मेरी आतम तितली की तरह हवा में लहराती हुवी गुम्मट जी के दरवाजे पे जाके खड़ी है।
गुम्मट जी की परिक्रमा करके प्रणाम करती में लहराती हुवी मनो उड़ रही हु।
गुम्मट जी के सिंहासन पे विराजमान पिया को देखति हुवी प्रणाम करके गुम्मट जी के सिंहासन को निहार रही हु
अर्श का पातघाट ही मानो सामने है 12 पाये सिंहासन के पाटघाट की प्रतिकृति मुझे जिलना करने के लिए खिचे जा रही है ।
सिंहासन पे कुलजम
( कुलजुम ) अर्श का जल बहता हुवा जल की बहने की मीठी ध्वनि ने मुझे अर्श पहोचा दिया ।
मेने कुछ ही पल में देखते देखते ही अपने आप को अर्श में जमुना जी में पाटघाट पे बेठे हुवे देखा जल में पाउ मेरे में मस्ती में झुला रही हूँ ।
तो खूद जल भी मुझे छुके जोरो से लहरा के मुजे भिगोता हुवा बहे जा रहा है ।
चिद घन स्वरुप से बहने वाला यह प्रवाही स्वरुप जल मीठा मधुर कोमल चेतन सुगंधित मानो मौसम को सुहाना बना रहा है ।
जमुना के जल में झिलना करके देहुरी में जाके मेने सिणगार सजा जो पिया मन भाये ऐसे सिणगार को सज के खूद पे ही में इतरा रही हू ।
सज धज के बन ठन के नैनो में सुरमा पिया के इश्क़ का लगा के नेनो से बाण चलाने के लिए और उनके नैनो के त्रिगुडे तीर से दिल को घायल होने को तैयार हो के चल रही हु।
इस मधुर मिलन के लिए मौसम भी झूम रहा है ।
इश्क़ की ठण्ड में बादल आके आवाज कर रहे है ।
रस से भरी सुंगन्ध को लेके हवा तेजी से चल रही है ।
वनो के पत्ते वनराइ हवा से झूम रही है ।
अचानक पंखी बन्दर सब आके आनंद में आके मुझसे मिल रहे है ।
यह नजारा देखते ही हिर्दय में मस्ती भर गयी है ।
अमृत वन के बिच के रास्ते से चली जा रही हूँ ।
मेरे रास्ते से के दोनों किनारे अमृत बन मनो मुझे देख के खुसी से नाच रहा है ।
दोनों और के पेड़ो की डालिया ने बिच में रास्ते के ऊपर मेहराब बनाई हुवी सुहानी लग रही है ।
इन सब सोभा को निहारते हुवे चांदनी चौक में आके हर जर्रे जर्रे को देख के दिल में बस पिया मिलन को लेके चल रही हूँ ।
सौ सीडी की सोभा देख के पसमि लाल गिलम की कोमलता को दिल में भर के लटक मटक के उत्साह से बस दौड़े जा रही हु आज तो।
सिडिया चढ़ के सामने धाम दरवाजे को देख रही हूँ ।
दरपण रंग के किवाड़ में आज में खुद को देख रही हु खुद का सिंगार देख के सोच रही हु सजनी वही सिंगार जो सजन मन भाए ।
बस दिल की इस आवाज को सुन के धाम दरवाजा खुल गया और मेने एक क्षन की भी देरी ना करते हुवे धाम दरवाजे के अंदर चौखट पार करके प्रवेश किया मेने ।
और सब सोभा को देख के में 28 थम्भ के चौक में आके खडी हु ।
पिया से मिलन की आज खुसी इतनी है की क्या कहु दिल के हाल को ।
मेरे सामने मेने 4 चौरस हवेलियो को देखा ।
4 चौरस हवेलियों को मेंने पल भर में मानो उलंघ् के आज पार कर लिया है क्यों की उनके दीदार की प्यास जो लगी है ।
4 चौरास हवेलिया पार कारके अब मेरे सामने पहली गोल हवेली है ।
दिल की धड़कन और तेज हो गयी है ।
आखिर वो पल वो घडी नजदीक है जिस के लिए रूप सिंगार सजा है ।
आखिर वो पल मिलन का दीदार का आहि गया है ।
में गोल हवेली के सामने आके खडी हू ।
मेने यहाँ 4 दरवाजे और 60 मंदिरो की गोलाई में फिरि हार को मुस्कुराते हुवे देखा ।
हर और से नूर ही नूर बरसे जा रहा है ।
रंगो तरंगो की आपस में जंग तो दिल को और उत्साह से भरे जा रही है ।
अब मेने दरवाजे से अपने पैर को सरमाते हुवे धीरे से उठाके दरवाजे के अंदर प्रवेश किया।
दो गली एक थंभ की हार को छोड़ कर में गोल चबूतरे पे आके खड़ी हूँ ।
मूल मिलावे के सुख में आखिर अब मेने प्रवेश कर लिया है ।
हर और नजर फेर रही हु
मेरे घर को मेरे मूल को में निहारे जा रही हू ।
वाह..........
सोभा यहाँ की क्या कहु सोभा का यह भंडार है।
नंगो से जडा चबूतरा चौसठ पहल का गोलाकार जिस पे चौसठ थंबो की 3 हार आई है।
थंभ थंभ के बिच नूर ही नूर छलक रहा है ।
हर थंभ पहलदार है ।
एक एक पहल दिल को घायल कर रहा है ।
थंबो की मेहराब तो मानो मुझसे बाते कर रही है।
चारो दिशा के दरवाजे को छोड़ के कंचन रंग का कथेडा तो मानो बस देखती ही रहु ।
इन्हें घेर के लाल तकिये तो कोमलता की व्याख्या कर रहा है ।
मेरी नजर तो बस इस नूर के बादसाह को देखने के लिए ही मचल रही है ।
मेरे पेरो को मेने आगे बढ़या तो लाल रंग का पसमी गलीचा पैर रखते ही अंदर धस जा रहा है ।
मानो मुझे गले लगा रहा है ।
गलीचे पे अनेको बारीक चित्रकारी तो दिल ले रही है
उस पे बने बेल बुटे पंखी खिल उठे हे मेरे पैर रखते हि ।
जसे मेने पंखी की नक्सकारी को हाथ लगाया तो चेतन ता के कारन मेरे हाथो में आ गया और में उसे प्यारसे सहलाती हुवी देख रही हूँ ।
और मैंने मेरी परआतम को इस गिलम पे बेठा हुवा देखा है ।
उसी परआतम की नजर से मेरे दूल्हा को देखने का दिल के भाव् लेके में आगे बढ़ रही हूँ ।
दिल में उमंग उत्साह इश्क़ उछल रहा है पिया मिलन का ।
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