Thursday 28 July 2016

सातवीं भोम दो ताली हिंडोले ।। चितवन ।🤗🤗

आज जब में बहार खड़ी प्रकृति को निहार रही थी ।

उसकी सुंदरता जैसे मन मोह रहीथी ।

सावन का महीना जिसमे बरसात बरसोसे प्यासी धरती से गगन का मिलन इस मिलन से खिली खिली धरती पे हरीयाली मुझे कुछ कानो में कहे रही थी ।

इतने में बरसात की बूंदों से भीगे कबूतर पे मेरी नजरे टिकी ।

कई ठंड में ठिठुर रहे थे तो कई प्रेम में मगन थे तो कई अनोखा खेल खेल रहे थे ।

इलेक्ट्रिक सिटी के तार को झूला बना कर दो कबूतर झूला झूल रहे थे ।
इन्हें देख कर मुझे पिया की और सातवीं भोम की याद आ रही थी ।

सावन का मौसम और झूले का मानो कोई ख़ास रिश्ता है ।


ये सावन का रंगीला मौसम हर किसी को झूमने पर मजबूर कर देने वाला है ।

 चारों ओर हरियाली, ठंडी-ठंडी पवन की मदमस्त बयार, 
बारिश की रिमझिम और पीया की याद ।

फिर कैसे दिल मान सकता है सावन में बिना झूला झूले..., 

यही तो मौसम है अपने पीया के साथ जोर-जोर से सावन के गीत गाकर झूला झूलने का ।।

झूलो के इसी खयालो में आज  दिल खोया था ।

और मेरी आतम धनी के याद में खोई हुवी दूर पवन की और बढ़े जा रही थी ।
पल भर में मेने अपने आप को गुम्मट जी के दरबार में धनी के सनमुख पाया ।।

 पातघाट की शोभा धारण किये गुम्मट जी के सिंहासन पर धनी मुझे अपनी और बुला रहे है ।


धनी के दिल में समाते हुवे मेने अपने आप को जमुना जी के किनारे पर बेठा हुवा पाया ।

आज मेरा दिल जमुना जी में बिना भीगे झिलना करने का था ।

अभी दिल सोचहिं रहा था की आकाश में बादल छा गए ।।
बिजली कड़कने लगी ।
एक मधुर  संगीत बजाते हुवे हवा लहराने लगी अर्श की ।

कोयल की कुह एक और तो दूजी और  बुलबुल गाने लगी ।

जैसे की आज प्यार का मौसम आया है ।।
ऐसे प्रेम गीत मानो गाने लगे पंखी ।

आज जमुना जी में मन नही था झिलने का इसी लिए धनी खुद मानो घनघोर बादलो मेसे बरसात की मीठी मीठी बुँदे बन के मुझपे बरसने लगे और मुझे भीगा के झिलना करवा दिया ।

दिल आज इस प्रेम के मौसम में धनी के इश्क़ की बरसात में भीगकर और रंगीन होके में आगे चली ।

तो आगे मोर इस बादलो की , बिजली की और पवन की पुरवाई के संग संग ताल से ताल मिलाए पंख फैला कर मानो नाचने लगे है। 
मोर की इस थनगनाट के साथ मेरे दिल भी इस मौसम में नाचने लगा ।

बरसात की बूंदे चांदनी चौक की रेत को भीगा रही थी । 
भीगी रेत से इतनी मीठी ख़ुश्बू आ रही थी मानो इस खुसबू के सामने हर एक खुसबू कम लगे ।

मेरा दिल मोर के पंखो की तरह ही लहरा रहा है ।
और में मानो मोरनी बन कर अपने चीत चोर ऐसे मोर पीया को मिलने आगे बढ़ी ।

सीढ़िया पार करके धाम दरवाजे की चौखट को चूमती हुवी आगे चली ।

सीढ़ी वाले मन्दिर से में आगे बढ़ी ।

और हर कदम पर दिल में आज प्रेम का नया खेल धनी के साथ खेलने की चाह लिए आगे बढ़ रही थी ।
और सुहाने इस सावन के मौसम में पीया को देखने नजरे यहां वहां घुमा रही थी ।

इतने में मेने अपने आप को 3 भोम की पडसाल में निलो न पिलो रंग के मंदिर में पाया ।
जहां मेरे दूल्हा आरम कर रहे थे ।।

मेने पीया के चरणों को आँखों से ही चुमलिया की मेरे धनी उठके सेज पे बेठे ।

मेने पीया की नजरो में और पीया ने मेरी नजरो में देखा मानो कई दिनों से प्यासे आकाश और धरती का मिलन हुवा हो ऐसा लगा ।

मेने सेजके निचे रखे पान बीड़ी को निकाला और पीया को दिया ।
पियाने एक पान का बीड़ा हाथ में लेके पहले मुझे खिलाया आधा और आधा उन्होंने खाया ।

और मुझसे पूछा आज कहा जाना है मेरे दिल को..?

मेरे दिल की बात को वो जानते थे फिर भी मुझसे पूछ रहे थे ।

और मेने कहा ।
सावन की इस सुहानी मौसम में घनघोर बादल में भरा आप का इश्क़ ठण्डी पवन के संग दिल को प्रेम में जला रहा है ।

तो आप इन बादलो में से फुहार बनकर बरसके इस जलन को मिटा दीजिये ।

तब धनी ने मुस्कुराके कहा ।
यह तन मेरा 
ये दिल मेरा
सब तुम्हारा है ।
तेरे संग ही खुशियो का सवेरा है ।

तब मेने कहा पीया ।

आज खेले खेल नया प्यार का
आये दिल को आज मजा इश्क़ में भिगनेका ।।


और पीया बिना कुछ बोले पलक झपकते सातवीं भोम में ले आये ।
मेरी नजरे जहां जहां जाती हर तरह हिंडोले ही हिंडोले नजर आ रहे है ।

अनेको रंगो से सजे नई नई शोभा लिए सभी झूले मानो स्वागत कर रहे है हमारा ऐसा लग रहा है मुझे ।

सोने की जंजीरो से बंधा झूला सेज्या के समान ही है ।।
आसपे सोते सोते भी झूला झूले इतना सुंदर झूला मानो आज तक नही देखा मेने ।

झूले की बैठक हिरे की अनंत रंग बिखेर रही है ।

धनी ने मेरे हाथो की उंगलिओ में अपने हाथो की उंगलिओ में सजा ते हुवे कहा चलो झूला झूले ।

तुम बैठो में मेरे हाथो से तुम्हे झूला झुलाउ ।

दिल में इतनी खुसी थी उपर से पीया के हाथो को स्पर्स और मीठी बाते सुनके और खुसी बढ़ती ही जा रही है ।

मेने भी अपने कदम दक्षिण दिशा की और बढ़ाए ।
और एक झूले पे बैठी ।
मेरे बिलकुल सामने वाले झूले पे धनी बैठे ।
आमने सामने हम दोनों की नजरे एक दूजे को निहारे ही जा रही थी ।

और झूला अपने आप पवन की लहरो की तरह झूल रहा था ।
झूला हमसे दूर जाता और दूजी ही पल नजदीक आता और बीचमे मेंरे और पीया का हाथो से मिलन होता और दो ताली की मधुर ध्वनि पुरे अर्श में गूंज उठी ।

साथ ही हमारे आभूषण की खनक और इस खेल में मजा आने से हमारी हसि की गूंज एक मधुर संगीत और गीत मानो गा रही है ।

आज मौसम इतना मदमस्त है की मेरा दिल आज इन झूलो पे दूर दूर तक झलके जानेको कर रहा है ।
मेरा झूला पूरा फुलोसे सजा हुवा है ।
अब आमने सामने वाली प्रेम की दुरी भी पीया से मुझे अच्छी नही लगती ।

मेने अभी दिल में सोचा ही के पीया मेरे सामने नही मेरे साथ ही एक ही झूले पे झूले ।

और बस दिल ही दिल की बात ।

और पीया मेरे साथ मेरे झूले पे आ गए ।

आज मुझे दूर तक झुलना है बहार के मन्दिरो को लांघ के दूर आसमान तक उड़ना है ।

और उसी पल
 पल भर में मेरे झूले के सामने वाले मंदिर मानो छठी भोम की जमीन से लग गए ।
और अब यहां से दक्षिण दिशा में पूरा खुला आसमान पानी भरे बादल चमकती बिजली और बारिश की धीमी धीमी बुँदे और मजा दे रही है ।

बतपिपल की चौकी , हौज कौसर , चोबिश हांस का महल , मानेक पहाड़ , छोटी रांग , और बड़ी रांग तक मानो मेरा झूला हवा से बाते करता हुवा मुझे झूला रहा है ।।

इतने सुहाना पल पीया का साथ पीया का प्यार और इस मौसम का नसा मानो पुरे पल को और मजेदार बना रहा है ।

बादलो के संग लुका छुपी खेलता चाँद भी मानो बड़ी मस्ती में है ।।

हर तरह से नूर ही नूर बिखर रहा है ।

कोयल मधुर प्रेम गीत गा रही है बादलो में उड़ती हुवी ।

तो मोर बादलो में आके पंख फेला रहे है ।

एक साथ इतने सारे जुगनू आकाश में उड़ने लगे और चमकने लगे ।

पीया भी इन नजारो को देखके खुश हो रहे है ।

इतना जोरो से झूला झूल रहा है की पवन की लहरे और तेजी से झूले के साथ आती और जाती है ।


झूले के साथ जब मेरी चुनरी हवा में लहराती है तो मानो मेरी चुनरी आशिक बनके पीया को रिझा रही है ।
पीया भी मेरे संग एक साथ इस झूले पे बैठके प्रेम भरी बाते करते है ।
और में भी पीया के कंधे पर सर रखके उनकी आँखों में ही एकही नजर बस देखती ही जाती हू ।

हम पर बादलो से बरसात की बुँदे फूल बन के मानो गिर रहे है और हमे भीगा रहे है ।
मनो बादल हमारे संग आज होली खेल रहा है ।
और हमें भीगा रहा है ।
पीया पे गिरने वाली बूंद जेसे में खुद हु और पिया को भीगा रही हु ।
तो मुझपे गिरने वाली बुंदे खुद पीया है और मुझे भीगा रहे है ।

इस भीगे पल में झूलो का संग मुझे और पीया को और पास ला रहा है ।

जेसे ही पीया ने मुझे अपने गले लगाया की में पिघल गयी और भाप बनके हवा में उड़ गई ।

और बादलो मे जाके बरसात की बूँद बन कर पीया में होठो पे गिरी ।

और पीया ने मुझ बून्द को अपने होंठो से झुके अपने मुख में ले लिया ।

और में बून्द बनके पियाके गले से सरकती हुवी उनके दिल तक पहोच गयी ।

और उनके दिल के झूले में जाके समा गयी ।

में मिटके पीया में समा गयी ।।

1 comment:

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