9 भोम चितवन
पन्ना जी की परिक्रमा करके जब में गुम्मट जी की शोभा ऊपर से लेके निचे तक निहार रही थी ।
वही मेरी नजरें गुमट्ट जी के गुम्मट पर सजे पंजे पर पड़ी ।
पंजे की शोभा को दिल में बसाए बस उसे में देख रही थी धीरे धीरे पंजे की हर एक ऊँगली को गिन रही थी ।
उंगलिओ को गिनते हुवे मुझे एक ऊँगली ने मानो इसारा करके कुछ कह रही थी ऐसा लगने लगा था ।
और उस एक ऊँगली के खयालो में मेने अपने आप को सीधा अर्श की नवमीं भोम पर दक्षिण दिशा में खड़ा हुवा पाया ।
जहां से मेरे पीया अपनी उंगलिओ के इसारे से नटखट अदाओ से मुझे रिझाते है प्रेम करते है ।
9 भोम में मेने खुद को तो पाया लेकिन धनी कहा है ....
पिया पीया की आवाज लगाते हुवे में पिया को ढूंढने लगी ।
ऐसा लगा मानो नवमी भोम में भी पीया लुकाछुपी खेलने लगे है ।
दक्षिण दिशा के छज्जे से घूमते हुवे में पश्चिम और उत्तर की और तक घूमने लगी पिया को ढूंढती हुवी ।
यह मेरा घूमना भी जेसे में खुद नही घूम रही थी पर पीया की उंगलिया ही मुझे घुमा रही थी ऐसा लग रहा था ।
आखिर कार खुद मुझे अर्श में बुलाकर पीया दूर कैसे रह सकते है ......
ना दक्षिण में , ना पश्चिम में , ना उत्तर में पीया मुझे मिले तो पूरब की पूर्वाहि में।
जहां हर बार में पिया को देखने के लिए बेचैन होकर इंतजार करती हु वही इस बार व्याकुल होकर धनी मेरा इंतजार कर रहे थे नवमीं भोम में ऐसा लगा मुझे ।।
ऐसा लगा इस पल की जो हाल मेरा है वहीं हाल पीया का है ।
जितना व्याकुल मेरा दिल है उससे भी ज्यादा व्याकुल पीया का दिल मेरे लिए है ।
जितना इंतजार मुझे पिया का है उससे ज्यादा इंतजार पीया को मेरा है ।।
बस पीया को देख कर तुरंत उनके गले लग गई में । ऐसा लगा पूरा अर्श इन बाहोमे ही समाया हुवा है ।
कहि और नजर जाए भी तो जाए केसे जहा नजारा ही सुंदर मिल गया है मेरी नजरो यही ।।
पीया ने भी कसके गले लगा लिया मुझे क्यों की यही जन्नते बहार है मेरी ।
उसी पल पूरब की और से धीमी धीमी पुरावाइ कानो में आके गुन गुना ने लगी ।
और प्यार में झुकी नजरें पूर्व की और उठी मेरी ।
पीया ने कहा आओ इस प्रेम भरे नजारे को सुंदरता को मिलकर निहारे हम ।
देखो सब ने कितनी सुंदरता बिखेर दी है तुम्हारे आनेकी खुसी में ।
और पीया सिहाशन की बजाय मेरे पास खुर्शी पर आके बैठ गए ।
इतनी मुलायम खुर्सिया और उसपे पीया का साथ क्या कहना ......
सामने कठेडा और आस पास दो थंभ की शोभा इतनी सुंदर लग रही है की मानो आगे नजरे जाहि नही पा रही है मेरी ।
थंभ की सुंदरता तो इतनी ज्यादा खिली खिली हुवी है की मानो मुस्कुरा रहे है ऐसा लगता है ।
आस पास फूलो और बेलो की नक्सकारी चेतना के कारण खिल उठी है जिससे एक अदभुत शोभा बन गई है ।
उसपे धीरे धीरे बहता हुवा पवन फूलो को छूता हुवा आ रहा है जिससे हर तरह एक अनोखी खुसबू छा गई है यह खुसबू इतनी मनमोहक है की यह धीरे धीरे पीया से नजदीकी और प्रेम बढ़ा रही है ।
कुर्सी की शोभा भी बहोत ही प्यारी है और उसपे बैठे मेरे सहजादे इतने सुंदर लग रहे है की मानो मुझे ऐसा लग रहा है की वो कुर्सी में खुद ही हु और मेरे दिल की सेज पर पीया बैठे है ।।
पिया ने धीरे से मुझे अपने और पास खीच लिया और मेरे कन्धे पर अपना एक हाथ रखते हुवे प्यार करने लगे ।
और दूसरे हाथ से अपनी तीन उंगलिओ को अंगूठे के साथ जोड़ कर एक ऊँगली को सीधी करते हुवे दूर आसमान की और उस ऊँगली थोडासा ऊपर किया ।
मेरी नजरे ऊपर देखने की बजाय पीया की ऊँगली को ही देखती रह गई ।
कितनी कोमल मुलायम सफेद लालीला लिए हुवे गुलाबी ऊँगली इस सुख को नजारे को छोड़ नजरें और कुछ देखे भी तो क्या देखे .....
उतने में पीया ने मेरे कन्धे पर रखे हुवे हाथ को मेरी हड़पचि से लगाया और उसे प्यार से धीरे से ऊँचे उठाते हुवे ऊपर आसमान की और नजरें फिराते हुवे आसमान की शोभा दिखाने लगे ।।
पन्ना जी की परिक्रमा करके जब में गुम्मट जी की शोभा ऊपर से लेके निचे तक निहार रही थी ।
वही मेरी नजरें गुमट्ट जी के गुम्मट पर सजे पंजे पर पड़ी ।
पंजे की शोभा को दिल में बसाए बस उसे में देख रही थी धीरे धीरे पंजे की हर एक ऊँगली को गिन रही थी ।
उंगलिओ को गिनते हुवे मुझे एक ऊँगली ने मानो इसारा करके कुछ कह रही थी ऐसा लगने लगा था ।
और उस एक ऊँगली के खयालो में मेने अपने आप को सीधा अर्श की नवमीं भोम पर दक्षिण दिशा में खड़ा हुवा पाया ।
जहां से मेरे पीया अपनी उंगलिओ के इसारे से नटखट अदाओ से मुझे रिझाते है प्रेम करते है ।
9 भोम में मेने खुद को तो पाया लेकिन धनी कहा है ....
पिया पीया की आवाज लगाते हुवे में पिया को ढूंढने लगी ।
ऐसा लगा मानो नवमी भोम में भी पीया लुकाछुपी खेलने लगे है ।
दक्षिण दिशा के छज्जे से घूमते हुवे में पश्चिम और उत्तर की और तक घूमने लगी पिया को ढूंढती हुवी ।
यह मेरा घूमना भी जेसे में खुद नही घूम रही थी पर पीया की उंगलिया ही मुझे घुमा रही थी ऐसा लग रहा था ।
आखिर कार खुद मुझे अर्श में बुलाकर पीया दूर कैसे रह सकते है ......
ना दक्षिण में , ना पश्चिम में , ना उत्तर में पीया मुझे मिले तो पूरब की पूर्वाहि में।
जहां हर बार में पिया को देखने के लिए बेचैन होकर इंतजार करती हु वही इस बार व्याकुल होकर धनी मेरा इंतजार कर रहे थे नवमीं भोम में ऐसा लगा मुझे ।।
ऐसा लगा इस पल की जो हाल मेरा है वहीं हाल पीया का है ।
जितना व्याकुल मेरा दिल है उससे भी ज्यादा व्याकुल पीया का दिल मेरे लिए है ।
जितना इंतजार मुझे पिया का है उससे ज्यादा इंतजार पीया को मेरा है ।।
बस पीया को देख कर तुरंत उनके गले लग गई में । ऐसा लगा पूरा अर्श इन बाहोमे ही समाया हुवा है ।
कहि और नजर जाए भी तो जाए केसे जहा नजारा ही सुंदर मिल गया है मेरी नजरो यही ।।
पीया ने भी कसके गले लगा लिया मुझे क्यों की यही जन्नते बहार है मेरी ।
उसी पल पूरब की और से धीमी धीमी पुरावाइ कानो में आके गुन गुना ने लगी ।
और प्यार में झुकी नजरें पूर्व की और उठी मेरी ।
पीया ने कहा आओ इस प्रेम भरे नजारे को सुंदरता को मिलकर निहारे हम ।
देखो सब ने कितनी सुंदरता बिखेर दी है तुम्हारे आनेकी खुसी में ।
और पीया सिहाशन की बजाय मेरे पास खुर्शी पर आके बैठ गए ।
इतनी मुलायम खुर्सिया और उसपे पीया का साथ क्या कहना ......
सामने कठेडा और आस पास दो थंभ की शोभा इतनी सुंदर लग रही है की मानो आगे नजरे जाहि नही पा रही है मेरी ।
थंभ की सुंदरता तो इतनी ज्यादा खिली खिली हुवी है की मानो मुस्कुरा रहे है ऐसा लगता है ।
आस पास फूलो और बेलो की नक्सकारी चेतना के कारण खिल उठी है जिससे एक अदभुत शोभा बन गई है ।
उसपे धीरे धीरे बहता हुवा पवन फूलो को छूता हुवा आ रहा है जिससे हर तरह एक अनोखी खुसबू छा गई है यह खुसबू इतनी मनमोहक है की यह धीरे धीरे पीया से नजदीकी और प्रेम बढ़ा रही है ।
कुर्सी की शोभा भी बहोत ही प्यारी है और उसपे बैठे मेरे सहजादे इतने सुंदर लग रहे है की मानो मुझे ऐसा लग रहा है की वो कुर्सी में खुद ही हु और मेरे दिल की सेज पर पीया बैठे है ।।
पिया ने धीरे से मुझे अपने और पास खीच लिया और मेरे कन्धे पर अपना एक हाथ रखते हुवे प्यार करने लगे ।
और दूसरे हाथ से अपनी तीन उंगलिओ को अंगूठे के साथ जोड़ कर एक ऊँगली को सीधी करते हुवे दूर आसमान की और उस ऊँगली थोडासा ऊपर किया ।
मेरी नजरे ऊपर देखने की बजाय पीया की ऊँगली को ही देखती रह गई ।
कितनी कोमल मुलायम सफेद लालीला लिए हुवे गुलाबी ऊँगली इस सुख को नजारे को छोड़ नजरें और कुछ देखे भी तो क्या देखे .....
उतने में पीया ने मेरे कन्धे पर रखे हुवे हाथ को मेरी हड़पचि से लगाया और उसे प्यार से धीरे से ऊँचे उठाते हुवे ऊपर आसमान की और नजरें फिराते हुवे आसमान की शोभा दिखाने लगे ।।
आसमान में संध्या के समय का ढलता हुवा सूरज धनी दिखाते है ।
इतना मनमोहक द्रश्य जहा ढलता हुवा सूरज नए नए रंग बिखेर रहा है ।
केसरिया रंग बिखेरता हुवा धीरे धीरे आसमान को लालिमा से भर दिया सूरज ने ।
वही एक तरह सूरज आधा देख रही हु तो दूजी और अनंत रोसनी बिखरता हुवा चांद सामने आ गया ।
दूर आसमान में सजा चांद मानो छज्जे के किनारे तक आ गया है ऐसा लग रहा है मानो चाँद मुझसे दूर नही पर बहोत ही नजदीक है जिसे में हाथ आगे कर के छु सकती हु ऐसा लगता है ।
चाँद भी आज मस्ती में है ऐसा लग रहा है ।
जो पल पल में रंग बदलने लगा ।
कभी लालिमा तो कभी सफेदी तो कभी गुलाल की तरह गुलाबि रंग बिखेरने लगा ।
धनी की ऊँगली मुझे चाँद दिखा रही थी लेकिन धनी खुद चाँद को छोड़ मुझे देख रहे थे ।
मेरा चांद तो धनी खुद है लेकिन उनकी चांदनी तो मेही हु ।
एक और चाँद और उसकी सीतलता और उसपे मंद मंद हवा कानो में संगीत की तरह बज रही थी जो इस इस पल को और रोमान्चित और आकर्षित बना रही है ।
रंग बदलता नटखट चाँद
कभी सफेदी तो कभी गहराई बखेर रहा है आसमान में ।
बस दिल यही थम जाने को चाहता है ।
सांसे यही रुक जाने को कहती है ।
धीरे धीरे पीया अपनी उंगलि को आसमान की और से निचे करते हुवे सामने की और लाते है ।
मुझे चांदनी चौक दिखाते है ।
हमे रिझाने के लिए चांदनी चौक में पशू पंखी सभी आ गए है धनी इस प्यारे नजारे को मुझे बड़े प्यार से दिखाते है ।
पसु पंखी अपनी मस्तीमे नए नए अंदाज से खेलते हुवे हमे रिझाते है खुश करते है
वहीं धनी अपनी नरम कोमल ऊँगली की दिशा को जरा बदलते हुवे आगे बढ़ा रहे है और अनंत रंगो की आभा बिखेर रहे वनो को दिखा वनो की चाँदनी हर एक वृक्ष को दिखा रहे है ।
वनो के वृक्ष पर लटकते हुवे गुच्छे दार रस भरे फल , फलो के साथ मस्ती करते पंखी तितलिया धनी अपनी एक ऊँगली के इसारे मुझे दिखा रहे है ।
यही समज नही पा रही हु की यह मनमोहक नजारे देखु की सब नजारो से सुंदर मेरे पीया के हाथ की उंगलि को देखती रहु .😍
दूर दूर धनी वनो के साथ जमुना जी की शेर करवा रहे है ।
जमुना किनारे आये वृक्ष किनारे बैठे पंखी वृक्ष की डालियो में मस्ती करती तितलिया , पर वाले घोड़े यह सब इतने सुंदर लग रहे है की बस इसे देखती ही रहु इस नजारे को छोड़ नजरे और कही नही जाए पूरा मोसम भी इस सुंदरता को बढ़ाने में मानो लग गया है ......
इतना सुंदर सुहाना मोसम जो सुंदरता के साथ साथ धनी से नजदीकियां प्रेम बढ़ा रहा है ।।
पंख वाले घोड़े को अभी में जमुना किनारे देख ही रही थी की वही पल भर में उड़के आसमान में चल दिए ।
मोर पंख फेलाए नाचने लगे मोसम ने धीरेसे करवट ली वही दूर धीरे से आसमान में से रुई से भी कोमल ऐसी बर्फ गिरने लगी ।
जो ठंडी ठंडी ब्यार फेलाने लगी चारो और ।
इन सभी पशू पंखी जनवरो को अभी तो बस नजरे बिछाए देख ही रही थे की वही एक सुंदर पंखी अनोखा खेल खेलने हमारे सामने आ गया ।
उसकी यह अदाए उसपे प्रेम बरसा ने लगी थी ।
इतना मनमोहक झूला झूलता हुवा यह पंखी सामने आके थोड़ी देर खेल खेलके धनी की उस ऊँगली पे जा बैठा और पीया की ऊँगली पे बैठ कर मेरे गालो को छु गया ।
पिया भी मेरे कन्धे पर रखे अपने हाथो से और नजदीक खीच कर अपने गले लगा लिया मुझे ।
इस सुख का क्या कहना जहा सुंदरता के साथ पीया का प्यार मिल रहा है।
जहा मोसम भी नजदीकियां बढ़ाने में लगा हुवा है ।
वही से धनी आगे दूर दूर तक अक्षरधाम, जवेरो की नहरे , महानद , बन की नहरे , छोटी - बड़ी रांग की हवेलिया और दूर दूर नजरे जाए वहा तक फैला अनंत रंगो से सजा सागर धनी दिखा रहे है ।
हर तरह धनी के इश्क़ का जल, पशू पंखी जानवर हरी हरियाली , अनन्त रंग सब कुछ धनी खुद ही मेरे लिए बने हुवे है ऐसा लगता है ।
दूर दरका नजारा भी मानो धनी के उंगलिके इसारे से बिलकुल नजदीक पास है ऐसा लगता है ।
बनो के वृक्षो का रंग उसपे बहते जल की खिल खिलाहट भरी आवाज जो पिया पीया पुकार रही है और उसपे अनंत रंग से सजा सभी रसो से भरा सर्वरस सागर मुझे अपनी और खीच रहा है ।
हर जरे जरे को निहारते हुवे में पीया के पास से खड़ी होके कठेड़े पर आके बैठ गई ।
पिया के सामने बैठकर उनकी आँखों में आँखे डाल बस देखती ही रही ।
आज मुह से नही पर इसरो इसारो में बाते हो रही थी ।
और पियाने इसारे में कहा आज यही खाना और सोना भी यही है ।
आज यही रसोई हवेली और यही रँगपरवाली है ।
और उतने में ही मेरे सामने पश्चिम दिशा की और यानी छज्जे से दीवाल की और अपने आप चौकी और सब लग गया खाना भी प्यारी खूब खुसालिया लेके आ गयी ।
जब पीया के नजदीक आके मेने पीया को अपने हाथो से बड़े प्रेम से भोजन आरोगाया तब पीया ने भी मुझे अपने हाथो से भोजन खिलाया ।
यह नजारा देख मौसम भी मानो खुद पर इतराने लगा और चारो और ठण्डी पवन फूलो की महेक बिखरने लगा चांद आसमान से मानो जमीन पर आ गया ऐसा लगने लगा ।
चारो और पीया का प्रेम ही प्रेम बरसने लगा ।
जब धनी के साथ सुख सेज्या पर आगे बढ़ने लगे तब चारो और आसमान में सितारे चमकने लगे ।
सुख सेज्या भी मानो हमारा इंतजार कर रही थी ऐसा लगा ।
और इस लाल सेज पर लालिमा से युक्त पीया का प्यार जब पीया ने करवट ली तो में गुलाल बन कर पुरे सेज पर बिखर गई और पीया की लालिमा में खो गई ।
बस पिया पिया तुही तू बन गई .....
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