★जागनी के हिंडोले★
अक्षरातीत धाम दूल्हा पिया प्राणनाथ जी के धाम दिल से जहां मारफत के ज्ञान का प्रकटीकरण हुआ ऊसी बंगलाजी की पूवॅ की दिवार से लगकर खडी हूई में दोपहर के सूयॅ रूपी घूम्मटजी की शोभा में अभिवृद्धि करती धाम धनी की शोभा में डूबे जा रही हूँ...घूम्मटजी के प्रांगण में बहेती मंद मंद नूरी हवा एक गजब सी खनक मेरे कानो में घोल रही थी..वह मीठी खनक मेरे दिल को ऐसे खींच रही थी कि मेरी नजर स्वतः ही ऊस और चल पडी ...घूम्मटजी की ईदॅ गिदॅ आए महेलो(मंदिरो) की शोभा देखते ही बनती थी जो धाम के 6000 मंदिरो की याद दिलाती थी, ईसी महेलो के आगे एक मंदिर की गली और गली हे लगता हूआ कमर भर ऊँचा कठेडा और कठेडे से लेकर महेल की छत तक एक बडी महेराब की शोभा बनी हूई थी..यही शोभा सभी महेलो मे आई हूई थी..इन्ही महेराबो मे लगे बडे बडे हिंडोलो से वह नूरी खनक मेरे दिल तक पहूँच रही थी और मुझे रंगमहल के नूरी वह हिंडोलो की याद दिला रही थी...ऐसा महेसूस हो रहा था कि घूम्मट जी की तीनो दिशाओं और पश्चिम मे बंगलाजी के ऊपर बने नूरी हिंडोले रंगमहल की आठवी भोम मे 6000-6000 मंदिरो के बीच में आए थंभो की महेराबो मे इतराते और ताली देते हिंडोलो की भांति, घूम्मट जी पर ताली देते हूए मानो धनी को चूमते हो ऐसा प्रतीत हो रहा था...चार ताली के ऊन हिंडोलो में जहाँ हम और धनी एक संग धनी के दिल मे झूलने का आनंद लिया करते थे वैसे ही ईन बडी महेराबो के हर एक हिंडोलो में जागनी रास का मूलमिलावा नजर आ रहा था...
धाम में वह कंचन रंग, लाल रंग के डांडे, कडिया, अनगिनत रंगो और नंगो की जहां शोभा आई हूई है वहीं इन महेराबो के हिंडोलो मे जागृत हर एक आतम की रहेनी का रंग, समॅपण के नंग, ऐसे झगमगा रहे थे कि मानो ऊससे घूम्मटजी एवम बंगलाजी का पूरा चबूतरा झिलमिला रहा था...
जहाँ ऊन हिंडोलो में धनी के संग झूलते हूए अनगिनत प्रकार ईई मस्तीया किया करते थे वही इन हिंडोलो में मूलमिलावे को देखकर मेरी रूह जागनी लीला में दिल से दिल जगाने की रसम का अप्रतिम आनंद रस अपने दिल मे ऊडेल रही थी...
धाम में और यहाँ चारो दिशाओ मे से हिलोर (झूमते) करते यह हिंडोले इस बात से आश्वत कर रहे थे कि धाम धनी की गुंज चारो दिशाओ मे हो रही है...
और देखो यह हिंडोले तो धनी धनी, पिया पिया करते घूम्मटजी के बीच के घूम्मट तक आ रहे है और मस्ती के मद मे ऐसे मस्त हो रहे थे कि मैं कैसे ऊसको बयां करू???...
मैं चारी और घूम घूम कर हिंडोलो की इन इश्कमयी रामत को निहार रही थी की अचानक जैसे धाम में धनी एक हिंडोले से दूसरे हिंडोले पे मुझे ले चलते थे वैसे ही बंगलाजी के ऊपर बने नूरी हिंडोले ने मूसे अपने संग बिठा लिया और फिर क्या मै भी घूम्मटजी की चोटी तक ऊडने लगी, ऊसे चूमने लगी...
वही एक ही पल में सामने पूवॅ के हिंडोले ने मुझे अपने संग ऊठा लिया...ऐसे बारी बारी चारो दिशाओ कै हिंडोले मूझे अपने संग इश्क मे गरक करने लगे और मै भीगी आंखों से धाम में होती वह हिंडोलो की लीला में खोने लगी...
यह मस्ती यह आनंद अविरत चल ही रहा था और मैं ऊसमे धीरे धीरे डूबती जा रही थी..डूबती जा रही थी...चारो दिशाए भी मानो लाल चूनर ओढे हिंडोलो पे सवार होकर धनी को चूम रही थी..
और अचानक एक मात्र जहा में बैठी थी वह पश्चिम के हिंडोले की गति कम हो रही थी पर दिल की धडकने बढ रही थी वह नूरी हिंडोला अब घूम्मटजी के दरवाजे तक आ रहा और ऐसे धीरे धीरे मुझे संग ले धनी के दिल में ऐसे समा गया कि मानो बस मूझे आनंद देने, मूझे लेने ही धनी के दिल से प्रगट हूआ हो...बाकी हिंडोले झूम रहे थे..झूमते रहेगें..पर मै समा गई थी..मिट गई थी..मिट गई थी...
अक्षरातीत धाम दूल्हा पिया प्राणनाथ जी के धाम दिल से जहां मारफत के ज्ञान का प्रकटीकरण हुआ ऊसी बंगलाजी की पूवॅ की दिवार से लगकर खडी हूई में दोपहर के सूयॅ रूपी घूम्मटजी की शोभा में अभिवृद्धि करती धाम धनी की शोभा में डूबे जा रही हूँ...घूम्मटजी के प्रांगण में बहेती मंद मंद नूरी हवा एक गजब सी खनक मेरे कानो में घोल रही थी..वह मीठी खनक मेरे दिल को ऐसे खींच रही थी कि मेरी नजर स्वतः ही ऊस और चल पडी ...घूम्मटजी की ईदॅ गिदॅ आए महेलो(मंदिरो) की शोभा देखते ही बनती थी जो धाम के 6000 मंदिरो की याद दिलाती थी, ईसी महेलो के आगे एक मंदिर की गली और गली हे लगता हूआ कमर भर ऊँचा कठेडा और कठेडे से लेकर महेल की छत तक एक बडी महेराब की शोभा बनी हूई थी..यही शोभा सभी महेलो मे आई हूई थी..इन्ही महेराबो मे लगे बडे बडे हिंडोलो से वह नूरी खनक मेरे दिल तक पहूँच रही थी और मुझे रंगमहल के नूरी वह हिंडोलो की याद दिला रही थी...ऐसा महेसूस हो रहा था कि घूम्मट जी की तीनो दिशाओं और पश्चिम मे बंगलाजी के ऊपर बने नूरी हिंडोले रंगमहल की आठवी भोम मे 6000-6000 मंदिरो के बीच में आए थंभो की महेराबो मे इतराते और ताली देते हिंडोलो की भांति, घूम्मट जी पर ताली देते हूए मानो धनी को चूमते हो ऐसा प्रतीत हो रहा था...चार ताली के ऊन हिंडोलो में जहाँ हम और धनी एक संग धनी के दिल मे झूलने का आनंद लिया करते थे वैसे ही ईन बडी महेराबो के हर एक हिंडोलो में जागनी रास का मूलमिलावा नजर आ रहा था...
धाम में वह कंचन रंग, लाल रंग के डांडे, कडिया, अनगिनत रंगो और नंगो की जहां शोभा आई हूई है वहीं इन महेराबो के हिंडोलो मे जागृत हर एक आतम की रहेनी का रंग, समॅपण के नंग, ऐसे झगमगा रहे थे कि मानो ऊससे घूम्मटजी एवम बंगलाजी का पूरा चबूतरा झिलमिला रहा था...
जहाँ ऊन हिंडोलो में धनी के संग झूलते हूए अनगिनत प्रकार ईई मस्तीया किया करते थे वही इन हिंडोलो में मूलमिलावे को देखकर मेरी रूह जागनी लीला में दिल से दिल जगाने की रसम का अप्रतिम आनंद रस अपने दिल मे ऊडेल रही थी...
धाम में और यहाँ चारो दिशाओ मे से हिलोर (झूमते) करते यह हिंडोले इस बात से आश्वत कर रहे थे कि धाम धनी की गुंज चारो दिशाओ मे हो रही है...
और देखो यह हिंडोले तो धनी धनी, पिया पिया करते घूम्मटजी के बीच के घूम्मट तक आ रहे है और मस्ती के मद मे ऐसे मस्त हो रहे थे कि मैं कैसे ऊसको बयां करू???...
मैं चारी और घूम घूम कर हिंडोलो की इन इश्कमयी रामत को निहार रही थी की अचानक जैसे धाम में धनी एक हिंडोले से दूसरे हिंडोले पे मुझे ले चलते थे वैसे ही बंगलाजी के ऊपर बने नूरी हिंडोले ने मूसे अपने संग बिठा लिया और फिर क्या मै भी घूम्मटजी की चोटी तक ऊडने लगी, ऊसे चूमने लगी...
वही एक ही पल में सामने पूवॅ के हिंडोले ने मुझे अपने संग ऊठा लिया...ऐसे बारी बारी चारो दिशाओ कै हिंडोले मूझे अपने संग इश्क मे गरक करने लगे और मै भीगी आंखों से धाम में होती वह हिंडोलो की लीला में खोने लगी...
यह मस्ती यह आनंद अविरत चल ही रहा था और मैं ऊसमे धीरे धीरे डूबती जा रही थी..डूबती जा रही थी...चारो दिशाए भी मानो लाल चूनर ओढे हिंडोलो पे सवार होकर धनी को चूम रही थी..
और अचानक एक मात्र जहा में बैठी थी वह पश्चिम के हिंडोले की गति कम हो रही थी पर दिल की धडकने बढ रही थी वह नूरी हिंडोला अब घूम्मटजी के दरवाजे तक आ रहा और ऐसे धीरे धीरे मुझे संग ले धनी के दिल में ऐसे समा गया कि मानो बस मूझे आनंद देने, मूझे लेने ही धनी के दिल से प्रगट हूआ हो...बाकी हिंडोले झूम रहे थे..झूमते रहेगें..पर मै समा गई थी..मिट गई थी..मिट गई थी...
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