😍पिया से मिलके आये नैन...😍 आज मैं चली चितवन मे ..
पन्नाजी के घुम्मट जी मे राजजी के दर्शन करकें सिहासन पे बिराजमान श्री राज श्यामाजी के चरणों में बैठे बैठे पाटघाट के चबूतरे पर खुदको बैठा हुआ पाया। जमुनाजी में झीलन कर पिया मन भाये सिनगार किया। सात घाट सात वन पार कर, चांदनी चौक में आकर खड़ी हो गई। सौ सीडी की लाल पशमी गिलम मुझे महसूस कर झूम उठी और मुझे चूम उठी। कहती है कबसे तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं मेरे पियाजी अब आ रही हो ... मेरे पाव रखते ही वो अधिक कोमल हो गई। मैं आगे बढ़ीं सामने दर्पण रंग के द्वार को देखा और उसके अन्दर अपना सिनगार देख कर मेरा दिल पिया मिलन को और अधिक तडप उठा। दरवाजे से अन्दर २८ थम्भ के चौक में पहुंची। नौ फिरावे के चार चौरस हवेली पार कर मैं पांचवी गोल हवेली में गई। वहाँ की अदभूत और मन को हरने वाली नूरी शोभा को देखते ही दिल खुशी से झूम उठा। पिया मिलन की आस और बढ़ गई। नीचे बीछी हुई मखमली एक रंग से अनेक रंगों की बौछार करतीं गिलम, उपर सजा हुआ चन्द्रवां, और पूरे मिलावे की शोभा को बढाता हुआ सिंहासन। सिंहासन की शोभा को देख पिया के चरणों में ही बैठीं रहूँ यही दिल से आवाज आई। फिर एक आवाज आइ और मैं पिया को ढूंढती हुई मूल मिलावे से आगे बढ़ीं।आवाज़ का पीछा करते करते मैं रसोई की हवेली, श्याम श्वेत मन्दिर से सिढियो वाले मन्दिर से सीडी चढके दुसरी भोम उसके बाद तीसरी भोम को पार किया। फिर एक आवाज आई। नीले पीले मन्दिर से होते हुए मैं आगे बढ़ने लगी।
वो आवाज़ मुझे खींचे जा रही थी अपनी ओर .... और मैं अपने आप चली जा रही थी।
वो आवाज़ मुझे चौथी भोम में लेकर गई।
वो चौथी भोम जहाँ हर रुह आशिक़ हो जाती हैं।
और अपनी आशिकी में अपने पिया को मासूक कर देती है।
आशिक़ मेरा नाम ....
चौथी भोम में प्रवेश कर देखा तो नूर ही नूर दिखे जा रहा है। पूर्व की ओर देखा तो २० मन्दिरो की शोभा मन मोह लेती है। जहाँ २० नीले रंग के थम्भ भी शोभायमान है। दक्षिण में भी २० मन्दिर और लाल रंग के २० थम्भो की हार आइ है। पश्चिम में श्वेत रंग के और उत्तर में पीले रंग की शोभा अधिक मनोरंजक है। आगे बढ़ते हुए मैं चबूतरे से अन्दर की ओर चली। अन्दर देखा तो मेरे प्राण प्रियतम मेरे आशिक़ सिंहासन पर विराजमान हैं। और वो अपने घूंघरु की आवाज से मुझे अपने पास आने पर विवश कर रहे है।
उन्होंने मुझे देखते ही जोर से मुझे ऐसे गले लगा लिया कि मेरी धडकन और उनकी धडकन एक हो गई ... और दिल ने कहा अब कभी भी दूर जाने की जिद्द ना करना ....
मुझसे कहा सबने एक से बढ़कर एक नृत्य कर मुझे रिझा लिया पर मैं और ये हवेली तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।
चलो क्या तुम मुझे नहीं रिझाओगी? आओ मेरी प्यारी मेरे पांव तुम्हारे साथ थीरकने को बेताब है।
पिया मनचाहा सिनगार एक पल में सज गया जैसे कि पिया ने ही मुझे सिनगार करा रहे हैं। मेरे पैरों में घूंघरु पिया ने कुछ इस तरह बांध दिये की मैं नाचने को बेचन हो उठी।
जैसे मोर और मोरनी
जैसे बादल और बीजली
जैसे आंखें और काजल
जैसे पूर्वा और पवन
जैसे चांद और चांदनी
जैसे सागर और लेहेर
इन सब को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही मैं और मेरे पिया ....
पिया ने जैसे ही घूंघरु की थाप दी कि .........
मैं दीवानी हो गई।
पिया ने अपने में मुझे ऐसे रंग दिया कि मैं झूम उठी और सारे बाजन्त्र बज उठे।
कभी मृदंग बजता कभी सेहनाई
कभी तंबूरा तो कभी बंसी
कभी ढोलक तो कभी अमृती
जब भी जैसे पांव उठते वैसा ही संगीत बज उठता।
और पिया मुझे ऐसी निगाह से देखते की मैं शरमाती हुई और आशिकी मे डूब जाती। पता ही नहीं चला कौन आशिक़ है और कौन मासूक। और पिया भी साथ में झूम उठे।
मैं पिया में और पिया मुझमें कुछ इस तरह खो गए की हम एक ही धडकन के सूरो में नाच उठे।
" नज़र जो तेरी लागी
मैं दीवानी हो गई...."
पन्नाजी के घुम्मट जी मे राजजी के दर्शन करकें सिहासन पे बिराजमान श्री राज श्यामाजी के चरणों में बैठे बैठे पाटघाट के चबूतरे पर खुदको बैठा हुआ पाया। जमुनाजी में झीलन कर पिया मन भाये सिनगार किया। सात घाट सात वन पार कर, चांदनी चौक में आकर खड़ी हो गई। सौ सीडी की लाल पशमी गिलम मुझे महसूस कर झूम उठी और मुझे चूम उठी। कहती है कबसे तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं मेरे पियाजी अब आ रही हो ... मेरे पाव रखते ही वो अधिक कोमल हो गई। मैं आगे बढ़ीं सामने दर्पण रंग के द्वार को देखा और उसके अन्दर अपना सिनगार देख कर मेरा दिल पिया मिलन को और अधिक तडप उठा। दरवाजे से अन्दर २८ थम्भ के चौक में पहुंची। नौ फिरावे के चार चौरस हवेली पार कर मैं पांचवी गोल हवेली में गई। वहाँ की अदभूत और मन को हरने वाली नूरी शोभा को देखते ही दिल खुशी से झूम उठा। पिया मिलन की आस और बढ़ गई। नीचे बीछी हुई मखमली एक रंग से अनेक रंगों की बौछार करतीं गिलम, उपर सजा हुआ चन्द्रवां, और पूरे मिलावे की शोभा को बढाता हुआ सिंहासन। सिंहासन की शोभा को देख पिया के चरणों में ही बैठीं रहूँ यही दिल से आवाज आई। फिर एक आवाज आइ और मैं पिया को ढूंढती हुई मूल मिलावे से आगे बढ़ीं।आवाज़ का पीछा करते करते मैं रसोई की हवेली, श्याम श्वेत मन्दिर से सिढियो वाले मन्दिर से सीडी चढके दुसरी भोम उसके बाद तीसरी भोम को पार किया। फिर एक आवाज आई। नीले पीले मन्दिर से होते हुए मैं आगे बढ़ने लगी।
वो आवाज़ मुझे खींचे जा रही थी अपनी ओर .... और मैं अपने आप चली जा रही थी।
वो आवाज़ मुझे चौथी भोम में लेकर गई।
वो चौथी भोम जहाँ हर रुह आशिक़ हो जाती हैं।
और अपनी आशिकी में अपने पिया को मासूक कर देती है।
आशिक़ मेरा नाम ....
चौथी भोम में प्रवेश कर देखा तो नूर ही नूर दिखे जा रहा है। पूर्व की ओर देखा तो २० मन्दिरो की शोभा मन मोह लेती है। जहाँ २० नीले रंग के थम्भ भी शोभायमान है। दक्षिण में भी २० मन्दिर और लाल रंग के २० थम्भो की हार आइ है। पश्चिम में श्वेत रंग के और उत्तर में पीले रंग की शोभा अधिक मनोरंजक है। आगे बढ़ते हुए मैं चबूतरे से अन्दर की ओर चली। अन्दर देखा तो मेरे प्राण प्रियतम मेरे आशिक़ सिंहासन पर विराजमान हैं। और वो अपने घूंघरु की आवाज से मुझे अपने पास आने पर विवश कर रहे है।
उन्होंने मुझे देखते ही जोर से मुझे ऐसे गले लगा लिया कि मेरी धडकन और उनकी धडकन एक हो गई ... और दिल ने कहा अब कभी भी दूर जाने की जिद्द ना करना ....
मुझसे कहा सबने एक से बढ़कर एक नृत्य कर मुझे रिझा लिया पर मैं और ये हवेली तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।
चलो क्या तुम मुझे नहीं रिझाओगी? आओ मेरी प्यारी मेरे पांव तुम्हारे साथ थीरकने को बेताब है।
पिया मनचाहा सिनगार एक पल में सज गया जैसे कि पिया ने ही मुझे सिनगार करा रहे हैं। मेरे पैरों में घूंघरु पिया ने कुछ इस तरह बांध दिये की मैं नाचने को बेचन हो उठी।
जैसे मोर और मोरनी
जैसे बादल और बीजली
जैसे आंखें और काजल
जैसे पूर्वा और पवन
जैसे चांद और चांदनी
जैसे सागर और लेहेर
इन सब को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही मैं और मेरे पिया ....
पिया ने जैसे ही घूंघरु की थाप दी कि .........
मैं दीवानी हो गई।
पिया ने अपने में मुझे ऐसे रंग दिया कि मैं झूम उठी और सारे बाजन्त्र बज उठे।
कभी मृदंग बजता कभी सेहनाई
कभी तंबूरा तो कभी बंसी
कभी ढोलक तो कभी अमृती
जब भी जैसे पांव उठते वैसा ही संगीत बज उठता।
और पिया मुझे ऐसी निगाह से देखते की मैं शरमाती हुई और आशिकी मे डूब जाती। पता ही नहीं चला कौन आशिक़ है और कौन मासूक। और पिया भी साथ में झूम उठे।
मैं पिया में और पिया मुझमें कुछ इस तरह खो गए की हम एक ही धडकन के सूरो में नाच उठे।
" नज़र जो तेरी लागी
मैं दीवानी हो गई...."
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