Saturday, 30 April 2016

ये सयन खण्ड हमारा , ये सेज्या , ये तकिये , ये चादर , ये अर्श का ज़रा जरा तुम्हारी राह तक रहे है

आज की रात अनोखी रात लग रही है मेरे तन को मेरे मन को मेरे दिल को ।

गर्मी की इस रुत में फर्श पे पोछा लगाके बिना कोई पलंग बिना कोई चद्दर गद्दा के फर्श पे लेटे लेटे खिड़की से आ रही मंद पवन की लहरे नजरो को  खिड़की के बहार देखने को व्याकुल करती है ।


जब मेरी नजरे खिड़की के बहार के नजारे  को देख रहे थी ।

घने खुले बादलो में सोले कलाओ से खिला आज का पुनम का चांद , और चांद की शीतल चांदनी मुझे उसकी और खीच रही थी । और तारे मुझे जुगनु की तरह टीम टिमाते हुवे और पास खिचे जा रहे थे ।
उसपे एक पल में ठंडी पवन की ऐसी लहर आई की मेरी आंखे बंध हो गयी और एक गहरी सांस लेते हुवे मेने करवट ली। 

और में उस पवन की लहर बनके दूर दूर तक उड़ने लगी ।।
पवन सी लहराती हुवी में एक पल में देखते ही देखते गुम्मट जी में पहोंच गयी ।
गुम्मट वाले का दरबार आज की सुहानी पुनम की रात में ऐसे चमक रहा था की मुझे अर्श की के सुख में खो जाने को मानो कहे रहा था ।

मेंने गुम्मट जी में प्रणाम करते हुवे सिंहासन पे बिराजमान धनी को निहारा ।

पातघाट रूप सिंहासन पे धनी मुझे बुला रहे हे झिलना करने और इस चांदनी रात में जमुना का जल बहता हुवा मुझे अर्श तक ले चला ।

और में पल भर में जमुना के किनारे जल में पेरो को डुबाये बैठे हुवे निहारा ।

रात का ये हसीन समा सर पे चांद की छाया

देखके मुझे ऐसा लगा में चकोर हु और में मेरे चाँद मेरे पीया को निहारने चली हु।
पिया मन भाये सिंगार सज के ।
जमुना से आगे बढ़ के में अमृत बन से चलती हुवी चांदनी चौक में आई ।
आकाश में चाँद और जमीन पे चांदनी चौक एक दूसरे के पर्याय लग रहे है ।

चांदनी चौक से में थोड़े दक्षिण की और गयी कुंज निकुंज के मन्दिर में ।
और वहा से इस चांदनी में खिले महकते हुवे फूलो को अपनी चुनरी में भरके अब में आगे बढ़ी ।

ये फूलो की महेक एक अनोखी ताजगी भर रही थी ।
मानो कुछ कह रही थी मुझे ।

में इन फूलो की खुश्बू में खोती हुवी सीढिया चढ़ के धाम दरवाजे से आगे रंगीन रंग महोल में अंदर आगे चली ।

जेसे ही अंदर पैर बढ़े की फूलो की महेक और बढ़ गयी और में जेसे खुद को भुल गयी ।
और अब मेरे कदम न जाने अपने आप बढ़ने लगे ।
ये कदम कहा बढ़ रहे थे मुझे खबर नही पर बस एक मन मोहक महोल शीतलता हर तरह छायी हुवी थी ।

जो एक अलग ही आनंद मुज में भर रहा था ।
और ये अनोखा महोल मुझे लाल रंग से सजी रंग परवाली में ले चला ।

जेसे ही मेरे रंग परवाली के मन्दिर का दरवाजा खुला ।
ना कभी देखि ना सोची ऐसी अनंत सुंदरता को धारण किये हुवे मेरा सयन खण्ड सजा हुवा था ।
और आज इस सयन खण्ड को खुद मेरे धनी ने मेरे लिए सजाया हुवा था ।
हमारी 3 भोम में हुवी सुबह की शादी के बाद की यह सुहानी रात पुनम की एक अलग अहसाह अलग इश्क़ अलग प्रेम बरसा रहा था मौसम ।

सामने सजी सेज्या जिसपे सफेद गद्दा सफेद चादर मुझे पास बुला रही थी ।

इतनी सुंदर सेज्या की क्या कहना ।
सेज्या पे हाथ जब मेने फेरा तो इतना कोमल अहेसास इतनी नर्म ये शोभा की किस सब्द में उस सुख सेज्या का वर्णित करु ।
सेज्या की ईस कोमलता को छूके मेरी चुनरी में सजे फूल याद आये मुझे ।

मेरे लिए मेरे पिया ने खुद सजाया ये सयन खंड देखके मुझे भी मेरे पीया को रिझाने का दिल हुवा ।

और मेंने पल भर में उन फूलो सारे फूलो को मेरे पिया के लिए सेज्या पे सजा दिए ।
जैसे ही फूलो ने सेज्या को और सुंदर सजाया की धनी फूलो की महेक से खिचे हुवे रंग परवाली में पधारे ।
पीया का स्वागत करते हुवे ये फूलो पीया के आने पर और ज्यादा खुश्बू बिखेरने लगे ।
और पीया मुझे सामने देख के ख़ुशी से गले लग गए ।

पिया मेरे गले लगते हुवे मेरे कान में कहने लगे ।
मेरी रूह मेरे नूरी तन कब से में तुम्हारा इंतजार कर रहा हु ।
ये  सयन खण्ड हमारा , ये सेज्या , ये तकिये , ये चादर , ये अर्श का ज़रा जरा तुम्हारी राह तक रहे थे ।
और पिया ने हाथ थामे नूरी सेज्या पे मुझे बिठाया ।
और मेरे साथ ही मेरे पीया मेरे पैरो पे सर रख के लेटे ।

ये अभी तक सिर्फ सेज्या थी ।
लेकिन अब पीया के संग इन पलो से ये सुख सेज्या बन रही है मेरी। 

पीया के घुंघराले बालो में हाथ फेरते हुवे पीया के नैनो में नैन मिलाते हुवे मेने इशारो में कहा अब रह्यो न जावहि पीया आपके बिन ।
और पिया लेटे थे तो बैठ गए और नजरो से नैनो से गले लगा लिया ।।

इस कोमल नर्म सुख सेज्या पे जब पीया साथ है तब यहा सयन की लीला नही पर जाग्रति की असल लीला पिया के साथ है मेरी ।


जेसे ही पीया ने गले लगाया सफेद चादर इश्क़ के इस रंग में लाल हो गयी ।
इश्क़ का लाल रंग तो अभी बस चढ़ना सुरु ही हुवा है ।

पिया ने मुझे अपने नजदीक बिठाके इस सुख सेज्या पे भात भात के सुख देके रिजा रहे है ।

पहले पिया मेरे नजदीक आके मुझे खिड़की से आकाश की और इसारा करते हुवे चाँद दिखा रहे है 
पर मेरी नजरें मेरे पास बैठे चाँद को निहारना चाहती है पर मेरे गुण अंग इंद्री मेरे रहे ही नही ।
मेरा सब कुछ आज पिया में समाया डूबा हुवा है ।

पीया जेसे रिझाये वेसे में रीझना और पीया जेसे रीझना मुझसे चाहे उस तरह में उन्हें रिझाना चाहती हु ।
उस खिड़की से सुख सेज्या पे पड रही चांदनी ,
और मन्द मन्द बहता हुवा ठंडा पवन हमे और पास लाने में मदद कर रहे थे ।


आज मेने किसी भी आभूषण का सिंगार नही किया था ।
क्यों की आज मुझे पीया के इश्क़ के आभूषण से सजना है ।

पीया के इश्क़ के लाल रंग में रंगना है
आज इश्क़ की रात छिड़ी है ऐसा लग रहा है ।
मुलायम रात में पिया का साथ सुख ही सुख दे रहे है ।

पिया से नजरे ऐसे मिली है मानो जाम झलकते मिले है 
आज लगता है इश्क़ की गजल रचने वाली है ।

आज दिल के सारे अरमान बहार निकलके पीया से मिलेगे ऐसा लग रहा है ।
चांदनी रात में मेरी आँखों में इश्क़ के तारे सजे है आज ।
"आज तन ,मन , दिल से पीया की बनी हु सही मायनेमे ।"

पिया मेरे हाथ को पकड़ के इश्क़ रूपी चूड़ी खनका रहे है ।
बिंदिया चाँद से भी ज्यादा चमक रही है ।
तो पैर की पायल मधुर संगीत सयन खण्ड में बिखेर रही है ।
और इन इश्क़ के पलो में पिया का होले से गले लगाना 😊😊 

............ क्या कहना इस सेज्या पे इस सुख का  ।
दीवानगी का महोल ऐसे सजा हे रंग रंगली परवाली में की सयन तो यहां होही नही सकता है ।
आशिक की आशिकी का नसा ऐसा छा रहा है की बहेकने के लिए दिल तैयार है ।

ये इश्क़ ही ऐसा हे की नींद का आँखों से रिस्ता टूट गया है ।
बस प्यार ही प्यार ऐसा है की ना पीया मुझे ना में पीया को सोने दे ।
अखंड इश्क़ की रात में नींद आयेभी तो आये कैसे .?
इश्क़ की लीला में पीया की अंगड़ाई कयामत ढा रही है मुज पे ।
और उस पे धड़कनो की बढ़ी रफतार इश्क़ के लाल रंग को और गहेरा करती है ।
सांसो की गर्मी , पिया के फूलो से भी नर्मी अधर अर्श के कण कण के चेतना भर रहे है  ।
और मेरे साथ हर जरे जरे की प्यास मानो बुजा रहे है पीया ।
पिया इश्क़ के इन रंगो से मुझे रिझा रहे है ।
अब अखंड अद्वैत में एक होने के लिए इश्क़ का और बढ़ाव मेरा अस्तित्व पिया में समाये जा रहा है ।

पिया के बाहो के समुन्दर में मेरा कश्ती सा तन सागर से ऐसे मौज दे रहा है की में बह जाती हु पिया में ।
मुझसे मेरी चुनरी की तरह लिपटे पियामें में एक हो गयी ।
इस सुख सेज्या पे इश्क़ के इस लाल रंग में मेंने खुद को खो दिया ।

जेसे दो रंग मिलने पे जुदा नही हो सकते उसी तरह में पीया में मिल गयी ।

और पीया मुझमे ।

अद्वैत की जमीन पे अद्वैत का असल सुख इस रंग परवाली में कहा नही जाता ज्यादा ।


बस इस सुख को तो खुद खोके जाना जा सकता है ।





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