श्री परिक्रमा ग्रंथ के 37वें प्रकरण में श्री महामति जी श्रीराज जी के हुकम से रंगमहल की दूसरी भोंम की शोभा का विहंगम वर्णन हम रूहों के लिए कर रही हैं | श्री महामति जी अर्शे अरवाहों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि हे मेरे साथ जी ,अब मैं रंगमहल की अलौकिक ,अद्भुत और मनोहारी शोभा का वर्णन करने जा रहा हूँ | आपका प्रेम भरा दिल जब यह नूरी शोभा का वर्णन सुनेगा तो आपकी रहनी भी बदल जाएगी |आपकी आत्मिक दृष्टि यह नश्वर जगत छोड़ कर परमधाम की गलियों में विहार करने लगेगी ,श्रीराज-श्यामा जी के शोभा सिनगार में डूब जाएगी |
दूजी भोम जो नूर की, नूर चेहेबच्चे जल ।
नूर मंदिर भूलवन के, नूर एक सौ दस मोहोल ।। १५ ।।
एक सौ दस हारें नूर की, नूर ऐसे ही गृदवाए ।
ए बारे हजार मोहोल नूर की, बीच नूर चौक रह्या भराए ।। १६ ।।
रंगमहल की दूसरी भोंम की शोभा देखिए | दूसरी भोंम की नूरी शोभा रूहों को खुशहाल कर रही हैं नूर ही नूर पसरा हुआ और निर्मल ,शीतल जल से लबरेज खड़ोकली का जल यही दर्शन देता हैं |और नूर मंदिर भुलवन के ---नूरी दर्पण से झलकार करते 110 दस मंदिर हैं |110 दस नूरमयी अर्श के चेतन दर्पण के बेहद ही सुखदायी झलकार करते मंदिरों की 110 हारें आने नूर ही नूर दृष्टिगोचर हो रहा हैं | जिनमें 12000 मंदिर नूर के सुशोभित हैं और ठीक मध्य में 100 मंदिर का चौक मनोहारी शोभा से युक्त हैं |
नूर भोम दूजी से तलें लग, भर्या चेहेबच्चा नूर जल ।
लंबा चौडा नूर एक हांस लग, ऊपर आया नूर बन चल ।। १૭ ।।37 परिक्रमा
नूर तीनों तरफों झलूबिया, तरफ चौथी नूर झरोखे ।
नूर बन छाया जल पर, खासी बैठक नूर ठौर ए ।। १८ ।।
नूर झरोखे बैठक, नूर जल नूर ऊपर ।
नूर झरोखे तीसों मिले, जितथें आवे नूर नजर ।। १९ ।।
नूर मंदिर तीस इन तलें, ताके चार चार नूर द्वार ।
आगूं तीन गली नूर थंभ की, ए जो मंदिर नूर किनार ।। २० ।।
मेरे प्यारे साथ जी ,हक इलम ले अब देखिए खड़ोकली की मनोरम शोभा --भुलवनी के मंदिरों से उत्तर को चल कर घेर कर आएँ दोनों मंदिरों की हारों को पार करके बाहर धाम रोंस पर आइए और देखे कि धाम रोंस से मिलान करती खड़ोकली --एक नूरी पुल जो रंगमहल और खड़ोकली के बीच आया हैं उसे भी पार करके खड़ोकली की नूरी पाल पर आइए और देखे शोभा --
तीन भोंम गहरी खड़ोकली के नूरी ,निर्मल जल का दर्शन यही दूसरी भोंम में होता हैं | खड़ोकली का जल की पहली भोंम परमधाम की ज़मीन से नीचे ,दूसरी भोंम रंगमहल के चबूतरा के साथ और तीसरी भोम रंगमहल की पहली भोंम के साथ आईं हैं | एक हांस मे शोभित इन खड़ोकली में 28 मंदिर की लंबी चौड़ी जगह में जल की शोभा हैं और जल को घेर कर नंगन की पाल आई हैं | और तीनों दिशा में ताड़ वन की डालियां दसवीं भोंम में जल चबूतरा तक शीतल छाया दे रही हैं | तीनों दिशा में जल चबूतरा तक वन की डालियों ,फूलों और पत्तियों ने मिलकर रंगों से सुसज्जित छतरिमंडल बाँधा हैं और चौथी तरफ अर्थात खड़ोकली के दक्षिण दिशा में रंगमहल के झरोखे ---तीस झरोखे ऊपरा ऊपर आठ भोम तक जगमगा रहे हैं | नवमी भोम की दूरदर्शिका और दसवीं चाँदनी पर आए दहेलान ,गुम्मत ,कलश और ध्वजा --
हे मेरे साथ जी ,इन नूरी बैठको में बैठ कर धनी संग हांस विलास कीजिए |इन तीस झरोखो में बैठे और नज़ारे देखे खड़ोकली के ...उछाले मारता जल ,शीतल ,सुगंधित हवाएँ और जल के चारों दिशा से जल चबूतरा पर उतरती सीढ़ियाँ ,उनका नूर और शेष जगह घेर कर आया कठेड़ा --और जल को घेर कर आईं पाल --इन निर्मल जल में जल क्रीड़ा के सुख लीजिए ,जल चबूतरा पर आकर धाम धनी संग झीलना कीजिए ,सुगंधित जल के स्पर्श के सुख तो कभी जल मुट्ठी में ले उछालना मानो मोती की बूँदीयाँ --
झीलन क्रीड़ा के उपरांत चले --दक्षिण की और जहाँ भुलवनी अपार शोभा ले रही हैं | खड़ोकली की पाल से दक्षिण की और चलिए ,पाल से आगे पुल पार कर पहली हार मंदिरों के भीतर आइए जिसके चारों दीवारों में द्वार आएँ हैं ,मंदिरों की पहली हार के आगे दो थम्भ की हार तीन गलियाँ पार कर मंदिरों की दूसरी हार पार कीजिए आगे पुनः दो थम्भ की हार तीन गलियाँ पार करेंगे तो सामने भुलवनी
नूर मंदिर एक सौ दस, एक अंदर की नूर हार ।
चारों तरफों मंदिर नूर के, ए नूर गिनती बारे हजार ।। २१ ।।
नूर मंदिर भोम गिनती का, बीच नूर चबूतरा ।
हक हादी रूहें नूर बैठकें, अति रंग रस नूर भर्या ।। २२ ।।
द्वार जो नूर मंदिर, नूरै के चार चार ।
लगते द्वार सब नूर के, माहें भूलवनी नूर अपार ।। २३ ।।
देखिए मेरे साथ जी ,सामने नूरी दर्पण के झलकार करते 110 मंदिरों की एक सौ दस हारें --चारों दिशा से देखे तो 110 मंदिर की नूरी दर्पण की दिवाल की शोभा --इन 12000 मंदिरों में रमण करे और देखें शोभा --दर्पण के झिलमिलाते अत्यंत ही सुंदर मंदिर आपस में सटे हुए हैं |मंदिरों की दीवारे ,फर्श और छत देखे तो वो भी दर्पण के ,किवाड़ ,छज्जे ,झरोखे ,जाली ,बारे सब दर्पण के --इन मंदिरों की गिनती 12000 हैं और मध्य नूरी चबूतरा --मध्य में एक सीढ़ी ऊँचा चबूतरा जिसकी किनार पर आठ आठ थम्भ जगमगा रहे हैं --चबूतरा पर आईं नूरी बैठकों पर जब युगल स्वरूप श्रीराज श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं तो वो समया बहुत ही सुखदायी होता हैं |
हक हादी रूहें नूर भरे, खेले नूर में कर सिनगार ।
नूर बिना कछू न पाइए, नूर झलकारों झलकार ।। २४ ।।
बस्तर भूषन नूर के, नूर सरूप साज समार ।
नूर ले खेलें नूर में, नूर झलकारों झलकार ।। २५ ।।
नूर सरूप देखत दिवालों, नूर सरूप देखत द्वार ।
नूर सरूप देखत नूर बीच, नूर झलकारों झरकार ।। २६ ।।
नूर सरूप पैठें एक द्वार से, जाए निकसें नूर किनार ।
यों नूर सरूप दौडें सब में, नूर झलकारों झलकार ।। २૭ ।।
नूर सरूप सब नूर के, ले नूर दौडें बारे हजार ।
बारे हजार नूर मंदिरों, नूर झलकारों झलकार ।। २८ ।।
एक नूर मंदिर से आवत, नूर निकसे परली हार ।
नूर हंसें खेलें गिरें नूर में, नूर झलकारों झलकार ।। २९ ।।
नूर सरूप पैठें एक तरफ से, नूर निकसें जाए नूर पार ।
नूर फिरत बीच गृदवाए, नूर झलकारों झलकार ।। ३० ।।
हार किनार पार नूर में, नूर सागर हुआ द्वार द्वार ।
नूर वार पार या बीच में, नूर झलकारों झलकार ।। ३१ ।।
हे साथ जी ,अपने धाम हृदय की गहराइयों से महसूस करे कि युगल स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी और सभी सखियों का स्वरूप नूरी हैं ,जल क्रीड़ा के बाद मध्य आएँ चबूतरा पर जब श्रीराज-श्यामा जी और प्यारी रूहें सिनगार सजती हैं तो उन समय नूर के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता |चारों और जहाँ भी नज़रें करें बस नूर ही नूर | प्रीतम का प्यार उनका लाड़ --वस्त्र -आभूषण नूर के हैं उनके ही अंग हैं ,नूरी स्वरूप नूर का सिनगार सजते हैं |नूरी स्वरूप अपना नूर ले कर जब इन नूरी भुलवनी में रामते करते हैं तो नूर की झलकार देखिए |
भुलवनी में रामते समय नूरी स्वरूप श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ अपने ही नूरी प्रतिबिंब दीवालों में देखते हैं ,द्वारों में देखते हैं --जहाँ जहाँ भी नज़रें जाती हैं बस नूरी स्वरूपों के दर्शन होते हैं - प्रतिबिंब सभी सजीव कोई नकल नहीं --उनसे उठती जोत से उठती तरंगें बेहद ही खुशहाल करती हैं |
नूरी स्वरूप मनमोहनी छबि लिए रूहें मस्ती में भरी एक द्वार के अंदर जाती हैं और दूसरे से निकलती हैं --इस तरह से नूर के स्वरूप 12000 मंदिरों में जब दौड़ते हैं तो उनकी झलकार महसूस कीजिए | जहाँ देखे वही मोहक अदा से चलती धाम की सखियाँ ,मस्ती में भरी चहकती सखियाँ --एक एक नूर स्वरूप अपने 12000 नूर के प्रतिबिंब ले कर दौड़ता हैं तो बारह हज़ार मंदिरों में अठखेलियाँ करते नूर के स्वरूपों की झलकार देखते ही बनती हैं |सखियाँ एक मंदिर से दौड़ते हुए दूसरे से पल में ही निकल आती हैं आपस में टकरा कर कभी गिरती हैं तो दूसरे ही पल नूरी स्वरूपों के हाथ थाम उठ भी जाती हैं उनके वस्त्राभूखन की झलकार की क्या कहें ? हाथो में हाथ थामे नूर के मंदिरों से गुज़रना तो कभी दूसरे को पकड़ने का प्रयास और अपने ही प्रतिबिंब से जाकर टकरा जाना --चारों और बस नूर ही नूर ,तेज ही तेज ,सौंदर्य कि पलके झपकाना भूल जाएँ |
इन विध नूर केता कहूं, नूर समे खेलन ।
नूर बिना कछू न देखिए, नूर के नूर रोसन ।। ३२ ।।
दूजी भोम सब नूर में, रूहें फेर देखें नूर ले ।
नूर प्याले हक हादी नूर, रूहों भर भर नूर के दें ।। ३३ ।।
इस प्रकार से कितना नूर का वर्णन हो |जहाँ भी देखे नूर के बिना कुछ नज़र नहीं आता | जब श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ यहाँ आकर भूलवनी की रामते करते हैं तो नूर ही नूर का विस्तार होता हैं |श्रीराज-श्यामा जी रूहों को भर भर कर नूर के प्याले पिलाते हैं | उनको इश्क ,लाड़ ,प्रेम ,प्रीति मे भिगोते हैं |
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