर की भी पार किया --साजो समान से युक्त मंदिर --मंदिर से बाहर निकलते ही पुनः दो थम्भो की हारों में आईं तीन नूरी गलियाँ --इन्हे भी मस्ती में भरी रूह ने पार किया तो ठीक सामने मंदिरों की बाहिरी हार --
मंदिर के भीतर आए --नूर मेरे धाम का धाम का --विशालता लिए मंदिर जिसमें सुख सुविधा के सभी साजो समान --नूर ही नूर मेरे पिया का लाड़ मुझपे लुटाता हुए और मंदिर की बाहिरी दीवार में आए जाली द्वार और उनसे आता तेज ,प्रकाश --करोड़ो सूर्यों से तेज पर शीतल प्रकाश ,रूहों को खुशहाल करता हुआ


बाहिरी हार मंदिरो को भी पार कर बाहर आए तो खुद को पुल पर देखा जो रंगमहल को खड़ोकली को जोड़ रहा हैं --आने जाने का एक रास्ता --मेरी रूह प्राण प्रियतम मेरे युगल पिया के संग पुल से होते हुए खड़ोकली की नूरी पाल पर आए --सिंहासन कुर्सियाँ हाजिर श्रीराज -श्यामा जी और साथ के वास्ते --पाल पर विराजमान हुए -
जगमगाती नूरी पाल ---और विशाल खड़ोकली में जल की लहरें ,दूध से उज्जवल और मिश्री से भी कोट गुना मीठा जल --जल में चारों दिशा से जल चबूतरा पर उतरती हीरा के सीढ़ियाँ और शेष जगह घेर कर हीरे ,माणिक से जगमगाता कठेड़ा --और पाल की शोभा तो देखिए --नूर ही नूर पसरा हुआ --पाल की उत्तर ,पूर्व और पश्चिम दिशा से ताड़ वन की और कठेड़ा और ताड़वान की डालियां जल चबूतरा पर एकल छतरिमंडल करती मनोरम प्रतीत हो रही हैं --खुश्बू ही खुश्बू ..मेरे धाम की सुगंधी --और दक्षिण दिशा में रंगमहल के झरोखे


और वनो से पक्षी आ रहे हैं रूहों को रिझावन की आस लेकर --मोरों का नृत्य कर प्रसन्न करना तो नन्हीं चिड़ियों की उछाल कूद ,चहचाहत --
उन नन्ही चिड़ियाँ का मेरी रूह प्यार से अपनी हथेली में लेती हैं उनकी नन्ही नन्ही आँखों में पिऊ का दीदार मुझे रोमांचित कर गया--और खूबखूशालियाँ हाजिर इश्क रस से भरे प्याले लेकर




और अब चली रूह नूरी जल में --सीढ़ियों से उतर खड़ोकली के जल चबूतरा पर आई --कमर तक गहरा जल चबूतरा पर रूह को भिगो रहा हैं --जल में जल क्रीड़ा करती रूहें ,एक दूसरे पर प्रेम में भर जल उछालती मस्ती में डूबी रूहें --जल को आसमानी क ऊँचाइयों में उछालती मेरी रूह --हर और नूर ही नूर ,जल ही जल --नज़रों में बस पिया तू ही तू --




वनों के छतरिमंडल ने भी फूल बरसा जल क्रीड़ा में और रस भर दिया ,जल में बिखरे फूल उनकी सुगंधी में सराबोर में रूह --धाम धनी के संग जल क्रीड़ा के सुख ले झीलती हैं अर्श के आब से --
 झिलना कर रूहें और श्रीराज श्यामा जी पाल पर आते हैं और सिनगार सजने के लिए भुलवनी के मध्य में आए चौक में पधारते हैं और रूच रूच कर सिंगार सजाते हैं युगल जोड़ी को ,आज मेरे श्यामा श्याम भुलवनी के इन चबूतरा पर नूरी सिंगार सज जब विराजे तो उनके नूर के आगे कुछ नज़र नहीं आया --तूही ही तू की गूँज 🙏💥💥💥💥💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧

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