Monday, 6 June 2016

क्या माया में हम इतने गर्क हो गये है...???

मारा व्हाला आतमसम्बन्धी सुन्दरसाथजी...

आज हमें पाक... पवित्र श्री कुलजम वाणी की बदौलत... अक्षरातीत श्री प्राणनाथजी... श्री राजश्यामाजी से हमारी मूल निसबत का पता चला है...!

हमारी मूल बैठक क्षर अक्षर के पार अखंड परमधाम के अंदर श्री रंगमहोल की प्रथम भोम... पांचवी गोल हवेली मूल मिलावा में है...!

फिर भी... हे सुन्दरसाथजी...

हम इतने निष्ठुर... इतने कठोर क्यूं है...?

हम सब की आतम की अपनी फितरत... अखंड की हमारी अपनी इश्क की प्रकृति... परमधाम का हमारा अपना नूरी स्वभाव... धामधनीजी से हमारी अपनी पूर्ण निसबत... अखंड परमधाम की ओर हमें खींचते क्यों नहीं है...???

क्या माया में हम इतने गर्क हो गये है...???

क्या हम इतने गये गुजरे है की... हमारा अपनापन... हमारा अपना धाम एवम हमारे अपने धामधनीजी को ही भूल गये है...?

पाक... पवित्र श्री कुलजम वाणी में हमारे सुभान... हमारे खाविंद... हमारे आधार... हमारे राहबर... हमारे दिलबर... हमारे प्राण प्रियतम श्री प्राणनाथजी... श्री युगलस्वरूप... श्री राजश्यामाजी के पूर्ण स्वरूप का बरनन जो लिखा है.. वो हमारी आतम की नजरो में क्यों नहीं आता है...?????

श्री कुलजम वाणी के हिसाब से देखा जाए तो...

श्री राजजी का... श्री श्यामाजी का पूर्ण स्वरूप...

अतिसुन्दर है...!

अनुपम है...!

मनमोहक है...!

दिलभीतर उतरनेवाला है...!

हमारी आतम के अंग अंग को... रोम रोम को... पाक... पवित्र इश्क से सराबोर करनेवाला है...!

परिपूर्ण नूर को रोशन करनेवाला है...!

अपनी ओर खींचनेवाला है...!

होंश... जोश को भूलानेवाला है...!

दिवाना... पागल बनानेवाला है...!

दिलोदिमाग से घायल करनेवाला है..!

हे मारा व्हाला सुन्दरसाथजी...

पाक पवित्र श्री कुलजम वाणी अनुसार... हमारे धनीजी का यह रंगीला शब्दातीत स्वरूप... आज हम... श्री इंद्रावती जी की आतम की नजरो से देखे तो...

आहां.. हां...हां....!!!

शब्द दिल भीतर ही अटक जाते है...!

सारे शब्द आंसू बनकर बाहर आ जाते है...!

आओ सुन्दरसाथ जी... आज हम अपनी अपनी आतम को बड़े प्यार से कहते है...

हो मेरी आतम...

तू अपनी निज स्वरूप परआतम से दिल लगाकर... एकबार तो देख...!

तुझे अपने दिल भीतर कुछ कुछ होता क्यों नहीं...?????

जीव का संग करके तूने अपनेआप को इतना निष्ठुर क्यों कर दिया है...?????

पाक पवित्र श्री कुलजम वाणी पढकर भी आज तुझ में परिवर्तन क्यों नहीं है...?????

क्या तुझे अपने निज घर अखंड परमधाम वापस जाना नहीं है...?????

सप्रेम प्रणामजी....

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