पशू पक्षी पैड पौधे सागर लेहरे महल मंदिर सभी धनी के दिदार में झूम रहे थे और मैं भी पडसाल में खडी खडी ऊन्ही के दिदार में ऊनमे समाती जा रही थी..पर अचानक ही धनी ने अपनी तीरछी नजर मेरी और फेंकी तो वह नजर तीर की भांति दिल में समा गई..अब तक की दिदार की मदहोशी से शांत हो रहा दिल एक दम ही दिल में चूभी हूई नजरो के तीर के ताल पर थिरकने पर मजबूर हो गया..और मानो रोम रोम में ऐसी लेहरे ऊमडने लगी कि दिल धनी के दिल पर इश्क की थाप देने के लिए बेकरार होने लगा....
धनी मेरी यही बेकरारी यही ऊत्सूकता भाप कर मेरे दिल को थामे मूझे निरत की हवेली की और लेकर चल दिए...निरत की यह चौथी चोरस हवेली पिया के आने की आहट से दूल्हन की तरह स्वतह ही सज गई..चारो दिशाओं में देखे तो नूर ही नूर बरस रहा था,हम पूवॅ की और खडे खडे इस नई सजी हूई दूल्हन के नजारे को दिल में बसा रहे थे,चारो दिशाओ से भांति भांति के रंग की नूरी रंगबिरंगी किरने ऊसके मुख्य रंगो के साथ मिलकर एक अनेरे दृश्य का निरूपण कर रही थी..और देखो तो पूवॅ की सफेद,दक्षिण की लाल,उत्तर की पीली और पश्चिम की नीली(ब्ल्यू) किरनो ने मिलकर हवेली के बीच में आए हूए चबूतरे पर बिछी हूई गिलम पर अपने दिल को मानो ऐसे बिखेरा है जैसे कि कोई चित्रकार केनवास पे अपने दिल को बिखेरता हो...पूवॅ की नीली दहेलान को पार करके धनी के संग मैं थंभो की एक हार को पार करते हूए हवेली के चबूतरे पर पहुंची.. चबूतरे की गिलम पर पाँव पडते गिलम की हसी पूरे शरीर में फैल गई और मैं भी हँस पडी...वहाँ धनी के पैरों ने जैसे ही गिलम को छूआ नूरी सिंहासन अपने आप चबूतरे पर सज गया .. सिंहासन सजते ही धनी के नूरी हाथ को थामे मैंने ऊन्हे ऊसी नूरी सिंहासन पे बिराजित किया...जैसे ही धनी बिराजित हूए ऐसे ही चबूतरे पर आई हूई थंभो की हार में शोभित सभी पशू पक्षी धनी के दिदार में मग्न होने लगे,और तीनो दिशाओ में आए हूए मंदिरो में से भी सभी प्रकार की खूबखूशालिया धनी के संग आज झूमने के लिए बहार आने लगी.. चबूतरे और थंभो की हार के बीच में पडती गली पूरी पशू पक्षीओ और अन्य खूबखूशालियो से भर गई,कि मानो आज कोई विशेष रामत ना होने वाली हो!..और हो भी क्यो ना,दिल थिरक ऊठा है जो धनी के लिए..धनी से नजरे मिलते ही पैर थिरकने को तैयार हो गए... मैंने धीरे धीरे धनी की और अपने कदम बढाये,जैसे जैसे कदम बढाती ऐसे ऐसे मेरे पैरो में झांझरी,घूघरी,कांबी,कडला एक के बाद एक नए ही रूप में सजने लगे..धनी के पास पहुंच कर जरा ऊनकी और झूकी तो मानो ऊस नजारे को पीने पूरी हवेली ही थम सी गई....धनी के दोने कंधो पे मैं दोनों हाथों के बाजूओ को मोडे ऊनकी नजरो से नजरे मिलाई हूई अपने दाए पैर को बाए पैर में मोड कर ऊन पर कमर में से झूकी हूई मैं एक मनमोहक अदा में खडी थी...नजरो से दिल के अमीरस को पीते हूए जैसे ही मैंने अपने दाए पैर के अग्र भाग की थाप गिलम पर दी तो मानो जैसे किसी तालाब मे कंकर डालने पर ऊससे ऊठने वाली तरंगे सभी किनारो को छू जाती है ऐसे ही इश्क की इस थाप की लहेरे पूरे परमधाम में फैल गई,और मानो पूरा धाम ही ऊस इश्क की थाप में थाप मिलाने तैयार हो गया.. धनी ने अपने रसीले होठो से मेरे होठो पे सभी सूर ऐसे अंकित किए कि फिर तो मैं कहाँ रूकने वाली थी..पैर अपने आप ही अलबेली थाप देते हूए थिरक रहे थे..कमर मानो टूट कर अभी बिखर ही जाने वाली हो ऐसे लहेरा रही थी..कलाइयाँ भांति भांति के मोड पे मूडती हूई धनी के दिल को जीत रही थी..ठोलक,त्रांसे,मंजिरे,बांसूरी की मधूर आवाज मेरे कानो मे रस घोल रही थी और मैं ऊन्ही सूर पे अपने आप को भूल कर निरत कर रही थी..जिस किसी अंग की कारीगरी में नृत्य में करती जाती थी..ऊस ऊस अंग का नया सिनगार होता जाता था...कूछ ही पल में मैं एक नए ही जो पूरे घाम के दिल से निकला वैहे सिनगार में सज गई थी..थंभ और चबूतरे की गली में बैठे पशू पक्षी,धनी और पूरा धाम मेले नृत्य को बडी तल्लीन ता से पी रहे थे...और यह हवेली तो मेरे साथ मै जैसे ही गोल घूमू वह भी गोल घूम रही थी...और मेरा रूप रंग भी जैसे जैसे नृत्य आगे बढ रहा था वैसे वैसे और नित नवीन रूप मे खिल रहा था..उत्तर की और मै जाती तो पूरे धाम को मै पीले रंग सी प्रतीत होती,पश्चिम की और मूडती तो सफेद रंग की,पूवॅ की और मूडती तो नीले रंग की और दक्षिण की और मूडती तो लाल रंग की.. वास्तव में ऐसा ईसलिए दिख रहा था की मै जिस किसी दिशा की और मूडती तो ऊस दिशा के मंदिर या थंभ के रंगो कि किरने भी मेरे साथ ताल से ताल मिला कर नृत्य कर रही थी...नृत्य का खूमार अब अपने चरम पै था..पशू, पक्षी, पैड पौधे, थंभ, हवेलियां, चबूतरे महल,नहेरे,धजाए,हिंडोले सबके सब ताल मिला ईर मेरे संग झूम रहे थे.. और प्रियवर ईस अदभुत दृश्य को निहारते हूए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे..ये हम नहीं ऊनका दिल ही झूम रहा था..और ऊसी पल मैने धनी को अपने संग पाया ममैं ऊनकी बाहो में थी ऊनकी नजरे मेरे दिल में इश्क की थाप दे रही थी..मै ऊस थाप को बस पीये जा रही थी,पीये जा रही थी....और नृत्य चल ही रहा था अविरत..पूरा धाम झूमते ही जा रहा था,झूमते ही जा रहा था...
👆इश्क की थाप,धनी के संग❤💃
धनी मेरी यही बेकरारी यही ऊत्सूकता भाप कर मेरे दिल को थामे मूझे निरत की हवेली की और लेकर चल दिए...निरत की यह चौथी चोरस हवेली पिया के आने की आहट से दूल्हन की तरह स्वतह ही सज गई..चारो दिशाओं में देखे तो नूर ही नूर बरस रहा था,हम पूवॅ की और खडे खडे इस नई सजी हूई दूल्हन के नजारे को दिल में बसा रहे थे,चारो दिशाओ से भांति भांति के रंग की नूरी रंगबिरंगी किरने ऊसके मुख्य रंगो के साथ मिलकर एक अनेरे दृश्य का निरूपण कर रही थी..और देखो तो पूवॅ की सफेद,दक्षिण की लाल,उत्तर की पीली और पश्चिम की नीली(ब्ल्यू) किरनो ने मिलकर हवेली के बीच में आए हूए चबूतरे पर बिछी हूई गिलम पर अपने दिल को मानो ऐसे बिखेरा है जैसे कि कोई चित्रकार केनवास पे अपने दिल को बिखेरता हो...पूवॅ की नीली दहेलान को पार करके धनी के संग मैं थंभो की एक हार को पार करते हूए हवेली के चबूतरे पर पहुंची.. चबूतरे की गिलम पर पाँव पडते गिलम की हसी पूरे शरीर में फैल गई और मैं भी हँस पडी...वहाँ धनी के पैरों ने जैसे ही गिलम को छूआ नूरी सिंहासन अपने आप चबूतरे पर सज गया .. सिंहासन सजते ही धनी के नूरी हाथ को थामे मैंने ऊन्हे ऊसी नूरी सिंहासन पे बिराजित किया...जैसे ही धनी बिराजित हूए ऐसे ही चबूतरे पर आई हूई थंभो की हार में शोभित सभी पशू पक्षी धनी के दिदार में मग्न होने लगे,और तीनो दिशाओ में आए हूए मंदिरो में से भी सभी प्रकार की खूबखूशालिया धनी के संग आज झूमने के लिए बहार आने लगी.. चबूतरे और थंभो की हार के बीच में पडती गली पूरी पशू पक्षीओ और अन्य खूबखूशालियो से भर गई,कि मानो आज कोई विशेष रामत ना होने वाली हो!..और हो भी क्यो ना,दिल थिरक ऊठा है जो धनी के लिए..धनी से नजरे मिलते ही पैर थिरकने को तैयार हो गए... मैंने धीरे धीरे धनी की और अपने कदम बढाये,जैसे जैसे कदम बढाती ऐसे ऐसे मेरे पैरो में झांझरी,घूघरी,कांबी,कडला एक के बाद एक नए ही रूप में सजने लगे..धनी के पास पहुंच कर जरा ऊनकी और झूकी तो मानो ऊस नजारे को पीने पूरी हवेली ही थम सी गई....धनी के दोने कंधो पे मैं दोनों हाथों के बाजूओ को मोडे ऊनकी नजरो से नजरे मिलाई हूई अपने दाए पैर को बाए पैर में मोड कर ऊन पर कमर में से झूकी हूई मैं एक मनमोहक अदा में खडी थी...नजरो से दिल के अमीरस को पीते हूए जैसे ही मैंने अपने दाए पैर के अग्र भाग की थाप गिलम पर दी तो मानो जैसे किसी तालाब मे कंकर डालने पर ऊससे ऊठने वाली तरंगे सभी किनारो को छू जाती है ऐसे ही इश्क की इस थाप की लहेरे पूरे परमधाम में फैल गई,और मानो पूरा धाम ही ऊस इश्क की थाप में थाप मिलाने तैयार हो गया.. धनी ने अपने रसीले होठो से मेरे होठो पे सभी सूर ऐसे अंकित किए कि फिर तो मैं कहाँ रूकने वाली थी..पैर अपने आप ही अलबेली थाप देते हूए थिरक रहे थे..कमर मानो टूट कर अभी बिखर ही जाने वाली हो ऐसे लहेरा रही थी..कलाइयाँ भांति भांति के मोड पे मूडती हूई धनी के दिल को जीत रही थी..ठोलक,त्रांसे,मंजिरे,बांसूरी की मधूर आवाज मेरे कानो मे रस घोल रही थी और मैं ऊन्ही सूर पे अपने आप को भूल कर निरत कर रही थी..जिस किसी अंग की कारीगरी में नृत्य में करती जाती थी..ऊस ऊस अंग का नया सिनगार होता जाता था...कूछ ही पल में मैं एक नए ही जो पूरे घाम के दिल से निकला वैहे सिनगार में सज गई थी..थंभ और चबूतरे की गली में बैठे पशू पक्षी,धनी और पूरा धाम मेले नृत्य को बडी तल्लीन ता से पी रहे थे...और यह हवेली तो मेरे साथ मै जैसे ही गोल घूमू वह भी गोल घूम रही थी...और मेरा रूप रंग भी जैसे जैसे नृत्य आगे बढ रहा था वैसे वैसे और नित नवीन रूप मे खिल रहा था..उत्तर की और मै जाती तो पूरे धाम को मै पीले रंग सी प्रतीत होती,पश्चिम की और मूडती तो सफेद रंग की,पूवॅ की और मूडती तो नीले रंग की और दक्षिण की और मूडती तो लाल रंग की.. वास्तव में ऐसा ईसलिए दिख रहा था की मै जिस किसी दिशा की और मूडती तो ऊस दिशा के मंदिर या थंभ के रंगो कि किरने भी मेरे साथ ताल से ताल मिला कर नृत्य कर रही थी...नृत्य का खूमार अब अपने चरम पै था..पशू, पक्षी, पैड पौधे, थंभ, हवेलियां, चबूतरे महल,नहेरे,धजाए,हिंडोले सबके सब ताल मिला ईर मेरे संग झूम रहे थे.. और प्रियवर ईस अदभुत दृश्य को निहारते हूए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे..ये हम नहीं ऊनका दिल ही झूम रहा था..और ऊसी पल मैने धनी को अपने संग पाया ममैं ऊनकी बाहो में थी ऊनकी नजरे मेरे दिल में इश्क की थाप दे रही थी..मै ऊस थाप को बस पीये जा रही थी,पीये जा रही थी....और नृत्य चल ही रहा था अविरत..पूरा धाम झूमते ही जा रहा था,झूमते ही जा रहा था...
👆इश्क की थाप,धनी के संग❤💃
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