दसवीं भोम
*सुख चाँदनी चढ़ाय के ,पूर्णिमा की मध्य रात*
* चाँदनी की किनार पर बाहिरी हार मंदिरों की जगह में दस कम छः हज़ार दहेलानें हैं |एक एक दहेलान में आठ आठ महेराबे देखने में मालूम होती हैं |किंतु संख्या छः छः महेराबों की हैं |दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं*
प्रेम प्रणाम जी साथ जी ,
आज रूह श्री रंगमहल की दसवीं चांदनी की शोभा निरखना चाहती हैं --धाम की चांदनी को अपने धाम ह्रदय में बसाना चाहती हैं ..तो श्री राज जी की मेहर ,उनके जोश के बल पर अपने कदम आगे बढ़ाती हैं और -
ब्रह्म मुनि श्री लाल दास महाराज जी की छोटी वृति के प्रकाश में दसवीं चांदनी की अलौकिक शोभा को देखती हैं
सर्वप्रथम नजर करते हैं --चाँदनी की बाहिरी किनार पर -- तो निज नज़रों में शोभा आती हैं की यहां बाहिरी हार मंदिरों के स्थान पर दहलान सुशोभित हैं -5990 दहलाने --एक एक दहलान की शोभा बहुत ही अद्भुत --
शोभा को हृदयगम करने के लिये एक दहलान के भीतर चले --बेहद ही प्यारी शोभा दहलान की --चारों दिशा में दीवार की शोभा और ऊपर नूरमयी छत की झलकार --एक नजर में देखे तो लगा कि यह भी मंदिर हैं --पर गहराई से देखते हैं तो यह खुली दहलान हैं जहाँ रूह अपने प्रियतम श्री राज जी के संग हाँस विलास करती हैं ..
दहलान के चारों दिशा में आयीं दीवारें मनोहारी शोभा लिये हैं --उनमें एक बड़ी नूरमयी मेहराब में तीन मेहराब शोभित हैं --मध्य की मेहराब में नूरी रत्नों से जड़ित दीवार आयीं हैं और मध्य की इस मेहराब के दोनों और खुली मेहराबें शोभा ले रही हैं --इस तरह एक दहलान में आठ मेहराबें (खुली मेहराब )दिखती हैं पर गिनती में छह ही मेहराबें हैं क्योंकि पाखे की मेहराब दूसरे दहलान में काम देती हैं
*दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं |उस दहेलान के अंदर दस दस थम्भों की चार हारें हैं और चार-चार की दस हारें हैं बाहिरी तरफ खुला एक मंदिर भर का छज्जा हैं जिसकी किनार पर कठेड़ा लगा हैं | कठेड़ा के बाहिरी तरफ ढालदार छज्जा हैं और भीतर की तरफ चाँदनी से कमर भर ऊँची एक मंदिर की खुली रोंस हैं जिसके किनार पर कठेड़ा सुशोभित हैं |दो सौ एक हांस में दो सौ एक चाँदे हैं |एक एक चाँदे के दोनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं |*
घेर कर आयीं दहलान की शोभा निरख अपनी निज नजर को पूर्व दिशा की और करते हैं -- जहाँ दस मंदिर के दरवाजा का हान्स हैं --दरवाजे की दहलान दस मंदिर की लंबाई लिये हैं और मंदिर की चौड़ी हैं --दस नूर भरे थंभों की चार हारें चौड़ाई तरफ से दिख रही हैं और लंबाई में दहलान की शोभा देखे तो चार चार थंभों की दस हारें शोभित हैं ।
दस मंदिर के हान्स में जो मध्य में दो मंदिर का दरवाजा आया था --और दरवाजा के दोनों और चार चार मंदिर हैं --उनकी जगह यहाँ दसवीं चांदनी में दस दस थंभों की दो हारें आयीं हैं --थंभों की एक हार दहलान के भीतरी और जो एक मंदिर का चौड़ा और लंबा तो घेर कर उठा हैं --उन चबूतरा की किनार पर दस थम्भ आएं हैं --दस थम्भ दहलान के बाहिरी तरफ जो दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी जो पड़साल की जगह आयीं हैं उसकी पूर्वी किनार पर दस थम्भ आएं हैं --छज्जा की शोभा हैं
इस प्रकार घेर आईं इन दहलान के बाहिरी और जो एक मंदिर का छज्जा निकल हैं उसकी बाहिरी किनार पर कठेड़ा आया हैं आगे ढालदार छज्जा की शोभा हैं -
दहलान के भीतरी तरफ भी एक मंदिर का चौड़ा चबूतरा उठा हैं --एक मंदिर की रोंस के रूप में इसकी भीतरी किनार पर 201 हांसों से चांदों से सीढियां चांदनी पर उतरी हैं --एक एक चाँद से तीन तीन उतरती सीढियां देखे
*मध्य में कमर भर ऊँचा चबूतरा हैं |उस चबूतरा के चार कोण पर चार चहेबच्चें हैं |चेहेबच्चा के तीनों तरफ तीन तीन सीढ़ियाँ हैं ,एक तरफ से चबूतरा मिल गया हैं और चबूतरा के मध्य में गज भर ऊँचा सिंहासन हैं |सिंहासन को घेर कर चारों तरफ सीढ़ियाँ धरी हैं |श्रीराज श्री ठकुरानी जी तथा समस्त सुंदर साथ पूर्णिमा की रात्रि को इस चाँदनी पर पधारतें हैं |चबूतरा के ऊपर खड़े होकर देखने से दसों दिशाओं की वस्तु देखने में आती हैं |इस चबूतरा के चारों तरफ अनेक रमणीय बगीचे (फुलवारियाँ) हैं और वे बगीचे नहेरें ,चहेबच्चे और फुहारों से युक्त होकर अपार शोभा को धारण किए हैं *|
अब नजर करते हैं चांदनी के मध्य भाग में --यहाँ एक कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं --और चबूतरा के चारों कोण पर चहबच्चे आएं हैं जिनसे निर्मल ,उज्जवल जल के फव्वारें उछल रहे हैं -चेहेबच्चों को घेर कर आयीं रोंस एक तरफ से चबूतरा से मिल गयी हैं और तीन तरफ से तीन सीढियां चांदनी पर उतरी हैं
--चबूतरा के मध्य में ऊंचा सिंहासन सुशोभित हैं --सिंहासन को घेर कर कुर्सियां धरी हैं --आप श्री राज श्याम जी पूनम की उज्जवल ,धवल रात्रि में चांदनी पर पधारते हैं --चबूतरा पर खड़े हो दसों दिशाओं की शोभा नज़रों में आती हैं --
मध्य आएं इन चबूतरों के चारों तरफ बाग़ बगीचों की शोभा आयीं हैं ..नहरें चेहेबच्चों की मनोहारी शोभा आयीं हैं
*एक एक देहेलान की चाँदनी पर दो दो गुमतियाँ हैं |छः हज़ार मंदिरों की जगह पर देहेलान की चाँदनी के किनार में छः हज़ार कंगुरें हैं | उन कंगुरों के बीच बीच में कांगरी हैं एवम् हांस हांस पर एक एक गुर्ज हैं |तिन प्रत्येक गुर्ज पर गुमट की अपार शोभा हो रही हैं |गुर्जों की संख्या दो सौ एक हैं |गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |*
चबूतरा पर सिंहासन कुर्सियों पर बैठ कर नजर चारो और घुमाई तो देखा --बाग़ बगीचों की मनोहारी शोभा --उठते फव्वारें -- चबूतरे के साथ लगते मेवों के बगीचे शोभित हैं तो कहीं फूलों की सुगंधी में सराबोर करते फूलों के बगीचे हैं और बीच-बीच में आईं दूब–रंगों की अदभुत छटा बिखेरती दूब –जिन पर सुसज्जित दुलीचों पर रूहें श्री राज जी के संग रमण करती हैं | खुली चाँदनी के नीचे आईं फूलों की नूरी बैठकों पर श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं | देखिए खूब खुशालियाँ हाजिर हैं -मेवों से भरे थाल लेकर और मनुहार कर के प्रेम के साथ धाम दूल्हा को आरोगवाती हैं |
किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की --एक एक दहलान पर दो दो गुम्मतियां आयीं हैं --दहलान की चांदनी की किनार पर कंगूरों की शोभा --कंगूरों के बीच बीच में कांगरी की शोभा आयीं हैं --201 हांसों में गुरजों की शोभा आयीं हैं --गुरजों पर गुम्मट की अपार शोभा आयीं हैं --गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |
*इन सर्व शोभा को देखकर प्रथम भोम को जाना हैं |उतरते उतरते प्रथम भोम में आकर पूर्व दिशा के दरवाजे से होकर तीनों घाटों का अवलोकन कर रौंस में होकर दक्षिण दिशा में बटपीपल की चौकी में जाइए |
पूर्व की तरफ पचास हांस में तीन घाट है |दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |*
इन सम्पूर्ण शोभा को ह्रदय में बसा कर प्रथम भोम में चले --सीढ़ी वाले मंदिर जो पहली चौरस हवेली में आया हैं उसी की सर पर चौरस बगीचा आया हैं --इन बगीचे में उत्तर तरफ चार थंभों की शोभा हैं --जिनमें पूर्व ,पश्चिन और दक्षिन तरफ अकशी थम्भ हैं उत्तर की और खुले थम्भ --खुली मेहराब --इन मेहराब से होकर सीढियां इतराते उतरते प्रथम भोम में पहुंचे --पूर्व दिशा के द्वार के सामने आकर पूर्व में आतें सात वनों की शोभा देखी --चांदनी चौक की जगमगाती शोभा --दक्षिन दिशा में चले --बटपीपल की चौकी में नहरों चेहेबच्चों के ऊपर धाम धनि संग हिंडोलों में झूले --
रंगमहल के पूर्व दिशा में धाम की दीवार से लगते तीन वन हैं --दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |
* दसमी भोम के ऊपर देहेलान की चाँदनी ग्यारहवीं चाँदनी मानी जाती हैं |जो किनार किनार में एक मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं | गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे शोभायमान हैं* |
फिर से चांदनी की शोभा में --देखिए --दसवीं भोम के ऊपर दहलान की चांदनी ग्यारवहीं चांदनी हुई --जो चांदनी की किनार में घेरकर कर एक मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं |तो गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे अपार शोभा लिये हैं
*सुख चाँदनी चढ़ाय के ,पूर्णिमा की मध्य रात*
* चाँदनी की किनार पर बाहिरी हार मंदिरों की जगह में दस कम छः हज़ार दहेलानें हैं |एक एक दहेलान में आठ आठ महेराबे देखने में मालूम होती हैं |किंतु संख्या छः छः महेराबों की हैं |दरवाजे की दहेलान दस मंदिर की लंबी और चार मंदिर की चौड़ी हैं*
प्रेम प्रणाम जी साथ जी ,
आज रूह श्री रंगमहल की दसवीं चांदनी की शोभा निरखना चाहती हैं --धाम की चांदनी को अपने धाम ह्रदय में बसाना चाहती हैं ..तो श्री राज जी की मेहर ,उनके जोश के बल पर अपने कदम आगे बढ़ाती हैं और -
ब्रह्म मुनि श्री लाल दास महाराज जी की छोटी वृति के प्रकाश में दसवीं चांदनी की अलौकिक शोभा को देखती हैं
सर्वप्रथम नजर करते हैं --चाँदनी की बाहिरी किनार पर -- तो निज नज़रों में शोभा आती हैं की यहां बाहिरी हार मंदिरों के स्थान पर दहलान सुशोभित हैं -5990 दहलाने --एक एक दहलान की शोभा बहुत ही अद्भुत --
शोभा को हृदयगम करने के लिये एक दहलान के भीतर चले --बेहद ही प्यारी शोभा दहलान की --चारों दिशा में दीवार की शोभा और ऊपर नूरमयी छत की झलकार --एक नजर में देखे तो लगा कि यह भी मंदिर हैं --पर गहराई से देखते हैं तो यह खुली दहलान हैं जहाँ रूह अपने प्रियतम श्री राज जी के संग हाँस विलास करती हैं ..
दहलान के चारों दिशा में आयीं दीवारें मनोहारी शोभा लिये हैं --उनमें एक बड़ी नूरमयी मेहराब में तीन मेहराब शोभित हैं --मध्य की मेहराब में नूरी रत्नों से जड़ित दीवार आयीं हैं और मध्य की इस मेहराब के दोनों और खुली मेहराबें शोभा ले रही हैं --इस तरह एक दहलान में आठ मेहराबें (खुली मेहराब )दिखती हैं पर गिनती में छह ही मेहराबें हैं क्योंकि पाखे की मेहराब दूसरे दहलान में काम देती हैं
घेर कर आयीं दहलान की शोभा निरख अपनी निज नजर को पूर्व दिशा की और करते हैं -- जहाँ दस मंदिर के दरवाजा का हान्स हैं --दरवाजे की दहलान दस मंदिर की लंबाई लिये हैं और मंदिर की चौड़ी हैं --दस नूर भरे थंभों की चार हारें चौड़ाई तरफ से दिख रही हैं और लंबाई में दहलान की शोभा देखे तो चार चार थंभों की दस हारें शोभित हैं ।
दस मंदिर के हान्स में जो मध्य में दो मंदिर का दरवाजा आया था --और दरवाजा के दोनों और चार चार मंदिर हैं --उनकी जगह यहाँ दसवीं चांदनी में दस दस थंभों की दो हारें आयीं हैं --थंभों की एक हार दहलान के भीतरी और जो एक मंदिर का चौड़ा और लंबा तो घेर कर उठा हैं --उन चबूतरा की किनार पर दस थम्भ आएं हैं --दस थम्भ दहलान के बाहिरी तरफ जो दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी जो पड़साल की जगह आयीं हैं उसकी पूर्वी किनार पर दस थम्भ आएं हैं --छज्जा की शोभा हैं
इस प्रकार घेर आईं इन दहलान के बाहिरी और जो एक मंदिर का छज्जा निकल हैं उसकी बाहिरी किनार पर कठेड़ा आया हैं आगे ढालदार छज्जा की शोभा हैं -
दहलान के भीतरी तरफ भी एक मंदिर का चौड़ा चबूतरा उठा हैं --एक मंदिर की रोंस के रूप में इसकी भीतरी किनार पर 201 हांसों से चांदों से सीढियां चांदनी पर उतरी हैं --एक एक चाँद से तीन तीन उतरती सीढियां देखे
अब नजर करते हैं चांदनी के मध्य भाग में --यहाँ एक कमर भर ऊंचा चबूतरा आया हैं --और चबूतरा के चारों कोण पर चहबच्चे आएं हैं जिनसे निर्मल ,उज्जवल जल के फव्वारें उछल रहे हैं -चेहेबच्चों को घेर कर आयीं रोंस एक तरफ से चबूतरा से मिल गयी हैं और तीन तरफ से तीन सीढियां चांदनी पर उतरी हैं
--चबूतरा के मध्य में ऊंचा सिंहासन सुशोभित हैं --सिंहासन को घेर कर कुर्सियां धरी हैं --आप श्री राज श्याम जी पूनम की उज्जवल ,धवल रात्रि में चांदनी पर पधारते हैं --चबूतरा पर खड़े हो दसों दिशाओं की शोभा नज़रों में आती हैं --
मध्य आएं इन चबूतरों के चारों तरफ बाग़ बगीचों की शोभा आयीं हैं ..नहरें चेहेबच्चों की मनोहारी शोभा आयीं हैं
*एक एक देहेलान की चाँदनी पर दो दो गुमतियाँ हैं |छः हज़ार मंदिरों की जगह पर देहेलान की चाँदनी के किनार में छः हज़ार कंगुरें हैं | उन कंगुरों के बीच बीच में कांगरी हैं एवम् हांस हांस पर एक एक गुर्ज हैं |तिन प्रत्येक गुर्ज पर गुमट की अपार शोभा हो रही हैं |गुर्जों की संख्या दो सौ एक हैं |गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |*
चबूतरा पर सिंहासन कुर्सियों पर बैठ कर नजर चारो और घुमाई तो देखा --बाग़ बगीचों की मनोहारी शोभा --उठते फव्वारें -- चबूतरे के साथ लगते मेवों के बगीचे शोभित हैं तो कहीं फूलों की सुगंधी में सराबोर करते फूलों के बगीचे हैं और बीच-बीच में आईं दूब–रंगों की अदभुत छटा बिखेरती दूब –जिन पर सुसज्जित दुलीचों पर रूहें श्री राज जी के संग रमण करती हैं | खुली चाँदनी के नीचे आईं फूलों की नूरी बैठकों पर श्रीराज-श्यामा जी और सखियाँ विराजते हैं | देखिए खूब खुशालियाँ हाजिर हैं -मेवों से भरे थाल लेकर और मनुहार कर के प्रेम के साथ धाम दूल्हा को आरोगवाती हैं |
किनार पर भोंम भर ऊंची दहलान आईं हैं —दहलान पर आई भिन्न भिन्न रंगो नंगो से सजी देहूरियां –अनुपम शोभा हैं मेरे धाम की --एक एक दहलान पर दो दो गुम्मतियां आयीं हैं --दहलान की चांदनी की किनार पर कंगूरों की शोभा --कंगूरों के बीच बीच में कांगरी की शोभा आयीं हैं --201 हांसों में गुरजों की शोभा आयीं हैं --गुरजों पर गुम्मट की अपार शोभा आयीं हैं --गुमटों पर कलश और कलशों पर ध्वजाएँ फहराती हैं |
*इन सर्व शोभा को देखकर प्रथम भोम को जाना हैं |उतरते उतरते प्रथम भोम में आकर पूर्व दिशा के दरवाजे से होकर तीनों घाटों का अवलोकन कर रौंस में होकर दक्षिण दिशा में बटपीपल की चौकी में जाइए |
पूर्व की तरफ पचास हांस में तीन घाट है |दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |*
इन सम्पूर्ण शोभा को ह्रदय में बसा कर प्रथम भोम में चले --सीढ़ी वाले मंदिर जो पहली चौरस हवेली में आया हैं उसी की सर पर चौरस बगीचा आया हैं --इन बगीचे में उत्तर तरफ चार थंभों की शोभा हैं --जिनमें पूर्व ,पश्चिन और दक्षिन तरफ अकशी थम्भ हैं उत्तर की और खुले थम्भ --खुली मेहराब --इन मेहराब से होकर सीढियां इतराते उतरते प्रथम भोम में पहुंचे --पूर्व दिशा के द्वार के सामने आकर पूर्व में आतें सात वनों की शोभा देखी --चांदनी चौक की जगमगाती शोभा --दक्षिन दिशा में चले --बटपीपल की चौकी में नहरों चेहेबच्चों के ऊपर धाम धनि संग हिंडोलों में झूले --
रंगमहल के पूर्व दिशा में धाम की दीवार से लगते तीन वन हैं --दाडिम वन ,अमृत वन और जांबू वन हैं |इसके आगे अग्नि कोण में सोलह हांस का चेहेबच्चा हैं |
* दसमी भोम के ऊपर देहेलान की चाँदनी ग्यारहवीं चाँदनी मानी जाती हैं |जो किनार किनार में एक मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं | गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे शोभायमान हैं* |
फिर से चांदनी की शोभा में --देखिए --दसवीं भोम के ऊपर दहलान की चांदनी ग्यारवहीं चांदनी हुई --जो चांदनी की किनार में घेरकर कर एक मंदिर की चौड़ी और छः हज़ार मंदिर की गोलाकृत फिरती चाँदनी हैं |तो गुम्मट ध्वजा इससे भी ऊँचे अपार शोभा लिये हैं
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