इतनी गर्मी में छत पे सोनेका आनंद कुछ अलग ही होता है ।
छत पे सोते सोते जब आकाश की और नजरे बढ़ी मेरी तो रात के अंधेरे में टीम टिमाते हुवे तारो के बिच में चांद की चांदनी मनमोहक लग रही थी इस फर्श पे भी ।।
इतने अनंत तारो के बिच में एक विमान 🛩 तारो की तरह ही टीम टिमाता हुवा चल रहा था ।
एक और ठंडी पवन की फुहार और उसमे ये विमान जिस पे मेरी नजरें अटक सी गयी ।
जेसे जेसे विमान दूर दूर जा रहा था उसके साथ साथ साथ ही मेरी नजर दूर दूर जा रही थी ।
एक पल आया की विमान इतना दूर निकल गया की मेरी नजरो से अब वो ओझल हो गया ।
इतने में मेरी आंखे बंध हुवी पर मेरा दिल उसी विमान के विचार में खोया था ।
में दिलो दिल में ही धनी से बात कर रही थी की धनी फर्श का यह विमान देख के मजा आ रहा है तो मेरे अर्श के सुखपाल विमान की शोभा तो कितनी हसीन मनमोहक होगी ।
यह विमान तो देखते देखते आगे चला गया ।
पर मेरे धाम में तो अभी नजर देखने जाहि रही होगी उससे भी तेज वाउ की गति और मन की गति से भी तेज सुखपाल उड़ते है ।
सुखपाल के यही विचारो में में अर्श को दिल में बसाये उस सुख को याद कर रही हु ।
सुखपाल को याद करते करते दिल में एक ही चौपाई याद आए जा रही थी ।
" सुखे बेसी सुखपाल में ,
देसी वतन पहोचाए "
🛩🛫🛩🛫🛩🛫🛩
इसी चौपाई को याद करते हुवे दिल सुख और आनंद से भरे जा रहा था ।
और में दिल की इस खुसी को लिए गुम्मट जी के दरवाजे पे आके अपने आप को निहारती हु ।
तब मेने देखा गुम्मट जी में मजलिश का समय था जिस से एक और एक सुंदर साथ चर्चा कर रहे थे तो बाकी साथ चर्चा सुनने बैठे है ।
मे भी गुम्मट जी में बिलकुल धनी के सनमुख होके बैठ गयी नजरो से पीया को निहार रही हु
तो कानो से चर्चा सुनरही थी ।
इतने में चर्चा में सुंदर साथ ने कहा जिस तरह से फर्श पे कोई विदेश जाता है तो कहा जाता है की सात समुन्दर पार जाना है ।
उसी तरह हमें भी अपने घर अर्श में मेहर के सागर की सोभा में डूब सागर को पार करके आगे जाना है ।
बस इसी पल में सागर पे मेरी नजरे कान दिल सब कुछ ठहर गया और मेने खुद को महेर सागर सर्वरस से भरे रसीले सागर में खुद को पाया ।
सागर की अनंत शोभा को मेरा दिल निहार रहा था ।
अनंत रंगो से सजा ये महेरो का सागर आकर्षित कर रहा है ।
महेर से भरे इस समुन्दर को पार करके मुझे रँगमहोल की और बढ़ना है ।
महेर के सागर में जहा में सुख ले रही हु ।
तो वो महेरो का सहेंशा खुद मुझसे दूर कैसे रहे सकता था ।
जिसने मुझसे कहा है की सूखे बेसी सुखपाल में मुझे वतन ले जाएगा ।
बस मेरे आने की खबर उसे पहलेसे ही तो थी ।
क्यों की उसी ने तो मुझे बुलाया है अपनी और खीचा है ।
जहां में सागर के अनंत रंगो को निहार रही थी वही रंगो के रंगीले बादसाह खुद मेरे नजरो के सामने आके खड़े हो गए ।
पीया.... के आने पे हर एक रंग में और कई रंग झलकने लगे ।
और रंगोसे भी ज्यादा मेरा तन मन दिल रंगीन हो गया है ।
पीया पास आके जब आँखों से निहारते है मुझे तो मुझे लगा जितना इस पल का इंतजार मुझे था उससे भी ज्यादा पीया इस पल के लिए राह तक रहे थे ।
पीया ने गले लगके कहां आओ मेरी रूह ।
कब से राह तक रहा हु ।
अपने घर में अंदर चलो ।
और पीया के मुख से यह बात निकली उसी पल सुखपाल सामने आके खड़ा हो गया ।
सुखपाल भी मानो प्रणाम कर रहा हो ऐसे झुकने लगा ।
सुखपाल को देखके दिल सुख ही सुख का अनुभव कर रहा है मेरा ।
सुखपाल की सोभा को में हाथो से छूके देख रही हु ।
तिन भाग में सजा सुखपाल मुझे अपनी और आनेको कह रहा है ।
दो भाग बैठक के आमने सामने के ।
और एक भाग दोनों बैठक से निचा ।
इस निचे भाग पे ही पैर रख के चढ़ के बैठक पर बैठा जाता है ।
आमने सामने की बैठक पे गादी सुहानी लग रही है ।
4 डाण्डे और छत पे 2 छत्री , और 2 गुम्मट सुखपाल को और सुंदर बना रहे है ।
दाए और बाए रस्सी जेसे दो गोफने इतने मनमोहक रूप से लटक रहे है की उनकी सोभा का बर्णन कैसे करू ।
धनी मुझे सुखपाल को इतनी गहराई से देखते हुवे कहते है ।
मेरी प्यारी.... बस इसे देखती ही रहोगी की इसमें बैठ के भी इसका आनंद लेना है ।
और हम हस पड़े ।
पीया ने अपना एक चरण सुखपाल में रखा तो एक हाथ से गोफने को पकड़ा
और ऊपर चढ़े ।
और अपना हाथ आगे बढ़ाया और कहा चलो सजनी अर्श के अंदर चले।
और मेने भी अपना हाथ पीया के हाथ में रखते हुवे सुखपाल में चढ़ी।
और पिया ने खुद मेरी दोनों बाजु पकड़ के प्यार से मुझे बिठाया ।
और धनी मेरे सनमुख विराजमान हुवे।
सुखपाल में बेठके जो सुख मिल रहा है ये सुख सब्दातित है ।
सुख पाल भी आज बहोत खुश है कई दिनों से सुखपाल भी इस पल का इंतजार कर रहा था की कब मेरी सखिया आये और धनी के साथ मुझमे सवार हो ।
आखिर वो पल आहि गया और जेसे ही धनी का हुकम हुवा सुखपाल उड़ने के लिए तैयार हो गया ।
अभी तो एक और धनी का हुक्म हुवा ही हे की इतने में सुखपाल पवन से भी तेज जमीन से आसमान में आ गया ।
आसमान में सुखपाल उड़ने लगा एक और मेरी और पीया की नजरे तो एक दूजे में ही एक दूजेको ही निहार रही है ।
तो दूसरी और सुखपाल के साथ साथ हवा भी टकराती हुवी कानो में आके गुन गुना रही है ।
जमीन की रौशनी आकाश में आके मुझे और पिया को छु रही है ।।
तो आकाश का नूर हमे छूता हुवा जमीन से मिल रहा है ।
हर तरह आज मिलन की घड़ी है
मेरा पीया से मिलन
हवा का सुखपाल से मिलन
सुखोपाल का हमसे मिलन
आकाश का जमीन से मिलन
जमीन का आकाश से मिलन .....
सब का एक दुजेसे मिलन मेरे और पिया के मिलन को और सुंदर बना रहे है ।
पीया का मुझको प्यार से निहारना अपना हाथ आगे बढ़ा के मुझे उनके पास बुला के अपने साथ बिठाना क्या कहु ।
इस बेला को आसमान भी देख के खुस हो रहा है।
और फूलो की बरसात हमपे कर रहा है ।
आगे आगे सुखपाल बढ़ रहा है तो पिया अब मुझे अपने पास बिठाके जमीन की सुहानी शोभा को दिखा रहे है ।
कभी बन , तो कभी नहरे , कभी बगीचे , तो कहि फूल, कहि नदि , तो कही पुल मुझे पिया दिखा रहे है।
बस आज में आकाश में उड़ती ही रहु .....
उड़ती ही रहु .....
सुखपाल ने अपनी गति और तेज करदी कभी निचे आता है कभी जोरो से आकाश में उड़ता है कभी दाए तो कहि बाए हिलोडे लेता है ।
सुखोपाल के इस दाए बाए के हिलोडे के साथ पिया और मेरा भी एक दूजे को छूते हुवे हिलोडे लेना और नजदीक हमे ला रहा है ।
इश्क़ के इस सुहाने पल में आनंद ही आनंद आ रहा है ।
सुखपाल जेसे ही आगे बढ़ा तो सामने बादलो का ढेर था ।
मेने हाथ को लंबा करते हुवे बादल को छुआ ।
तो मेरा हाथ पानी से भर गया ।
और वो पानी को मेने पीया पे छाटा तो पीया मुस्कुराने लगे ।
तो पीया ने भी बादल को छूके मुझपे बूंदे गिराई ।
और इतने में सुखपाल बदलो के बिचसे निकल गया ।
जेसे ही आगे फिर से सुखपाल बादलो को चीरता हुवा निकला की बरसात होने लगी ।
और ठंडी ठंडी बूंदे मुझे और पिया को छूके मुस्कुरा रही है।
सुखपाल आगे आगे उड़ रहा है ।
निचे पीया मुझे चांदनी चौक , लाल और हरा वृक्ष , चौक की रेत , सब दिखाते हुवे इश्क़ की गुफ़तगू करते करते आगे ले जा रहे है।
और देखते देखते ही हमारा सुखपाल 6 भोम में आके पहली गली में खड़ा हो गया ।
पहले पीया सुखपाला से उठे और निचे उतरे ।
और अपना हाथ आगे बढ़ाके मेरा हाथ थाम के मुझे उतार सुखपाल से ।
सुखपाल से उतरके मेने देखा की 6 भोम में अनेको सुखपाल सजे हुवे है।
और हर एक अलग अलग शोभा से सजा है ।
कई सुखपाल पंखो वाले हे , कई गुब्बारे जेसे है तो कई विमान जेसे है ।
ऐसे अनंत सुख से भर पुर सुखपाल को में निहारे जा रही हू।
🛩✈🛰🚀
पीया मेरा हाथ थामे मुझे आगे ले जाते है 28 थंभ के चौक मे ।
जहां सब से बड़ा सुखपाल यानी तखतरवा दिखाते है ।
तखतरवा 16 हांस का सजा हुवा है।
जिसके 16 पाये है ।
धनी मुझसे कहते है तुम आ गयी हो अब हमारी हर एक सखी आ जाये और हम जल्दी अब इस तखतरवा में शेर करने जाए ।
तख्तरवा में खुर्सिया , सिंहासन कुछ कह रहे है ।
आओ हम सब इन सुखो से भरे सुखपाल , तखतरवा , खुर्सिया ,सिंहासन के सुखो को ले लज्जत को ले
इनसे बाते करे ।
और कुछ इनके दिल की भी सुने ।
छत पे सोते सोते जब आकाश की और नजरे बढ़ी मेरी तो रात के अंधेरे में टीम टिमाते हुवे तारो के बिच में चांद की चांदनी मनमोहक लग रही थी इस फर्श पे भी ।।
इतने अनंत तारो के बिच में एक विमान 🛩 तारो की तरह ही टीम टिमाता हुवा चल रहा था ।
एक और ठंडी पवन की फुहार और उसमे ये विमान जिस पे मेरी नजरें अटक सी गयी ।
जेसे जेसे विमान दूर दूर जा रहा था उसके साथ साथ साथ ही मेरी नजर दूर दूर जा रही थी ।
एक पल आया की विमान इतना दूर निकल गया की मेरी नजरो से अब वो ओझल हो गया ।
इतने में मेरी आंखे बंध हुवी पर मेरा दिल उसी विमान के विचार में खोया था ।
में दिलो दिल में ही धनी से बात कर रही थी की धनी फर्श का यह विमान देख के मजा आ रहा है तो मेरे अर्श के सुखपाल विमान की शोभा तो कितनी हसीन मनमोहक होगी ।
यह विमान तो देखते देखते आगे चला गया ।
पर मेरे धाम में तो अभी नजर देखने जाहि रही होगी उससे भी तेज वाउ की गति और मन की गति से भी तेज सुखपाल उड़ते है ।
सुखपाल के यही विचारो में में अर्श को दिल में बसाये उस सुख को याद कर रही हु ।
सुखपाल को याद करते करते दिल में एक ही चौपाई याद आए जा रही थी ।
" सुखे बेसी सुखपाल में ,
देसी वतन पहोचाए "
🛩🛫🛩🛫🛩🛫🛩
इसी चौपाई को याद करते हुवे दिल सुख और आनंद से भरे जा रहा था ।
और में दिल की इस खुसी को लिए गुम्मट जी के दरवाजे पे आके अपने आप को निहारती हु ।
तब मेने देखा गुम्मट जी में मजलिश का समय था जिस से एक और एक सुंदर साथ चर्चा कर रहे थे तो बाकी साथ चर्चा सुनने बैठे है ।
मे भी गुम्मट जी में बिलकुल धनी के सनमुख होके बैठ गयी नजरो से पीया को निहार रही हु
तो कानो से चर्चा सुनरही थी ।
इतने में चर्चा में सुंदर साथ ने कहा जिस तरह से फर्श पे कोई विदेश जाता है तो कहा जाता है की सात समुन्दर पार जाना है ।
उसी तरह हमें भी अपने घर अर्श में मेहर के सागर की सोभा में डूब सागर को पार करके आगे जाना है ।
बस इसी पल में सागर पे मेरी नजरे कान दिल सब कुछ ठहर गया और मेने खुद को महेर सागर सर्वरस से भरे रसीले सागर में खुद को पाया ।
सागर की अनंत शोभा को मेरा दिल निहार रहा था ।
अनंत रंगो से सजा ये महेरो का सागर आकर्षित कर रहा है ।
महेर से भरे इस समुन्दर को पार करके मुझे रँगमहोल की और बढ़ना है ।
महेर के सागर में जहा में सुख ले रही हु ।
तो वो महेरो का सहेंशा खुद मुझसे दूर कैसे रहे सकता था ।
जिसने मुझसे कहा है की सूखे बेसी सुखपाल में मुझे वतन ले जाएगा ।
बस मेरे आने की खबर उसे पहलेसे ही तो थी ।
क्यों की उसी ने तो मुझे बुलाया है अपनी और खीचा है ।
जहां में सागर के अनंत रंगो को निहार रही थी वही रंगो के रंगीले बादसाह खुद मेरे नजरो के सामने आके खड़े हो गए ।
पीया.... के आने पे हर एक रंग में और कई रंग झलकने लगे ।
और रंगोसे भी ज्यादा मेरा तन मन दिल रंगीन हो गया है ।
पीया पास आके जब आँखों से निहारते है मुझे तो मुझे लगा जितना इस पल का इंतजार मुझे था उससे भी ज्यादा पीया इस पल के लिए राह तक रहे थे ।
पीया ने गले लगके कहां आओ मेरी रूह ।
कब से राह तक रहा हु ।
अपने घर में अंदर चलो ।
और पीया के मुख से यह बात निकली उसी पल सुखपाल सामने आके खड़ा हो गया ।
सुखपाल भी मानो प्रणाम कर रहा हो ऐसे झुकने लगा ।
सुखपाल को देखके दिल सुख ही सुख का अनुभव कर रहा है मेरा ।
सुखपाल की सोभा को में हाथो से छूके देख रही हु ।
तिन भाग में सजा सुखपाल मुझे अपनी और आनेको कह रहा है ।
दो भाग बैठक के आमने सामने के ।
और एक भाग दोनों बैठक से निचा ।
इस निचे भाग पे ही पैर रख के चढ़ के बैठक पर बैठा जाता है ।
आमने सामने की बैठक पे गादी सुहानी लग रही है ।
4 डाण्डे और छत पे 2 छत्री , और 2 गुम्मट सुखपाल को और सुंदर बना रहे है ।
दाए और बाए रस्सी जेसे दो गोफने इतने मनमोहक रूप से लटक रहे है की उनकी सोभा का बर्णन कैसे करू ।
धनी मुझे सुखपाल को इतनी गहराई से देखते हुवे कहते है ।
मेरी प्यारी.... बस इसे देखती ही रहोगी की इसमें बैठ के भी इसका आनंद लेना है ।
और हम हस पड़े ।
पीया ने अपना एक चरण सुखपाल में रखा तो एक हाथ से गोफने को पकड़ा
और ऊपर चढ़े ।
और अपना हाथ आगे बढ़ाया और कहा चलो सजनी अर्श के अंदर चले।
और मेने भी अपना हाथ पीया के हाथ में रखते हुवे सुखपाल में चढ़ी।
और पिया ने खुद मेरी दोनों बाजु पकड़ के प्यार से मुझे बिठाया ।
और धनी मेरे सनमुख विराजमान हुवे।
सुखपाल में बेठके जो सुख मिल रहा है ये सुख सब्दातित है ।
सुख पाल भी आज बहोत खुश है कई दिनों से सुखपाल भी इस पल का इंतजार कर रहा था की कब मेरी सखिया आये और धनी के साथ मुझमे सवार हो ।
आखिर वो पल आहि गया और जेसे ही धनी का हुकम हुवा सुखपाल उड़ने के लिए तैयार हो गया ।
अभी तो एक और धनी का हुक्म हुवा ही हे की इतने में सुखपाल पवन से भी तेज जमीन से आसमान में आ गया ।
आसमान में सुखपाल उड़ने लगा एक और मेरी और पीया की नजरे तो एक दूजे में ही एक दूजेको ही निहार रही है ।
तो दूसरी और सुखपाल के साथ साथ हवा भी टकराती हुवी कानो में आके गुन गुना रही है ।
जमीन की रौशनी आकाश में आके मुझे और पिया को छु रही है ।।
तो आकाश का नूर हमे छूता हुवा जमीन से मिल रहा है ।
हर तरह आज मिलन की घड़ी है
मेरा पीया से मिलन
हवा का सुखपाल से मिलन
सुखोपाल का हमसे मिलन
आकाश का जमीन से मिलन
जमीन का आकाश से मिलन .....
सब का एक दुजेसे मिलन मेरे और पिया के मिलन को और सुंदर बना रहे है ।
पीया का मुझको प्यार से निहारना अपना हाथ आगे बढ़ा के मुझे उनके पास बुला के अपने साथ बिठाना क्या कहु ।
इस बेला को आसमान भी देख के खुस हो रहा है।
और फूलो की बरसात हमपे कर रहा है ।
आगे आगे सुखपाल बढ़ रहा है तो पिया अब मुझे अपने पास बिठाके जमीन की सुहानी शोभा को दिखा रहे है ।
कभी बन , तो कभी नहरे , कभी बगीचे , तो कहि फूल, कहि नदि , तो कही पुल मुझे पिया दिखा रहे है।
बस आज में आकाश में उड़ती ही रहु .....
उड़ती ही रहु .....
सुखपाल ने अपनी गति और तेज करदी कभी निचे आता है कभी जोरो से आकाश में उड़ता है कभी दाए तो कहि बाए हिलोडे लेता है ।
सुखोपाल के इस दाए बाए के हिलोडे के साथ पिया और मेरा भी एक दूजे को छूते हुवे हिलोडे लेना और नजदीक हमे ला रहा है ।
इश्क़ के इस सुहाने पल में आनंद ही आनंद आ रहा है ।
सुखपाल जेसे ही आगे बढ़ा तो सामने बादलो का ढेर था ।
मेने हाथ को लंबा करते हुवे बादल को छुआ ।
तो मेरा हाथ पानी से भर गया ।
और वो पानी को मेने पीया पे छाटा तो पीया मुस्कुराने लगे ।
तो पीया ने भी बादल को छूके मुझपे बूंदे गिराई ।
और इतने में सुखपाल बदलो के बिचसे निकल गया ।
जेसे ही आगे फिर से सुखपाल बादलो को चीरता हुवा निकला की बरसात होने लगी ।
और ठंडी ठंडी बूंदे मुझे और पिया को छूके मुस्कुरा रही है।
सुखपाल आगे आगे उड़ रहा है ।
निचे पीया मुझे चांदनी चौक , लाल और हरा वृक्ष , चौक की रेत , सब दिखाते हुवे इश्क़ की गुफ़तगू करते करते आगे ले जा रहे है।
और देखते देखते ही हमारा सुखपाल 6 भोम में आके पहली गली में खड़ा हो गया ।
पहले पीया सुखपाला से उठे और निचे उतरे ।
और अपना हाथ आगे बढ़ाके मेरा हाथ थाम के मुझे उतार सुखपाल से ।
सुखपाल से उतरके मेने देखा की 6 भोम में अनेको सुखपाल सजे हुवे है।
और हर एक अलग अलग शोभा से सजा है ।
कई सुखपाल पंखो वाले हे , कई गुब्बारे जेसे है तो कई विमान जेसे है ।
ऐसे अनंत सुख से भर पुर सुखपाल को में निहारे जा रही हू।
🛩✈🛰🚀
पीया मेरा हाथ थामे मुझे आगे ले जाते है 28 थंभ के चौक मे ।
जहां सब से बड़ा सुखपाल यानी तखतरवा दिखाते है ।
तखतरवा 16 हांस का सजा हुवा है।
जिसके 16 पाये है ।
धनी मुझसे कहते है तुम आ गयी हो अब हमारी हर एक सखी आ जाये और हम जल्दी अब इस तखतरवा में शेर करने जाए ।
तख्तरवा में खुर्सिया , सिंहासन कुछ कह रहे है ।
आओ हम सब इन सुखो से भरे सुखपाल , तखतरवा , खुर्सिया ,सिंहासन के सुखो को ले लज्जत को ले
इनसे बाते करे ।
और कुछ इनके दिल की भी सुने ।
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