आज जब में अपने आप को दर्पण के सामने खड़े हो के देख रही थी तब ही एक पल में दिल थम सा गया आँखे पलक झपकना भूल गयी ।
बहार हो रही आवाज भी मुजे सुनाई नहीं दे रही थी ।
मानो लगा कही दूर जहा बिलकुल भी आवाज ही ना हो ऐसी जगह में आ गयी हु ।
दर्पण में खुद को देख के जब यह शांति का माहोल बना तब में आँखों को बन्ध कर के प्राण पीया के खयालो में खों सी गयी ।
और चितबन के सुनहरे पथ पे कदम बढ़ाने का दिल कहे जा रहा था ।
मेरी परआत्म की नजर यानी में अर्श की आतम आतम दृस्टि से चल रही हु ।
पन्ना जी से चल के परमधाम का रास्ता देख ने कदम बढ़ रहे है ।
आखिर कदमो को कोमलता चेतना मिली ।
में जमुना जी की पाल पे आ गयी ।
जमुना जी के मीठे उज्जवल जल में स्नान करके देहुरी में साज सिंगार सज के कदम आगे चले जा रहे है दिल में ख़ुशी है तो साथ ही मस्ती का खेल खेलने की पिया के संग नयी रामत करने का दिल कह रहा है ।
अभी तो खेल खेलने का दिल में लेके में बढ़ ही रही हु ।
चादनी चौक से चलके सो सीडिया पार कर के धाम दरवाजे में खुद को निहार के चली ही जा रही हु ।
इंतजार जहा नही हो रहा वहा कदम भी साथ देते हुवे दिल के उमंग लिए बढ़ रहे है ।
आखिर मूल मिलावे में आके धनी से मिल के उनकी आँखों से आँखों मिली तो पिया मुझे देख के मंद मंद मुस्कुरा रहे है नटखट सी अदा से।
मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरे दिल की बात को जान ने वाले दूल्हा मुझे कह रहे है चलो मेरे प्राणों से प्रिय प्रिये आज खेल खेलते है एक दूजे को निहारते है ।
तब दिल की खुशि और बढ़ गयी ।
और पिया मेरा हाथ थामे मुझे आगे ले जा रहे है ।
पिया का हाथ थामना ही एक इश्क़ की गुद गुदी सा खेल मानो हाथ खेल रहे है ऐसा लगता है ।
दिल में आज नया उमंग तरंग लेके आगे चल रहे है ।
में पिया को देखे ही जा रही हु और पल भर में कब दूजी भोम में आ गयी पता ही ना चला उन्हें निहारते निहारते ।
मेरे शीस महल में जहा हर ज़रा ज़रा शीसे का दर्पण का बना है वहा हम आ पहोंचे ।
में शीस महल को देख के खुद के अनंत प्रतिबिंब देख के गोल गोल घूम रही हु ।
पिया मुझे कहते है मेरी रूह मिलन का सुनहरा पल इस शीस महल में मिलता है ।
जहा खुद में ( धनि ) ही दर्पण बना खड़ा हु और उस में तुम्हारी छबि यह सुनहरा मिलन हे मेरा और तुम्हारा जहा मुज में तुम समा जाती हो ।
इस शीस महल को भुलभुलव नी कहते है क्यों की यहा हम एक दुजे को भूल के एक होने की रामत हँसी के साथ खेल ते है ।
जहा में और तुम इतने एक हो जाते है में दर्पण बन के और तुम मुज में प्रतिबिंब बन के की और फिर भी तुम मुझे पकड़ ने के लिए खुली आंखो से आँख मिचोली का खेल खेलते है ।
यही तो भुलवनि है ।
में यह नजारा देख के इतनी खुश हो रही हु की उसे सब्दो में बया नहीं कर सकती ।
दिल की ख़ुशी की कोई भाषा नहीं होती है वह तो अपने आप मुख पे झलक आती है में अपने आप को शीस महल के शीसे में देख रही हु मेरे मुख पे लाली मा छा गयी है ।
पिया कहते है चलो रूह आज खेल खेलते है भुलवनि का ।
तुम मुझे ढूंढो ।
और प्रेम का खेल खेलते है ।
हर एक दरपन में पिया नजर आ रहे है ।
एक और दरपन का नूर प्रेम के इस खेल में बढ़ रहा है तो दूजी और पिया की हर छबि का नूर और साथ ही मेरी भी हर छबि का नूर झलकार कर रहा है ।
इस पिया के अभुसन और वस्त्रो के नंग और रंग की रोसनी और मेरे भी आभुसन और वस्त्रो की रोशनी हर एक दर्पण को सजा रही है ऐसा लग रहा है ।
और हर तरह अनंत रंगो का मोहल सा छा गया है लगता है जेसे हाथो में रंग लेके हवा में उछाल दिए है ।
हर तरह 10 दिशा में छत से लेके जमीन तक हर तरफ पिया का और मेरा प्रतिबिंब ऐसे खेल रहा है की दर्पण भी चेतन ता के गुण से नाच ने लगे है ।
अनेको रंगो से सजे दर्पण में नक्सकारी देख के दिल और भी ज्यादा खुश हो रहा है ।
अब मानो खेल का मजा आ रहा है ।
जहा पिया को पकड़ ने में दौड़ती हु और उनकी छबि को दर्पण में असल समज के जेसे ही पकड़ने जाती हु तो जाके दर्पण में टकरा जाती हु ।
यह देख पिया हँसे जा रहे है जोर से और में भी हँस रही हु ।
पिया के हँस ने की आवाज हर और एक संगीत बन के छा गई है जिस संगीत से खेल का मजा और ज्यादा बढ़ गया है ।
एक क्षण के लिए में ठहर सी गयी तो पिया चपल ता से बाहे फेला रहे है जे अपने पास बुला रहे है में जेसे ही उनसे गले मिलने दौड़ के जाती हु की फिर से दर्पण में टकरा जाती हु।
यह देख के दर्पण की चित्र कारी भी हँस ने लगी है ।
फिर से में टकरा गयी दर्पण में यह देख के पिया और हर चित्रकारी हर दर्पण हँस ने लगे साथ में मेभी हँस ने लगी हु ।
पिया और चपलता से चंचल नटखट अदा से मुझे नैनो से इश्क़ का घायल करने वाले इसारे करके बुला रहे है ।
और में मुग्ध सी हो के उनके नैनो की डोरी से खिची जाती हु की फिर से छलिया मुझे छल लेते है और में दर्पण में उनकी छबि से टकरा जाती हु ।
अब में बार बार टकरा के आखिर उस छलिया को पकड़ने के लिए दिल में सोचती हु की अब में बैठ जाती हूँ ।
में बैठ जाउगी तो उन्हें लगेगा में थक गयी हु और वो मेरे पास आ जायेगे ।
और में उन्हें पकड़ लुंगी।
यह सोचक में शीसे से ही बनी खुर्शी पे जाके बैठ जाती हु ।
खुर्सी भी दर्पण की इतनी सुंदर है की क्या कहना उस सोभा का ।।
दिल के राजा से कहा कोई राझ छिप सकता है ।
वो ही तो दिल है मेरा ।
उन्हें पता है दिल की हर एक बात को ।
एक पल के लिए वह पास आये ऐसा लगता है और कह रहे है अभी खेल खत्म नहीं हुवा है ।
अभी से बैठ गयी ।
और में समजी पिया सच में पास आ गए और में उन्हें पकड़ ने हाथ आगे किया की देखा फिर से छबि को ही पकड़ लिया ।
फिर से में पिया को पकड़ ने के लिए खड़ी हो गयी ।
अब तो आप को पकड़ ही लुगी यह कहके खड़ी होकर उन्हें पकड़ ने पकड़ ने के लिए जाती हू ।
पिया हाथो से ताली की आवज करके पास बुलाते है आओ सजनी आओ .....
उफ़... उनकी अदा ...
खेल में भी बस प्यार बढ़ा रहे है ।
ताली की आवाज को सून के उस और दौड़ के पकड़ ने जाती हु और इस बार आप को गले से लगा लुगी यह कह के पिया ही खड़े है यह मान के बाहे फेला के पकड़ ने जाती हु तो फिर से छबि को ही पकड़ लिया ।
दर्पण की इस भोम में खेल ते खेलते उनके इश्क़ में साँसों ने भी गति ज्यादा कारली है ।
में दर्पण में टकराई तो मेरी गर्म साँसों ने दर्पण को और ज्यादा सजा दिया ।
ओस की बूंदों की तरह साँसों की हवा ने दर्पण पे बुँदे बना दी ।
अब का नजारा हर एक नज़ारे से बढ़ के बन गया ।
एक तो दर्पण में 10 दिशा में पिया ही पिया दिख रहें है ।
उस पे साँसों की ओस की बूंदे भी दर्पण जेसी ही लग रही है ।
गोल गोल दाने के रूप को लीये इस बूंदों में भी अब पिया की छबि दिख रही है ।
और ज्यादा छबिया पिया की दिख ने लगी ।
अब तो लगा पिया जेसे पकड़ में नही आ पायेगे ।
पर इश्क़ की गर्मी की ठण्ड में वह भी दूर कहा रह सकते है ।
और इस बार प्रतिबिंब को नहीं पिया को पकड़ ही लुंगी इस ईमान के साथ आगे बढ़ती हूँ पिया से दिल की कोई बात कहा छिपि है ।
इश्क़ के ईमान को देख वह भी अब दूर नहीं रह सके और इस बार मेने सोचा और पिया से कहा अब में आप को नही पकड़ने वाली आप की छबि को ही पकडूगी।
और यह सोच के की इस बार भी में छबि से टकरा जाउगी पर इस बार ऐसा नहीं हुवा ।
और सच में इस बार पिया को ही पकड़ लिया ।
मेने पकड़ा नहीं है उन्हों ने खुद आके अपना हाथ मुझे पकड़ाया है यह जानती हू फिर भी पिया को पकड़ ही लिया यह सोच के खुश हो रही हूँ।
आखिर पीया पकड़ में आही गए।
और वह भी यही दिखा रहे है की मेने उन्हें पकड़ ही लिया ।
और पूछ रहे है मजा आया खेल में ।
और में मुस्कुराके कहती हु पिया आप को मजा आया
मुझे तो बहोत ही मजा आया जितना सुख आप के हाथ को पकड़ के आप के नर्म स्पर्स से मिल रहा है उतना ही सुख आप की छबि को पकड़ के मिल रहा था ।
और पिया हँस के कहते है तो चलो एक बार फिर खेलते है ।
और में कहती हु इश्क़ का खेल तो आप से पल पल खेल ते रहना ही चाहती हु पिया ।
और इतने में इस माया के नश्वर तन का पर्दा बिच में आ गया और आँखे खुल गयी ।
आँखे खुल ने के बाद भी उस सुख का खुमार मुस्कान होठो पे और दिल में है ।
पिया बस इतना ही कहना है ।
अर्श में इश्क़ का वह खेल हमेसा खेलना है मुझे ।
फर्श के इस खेल से अब आजाद करदे मुझे ।
फर्स की आँखे अब की बार ऐसे बंध हो
की अर्श में आँखे खुल जाये हमेसा के लिए मेरी ।
ऐसा करदे अब पिया ।
प्राणों में बन के G1 की धारा
पल पल सजाये अर्श सारा
महेके सुमन या
महके नूर सारा
हर रूप में
वो ही प्यारा
वो ही में वो ही तू
जेसे छब और दर्पण ।।
बहार हो रही आवाज भी मुजे सुनाई नहीं दे रही थी ।
मानो लगा कही दूर जहा बिलकुल भी आवाज ही ना हो ऐसी जगह में आ गयी हु ।
दर्पण में खुद को देख के जब यह शांति का माहोल बना तब में आँखों को बन्ध कर के प्राण पीया के खयालो में खों सी गयी ।
और चितबन के सुनहरे पथ पे कदम बढ़ाने का दिल कहे जा रहा था ।
मेरी परआत्म की नजर यानी में अर्श की आतम आतम दृस्टि से चल रही हु ।
पन्ना जी से चल के परमधाम का रास्ता देख ने कदम बढ़ रहे है ।
आखिर कदमो को कोमलता चेतना मिली ।
में जमुना जी की पाल पे आ गयी ।
जमुना जी के मीठे उज्जवल जल में स्नान करके देहुरी में साज सिंगार सज के कदम आगे चले जा रहे है दिल में ख़ुशी है तो साथ ही मस्ती का खेल खेलने की पिया के संग नयी रामत करने का दिल कह रहा है ।
अभी तो खेल खेलने का दिल में लेके में बढ़ ही रही हु ।
चादनी चौक से चलके सो सीडिया पार कर के धाम दरवाजे में खुद को निहार के चली ही जा रही हु ।
इंतजार जहा नही हो रहा वहा कदम भी साथ देते हुवे दिल के उमंग लिए बढ़ रहे है ।
आखिर मूल मिलावे में आके धनी से मिल के उनकी आँखों से आँखों मिली तो पिया मुझे देख के मंद मंद मुस्कुरा रहे है नटखट सी अदा से।
मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरे दिल की बात को जान ने वाले दूल्हा मुझे कह रहे है चलो मेरे प्राणों से प्रिय प्रिये आज खेल खेलते है एक दूजे को निहारते है ।
तब दिल की खुशि और बढ़ गयी ।
और पिया मेरा हाथ थामे मुझे आगे ले जा रहे है ।
पिया का हाथ थामना ही एक इश्क़ की गुद गुदी सा खेल मानो हाथ खेल रहे है ऐसा लगता है ।
दिल में आज नया उमंग तरंग लेके आगे चल रहे है ।
में पिया को देखे ही जा रही हु और पल भर में कब दूजी भोम में आ गयी पता ही ना चला उन्हें निहारते निहारते ।
मेरे शीस महल में जहा हर ज़रा ज़रा शीसे का दर्पण का बना है वहा हम आ पहोंचे ।
में शीस महल को देख के खुद के अनंत प्रतिबिंब देख के गोल गोल घूम रही हु ।
पिया मुझे कहते है मेरी रूह मिलन का सुनहरा पल इस शीस महल में मिलता है ।
जहा खुद में ( धनि ) ही दर्पण बना खड़ा हु और उस में तुम्हारी छबि यह सुनहरा मिलन हे मेरा और तुम्हारा जहा मुज में तुम समा जाती हो ।
इस शीस महल को भुलभुलव नी कहते है क्यों की यहा हम एक दुजे को भूल के एक होने की रामत हँसी के साथ खेल ते है ।
जहा में और तुम इतने एक हो जाते है में दर्पण बन के और तुम मुज में प्रतिबिंब बन के की और फिर भी तुम मुझे पकड़ ने के लिए खुली आंखो से आँख मिचोली का खेल खेलते है ।
यही तो भुलवनि है ।
में यह नजारा देख के इतनी खुश हो रही हु की उसे सब्दो में बया नहीं कर सकती ।
दिल की ख़ुशी की कोई भाषा नहीं होती है वह तो अपने आप मुख पे झलक आती है में अपने आप को शीस महल के शीसे में देख रही हु मेरे मुख पे लाली मा छा गयी है ।
पिया कहते है चलो रूह आज खेल खेलते है भुलवनि का ।
तुम मुझे ढूंढो ।
और प्रेम का खेल खेलते है ।
हर एक दरपन में पिया नजर आ रहे है ।
एक और दरपन का नूर प्रेम के इस खेल में बढ़ रहा है तो दूजी और पिया की हर छबि का नूर और साथ ही मेरी भी हर छबि का नूर झलकार कर रहा है ।
इस पिया के अभुसन और वस्त्रो के नंग और रंग की रोसनी और मेरे भी आभुसन और वस्त्रो की रोशनी हर एक दर्पण को सजा रही है ऐसा लग रहा है ।
और हर तरह अनंत रंगो का मोहल सा छा गया है लगता है जेसे हाथो में रंग लेके हवा में उछाल दिए है ।
हर तरह 10 दिशा में छत से लेके जमीन तक हर तरफ पिया का और मेरा प्रतिबिंब ऐसे खेल रहा है की दर्पण भी चेतन ता के गुण से नाच ने लगे है ।
अनेको रंगो से सजे दर्पण में नक्सकारी देख के दिल और भी ज्यादा खुश हो रहा है ।
अब मानो खेल का मजा आ रहा है ।
जहा पिया को पकड़ ने में दौड़ती हु और उनकी छबि को दर्पण में असल समज के जेसे ही पकड़ने जाती हु तो जाके दर्पण में टकरा जाती हु ।
यह देख पिया हँसे जा रहे है जोर से और में भी हँस रही हु ।
पिया के हँस ने की आवाज हर और एक संगीत बन के छा गई है जिस संगीत से खेल का मजा और ज्यादा बढ़ गया है ।
एक क्षण के लिए में ठहर सी गयी तो पिया चपल ता से बाहे फेला रहे है जे अपने पास बुला रहे है में जेसे ही उनसे गले मिलने दौड़ के जाती हु की फिर से दर्पण में टकरा जाती हु।
यह देख के दर्पण की चित्र कारी भी हँस ने लगी है ।
फिर से में टकरा गयी दर्पण में यह देख के पिया और हर चित्रकारी हर दर्पण हँस ने लगे साथ में मेभी हँस ने लगी हु ।
पिया और चपलता से चंचल नटखट अदा से मुझे नैनो से इश्क़ का घायल करने वाले इसारे करके बुला रहे है ।
और में मुग्ध सी हो के उनके नैनो की डोरी से खिची जाती हु की फिर से छलिया मुझे छल लेते है और में दर्पण में उनकी छबि से टकरा जाती हु ।
अब में बार बार टकरा के आखिर उस छलिया को पकड़ने के लिए दिल में सोचती हु की अब में बैठ जाती हूँ ।
में बैठ जाउगी तो उन्हें लगेगा में थक गयी हु और वो मेरे पास आ जायेगे ।
और में उन्हें पकड़ लुंगी।
यह सोचक में शीसे से ही बनी खुर्शी पे जाके बैठ जाती हु ।
खुर्सी भी दर्पण की इतनी सुंदर है की क्या कहना उस सोभा का ।।
दिल के राजा से कहा कोई राझ छिप सकता है ।
वो ही तो दिल है मेरा ।
उन्हें पता है दिल की हर एक बात को ।
एक पल के लिए वह पास आये ऐसा लगता है और कह रहे है अभी खेल खत्म नहीं हुवा है ।
अभी से बैठ गयी ।
और में समजी पिया सच में पास आ गए और में उन्हें पकड़ ने हाथ आगे किया की देखा फिर से छबि को ही पकड़ लिया ।
फिर से में पिया को पकड़ ने के लिए खड़ी हो गयी ।
अब तो आप को पकड़ ही लुगी यह कहके खड़ी होकर उन्हें पकड़ ने पकड़ ने के लिए जाती हू ।
पिया हाथो से ताली की आवज करके पास बुलाते है आओ सजनी आओ .....
उफ़... उनकी अदा ...
खेल में भी बस प्यार बढ़ा रहे है ।
ताली की आवाज को सून के उस और दौड़ के पकड़ ने जाती हु और इस बार आप को गले से लगा लुगी यह कह के पिया ही खड़े है यह मान के बाहे फेला के पकड़ ने जाती हु तो फिर से छबि को ही पकड़ लिया ।
दर्पण की इस भोम में खेल ते खेलते उनके इश्क़ में साँसों ने भी गति ज्यादा कारली है ।
में दर्पण में टकराई तो मेरी गर्म साँसों ने दर्पण को और ज्यादा सजा दिया ।
ओस की बूंदों की तरह साँसों की हवा ने दर्पण पे बुँदे बना दी ।
अब का नजारा हर एक नज़ारे से बढ़ के बन गया ।
एक तो दर्पण में 10 दिशा में पिया ही पिया दिख रहें है ।
उस पे साँसों की ओस की बूंदे भी दर्पण जेसी ही लग रही है ।
गोल गोल दाने के रूप को लीये इस बूंदों में भी अब पिया की छबि दिख रही है ।
और ज्यादा छबिया पिया की दिख ने लगी ।
अब तो लगा पिया जेसे पकड़ में नही आ पायेगे ।
पर इश्क़ की गर्मी की ठण्ड में वह भी दूर कहा रह सकते है ।
और इस बार प्रतिबिंब को नहीं पिया को पकड़ ही लुंगी इस ईमान के साथ आगे बढ़ती हूँ पिया से दिल की कोई बात कहा छिपि है ।
इश्क़ के ईमान को देख वह भी अब दूर नहीं रह सके और इस बार मेने सोचा और पिया से कहा अब में आप को नही पकड़ने वाली आप की छबि को ही पकडूगी।
और यह सोच के की इस बार भी में छबि से टकरा जाउगी पर इस बार ऐसा नहीं हुवा ।
और सच में इस बार पिया को ही पकड़ लिया ।
मेने पकड़ा नहीं है उन्हों ने खुद आके अपना हाथ मुझे पकड़ाया है यह जानती हू फिर भी पिया को पकड़ ही लिया यह सोच के खुश हो रही हूँ।
आखिर पीया पकड़ में आही गए।
और वह भी यही दिखा रहे है की मेने उन्हें पकड़ ही लिया ।
और पूछ रहे है मजा आया खेल में ।
और में मुस्कुराके कहती हु पिया आप को मजा आया
मुझे तो बहोत ही मजा आया जितना सुख आप के हाथ को पकड़ के आप के नर्म स्पर्स से मिल रहा है उतना ही सुख आप की छबि को पकड़ के मिल रहा था ।
और पिया हँस के कहते है तो चलो एक बार फिर खेलते है ।
और में कहती हु इश्क़ का खेल तो आप से पल पल खेल ते रहना ही चाहती हु पिया ।
और इतने में इस माया के नश्वर तन का पर्दा बिच में आ गया और आँखे खुल गयी ।
आँखे खुल ने के बाद भी उस सुख का खुमार मुस्कान होठो पे और दिल में है ।
पिया बस इतना ही कहना है ।
अर्श में इश्क़ का वह खेल हमेसा खेलना है मुझे ।
फर्श के इस खेल से अब आजाद करदे मुझे ।
फर्स की आँखे अब की बार ऐसे बंध हो
की अर्श में आँखे खुल जाये हमेसा के लिए मेरी ।
ऐसा करदे अब पिया ।
प्राणों में बन के G1 की धारा
पल पल सजाये अर्श सारा
महेके सुमन या
महके नूर सारा
हर रूप में
वो ही प्यारा
वो ही में वो ही तू
जेसे छब और दर्पण ।।
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