महामत कहे ऐ मोमिनो,करो सुख अपने याद।
आओ भूलवनी मंदिरो,देख अपनी बुनियाद।।
घाम दरवाजे और मूलमिलावे से होते हूए धाम धनी को अपने दिल की मस्ती में घोल कर मेरी रूह अब मूलमिलावे के मंदिरो की सीढियों से होते हूए दूजी भोम की हवेलियों में अठखेलियां करती हूई आगे बढ रही है। धाम धनी से मिलकर मेरा रोमे रोम पुलकित हो ऊठा है और मैं नूरी नूर से भरी हवाँओ के संग मानो ऊडती हूई आगे बढे जा रही हूँ।धाम धनी के दिल के अनूसार ही मैं आगे बढ रही हूँ ..दूजी भोम की हवेलियां मूझे देखते ही मानो किसी ने इश्क का जल सींचा हो ऐसे महेक ऊठी और ऊसी नूरी महेक की मस्ती में मैं भी झूम ऊठी...
मूलमिलावे के मंदिर से सीढियां चढकर दूसरी भोम में मैं हवेलियों के मंदिरों को निहारती हूई पार करती हूई ऊत्तर दिशा की और मूडी कि जहाँ दूजी भोम का गहेना बने हूए भूलभूवनी के मंदिर झलकार कर रहे है।ऊत्तर दिशा में मूडते हूए हवेलियों की हारो को पार करते हुए मैं ईशान कोण की और मूडी..ईशान कोण के बाहरी 190 मंदिर की हार को छोडकर ईशान कोण से पश्चिम में ऊसके बाद आए हूए 110 मंदिरो की दो हार के भीतरी तरफ चार चोरस हवेलियों की चार हेर ची जगह में 110 मंदिर की 110 हार लिए हूए 110×110=12100 मंदिरो में भूलभूलवनी की अद्वितीय शोभा आई हूई है..
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जैसे ही मेरी रूह आगे बढी और भूलभूलवनी की शोभा को निहारा तो बस ऊसमें खो ही गई पूरी भूलवनी एक ऐसे नूर से भरी हूई थी जैसे मानो धनी का दिल लबालब इश्क के नूर से भरा हूआ हो...मेरी रूह जैसे ही मंदिरो के अंदर पहूँची तो हर तरफ जहा देखूं वहां हर नूरी वह दिवाल मे कभी धाम धनी के नूरी मूखडे के दशॅन हो रहे थे तो कभी मेरे मूल तन के...यही तो भूलवन थी जो अब सूलझ गई थी धाम धनी और मूल तन जो नजर आ रहा था..यही भूलवनी मे कैसी हम सब अठखेलियां और रामते करती थी और ऊन रामतो/खेल की गूंज मे पूरा धाम भी मस्ती में मदहोश हो जाता था..कभी हम सब रूहे रामत खेलती थी और धाम धनी 12000 मंदिरो के बीच मे 100 मंदिरो में आए हूए नूरी चबूतरे पर बैढ कर हमारी रामत को निहारते थे तो कभी वे भी खूद हमारे साथ खेलने आते और हम सब रूहे उन्हें पकडने के लिए एक से दूसरे मंदिर दौड लगाती पर हर शीशे में वे दिखाई देने के बावजूद हम उन्हें पकड नहीं पाते..हर जगह ऊनके होने का ही हमें आभास होता और ऐसे बहूत हांसी की लिला होती थी..हर मंदिर में 4-4 दरवाजे आए है पर दो दरवाजे हर एक मंदिर की संधि में आए होपे के कारण हर एक मंदिर के 2-2 ही दरवाजे गिने जाते है..ऐसे कूल 12000 मंदिरो के 24000 नूरी दरवाजो आए हे जो संपूर्ण रंगबिरंगी रंग बिखरते शीशों से बने हूए है।
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भूलवनी के मंदिरो के बीच में आए हूए 100 मंदिर के चौक में 64 मंदिरों की जगह में चबूतरा आया हूआ है जिस पर पछमी गिलम बिछि हूई हे और ऊस पर बीच में नूरी सिंघासन रखा हूआ है जहाँ धाम धनी बिराजते है,चबूतरे की किनार पर कठेडा और महेराबी द्रार आया हूआ है और 36 मंदिर की जगह में एक मंदिर की चौढी परिक्रमा आई हूई है...भूलवनी के मंदिरों से निकलती हूई नूरी किरने और रंगमहोल के बाहिरी मंदिरो की भीतरी दिवाल से निकलती किरने जो आपस मे जंग करते हूए एकमेक में सामाती जा रही थी इस अदभुत नजारे को बस एकटक मेरी रूह देखे ही जा रही थी देखे ही जा रही थी और देखते देखते कब ऊन किरनो में मैं खूद भी समा गई पता ही ना चला....बस यही,ऐसे ही एकरस में होती रहूं ...धडकती रहूँ...
आओ भूलवनी मंदिरो,देख अपनी बुनियाद।।
घाम दरवाजे और मूलमिलावे से होते हूए धाम धनी को अपने दिल की मस्ती में घोल कर मेरी रूह अब मूलमिलावे के मंदिरो की सीढियों से होते हूए दूजी भोम की हवेलियों में अठखेलियां करती हूई आगे बढ रही है। धाम धनी से मिलकर मेरा रोमे रोम पुलकित हो ऊठा है और मैं नूरी नूर से भरी हवाँओ के संग मानो ऊडती हूई आगे बढे जा रही हूँ।धाम धनी के दिल के अनूसार ही मैं आगे बढ रही हूँ ..दूजी भोम की हवेलियां मूझे देखते ही मानो किसी ने इश्क का जल सींचा हो ऐसे महेक ऊठी और ऊसी नूरी महेक की मस्ती में मैं भी झूम ऊठी...
मूलमिलावे के मंदिर से सीढियां चढकर दूसरी भोम में मैं हवेलियों के मंदिरों को निहारती हूई पार करती हूई ऊत्तर दिशा की और मूडी कि जहाँ दूजी भोम का गहेना बने हूए भूलभूवनी के मंदिर झलकार कर रहे है।ऊत्तर दिशा में मूडते हूए हवेलियों की हारो को पार करते हुए मैं ईशान कोण की और मूडी..ईशान कोण के बाहरी 190 मंदिर की हार को छोडकर ईशान कोण से पश्चिम में ऊसके बाद आए हूए 110 मंदिरो की दो हार के भीतरी तरफ चार चोरस हवेलियों की चार हेर ची जगह में 110 मंदिर की 110 हार लिए हूए 110×110=12100 मंदिरो में भूलभूलवनी की अद्वितीय शोभा आई हूई है..
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जैसे ही मेरी रूह आगे बढी और भूलभूलवनी की शोभा को निहारा तो बस ऊसमें खो ही गई पूरी भूलवनी एक ऐसे नूर से भरी हूई थी जैसे मानो धनी का दिल लबालब इश्क के नूर से भरा हूआ हो...मेरी रूह जैसे ही मंदिरो के अंदर पहूँची तो हर तरफ जहा देखूं वहां हर नूरी वह दिवाल मे कभी धाम धनी के नूरी मूखडे के दशॅन हो रहे थे तो कभी मेरे मूल तन के...यही तो भूलवन थी जो अब सूलझ गई थी धाम धनी और मूल तन जो नजर आ रहा था..यही भूलवनी मे कैसी हम सब अठखेलियां और रामते करती थी और ऊन रामतो/खेल की गूंज मे पूरा धाम भी मस्ती में मदहोश हो जाता था..कभी हम सब रूहे रामत खेलती थी और धाम धनी 12000 मंदिरो के बीच मे 100 मंदिरो में आए हूए नूरी चबूतरे पर बैढ कर हमारी रामत को निहारते थे तो कभी वे भी खूद हमारे साथ खेलने आते और हम सब रूहे उन्हें पकडने के लिए एक से दूसरे मंदिर दौड लगाती पर हर शीशे में वे दिखाई देने के बावजूद हम उन्हें पकड नहीं पाते..हर जगह ऊनके होने का ही हमें आभास होता और ऐसे बहूत हांसी की लिला होती थी..हर मंदिर में 4-4 दरवाजे आए है पर दो दरवाजे हर एक मंदिर की संधि में आए होपे के कारण हर एक मंदिर के 2-2 ही दरवाजे गिने जाते है..ऐसे कूल 12000 मंदिरो के 24000 नूरी दरवाजो आए हे जो संपूर्ण रंगबिरंगी रंग बिखरते शीशों से बने हूए है।
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भूलवनी के मंदिरो के बीच में आए हूए 100 मंदिर के चौक में 64 मंदिरों की जगह में चबूतरा आया हूआ है जिस पर पछमी गिलम बिछि हूई हे और ऊस पर बीच में नूरी सिंघासन रखा हूआ है जहाँ धाम धनी बिराजते है,चबूतरे की किनार पर कठेडा और महेराबी द्रार आया हूआ है और 36 मंदिर की जगह में एक मंदिर की चौढी परिक्रमा आई हूई है...भूलवनी के मंदिरों से निकलती हूई नूरी किरने और रंगमहोल के बाहिरी मंदिरो की भीतरी दिवाल से निकलती किरने जो आपस मे जंग करते हूए एकमेक में सामाती जा रही थी इस अदभुत नजारे को बस एकटक मेरी रूह देखे ही जा रही थी देखे ही जा रही थी और देखते देखते कब ऊन किरनो में मैं खूद भी समा गई पता ही ना चला....बस यही,ऐसे ही एकरस में होती रहूं ...धडकती रहूँ...
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