इश्क की थाप पे थिरकते हूए मूझ पर इश्क का ऐसा रंग चढा की,ऊस लाल रंग की लालिमा पूरी निरत की हवेली में फैल गई..मैं थिरक रही थी और धनी मूस्कुरा रहे थे वे जानते थे यह लाल रंग किस लिए चढा है..जैसे जैसे समय आगे बढ रहा था वैसे वैसे यह लाल रंग और गहेरा होता जा रहा था..कूछ ही पलो में मेरा पूरा बदन प्रवाल के नंग की भाति गहेरा लाल रंग लिए चमकने लगा..बस ऊसी पल धनी ने जरा हल्के से इशारा किया चलने को..पर मेरे तो पैर ही नहीं रूक रहे थे.. मैं तो थिरक रही थी ..धनी जान गए की मै नहीं रूकने वाली थी...मैं थिरक रही थी..धीरे से वे मेरे पास आए और मुझे जैसे कोई गूलाब के फूल को उठाया हो वैसे दोनो हाथो से उठा लिया और चल दिए..जैसे ही धनी ने मूझे अपनी गोद में ऊठाया ऊसी पल मेरा और धनी का पूरा सिनगार गेहरे लाल रंग में बदल गया...पाँचवीं भोम में जाने की सीढियों पे धनी मूझे अपनी गोद में ऊढाए हूए सीढियां चढ रहे थे..मैं बस ऊनके गले मे अपनी बांहे डाले ऊनके नैनो मे ऊमड रहे गहेरे लाल रंग के सागर में डूबे जा रही थी..मेरे पल्लू मे लगी घूघरीया सीढियों के संग मिलाप करती हूई ऐसी तान छेड रही थी कि जिसमे हमारे पीछे पीछे चल रहा पूरा परमधाम लाल हूए जा रहा था.. धनी जैसे मूझे लेकर पाँचवी भोम में पहूँचे रत्न जडित लाल गिलम अपने आप ही धनी के पैरो मै बिछ गई..धनी ने अपनी बाहो से मूझे नीचे ऊतारा तो मेरे पेटीकोट में लगी लाल छोटी धूधरियो को लाल गिलम चूमने लगी..ये नजारा देख कर मैं और धनी हस पडे....धनी ने धीरे से मेरा हाथ थामा और हम चल दिए अब अपनी मंझिल की और..जैसे जैसे आगे बढ रहे थे वैसे वैसे मेरे गालो पर लाल लालिमा और बढती जाती थी...मध्य मे आए नौ चोक मे से पूवॅ के एक चोक को पार करते हूए हम बिल्कुल बीच में आए चोक में पहूँचे जहाँ ना जाने कितने मंदिर झिलमिला रहे थे..धनी त्रैपुडे से चलकर मूझे बीच में आए हूए मंदिर में ले चले..इस बीच के मंदिर के इदॅ गिदॅ आए हूए मंदिर तो मानो ऐसे लग रहे थे कि मूलमिलावा ही ना बैढा हो! हर मंदिर में हर वो सामग्री थी जो दिल पे लाल रंग को और गहेरा करने के लिए काफी थी...वह नजारा ही दिल छू लेने वाला होता था जब धनी हर एक मंदैर में अनेको रूप लेकर हाजिर हो जाते थे..और हर एक मंदिर में बस सोने की नही पर एक दूसरे में खोने की लीला अनंत तक जारी रहेती थी.....बस ऊसी लीला को इस जहाँ की भाषा मे शयन कहे दिया,पर जहाँ पर बस ईश्क के लाल रंग में डूबने को एक होने को बेताब हम क्या शयन करेगें..अद्वेत में भी अद्वेत होनी की लीला ही रंग परवाली की लीला है,ऊसके दिल में डूब कर बिखर जाने की लीला ही रंग परवाली की लीला है.. धनी के संग जैसे ही मैं मंदिर में पहूची धनी के हीठो की लालिमा के लाल रंग ने मूझे घेर लिया..ऊनक बांहे मेरे गले में थी और मेरी ऊनके गले में..मैं ऊनके नैनो से ऊनके दिल में ऊतर रही थी तो वे मेरे नैनो से मेरे दिल में ऊतर रहे थे...कुछ ही पलो में एक दूसरे के दिल मे ऊतरने की लीला भी थम गई और दो की जगह पूरे मंदिर में एक ही धडकन सुनाई देने लगी.. .
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